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एक दिन अचानक
#7
संजय अभी अगर कोई आ जाए और हमें इस तरह देख ले तो? क्या होगा बोलो?

" फिकर मत करो इतनी सुबह कोई नही आयेगा. और फ़िर मैंने बाहर का दरवाज़ा अच्छे से बंद कर दिया है. इसलिए अगर कोई आयेगा तो उसे वैसे ही दरवाजे से वापस जाना होगा." कहते हुए अब मैंने उसे अपनी बांहों में भर लिया.. और उसके होंठों पर एक लंबा किस किया.. उसने भी अब मेरा साथ दिया.. उसकी साँस फूलने से उसने मुझे धकेला और बहुत ही सेक्सी नज़र से देखा..आह क्या दिख रही थी वो.. गोल गोल गोरे गोरे उरोज.. एकदम तने हुए और गुलाबी निपल...मैंने अपनी बनियान निकाल दी. मेरे बालों से भरे सीने में उसके गुलाबी निपल रगड़ने लगा...
उसने मेरी तरफ़ देखा और कहा "तुम बहुत बदमाश हो. एक दम गंदे." और फ़िर मेरे सीने से लग गई.. वो अपनी चूंचियों को मेरे नज़रों से छुपाने की कोशिश कर रही थी.मैंने उसे थोड़ा परे किया और अब मैंने अपना मुंह उसकी चूंचियों पर रखा और उसके निपल मुंह में लिया. दुसरे को उँगलियों से मसल रहा था.. उसने मेरा सर जोर से अपनी छाती पर दबाया.. और "आह्ह..बस..उफ़.. संजय.." करने लगी.. लेकिन मुझे तो नशा हो रहा था.. उसके मदमस्त स्तन.. चूसने में मुझे किसी शहद या मिठाई से ज्यादा मीठापन महसूस हो रहा था.. मै अब जोर से चूसने लगा..मैंने हलके से उसके बांये निपल में काट लिया ..ऊईई...उफ्फ्फ्फ़...बस संजय.. रुक जाओ.. अब और नही.." कहते हुए वो उठाने लगी. मैंने उसके कान में फुसफुसाते हुए कहा "नही रागिनी मुझे मत रोको प्लीज़.. मुझे आज मेरे सपनो की रानी को जीभर कर प्यार करने दो." और मै फ़िर से उसके निपल मुंह में ले कर एक एक कर चूसने लगा. उसके मुंह से अब.."आआआआआह्ह्ह..हाँ..संजय.. जोर से... उफ़. बहुत अच्छा लग रहा है.." कहते हुए मेरे सर को अपने सीने पर दबाने लगी.
मैंने अब उसकी साडी को निकालना शुरू किया.. वो उठने लगी..मैंने साडी निकाल कर फेंक दी.. अब वो सिर्फ़ पेटीकोट में थी... कमर पर थोड़ा गदरायापन था. उसकी नाभि बहुत गहरी थी. मैंने उसकी नाभि पर हाथ फेरा... वो मचल उठी..मैंने फ़िर से उसके गालों को चूमा.. फ़िर उसके कान पर गीली जीभ फेरा.. वो उछल पड़ी.. मै चाहता था की उसके उछलने से उसकी चून्चियां भी उछले.. लेकिन नही.. वो तो जैसे उसके सीने पर चिपकी हुयी थी.. जैसे किसी मूर्ति के स्तन हो.एकदम सख्त.. दोस्तों आप सोच सकते हो मेरी क्या हालत हो रही थी. उसके इस रूप को देख कर... उसके निपल मानो स्ट्राबेरी हों इस तरह गुलाबी से लाल हो रहे थे... मेरे चूसने से और कड़क हो गए थे.. मैंने उसके एक स्तन को पंजे से पकड़ा और ज्यादा से ज्यादा मुंह के अन्दर ले कर चूसने लगा... आह..आह.. ओह्ह.. संजय.. उफ़.. तुम बहुत बदमाश हो.. आह.. उफ़.. मुझे क्या हो रहा..इश..इश्ह.. कहते हुए वो अपनी दोनों जांघों को रगड़ने लगी.. संजय.. क्या कर रहे हो.. आ..आह्ह..बस.. हाँ दबाव.. चुसो.. और उसने एक हाथ से अपनी चूंची पकड़ी और मेरे मुंह में निपल डालने लगी....
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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RE: एक दिन अचानक - by neerathemall - 22-02-2019, 12:09 AM



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