20-05-2020, 03:44 PM
(16-05-2020, 11:09 PM)Niharikasaree Wrote:सुमन भाभी ने मेरे होंटो पर एक "लिटिल किस" दी , बस लिप्स से लिप्स टच कर के ..... फिर बोली अब जा ..... और कण्ट्रोल नहीं हो रहा है मुझसे .....
मैं --[ मन मैं ] सुमन भाभी कण्ट्रोल तो मुज से भी नहीं हो रहा और सबूत तो आपके हाथ मैं ही है "मेरी चाशनी" .. रोक लो न ......
एक ही शब्द निकल पाया मुह से . "जी "
..................
प्रिय सहेलिओं ,निहारिका का प्यार भरा नमस्कार ,अब आगे ,
हम्म, सबूत सुमन भाभी के हाथ मैं छोड़ कर निकली घर कि और आज लग रहा था कि घर कितना दूर है, चला नहीं जा रहा था सुमन भाभी के घर से दूर, जी चाह रहा था कि वापस चली जाऊ सुमन भाभी के पास और ..........
एक - एक कदम भारी था, घर से आधी दूर आ कर कुछ होंश आया कि अब माँ को क्या जबाब देना हैं सोच ले निहारिका कुछ जायदा ही लेट हो गयी आज तो , बता देना क्या खाने वाली थी और क्या चख के आई हैं - "चाशनी" फिर आई एक स्माइल और आया ध्यान कि वो आधी मूवी भी तो देखनी है और सबूत भी साफ़ करना है. "चल जल्दी निहारिका" - कहा अपने आप से
तेजी से चलते हुए, घर तक तो पहुँच गयी थी पर , दोनों जांघो तक टपक क्र रिस आई थी मेरी "चाशनी" मैं ही जानती हूँ कि उस दिन अपनी टपकती हुई चाशनी के साथ कैसे चली हूँ घर तक उस पर हाथ भी नहीं लगा सकती रस्ते मैं चलते हुए , लोग देख लेंगे तो सोचंगे "लौंडिया गरम हो रही है " ..... सही सलामत घर भी न पहुंच पाती.
घर के गेट पर पहुंच कर कुछ जान मैं जान आई और दो ऊँगली सीधी "नीचे वाली" पर रगड़ दी "साली ने आज तो जान ही ले ली", एक हाथ से घंटी बजायी कुछ देर मैं माँ ने गेट खोला और बोला "आ गयी तू, अभी सुमन से बात हुई" बोली आने वाली होगी निहारिका
मैं - हम्म, थोडा लेट हो गयी न ..... [ अब डर तो थी ही, अब यह अंदाजा लगाना था कि माँ कितना गुस्सा है]
माँ - हम्म, खा किया खाना , भर गया पेट बातो से, सुमन भी न कितनी बातूनी हैं उसके पास तो चोबीस घंटे भी कम पड़े ...
माँ - अरे तेरे दुपट्टे कि यह स्टाइल सुमन ने बनायीं , है न ... सुमन को बहुत अच्छी लगती है, मेरे भी बना देती थी फिर हम दोनों मार्किट मैं एक जैसे लगते ..... हा हा हा , क्या दिन थे ... आज तुजे उसी स्टाइल मैं देख कर पुरानी यादे ताजा हो गयी ....
मैं - हम्म, ठीक कहती हो माँ ,अच्छी हैं सुमन भाभी .
फिर धीरे से निकल पड़ी , माँ को बीती यादो मैं छोड़ के , न जाने कौन सी यादो मैं डूबी थी .... मुझे जाना था बाथरूम तक ... ताकि मैं सबूत से साथ खिलवाड़ कर सकु और मीठी खुजली को मिटा सकू ... फिर मुड के नहीं देखा माँ को , न जाने क्या पूछ लेती .
बाथरूम मैं आ कर , अब चैन मिला . जब साँस मेरी काबू मैं आई तब देखा, "v" शेप दुपट्टा, फिर ध्यान आई माँ कि बात वो भी ऐसी ही दुपट्टा लगा कर निकला करती थी , एक स्माइल आ गयी ....
अब "नीचे वाली" कि खबर साली ने परेशान कर दिया , खोली लेगिगिंग्स मैंने पूरी उतार दी, यो तो मैं सिर्फ नीचे ढलका कर सु - सु कर लेती हूँ जैसा आम तौर पर हर लड़की करती है पर आज तो मुझे देखना था कि "नीचे वाली " ने क्या काण्ड किया है, सुमन भाभी के घर से मेरे घर तक.
कुर्ती ऊपर करी और सीट पर बैठ गयी , पहेले देखा कि मेरी जांघे ऐसी चिपचिपी उफ़ जैसी "सच्ची" दो तार कि चाशनी लगा दी हो. एक हाथ से कुर्ती पकड़ी , साली वो भी बगावत पर, खुल के एक कोना नीचे आ गया , उफ़, अब यह भी शामिल ....
किया फोल्ड कुर्ती को और डाल दिया ब्रा के बीच मैं, जोबन पर , टिक गयी अबकी बार मेरी कुर्ती. अब ध्यान से देखा कि, चाशनी और ऊँगली लगा के नाक के पास लायी .... उफ़ नशीली खुशबू .... यकीं नहीं होता .... यह मेरी खुशबू हैं ?
फिर मैंने अपनी ऊँगली को अपनी नीचे वाली पर रगडा और फिर याद आया कि मूवी मैं उस लड़की ने तो अन्दर डाल दी थी ,
मैंने कोशिश करी पर डर था कि कुछ हो न जाये, पर दिल नहीं मान रहा था, आखिर ... अन्दर टच कर ही लिया , गरम - लावा था रिसता हुआ .......अन्दर तो जगह ही नहीं थी, सो निकल ली मैंने वापस और सुंघ ली .... क़यामत सी नशीली ....
"दोनों ऊँगली - "चाट" गयी " -- सच्ची .
अपनी दोनों ऊँगली मुह मैं रख कर अपनी जीभ से उस रस को चाटती रही और इधर मेरा "सु -सु" निकल रहा था, धीरे - धीरे और मेरी आँख बंद मुह मैं ऊँगली और ऊँगली मैं चाशनी और उस चाशनी में "मैं" खोयी हुई..........
न जाने मेरा सु - सु बंद हो गया , और ऊँगली कि चाशनी ख़तम हो गयी .... और मैं बैठी रही ....... करीब दस मिनिट के बाद जब मेरी उँगलियाँ फीकी लगी , तब अहसास हुआ कि मैं क्या कर रही थी,......
"सुमन भाभी" - एक ही शब्द निकला मुह से. और हंसी आ गयी ..... क्या कर दिया भाभी आप ने ........
आज मुझे मेरी "नीचे वाली" पर बड़ा प्यार आ रहा था, इतना तंग करने के बाद भी .... न जाने क्यों .....
फिर उठी मैं , फ्लश ओन किया और हाथ - मुह धोये , तोवेल से पोंछ कर हटी तो ध्यान आया .... अब क्या पहने ? लेगिगिंग्स
न - वो तो सबूत हैं ....... फिर मन मैं आया कि इस लेगिग्न्स को जब तक हो सके धोऊगी नहीं .......
क्या हो रहा था मुझे ............ कुछ समझ मैं नहीं आ रहा था,
फिर लिया हाथ मैं लेगिग्न्स और कुर्ती नीचे कर के बाथरूम का दरवाजा खोला और ... दबे पाऊँ अपने कमरे तक ......
ओह ... मोबाइल .... वो तो रह गया बाथरूम मैं ...... कही माँ ने देख लिया तो ....... भागी वापस .....
उफ़, माँ ने देख लिया .......
माँ - उफ़, निहारिका .... क्या है यह .... नीचे कुछ हैं या नहीं ....... और ऐसे जोबन उछालते हुए क्यों भाग रही है, क्या हुआ ...
मैं - माँ , वो मेरा मोबाइल रह गया था बाथरूम मैं ....... बस वो ही लेने जा रही थी ....
माँ - हमम , बिना कुछ पहेने ...... पागल लड़की अब तू बड़ी हो गयी है ....... देख अपने जोबन , काया - शरीर सोच कर काम किया कर ...
[b]मैं - मन मैं -- उफ़, सारी सोच तो बह गयी आज तो माँ ...............[/b]
निहारिका जी ,मै भी परीक्षा के मुहाने पर खड़ा हु, स्वयं को xossipy से दूर रखता हूँ, लेकिन आपकी लेखनी विवश कर देती है ,कि एक बार xossipy को निहार( देख) लु।