22-02-2019, 12:10 AM
उसके पैर उसी तरह हिल रहे थे.. वो अपने चुतद ऊपर कर रही थी.. और अचानक उसने मुझे जोर से भींच लिया.. और आह्ह..आह्ह.. आह... करते हुए अपने पैरों को पूरा लंबा कर दिया.. मै समझ गया वो झड़ गई है..अब उसको मैंने फ़िर से होंठो से चूमना शुरू किया.. और चूमते हुए मैंने उसके हाथों को ऊपर उठाया और मेरा मुंह उसके बगल में घुसाया.. ओह्ह.. उसके बगल की वोह मादक खुशबू.. पसीने और पावडर की मिलीजुली खुशबू.. मैंने उसे सूंघा और फ़िर मेरी जीभ फेरते हुए चाटने लगा. उसे गुदगुदी होने लगी.. मैंने दोनों बगलों को करीब १० मिनट तक छठा.. वो मचलती रही.. फ़िर मै दुबारा उसके स्तनों पर आ गया.. इस बार मै पुरे स्तन को हथेली में लेता और निपल समेत जितना मुंह में ले सकता उतना मुंह में लेता और चूसता.. दोनों चूंचिया.. अब लाल हो चुकी थी.. दबाने से नीले निशान दिख रहे थे.. मैंने जहाँ जहाँ दांत लगाये वहां पर दांतों के निशान भी पड़ गए थे... रागिनी सिर्फ़ आह.. ओह्ह.. कर रही थी.. मै उसकी पतली कमर को सहलाता.. पेट पर हाथ फेरता.. अब मै नीचे पेट की तरफ़ आया.. जैसे ही गोरे पेट पर किस किया.. वो थोडी उछल पड़ी.. मैंने अपने दोनों हाथ उसके चूतड के नीचे डाल दिए. उसके चूतड किसी कुंवारी लड़की जैसे सख्त थे.. लेकिन उस सख्ती में एक मुलामियत का अहसास था... मैंने उन्हें दबाते हुए मेरी जीभ उसकी नाभि पर गोलाई में घुमाना शुरू किया.. अब वो फ़िर से बेचैन होने लगी थी.. ओह्ह संजय.. बहुत बदमाश हो तुम.. उफ़ नही.. बस.. मै.. मर जाउंगी.इ.इ.इ.इ." और वो थोड़ा उठ कर बैठ गई.. मैंने जल्दी से उसके होंठो पर अपने होंठ रख दिए. और चूमने लगा.. अब वो भी मेरा पूरा साथ दे रही थी... मैंने अपनी जीभ उसके मुंह के अन्दर डाल दी.. फ़िर उसकी जीभ मुंह में लेकर चूसने लगा..मुझे मालूम था की अब रागिनी भी गरम हो चुकी है फ़िर से.. मैंने उसके चेहरे को दोनों हाथों से पकड़ा.. उसके चूंचियों को देखते हुए मैंने अपने होंठ उसके होंठो पर चिपका दिए.. और जोरो से चूसने लगा.. उसके मुंह से.. उम् उम् आह की आवाज़ निकलने लगी.. मेरे हाथ स्तनों पर थे.. मैंने मेरे होंठ फ़िर से उसके निपल पर रखे ..उसका हाथ मेरे बालों में घूम रहा था.. इस पोज़ में मुझे थोडी दिक्कत हो रही थी. मैंने उसे सोफे के किनारे पर पैर लटका कर बिठाया और मै नीचे ज़मीन पर घुटनों के बल बैठ गया.. इस तरह बैठने से उसकी चूंचिया ठीक मेरे होंठो के सामने आ गई. मैंने दोनों चूंचियों के मेरे हथेलीयों में भर लिया और उसके निपल मुंह में लिए.. कभी कभी मै उसकी कमर को भी सहला देता था.. मैंने नीचे सर झुकाया तो मैंने देखा उसका पेटीकोट सामने से गीला हो रहा है.. मैंने मेरा मुंह नीचे की तरफ़ लाया उसके पेट पर से होते हुए उसके दोनों जांघों के बीच में मैंने सर रखा और नाभी का चुम्बन लेते हुए उसके जांघों को मेरे हाथों से फैलाया.. पेटीकोट का कपड़ा पूरा फ़ैल गया. मेरे होंठ उसकी जांघो पर पहुंचे पेटीकोट के ऊपर से ही..पैर फैला देने से मुझे उसकी उभरी हुयी चूत का आभास मिल रहा था. मैंने बहुत हलके से उस उभार पर होंठ रखे और "पुच्च..पुच्च." किया.. वो सिहर उठी.. अपनी जांघ सिकोड़ने लगी. अब मैंने उसका पेटीकोट निकलने का निश्चय किया और उसकी डोरी पर हाथ रखा. उसने मेरा हाथ पकड़ लिया "नही संजय.. ये मत करो.. प्लिज्ज़. तुम्हारी बीवी और मेरे पति के बारे में सोचो.. ये ग़लत है.. हम उनसे दगाबाजी कर रहे है.. रुक जाओ संजय." उसने मुझे रोकने का एक असफल प्रयत्न किया. और उठ कर खड़ी होने लगी.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.


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