21-05-2020, 12:16 PM
कुछ देर तक यूँ ही अपने अधरों का अमृतपान कराने के बाद रेखा ने जो किया वो जाकिर के लिए 440 वाल्ट के झटके से कम नहीं था। रेखा ने अपने अधरों को जाकिर के लिए ऐसे छोड़ दिया मानों कोई निरीह हिरनी शेर के पंजो में अपने आपको बेबस होकर छोड़ देती है। जिससे उत्साहित जाकिर पूरी मर्दानगी और जोश के साथ पूरे ध्यान और मन लगाकर होठो को चूसने लगा। जाकिर के ध्यान का अपने होठो में लगे होने का फायदा उठाते हुए रेखा ने चुपके से जाकिर के जेब से अपनी पेंटी और उसके गले में लटकी अपनी ब्रा को चुपके से निकाला और अपनी सलवार के अन्दर ठूंस लिया। अब रेखा का ध्यान अपने होठो पर गया जो की जाकिर के मुह के अन्दर घुसे हुए थे और जाकिर के चूसने से और भी अन्दर ऐसे खींचे चले जा रहे थे मानो कोई शक्तिशाली वेक्यूम क्लीनर किसी गुलाब की पंखुड़ी को खिचता हो। रेखा ने धीरे धीरे अपने दोनों हाथ जाकिर और अपने बीच जगह बनाते हुए घुसाया और जाकिर के सीने पर अपनी हथेलियाँ रखकर अपनी पूरी शक्ति से एक जोर का धक्का लगाया। धक्का लगते ही जाकिर के मुह से रेखा के होठ जोर की पुच्च्च्च्च्च की आवाज के साथ आजाद हो गए और जाकिर रेखा से लगभग दो फुट दूर छिटक गया।
जाकिर अचानक लगे धक्के या यूँ कहें की अचानक मिले इस झटके से घबरा सा गया पर ज्यादा घबराहट उसे रेखा में आये इस अचानक बदलाव से होने लगी की कहीं उसकी जल्दबाजी ज्यादती से हाथ आई चिड़िया उड़ तो नहीं गयी। इसी पशोपेश में, घबराहट और उत्तेजना के कारण जोरो से धडकते दिल को सँभालते हुए अपनी आवाज में थोड़ी मिठास लाते हुए उसने अपने हाथ आगे बढ़ाते हुए कहा," क्या हुआ मेरी जान! अपने दीवाने को यूँ दूर क्यूँ कर दिया। कुछ खता हो गयी क्या मुझसे?" ये कहते हुए भी जाकिर की धडकने राजधानी एक्सप्रेस की तरह बढ़ने लगी जो की रेखा में आये इस बदलाव के कारण थी या फिर चुम्बन की गर्माहट से उत्पन्न उत्तेजना से थी ये तो खुद जाकिर भी नहीं समझ पा रहा था। अचानक जाकिर की नजर रेखा की नशीली आँखों से निचे उसके थरथराते हुए लाल सुर्ख होठ पर गयी जो चूसे जाने के कारण दहकते अंगारों जैसे सुर्ख हो गए थे। इस थरथराहट का साथीदार रेखा की सुराहीदार गर्दनो के लगभग छः इंच नीचे की ओर था। जब जाकिर की नजर हांफती रेखा के उन गोल गोल गुल्लकों पर पड़ी जो की उसकी तेज सांसो के साथ तेजी से उपर नीचे उछल रहे थे, तो वो ऐसी ललचाई नजरो से उन्हें देखने लगा मानों उसने अपनी जिन्दगी भर की जमापूंजी उन गुल्लको में ही जमा कर रखी हो।
"बस बहुत हुआ। सच में बहुत बड़े कमीने हो तुम।" उसकी तन्द्रा रेखा की मीठी पर गंभीर आवाज से टूटी।
जाकिर अचानक लगे धक्के या यूँ कहें की अचानक मिले इस झटके से घबरा सा गया पर ज्यादा घबराहट उसे रेखा में आये इस अचानक बदलाव से होने लगी की कहीं उसकी जल्दबाजी ज्यादती से हाथ आई चिड़िया उड़ तो नहीं गयी। इसी पशोपेश में, घबराहट और उत्तेजना के कारण जोरो से धडकते दिल को सँभालते हुए अपनी आवाज में थोड़ी मिठास लाते हुए उसने अपने हाथ आगे बढ़ाते हुए कहा," क्या हुआ मेरी जान! अपने दीवाने को यूँ दूर क्यूँ कर दिया। कुछ खता हो गयी क्या मुझसे?" ये कहते हुए भी जाकिर की धडकने राजधानी एक्सप्रेस की तरह बढ़ने लगी जो की रेखा में आये इस बदलाव के कारण थी या फिर चुम्बन की गर्माहट से उत्पन्न उत्तेजना से थी ये तो खुद जाकिर भी नहीं समझ पा रहा था। अचानक जाकिर की नजर रेखा की नशीली आँखों से निचे उसके थरथराते हुए लाल सुर्ख होठ पर गयी जो चूसे जाने के कारण दहकते अंगारों जैसे सुर्ख हो गए थे। इस थरथराहट का साथीदार रेखा की सुराहीदार गर्दनो के लगभग छः इंच नीचे की ओर था। जब जाकिर की नजर हांफती रेखा के उन गोल गोल गुल्लकों पर पड़ी जो की उसकी तेज सांसो के साथ तेजी से उपर नीचे उछल रहे थे, तो वो ऐसी ललचाई नजरो से उन्हें देखने लगा मानों उसने अपनी जिन्दगी भर की जमापूंजी उन गुल्लको में ही जमा कर रखी हो।
"बस बहुत हुआ। सच में बहुत बड़े कमीने हो तुम।" उसकी तन्द्रा रेखा की मीठी पर गंभीर आवाज से टूटी।