21-02-2019, 02:47 PM
भाभी कमरे में आ गयी. उन्होने साड़ी पहनी हुई थी और हर बार की तरह क़यामत ढहा रही थी. और हर बार की तरह मेरी नज़र उनके गोरे मुलायम और खूबसूरत पेट पर पड़ी. मन तो था कि अभी बिस्तर पर पटक के पेट चूम लू और नंगी करके चोद दूं. मैं यही ख़याल में था जब भाभी बोली
"तुम्हारा कमरा साफ कर देती हूँ, देवर जी. जाओ तब तक नहा लो."
भाभी की नज़र चादर पर मेरे वीर्य से बने गीले धब्बे पर पड़ी. "यह क्या है देवर जी"
भाभी ने हँसकर बोला "कहीं रात को बिस्तर गीला तो नहीं..... हाय राम राजेश, वो क्या है?"
"क्या भाभी?"
मैने भाभी की नज़र देखी और सर झुका कर देखा तो देखा की मेरा 8 इंच का लंड पजामे के मूतने वाले छेद से बाहर निकल कर भाभी को सलामी दे रहा था. मेरे पैरों तले ज़मीन खिसक गयी. मैं लंड को पाजामे के अंदर करते हुए बाथरूम की तरफ भागा. बाथरूम का दरवाज़ा बंद करते समय मैं देखा भाभी के चेहरे अचंभे के भाव थे. मैं बातरूम के अंदर काफ़ी देर तक बंद रहा. सोचा कि भाभी ने सबको जाकर बता दिया होगा. बाहर निकला तो देखा कि भाभी मेरा पूरा कमरा ठीक करके गयी हैं. मैं नहा-धो के नीचे नाश्ते के लिए आया. वहाँ भैया और चाची नाश्ता कर रहे थे.
मैं चुपचाप आकर बैठ गया.
तभी भाभी मेरा नाश्ता लेकर आई और खुद भी बैठकर नाश्ता करने लगी. मेरी हालत खराब थी कि कहीं मेरी हरकत के बारे में बता ना दिया हो. भाभी ने कुछ देर बाद बोला, "सासू माँ, मैं सोच रही थी अपना राजू कितना सयाना हो गया है. हमारी शादी के वक़्त तो बस बच्चा ही था." ऐसा कहते हुए भाभी ने मेरे गाल खीचे. मुझे महसूस हो गया की भाभी कुछ देर पहली हुई घटना के बारे में किसी को नही बताया.
"हाँ बहू, बड़ा हो गया राजू." चाची बोली.
उसके बाद मैं कॉलेज चला गया. मेरा यही रवैया हो गया था. सुबह कॉलेज जाना. शाम को कॉलेज से आकर खाना खाना और रोज़ रात को भैया-भाभी की चुदाई देखना .
कुछ दिन बाद शनिवार का दिन था. भैया काम से बाहर गये थे. कॉलेज भी बंद था. मैं घर के बाघीचे में पौधो को पानी दे रहा था. तभी चाची बोली-"बेटा राजेश, ज़रा उपर जाकर सुमन को बुला दे".
"तुम्हारा कमरा साफ कर देती हूँ, देवर जी. जाओ तब तक नहा लो."
भाभी की नज़र चादर पर मेरे वीर्य से बने गीले धब्बे पर पड़ी. "यह क्या है देवर जी"
भाभी ने हँसकर बोला "कहीं रात को बिस्तर गीला तो नहीं..... हाय राम राजेश, वो क्या है?"
"क्या भाभी?"
मैने भाभी की नज़र देखी और सर झुका कर देखा तो देखा की मेरा 8 इंच का लंड पजामे के मूतने वाले छेद से बाहर निकल कर भाभी को सलामी दे रहा था. मेरे पैरों तले ज़मीन खिसक गयी. मैं लंड को पाजामे के अंदर करते हुए बाथरूम की तरफ भागा. बाथरूम का दरवाज़ा बंद करते समय मैं देखा भाभी के चेहरे अचंभे के भाव थे. मैं बातरूम के अंदर काफ़ी देर तक बंद रहा. सोचा कि भाभी ने सबको जाकर बता दिया होगा. बाहर निकला तो देखा कि भाभी मेरा पूरा कमरा ठीक करके गयी हैं. मैं नहा-धो के नीचे नाश्ते के लिए आया. वहाँ भैया और चाची नाश्ता कर रहे थे.
मैं चुपचाप आकर बैठ गया.
तभी भाभी मेरा नाश्ता लेकर आई और खुद भी बैठकर नाश्ता करने लगी. मेरी हालत खराब थी कि कहीं मेरी हरकत के बारे में बता ना दिया हो. भाभी ने कुछ देर बाद बोला, "सासू माँ, मैं सोच रही थी अपना राजू कितना सयाना हो गया है. हमारी शादी के वक़्त तो बस बच्चा ही था." ऐसा कहते हुए भाभी ने मेरे गाल खीचे. मुझे महसूस हो गया की भाभी कुछ देर पहली हुई घटना के बारे में किसी को नही बताया.
"हाँ बहू, बड़ा हो गया राजू." चाची बोली.
उसके बाद मैं कॉलेज चला गया. मेरा यही रवैया हो गया था. सुबह कॉलेज जाना. शाम को कॉलेज से आकर खाना खाना और रोज़ रात को भैया-भाभी की चुदाई देखना .
कुछ दिन बाद शनिवार का दिन था. भैया काम से बाहर गये थे. कॉलेज भी बंद था. मैं घर के बाघीचे में पौधो को पानी दे रहा था. तभी चाची बोली-"बेटा राजेश, ज़रा उपर जाकर सुमन को बुला दे".
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.