Poll: आप इस कहानी में क्या ज्यादा चाहते हैं?
You do not have permission to vote in this poll.
Romance
8.11%
6 8.11%
Incest
35.14%
26 35.14%
Adultry
41.89%
31 41.89%
Thrill & Suspense
2.70%
2 2.70%
Action & Adventure
0%
0 0%
Emotions & Family Drama
6.76%
5 6.76%
Logic/Realistic
5.41%
4 5.41%
Total 74 vote(s) 100%
* You voted for this item. [Show Results]

Thread Rating:
  • 3 Vote(s) - 3.67 Average
  • 1
  • 2
  • 3
  • 4
  • 5
Romance मोक्ष : तृष्णा से तुष्टि तक
#76
अध्याय 32.


अब तक आपने पढ़ा कि नीलोफर अपनी कहानी सबको बता रही है...जिसमें नाज़िया नीलोफर को लेकर विजयराज से मिलने उसके घर गयी थी लेकिन उसी समय प्रधानमंत्री कि हत्या के कारण बंद हो जाने कि वजह से उसे विजयराज के ही घर रुकना पड़ा

अब आगे...........................

“नाज़िया जी! आप आराम से बैठिए में कुछ खाने कि व्यवस्था करता हूँ... इतना सुबह-सुबह अपने भी कुछ नहीं खाया होगा और बच्ची को भी भूख लगी होगी..” विजयराज ने कहा

“अरे आप क्या व्यवस्था करेंगे... मेरे होते हुये... अगर आपको ऐतराज ना हो तो मुझे एक बार रसोई में समझा दीजिये... में खाना बना लेती हूँ... फिर ये कोई थोड़ी बहुत देर का मसला नहीं है.... शाम तक ही ये मामला शांत हो पाएगा... तो ढंग से खाना बनाकर सभी खा-पी लेते हैं” नाज़िया ने कहा

“मेरे यहाँ ऐसा कोई ऐतराज नहीं होता...चलिये में आपको रसोई में दिखा देता हूँ” विजयराज ने कहा और नाज़िया को लेकर रसोई में आ गया...और सब सामान क्या, कहाँ है...समझा दिया। नाज़िया खाना बनाने लगी और विजयराज बाहर कमरे में बैठकर नीलोफर से बातें करने लगा

“बेटा! आपका नाम क्या है?” विजयराज ने पूंछा

“जी! नीफ़ोफर जहां” नीलोफर ने कहा

“आप किस क्लास में पढ़ती हैं”

“जी! सेकंड क्लास में”

“आपके पापा क्या करते हैं”

“मेरे पापा नहीं हैं... मेरी सिर्फ मम्मी हैं”

“ओहह .... और कौन-कौन हैं घर में”

“बस में और मेरी मम्मी...बस दो ही लोग हैं हमारे घर में”

“आपके दादा-दादी, नाना-नानी कोई भी आपके साथ नहीं रहते”

“मेरे कोई दादा-दादी, नाना-नानी हैं ही नहीं.... मेंने बताया ना कि हम बस दो ही लोग हैं घर में”

विजयराज को कुछ अजीब लगा, उसने बच्ची से आगे कोई सवाल नहीं पूंछा...और वहीं अलमारी में रखे विक्रम के खिलौने उठाकर नीलोफर को दे दिये... जिनसे वो खेलने लगी। कुछ देर बाद नीलोफर भी चाय बनाकर ले आयी और बताया कि सब्जी बनते ही रोटियाँ सेक लेगी... तब तक चाय पीते हैं।

“नाज़िया जी! अगर आपको ऐतराज ना हो तो आपसे कुछ निजी सवाल पूंछ सकता हूँ?” विजयराज ने चाय पीते हुये अचानक नाज़िया से कहा

“जी हाँ! जरूर... लेकिन हो सकता है में किसी सवाल का जवाब ना देना चाहूँ तो आप उसके लिए कोई दवाब नहीं डालेंगे और ना ही बुरा मानेंगे” नाज़िया ने सधे हुये शब्दों में कहा

“ठीक है.... में वैसे भी आपसे कोई ज़ोर जबर्दस्ती नहीं कर रहा की आप मुझे बताएं ही.... में सिर्फ अपने मन में आए कुछ सवाल आपके सामने रखना चाहता हूँ...आपको अगर सही लगे तो मुझे जवाब दे दें” विजयराज ने नाज़िया को आश्वस्त करते हुये कहा

“कोई बात नहीं...आप पूंछिए क्या पूंछना चाहते हैं आप” नाज़िया ने भी मुसकुराते हुये कहा

“आपके परिवार में कौन-कौन हैं.... और आपके पति...उनके बारे में...” विजयराज की बात पूरी होने से पहले ही नाज़िया बोल पड़ी

“मेरे परिवार में कोई भी नहीं है... और नेरे पति की भी मौत हो चुकी है 7 साल पहले... जब नीलु 1 साल की थी.... और कुछ” नाज़िया ने तेज लहजे में कहा और उठकर रसोई की ओर चल दी

“आप नाराज क्यों हो रही हैं... मेंने तो आमतौर पर जैसे एक दूसरे के बारे में जानते हैं उसी तरह से पूंछा है.... अगर आपको कोई ऐतराज है तो फिर रहने दें... में अब ऐसी कोई बात नहीं करूंगा आपसे” विजयराज ने पीछे से कहा लेकिन नाज़िया ने पलटकर कोई जवाब नहीं दिया और रसोई में खाना बनाने लगी। विजयराज भी कुछ देर उसे रसोई में खाना बनाते देखता रहा फिर जब नाज़िया ने उसकी ओर दोबारा देखा ही नहीं तो वो भी चुपचाप सामने पड़ा आज का खबर उठाकर पढ़ने लगा.... हालांकि आज की सबसे बड़ी खबर इस अखबार में नहीं थी........ लेकिन और बहुत कुछ ऐसा था जो पढ़ने में उसकी रुचि थी।

थोड़ी देर बाद नाज़िया खाना लेकर वहीं कमरे में आ गयी और विजयराज को खाना परोस कर दिया तो विजयराज ने उससे भी खाना खाने को कहा। उसने अपने लिए भी खाना परोसा और नीलोफर के साथ बैठकर खाना खाने लगी, खाना खाने के बाद विजयराज ने कहा की वो थोड़ा बाहर का माहौल देखकर आता है... तब तक वो दोनों माँ-बेटी आराम कर लें। नाज़िया ने अपने और विजय के बर्तन उठाए और रसोई में लेजकर साफ करने लगी। नीलोफर खाने के बाद वहीं बिस्तर पर लेट गयी और कुछ देर में सो गयी। तभी विजय बाहर से बहुत तेजी से अंदर आया और दरवाजा बंद करके सीधा नाज़िया के पास पहुंचा

“नाज़िया जी! बहुत मुश्किल खड़ी हो गयी... बाहर तो दंगे हो रहे हैं, यहाँ तक की लोग घरो, फैक्ट्रियों में आग लगा रहे हैं?” विजय ने कहा तो नाज़िया ने चौंककर पीछे मुड़कर देखा

“विजय जी! ये तो मेरे लिए बहुत मुश्किल हो जाएगी” नाज़िया घबराती हुई सी बोली

“आपके घर में और भी कोई है क्या?” विजय ने पूंछा

“नहीं! बस हम दोनों माँ-बेटी ही हैं। क्यों क्या हुआ?” नाज़िया बोली

“तो फिर ये भी अच्छा है की अप नीलू को भी साथ लेकर आयीं... वरना आपको वापस भी जाना ही पड़ता... और जैसा माहौल है अभी बाहर... उसमें...आपका जाना तो बिलकुल सुरक्षित नहीं है... साथ ही वहाँ घर में भी अकेली औरत और बच्ची का रहना भी ठीक नहीं” विजय ने कहा तो नाज़िया सोच में डूब गयी, उसे बहुत घबराहट भी हो रही थी

“आप चिंता मत करो, यहाँ ये इलाका सुरक्षित है... आसपास के लगभग सभी मुझे जानते-पहचानते हैं, इस घर में आपको कोई खतरा नहीं है.... अगर आपको मुझपर भरोसा है तो अभी 1-2 दिन आप अपने घर मत जाओ...यहीं रुको वहाँ आपके साथ और कोई है भी नहीं...और पता नहीं कैसा माहौल हो” विजय ने नाज़िया को दिलासा देते हुये कहा तो नाज़िया फिर सोच में डूब गयी और थोड़ी देर बाद हाँ में अपनी गर्दन हिला दी

ऐसे ही उन दोनों में आपस में काफी देर तक कोई बात नहीं हुई... फिर नाज़िया ने विजय से कहा... “एक बात बताइये आप जो पासपोर्ट बना कर देते हैं इससे विदेश भी जा सकते हैं क्या?”

“हाँ भी और नहीं भी.... कुछ कहा नहीं जा सकता... क्योंकि दूसरे देश से जब वीसा लेते हैं तो वो अगर यहाँ विदेश मंत्रालय में पासपोर्ट की डीटेल जांच के लिए भेज देंगे तो पकड़े जाने की संभावना बहुत होती है....वैसे में सिर्फ उनको ही ये बनाकर देता हूँ जिन्हें यहाँ पर रहने के लिए अपनी पहचान का प्रमाण-पत्र चाहिए... क्योंकि ऐसे मामले में ज्यादा जांच नहीं होती.......... आपको क्या विदेश जाने को चाहिए?” विजयराज ने गंभीरता से नाज़िया को देखते हुये पूंछा....

“में कहाँ जाऊँगी... सुबह इस खबर की वजह से जल्दबाज़ी मे आपको मैं पूरी बात नहीं बता पायी.... ये मुझे अपने लिए नहीं चाहिए.... ये उन लोगों के लिए चाहिए जिनके पास कोई भी कागजात नहीं होते अपनी पहचान साबित करने के... कि वो यहाँ के रहनेवाले हैं.... ये काम हमें आपसे एक बार नहीं करवाना बल्कि आपके पास ये काम आता रहेगा...जब भी हमें जरूरत पड़ेगी” नाज़िया ने कहा

“हमें? मतलब आप के साथ कोई और भी है इस मामले में? और वो कौन लोग हैं जिनके लिए ये बनवाने हैं? देखिये कहीं कोई बड़ा बवाल ना खड़ा हो जाए...जिसमें आप तो फँसो ही साथ में मुझे भी फंसा दो.... मेरे बिना माँ के बच्चे हैं....” विजयराज ने शक भरी आवाज में कहा

“विजय जी! आप के ही नहीं मेरे भी बेटी है, और उसका भी मेरे सिवा कोई नहीं... अगर आपको मुझ पर भरोसा है तो ये समझ लो की आपसे ऐसा कोई काम नहीं करवाऊंगी जो अप किसी परेशानी में फँसो” कहने को तो नाज़िया ने विजय को ये बोल दिया लेकिन अपनी ही काही बात पर खुद उसे भी भरोसा नहीं था

“अच्छा ये तो बताइये कि आप क्या करती हैं... ?” विजय ने नाज़िया से पूंछा

“जी मेरा महिलाओं को सिलाई और ऐसे घरेलू काम सीखने का केंद्र है जहां से सीखकर वो घर बैठे कोई काम करके कुछ पैसे कमा सकें...” नाज़िया ने बताया

“ये तो अच्छी बात है... मेरे संपर्क में भी ऐसी बहुत सी औरतें लड़कियाँ आती रहती हैं जो कुछ करना चाहती हैं...लेकिन सीखने कि सुविधा नहीं... आप मुझे अपने केंद्र का पता बता दें... में कुछ को आपके पास भेज दूंगा” विजयराज ने बड़े साधारण तरीके से कहा तो नाज़िया ने उसे अपना पता दे दिया....... क्योंकि वो अपने घर में ही वो केंद्र चलाती थी। हालांकि उसका मन तो नहीं था अपने बारे में ज्यादा जानकारी विजयराज को देने की लेकिन इस स्टीठी में जब कि उसे विजयराज से ऐसा काम भी निकालना था जो और कहीं से आसानी से नहीं होता और फिर विजयराज कि बातों से भी उसे ऐसा लगा कि उसने साधारण तौर पर ये जानकारी ली है

पता लेने के बाद विजयराज ने उससे कहा कि वो भी आराम कर ले नीलोफर के पास ही लेटकर। चाहे तो अपने कमरे का दरवाजा भी बंद कर ले। और वो खुद दूसरे कमरे में आराम करने चला गया।

शाम को लगभग 5 बजे नाज़िया की आँख खुली तो उसने कमरे का दरवाजा खोलकर बाहर झाँका तो उसे दूसरे कमरे का दरवाजा खुला तो दिखा लेकिन विजयराज कहीं नहीं दिखा तो वो बाहर निकालकर उस कमरे में झांकी। विजयराज सोया हुआ था, उसने रसोई में जाकर चाय बनाई और विजयराज के कमरे के दरवाजे पर खटखटाकर उसे आवाज दी। विजयराज ने उठकर देखा नाज़िया 2 कप में चाय लिए खुले दरवाजे में खड़ी थी। विजयराज सावधानी से उठकर बैठ गया, पहले तो उसने जाकर नाज़िया से चाय लेने कि सोची फिर उसने ध्यान दिया कि जैसे आमतौर पर सॉकर उठने पर सभी आदमियों के साथ होता है...उसका भी लिंग खड़ा हुआ था तो वो चुपचाप बैठ गया और नाज़िया की ओर हाथ बढ़ा दिया चाय लेने के लिए, नाज़िया ने कमरे में अंदर आकर उसे चाय दी और अपनी चाय लेकर वापस अपने कमरे में चली गयी।

“में जरा बाहर का माहौल देख आऊँ और जरूरी सामान भी ले आता हूँ... पता नहीं कर्फ़्यू न लग जाए, तुम दरवाजा अंदर से बंद कर लेना, चाहो तो खाना भी बना लो बच्चों को भूख जल्दी लगती है” नाज़िया ने अभी चाय पीकर अपना खाली कप रखा ही था कि विजयराज ने उसके कमरे के दरवाजे पर आकर कहा और बाहर की ओर चल दिया। नाज़िया भी अपने कमरे से निकालकर उसके पीछे-पीछे मेन गेट पर आयी और उसके बाहर निकलते ही दरवाजा बंद कर नीलोफर को जगाने कमरे में चली गयी।

करीब साढ़े छः बजे नाज़िया को बाहर कुछ घोषणा होती मालूम पड़ी तो उसने ध्यान से सुना कि शहर में कर्फ़्यू लगा दिया गया है। सुनते ही उसे घबराहट हुई क्योंकि विजयराज अभी तक वापस नहीं आया था। फिर उसने सोचा कि तब तक खाना ही बना लेती हूँ... शायद यहीं कहीं आसपास हो या नहीं भी आ सका तो उसे और नीलोफर को तो खाना खाना ही था, अब घर पहुँचने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता।

‘खट-खट-खट’ नाज़िया रसोई में खाना बना रही थी कि तभी दरवाजे पर खटखटने की आवाज हुई तो वो दर गयी तभी उसे बाहर से विजयराज की आवाज सुनाई दी जो उसका नाम लेकर पुकार रहा था। नाज़िया ने जल्दी से जाकर दरवाजा खोला तो विजयराज तुरंत अंदर घुसा और दरवाजा बंद कर लिया

“कहाँ चले गए थे आप, पता है में कितना डर गयी थी, यहाँ कर्फ़्यू भी लग गया” नाज़िया ने घबराहट और गुस्से के मिले-जुले भाव से कहा तो विजयराज उसे देखता ही रह गया

“बस यहीं पास तक गया था... फिर करफेव लग गया तो अंदर के रस्तों से बचते-बचाते आया इसीलिए देर गो गयी” कहते हुये विजयराज की आँखों में भी थोड़ी नमी उतार आयी और आवाज भी भर्रा गयी तो नाज़िया को लगा की शायद उसे ऐसे नहीं कहना चाहिए था

“सॉरी विजय जी में डर गयी थी इसलिए गुस्से में आपको ऐसे ज़ोर से बोल दिया। चलिये खाना खा लीजिये” नाज़िया ने कहा तो विजयराज ने हाँ में सिर हिलाया और नाज़िया के पीछे-पीछे उसके कमरे में पहुंचा और वहाँ बैठकर दोनों ने खाना खाया। नीलोफर को नाज़िया ने पहले ही खाना खिला दिया था और वो खेलने में लगी हुई थी।

खाना खाकर नाज़िया बर्तन उठाकर रसोई में चली गयी इधर विजयराज नीलोफर के साथ बैठकर उसका खेल देखने लगा। थोड़ी देर बाद नाज़िया रसोई से बर्तन वगैरह साफ करके आयी और नीलोफर को सोने के लिए लिटाया और थोड़ी देर में वो सो गयी। नीलोफर के सोने के बाद नाज़िया ने विजयराज की ओर देखा जैसे कह रही हो की अब आप भी जाकर सो जाओ, लेकिन विजयराज का घर था तो वो कहने में झिझक भी रही थी।

“नाज़िया जी! आपसे कुछ बात करनी थी, यहाँ नीलोफर की नींद खराब हो सकती है तो दूसरे कमरे में चलकर बात करते हैं” विजयराज ने नाज़िया की सवालभरी नजर को देखकर कहा

“जी! ऐसी कोई बात नहीं... हम यहाँ भी बात कर सकते हैं”

“आप भरोसा रखें में आपके साथ कोई ज़ोर जबर्दस्ती नहीं करूंगा। सिर्फ कुछ बातें करनी हैं” विजयराज ने कहा तो कुछ सोच-समझकर नाज़िया उठकर उसके साथ चल दी। दूसरे कमरे में जाकर नाज़िया चुपचाप खड़ी हो गयी। विजयराज ने बेड पर बैठते हुये उसे भी सामने पड़ी कुर्सी पर बैठने को कहा

“बैठिए नाज़िया जी! आज में आपके घर गया था.... नोएडा में मुझे और मेरे परिवार को जानने वाले 1-2, 10-5 नहीं सैकड़ों हैं... हम नोएडा की शुरुआत से यहाँ रह रहे हैं... उससे पहले आपकी तरह लक्ष्मी नगर में भी रहते थे ..... मुझे सुबह से ही आपकी शक्ल कुछ जानी पहचानी लग रही थी, लेकिन जब आपने अपने महिला प्रशिक्षण केंद्र के बारे में बताया तो मुझे ध्यान आ गया की लक्ष्मी नगर में भी आपका यही काम था। अब कहानी ये है कि मुझे आपके बारे में इतना तो पता है आप इस प्रशिक्षण केंद्र कि आड़ में औरतों-लड़कियों से धंधा तो कराती ही हैं.... मतलब सभी से नहीं .... क्योंकि साफ सुथरी छवि के लिए आपका प्रशिक्षण केंद्र अपना काम भी सही तरीके से करता है। लेकिन आपसे कुछ लोग ऐसे भी मिलने आते हैं जो ना तो आपके इन दोनों कामों से जुड़े हैं और ना ही आपके घर-परिवार या रिश्तेदार हैं” विजयराज ने जब इतना कहा तो नाज़िया कुर्सी पर सिर झुकाये बैठी रही और उसकी आँखों से आँसू बहने लगे लेकिन उसने विजयराज कि किसी भी बात का कोई जवाब नहीं दिया

“नाज़िया जी मेरा मक़सद आपको बेइज्जत करना या आपका दिल दुखाना नहीं था... जितना मेंने आपको समझा है या आपके बारे में जाना है... मुझे लगता है कि आपको कोई बहुत बड़ा अपराधी इस्तेमाल कर रहा है और आप डर या मजबूरी में उसके लिए ये सब कर रही हैं....... आज मेरे देर से लौटकर आने पर अपने जिस तरह मुझे डांटा... मेरी आँखों में आँसू आ गए... लेकिन ये नहीं कि मुझे बुरा लगा, बल्कि मुझे अपनी पत्नी की याद आ गयी... कामिनी भी मुझे ऐसे ही बोलती थी... मुझे आपमें अपनी कामिनी दिखी, और आपकी बेटी में अपने बच्चे... इसीलिए में आपसे ये सब कह रहा हूँ... वरना इतनी बड़ी दुनिया में पता नहीं कितने ही लोग दुखी और परेशान हैं... में किस-किस के बारे में सोचता या कहता फिरूँगा” विजयराज ने कहा

“विजय जी आपने जो कुछ भी सुना या समझा है मेरे बारे में सब सही है... लेकिन में जिस भँवर में फंसी हूँ वो आपकी सोच से कहीं बहुत बड़ा है... आज मेरे साथ मेरे पति कि इकलौती निशानी.... नीलू, नीलोफर न होती तो में अपनी जान देकर भी इस जाल से छूट जाती.... आप शायद कुछ नहीं कर पाएंगे...आप ही क्या, शायद कोई भी कुछ नहीं कर पाएगा.... अब तक में आपके सामने खुली नहीं थी.... लेकिन अब सबकुछ आपके सामने है तो...... ये सब दुख दर्द सब भूलकर, एक दूसरे के दर्द को अपनेपन के अहसास से मिटा सकते हैं..... आपने अभी कहा ना कि मुझमे आपको अपनी पत्नी दिखी, आप भी मेरी ज़िंदगी के पिछले कुछ सालों में दूसरे व्यक्ति हैं... मेरे पति के बाद... जिसने मेरे मन को महसूस किया...तन से पहले” नाज़िया ने सिर उठाकर विजयराज की आँखों में देखते हुये कहा

“नाज़िया जी वक़्त आगे क्या रंग दिखाये लेकिन, अभी तक मेंने किसी कि मजबूरी का फाइदा नहीं उठाया... और जिससे भी संबंध जोड़े तो सिर्फ तन से नहीं मन से... मुझे सिर्फ आपका शरीर नहीं चाहिए.... मन में भी जो दर्द है... मुझे दे दीजिये... शायद आपका मन कुछ हल्का हो सके” विजयराज ने उसकी ओर हाथ बढ़ते हुये कहा तो नाज़िया उसका हाथ पकड़कर कुर्सी से खड़ी हुई और दोनों ने खड़े होकर एक दूसरे को बाहों में भरकर आँखों के रास्ते दर्द बहाना शुरू कर दिया। विजयराज नाज़िया को लेकर फिर बेड पर बैठ गया और उसे सीने से लगाकर सबकुछ बताने को कहा।

नाज़िया ने धीरे-धीरे ये सबकुछ विजयराज को बताया... कि कैसे उसके पिता यहाँ से लाहौर गए और कैसे उसकी शादी पटियाला में हुई........... और....और...और... कैसे आज वो किसी अपने से मिल भी नहीं सकती... एक मशीन कि तरह उन लोगों लिए हर अच्छा बुरा काम कर रही है... सिर्फ अपनी बेटी की खातिर... लेकिन जैसे-जैसे बेटी बड़ी होती जा रही है...उसकी चिंता भी बढ़ती जा रही है... कहीं नीलोफर की ज़िंदगी भी इसी दलदल में ना तबाह हो....और ये दिखने भी लगा है उसे... लेकिन मजबूर है...कि कुछ कर भी नहीं सकती...और कोई रास्ता और न कोई सहारा। विजयराज ने उससे कहा कि वो कोई बहुत पावरफुल या सम्पन्न व्यक्ति नहीं है......... लेकिन तिकड़मी है... बहुत बड़ा तिकड़मी... वो कुछ ना कुछ करके नाज़िया को इस सब से बाहर निकलेगा... जिससे वो आगे चलकर अपनी बेटी को एक सुकून भरी ज़िंदगी दे सके।

.............................................................
Like Reply


Messages In This Thread
RE: मोक्ष : तृष्णा से तुष्टि तक - by kamdev99008 - 19-05-2020, 07:02 PM



Users browsing this thread: 1 Guest(s)