21-02-2019, 02:49 PM
भाभी की नज़र मेरे मुठ गिरते लंड पर पड़ी. जब मेरा लंड शांत हुआ, मैने अपना पजामा उठाया और वहाँ से निकालने की सोची.
"रुक!" भाभी की गरजती हुई आवाज़ ने मुझे रोका.
"बेशरम!... तू यह सब सोचता है अपनी भाभी के बारे में...."
भाभी मेरे पास आई और फर्श पर से अपनी गीली चड्डी उठाई. उन्होने उसे सूँघा और फिर मेरे गाल पर ज़ोर का थप्पड़ मारा.
"बदतमीज़... बहुत ठरक चढ़ही है ना तुझे... बता कब से चल रहा है ये सब.... बता वरना सासू माँ को सब बोलती हूँ"
"नही नही भाभी... प्लीज़.... किसी को मत बोलना... मैं बताता हूँ."
मैने भाभी को सब बताया. सब सुनने के बाद भाभी गुस्से में थी.
"तू रुक.... आज शाम को तेरे भैया को सब बताऊंगी... की उनका चचेरा भाई उनकी बीवी के बारे में कितने गंदे ख़याल रखता है."
"नही भाभी... प्लीज़.. भैया मुझे जान से मार डालेंगे."
"बिल्कुल... तेरे जैसे बेशार्मों की यही सज़ा होनी चाहिए"
"नही भाभी प्लीज़... आप जो कहोगी मैं वो करूँगा.... आप जो सज़ा देना चाहो दे दो"
"अच्छा... अभी सासू माँ खाना बनाने के लिए बुला रही हैं... खाना खाने के बाद इसी कमरे में आ... तेरी सज़ा तभी मिलेगी तुझे."
भाभी नीचे खाना बनाने चली गयी. उन्होने काली साड़ी पहन रखी थी. भाभी मेरे लिए खाना लेकर आई. हम तीनो खाना खा रहे थे. सबसे पहले चाची ने खाना ख़त्म किया और वो उठकर अपनी थाली रखने चली गयीं. टेबल पर सिर्फ़ मैं और भाभी थे. भाभी बोली- "खाना ख़ाके चुपचाप मेरे कमरे में चले जाना". मैं जवाब देने में असमर्थ था. मैने सिर्फ़ हाँ में सिर हिलाया.
फिर चाची की आवाज़ आई "सुमन, बेटा मैं सोने जा रही हूँ. तू भी टेबल सेमेटकर आराम कर ले. राजेश तुझे तो पढ़ाई करनी होगी." और फिर चाची कमरे में जाकर सो गयी. मैने खाना ख़त्म किया और भाभी के आदेशानुसार उनके कमरे में जाकर इंतज़ार करने लगा. कुछ देर बाद भाभी आई.
"हाँ... तो देवर जी... बताइए आपकी क्या सज़ा होनी चाहिए?"
"कुछ भी भाभी... बस प्लीज़ भैया को मत बताना."
"ठीक है... तो.." भाभी मेरे पास आई और मेरे पैजमे का नाड़ा खोल दिया.
"उतरो इसे और अपना लंड खड़ा करो मेरे सामने.... बहुत मज़ा आता है तुझे दूसरों को नंगा देखने में.... अब बता कैसा लग रहा है तुझे?"
साड़ी में से उनका नंगा पेट और प्यारी सी नाभि देखकर तो मेरा लंड तो पहले ही खड़ा था. मैं बस हिलाकर उसे तोड़ा आराम दे रहा था.
"रुक... हिलाना बंद कर.... अब खड़े लंड के साथ सॉरी बोलते हुए कान पकड़कर ३० बार उटठक- बैठक कर"
मेरा लंड भाभी के सामने तनकर खड़ा था. और मैने अपना लंड छोड़कर कान पकड़कर उटठक-बैठक करनी शुरू कर दी. मेरी नज़र भाभी पर ही थी. लेकिन भाभी सिर्फ़ मेरे झूलते हुए खड़े लंड को ही देख रही थी.
भाभी ने मेरे लंड को देखते हुए अपनी जीभ बाहर निकली और उससे अपने होठों को चाटा. मैने उटठक-बैठक ख़त्म की तो मेरा लंड बहुत दर्द कर रहा था. मैने उसे हिलाने के लिए भाभी से अनुमति माँगी. भाभी ने अपनी आँखें झपकाकर हाँ का इशारा किया.
मैं तुरंत अपना लंड धीरे-धीरे हिलाकर उसे आराम देने लगा. कुछ देर बाद भाभी बोली "रुक...!"
"रुक!" भाभी की गरजती हुई आवाज़ ने मुझे रोका.
"बेशरम!... तू यह सब सोचता है अपनी भाभी के बारे में...."
भाभी मेरे पास आई और फर्श पर से अपनी गीली चड्डी उठाई. उन्होने उसे सूँघा और फिर मेरे गाल पर ज़ोर का थप्पड़ मारा.
"बदतमीज़... बहुत ठरक चढ़ही है ना तुझे... बता कब से चल रहा है ये सब.... बता वरना सासू माँ को सब बोलती हूँ"
"नही नही भाभी... प्लीज़.... किसी को मत बोलना... मैं बताता हूँ."
मैने भाभी को सब बताया. सब सुनने के बाद भाभी गुस्से में थी.
"तू रुक.... आज शाम को तेरे भैया को सब बताऊंगी... की उनका चचेरा भाई उनकी बीवी के बारे में कितने गंदे ख़याल रखता है."
"नही भाभी... प्लीज़.. भैया मुझे जान से मार डालेंगे."
"बिल्कुल... तेरे जैसे बेशार्मों की यही सज़ा होनी चाहिए"
"नही भाभी प्लीज़... आप जो कहोगी मैं वो करूँगा.... आप जो सज़ा देना चाहो दे दो"
"अच्छा... अभी सासू माँ खाना बनाने के लिए बुला रही हैं... खाना खाने के बाद इसी कमरे में आ... तेरी सज़ा तभी मिलेगी तुझे."
भाभी नीचे खाना बनाने चली गयी. उन्होने काली साड़ी पहन रखी थी. भाभी मेरे लिए खाना लेकर आई. हम तीनो खाना खा रहे थे. सबसे पहले चाची ने खाना ख़त्म किया और वो उठकर अपनी थाली रखने चली गयीं. टेबल पर सिर्फ़ मैं और भाभी थे. भाभी बोली- "खाना ख़ाके चुपचाप मेरे कमरे में चले जाना". मैं जवाब देने में असमर्थ था. मैने सिर्फ़ हाँ में सिर हिलाया.
फिर चाची की आवाज़ आई "सुमन, बेटा मैं सोने जा रही हूँ. तू भी टेबल सेमेटकर आराम कर ले. राजेश तुझे तो पढ़ाई करनी होगी." और फिर चाची कमरे में जाकर सो गयी. मैने खाना ख़त्म किया और भाभी के आदेशानुसार उनके कमरे में जाकर इंतज़ार करने लगा. कुछ देर बाद भाभी आई.
"हाँ... तो देवर जी... बताइए आपकी क्या सज़ा होनी चाहिए?"
"कुछ भी भाभी... बस प्लीज़ भैया को मत बताना."
"ठीक है... तो.." भाभी मेरे पास आई और मेरे पैजमे का नाड़ा खोल दिया.
"उतरो इसे और अपना लंड खड़ा करो मेरे सामने.... बहुत मज़ा आता है तुझे दूसरों को नंगा देखने में.... अब बता कैसा लग रहा है तुझे?"
साड़ी में से उनका नंगा पेट और प्यारी सी नाभि देखकर तो मेरा लंड तो पहले ही खड़ा था. मैं बस हिलाकर उसे तोड़ा आराम दे रहा था.
"रुक... हिलाना बंद कर.... अब खड़े लंड के साथ सॉरी बोलते हुए कान पकड़कर ३० बार उटठक- बैठक कर"
मेरा लंड भाभी के सामने तनकर खड़ा था. और मैने अपना लंड छोड़कर कान पकड़कर उटठक-बैठक करनी शुरू कर दी. मेरी नज़र भाभी पर ही थी. लेकिन भाभी सिर्फ़ मेरे झूलते हुए खड़े लंड को ही देख रही थी.
भाभी ने मेरे लंड को देखते हुए अपनी जीभ बाहर निकली और उससे अपने होठों को चाटा. मैने उटठक-बैठक ख़त्म की तो मेरा लंड बहुत दर्द कर रहा था. मैने उसे हिलाने के लिए भाभी से अनुमति माँगी. भाभी ने अपनी आँखें झपकाकर हाँ का इशारा किया.
मैं तुरंत अपना लंड धीरे-धीरे हिलाकर उसे आराम देने लगा. कुछ देर बाद भाभी बोली "रुक...!"
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.