17-05-2020, 12:10 AM
अध्याय 31
अब तक आपने पढ़ा कि नीलोफर सभी के सामने अपनी कहानी सुनाती है कि कैसे उसके नाना पटियाला से लाहौर जाकर बसे और कैसे उसकी माँ नाज़िया एक जासूस के रूप में दिल्ली आयी... फिर यहाँ आपातकाल लग जाने पर दिल्ली से पटियाला अपने परिवार के लोगों के पास पहुँच गयी.... जहां उसके पकड़े जाने के दर से उसके रिशतेदारों ने उसकी शादी परिवार के ही एक लड़के आसिफ से करा दी...और शादी के साल भर के अंदर ही उसके एक बेटी हुई जिसका नाम नीलोफर रखा गया...
नीलोफर ने अब आगे बताना शुरू किया
नाज़िया अब सबकुछ भूलकर पटियाला में अपने पति और बेटी के साथ रहने लगी... यहाँ कि सरकार ने उस पर कोई ध्यान भी नहीं दिया क्योंकि वो पासपोर्ट वीसा द्वारा तो यहाँ आयी नहीं थी... जिससे उसके हिंदुस्तान आने का कोई रेकॉर्ड होता.... और ना ही उसके परिवार वाले ही उसकी तलाश कर सकते थे... क्योंकि लाहौर में इंटेलिजेंस के अधिकारियों ने उन्हें कह दिया था कि हिंदुस्तान में एमेर्जेंसी खत्म होते ही उसे वापस निकाल लाएँगे...उन लोगों को भी लगता था कि वो या तो हिंदुस्तान में कहीं फंस गयी, मारी गयी या छुप गयी है... जिस वजह से उससे संपर्क नहीं हो पा रहा है
ऐसे ही वक़्त गुजरता गया और फिर 1977 में आपातकाल खत्म हुआ और चुनाव से नयी सरकार बनी... तो अब तक छुपे बैठे सारे इंटेलिजेंस एजेंट सक्रिय हो गए और उन्होने नाज़िया से भी संपर्क करने कि कोशिश की। लेकिन नाज़िया का कोई पता नहीं चल सका... तो उन्होने लाहौर में अपने अफसरान को नाज़िया के लापता होने कि खबर दी... उन्होने भी नाज़िया को मरा हुआ मान लिया... और उसके घरवालों को कह दिया कि वो वहाँ से भागकर कहीं छुप गयी है... इसलिए उसे गद्दार माना जाएगा... अगर ये लोग उसके लिए कोई बवाल करने कि कोशिश करेंगे तो इन्हें भी पूरे खानदान को मुल्क से गद्दारी के जुर्म में फांसी दे दी जाएगी।
इस पर बहुत दिनों तक मुजफ्फर हुसैन और उसके बेटे शांत बैठे रहे...एक तरह से उन्होने नाज़िया को भुला सा दिया लेकिन नाज़िया कि माँ... माँ का दिल अपने बच्चों को ऐसे कैसे भुला सकता है...उसने ज्यादा ज़ोर दिया, बार-बार कहा तो मुजफ्फर और उसके दोनों बेटे फिर जाकर इंटेलिजेंस वालों से मिले और उनसे कहा कि वो उनके रिशतेदारों से पटियाला किसी तरह से उनका संपर्क कराएं... हो सकता है कि वो लोग अपने तरीके से उसे वहाँ ढूंढ सकें। ये सुनकर इंटेलिजेंस वालों कि आँखों में भी चमक आ गयी... उन्हें भी लगा कि हो सकता है इस तरह उन्हें नाज़िया वापस मिल जाए। दुश्मन मुल्क में एक-एक एजेंट कीमती होता है... वो भी उसे खोना नहीं चाहते थे। उन्होने पटियाला में मुजफ्फर के रिशतेदारों कि जानकारी ली और अपने एजेंट जो हिंदुस्तान में थे उन्हें भेज दी... कि इस जगह नाज़िया का सुराग लगाएँ...और जरूरत पड़ने पर उन लोगों को मुजफ्फर का हवाला देकर उसकी बेटी को ढूँढने कि गुजारिश करें... लेकिन उन्हें इस बात कि भनक न लाग्ने दें कि नाज़िया जासूसी के लिए यहाँ आयी हुई थी।
और फिर एक दिन नाज़िया के सामने उसका गुज़रा हुआ कल फिर से आ गया जब एक मौलवी साहब उनके घर आए और मुजफ्फर के हवाले से उसकी बेटी कि गुमशुदगी कि इत्तला दी। पटियाला में नाज़िया के ससुराल वालों को लगा कि इससे नाज़िया को भी खुशी होगी और मुजफ्फर भी निश्चिंत हो जाएगा...इसलिए उन्होने सिलसिलेवार उन मौलवी साहब को सबकुछ बताया और नाज़िया से भी मिलवाया... नाज़िया ने उनसे मुलाक़ात की तो उनकी बातों से ही समझ गयी कि ये उसके परिवार वालों कि ओर से नहीं... इंटेलिजेंस कि ओर से उसका पता करने आए हैं, लेकिन जब वो सामने आ ही गयी तो अब वो कुछ नहीं कर सकती थी। जाते जाते वो मौलवी नजीय को अपना नाम-पता-फोन नंबर दे गया और उसके ससुरालवालों से कह गया कि ये मामला दो देशों.... वो भी दुश्मन देशों के बीच का है... इसलिए नाज़िया को एक बार दिल्ली आकर उनसे मिलना होगा... वहीं से वो उसका कुछ इंतजाम करा देंगे जिससे वो हमेशा पटियाला में रह सके।
परिवार वालों ने इसे साधारण तरीके से लिया लेकिन इस मामले कि गंभीरता को नाज़िया समझती थी, कि अगर वो दिल्ली जाकर उन लोगों से नहीं मिली तो हो सकता है उसकी और उसके पति, बेटी व परिवारवालों कि जान खतरे में पड़ जाए, या फिर अगर वो लोग और कुछ न कर सके तो यहाँ की इंटेलिजेंस को सूचना देकर उसे अवैध रूप से दूसरे देश से आकर यहाँ रहने के जुर्म में पकड़वा दें। अब नाज़िया के सामने सबसे बड़ी मुश्किल ये थी कि इन सब बातों को वो किसी से यहाँ तक कि अपने पति से भी नहीं कह सकती थी... वो लोग यहाँ अच्छे रसूख वाले लोग थे... जासूसी का मामला सामने आते ही क्या पता वो ही नाज़िया को पकड़वा देते... खुद को देशद्रोह और जासूसी के इल्ज़ाम से बचाने के लिए....इसी कशमकश में नाज़िया ने 2-3 दिन निकाल दिये फिर फैसला किया कि वो दिल्ली जाकर उन लोगों से एक बार मिलेगी और किसी ना किसी तरह इस मामले को निपटाएगी.... क्योंकि उसकी एक भी गलती यहाँ उसके ससुराल वालों और लाहौर में उसके घरवालों के लिए बहुत बड़ी मुसीबत बन सकती थी। लेकिन उसके ससुराल वाले उसे अकेले तो जाने नहीं देते उन्होने उसे आसिफ के साथ दिल्ली भेजने का फैसला किया और बेटी भी छोटी थी अभी उसका दूध पीती थी तो उसको तो साथ ले ही जाना था। इस तरह से आसिफ, नाज़िया और नीलोफर तीनों दिल्ली आ गए।
दिल्ली आकर वो नबी करीम के इलाके में एक मस्जिद में उस मौलवी से मिलने गए वहाँ पहुँचने पर उनके रुकने की व्यवस्था मस्जिद के पास ही मौलवी ने एक मकान में की और उन्हें बताया की 1-2 दिन में ही उनके सिलसिले में लाहौर बात करके वो कुछ हल निकलेगा। नाज़िया तो उसकी बातों का मतलब समझ रही थी कि ये आसिफ के सामने कुछ बात नहीं करेंगे और ना ही वो आसिफ के सामने कोई बात कर सकती थी खुलकर।
दूसरे दिन सुबह ही मौलवी ने अपने साथ आए एक लड़के से उन्हें मिलवाया और आसिफ को कहा कि वो उस लड़के के साथ चला जाए और कुछ लोगों से मिले जिनके द्वारा नाज़िया को यहाँ रखने के लिए लीगल कागजात का इंतजाम हो सके। नाज़िया आसिफ को उनके साथ अकेला नहीं भेजना चाहती थी लेकिन फिर उसे लगा कि शायद वो मौलवी उससे बात करने के लिए बहाने से आसिफ को वहाँ से अलग हटा रहा है तो उसने कोई ऐतराज नहीं किया। आसिफ के जाने के बाद मौलवी ने नाज़िया को वापस दिल्ली आकर इंटेलिजेंस का काम करने को कहा तो नाज़िया ने इनकार कर दिया और उनसे उसे अपने परिवार के साथ सुकून से रहने देने कि गुजारिश की जिस पर मौलवी ने कहा कि नाज़िया को आज शाम तक का वक़्त दिया जाता है...अपना फैसला लेने का.... और फैसला यही होना चाहिए कि वो फिर से दिल्ली में अपना काम शुरू करेगी... इस स्तिथि में उसे पटियाला वालों से अलग करने का इंतजाम वो खुद करेंगे और कुछ दिनों में उसे वापस लाहौर भेजने का भी इंतजाम कर दिया जाएगा...... अगर वो इस बात पर तैयार नहीं होती तो यहाँ और वहाँ दोनों जगह ही सिर्फ उसे ही नहीं उसके परिवार को भी इसका अंजाम भुगतना होगा।
नाज़िया सारे दिन कशमकश में उलझी आसिफ के वापस लौटने का इंतज़ार करती रही। उसने फैसला कर लिया था कि अब लाहौर में कुछ भी हो लेकिन वो यहाँ आसिफ और उसके परिवार को सबकुछ सच-सच बताकर इन सब के चंगुल से छूट जाएगी, वो लोग आखिरकार हैं तो उसके खानदानी ही... किसी भी हालत में उसको अपना ही लेंगे और अच्छे रसूखवाले हैं तो शायद किसी तरह से उसके परिवार को भी लाहौर से पटियाला बुलवा सकें तो आगे से सभी यहीं रहेंगे।
शाम हुई और फिर रात हो गयी लेकिन आसिफ वापस लौटकर नहीं आया... रात को मौलवी कुछ लोगों के साथ नाज़िया के पास आया
“ आज दिन में आसिफ का कत्ल हो गया है... लाश सिक्युरिटी को मिली है.... उसकी शिनाख्त उसके पास मौजूद कागजात से हो गयी है... पटियाला से उसके घरवाले दिल्ली पहुँच रहे हैं....” मौलवी ने कहा तो नाज़िया जैसे सकते में आ गयी
“क्यों मार दिया उसे... तुमने तो मुझे शाम तक का वक़्त दिया था ना” नाज़िया ने चिल्लाते हुये कहा तो मौलवी मुस्कुरा दिया
“तुझे क्या लगा.... तू यहाँ से वापस लौट जाएगी....जब तक वो जिंदा रहता तू हरगिज वापस नहीं आती...... और सुन उस कत्ल की वारदात को तूने अपने किसी यार के साथ अंजाम दिया है... और तू अपने उसी यार के साथ भाग गयी है” मौलवी बोला
“इससे तुम्हें क्या हासिल होगा.... मुझे यहाँ भी तो सिक्युरिटी तलाश करेगी ही” नाज़िया ने रोते हुये कहा
“ये दिल्ली करोड़ों की आबादी का शहर है.... बिना जाने, बिना सुराग के कोई किसी को नहीं पहचान सकता.... चल अब इनके साथ यहाँ से निकल जा और जहां ये लेकर जा रहे हैं वहीं रुकना.... में इस मामले को निपटाकर 2-3 दिन में तुझसे वहीं आकर मिलता हूँ.... फिर देखता हूँ क्या करना है तेरा” मौलवी ने साथ आए लोगों की ओर इशारा करते हुये कहा
“में कहीं नहीं जाऊँगी......... मुझे मारना है तो मार दो, सिक्युरिटी के हवाले करना है तो कर दो” नाज़िया ने अपने आँसू पोंछते हुये कहा
“तुझे मारने की क्या जरूरत है” कहते हुये मौलवी ने इशारा किया तो साथ खड़े एक आदमी ने नाज़िया की गोद से नीलोफर को छीन लिया
“इसको मारने का इल्ज़ाम भी तेरे ऊपर ही आयेगा, अगर इसकी लवारीश लाश मिली तो.... और तेरा....तू जासूसी के काम नहीं आएगी तो इन सबके जिस्म कि भूख मिटाने के काम तो आएगी.... और आखिर में यहीं किसी कोठे पर पहुंचा के हमारे मिशन के लिए कुछ फ़ंड में इजाफा कर लिया जाएगा” मौलवी ने मुसकुराते हुये कहा
“ऊपरवाले से डरो... इस मासूम बच्ची को तो बख्श दो....इसने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है....तुम जो कहोगे में करने को तैयार हूँ...बताओ कहाँ जाना है” नाज़िया ने आखिरकार हथियार डालते हुये कहा
नाज़िया पढ़ी लिखी और उस पर भी एक जासूस की ट्रेनिंग लेकर बहुत कुछ जानने समझने लगी थी.... वो भी समझ चुकी थी कि ये लोग जो कह रहे हैं... वो कर भी देंगे और दूसरी बात उसके साथ एक नहीं कई बातें खिलाफ जाती हैं... एक तो वो दूसरे देश से चोरी छुपे यहाँ घुसपेठकरके आयी है, दूसरे वो एक जासूस है... इसलिए उसको मामले में फंसाया जा रहा है.... इस बात पर यकीन करने के बाद भी कोई उसका साथ नहीं देगा ... न सिक्युरिटी और ना आसिफ के घरवाले, तीसरे आसिफ के कत्ल हो जाने के बाद.... चाहे वो कातिल न सही... लेकिन ये तो साबित होगा ही कि कत्ल नाज़िया कि वजह से हुआ... तो क्या आसिफ के घरवाले उसे कुबूल करेंगे............. ये सबकुछ बस कुछ ही पल में सोचकर नाज़िया ने फैसला लिया कि.... अब आसिफ तो इस दुनिया मे नहीं रहा... लेकिन अपनी बेटी को वो किसी भी हालत में खतरे में नहीं डालेगी... जो भी, जैसा भी हो...वो अपने ऊपर हर ज़ोर-जुल्म सहेगी लेकिन अपनी बेटी, अपने आसिफ की निशानी को वो एक खुशहाल ज़िंदगी देगी.... बस सही वक़्त और मौका मिलने की देर है....और उसके लिए अभी उसे इन लोगों कि सब बातें मान लेनी चाहिए।
उसी वक़्त वो लोग नाज़िया और उसकी बेटी को लेकर चुपचाप उत्तर प्रदेश के किसी गाँव में पहुँच गए और एक परिवार के साथ उन लोगों के रिश्तेदार के रूप में रुक गए... फिर 2-3 दिन बाद वो मौलवी आया और उससे नाज़िया ने अकेले में बात करने को कहा।
दोनों की बातचीत के बाद नाज़िया काम करने को तो तैयार हो गयी लेकिन उसकी एक ही शर्त थी.... इंटेलिजेंस से जुड़ा ना उसके पास कोई आयेगा और ना ही वो किसी के पास जाएगी.... क्योंकि उसकी बच्ची जब तक छोटी है तो उसे किसी अंजान जगह पर रहने और कम की व्यवस्था करा दी जाए जिससे की वो एक आम पारिवारिक औरत की तरह रह सके ..... साथ ही जो भी कम उसे दिया जाएगा.... वो ऐसा हो जिसे वो अपनी बच्ची को साथ लेकर भी कर सके....और पटियाला या लाहौर के लोगों को किसी भी तरह से ये भरोसा दिलाना होगा की किसी ने आसिफ का कत्ल कर दिया और नाज़िया को अगवा करके ले गए....नाज़िया आसिफ की कातिल नहीं...बल्कि वो भी मज़लूम थी.....और वो अब कहीं किसी से नहीं मिलेगी....हमेशा के लिए यहीं रहकर इंटेलिजेंस का काम देखेगी और अपनी बेटी को पालेगी।
उन लोगों ने उसे दिल्ली के जमुनापार इलाके में नयी आबाद हो रही लक्ष्मी नगर नाम की कॉलोनी में बसा दिया और काम के नाम पर एक सिलाई-कढ़ाई सिखाने का सेंटर खुलवा दिया ...... वहाँ रहनेवाले ज़्यादातर लोग या तो दिल्ली में नौकरियाँ करते थे या पास में बसाये जा रहे नए शहर नोएडा में बन रही फैक्ट्रियों के निर्माण में लगे हुये थे.... ज़्यादातर मिडिल क्लास लोग थे.... ज्यादा गरीब भी नहीं लेकिन पैसे के लिए परेशान भी.... उन लोगों के काम पर जाने के बाद उन घरों की औरतें लड़कियां भी ऐसे काम सीखना और करना चाहती थीं जिससे की कुछ एक्सट्रा आमदनी हो.... तो नाज़िया का सेंटर अच्छा चल पड़ा... साथ ही उन लोगों के लिए भी नाज़िया कुछ छोटे मोटे काम जैसे खबर को इधर से उधर देने का काम करने लगी.... फिर उन लोगों ने नाज़िया को समझाया कि वो अपने पास आनेवाली औरतों लड़कियों में से कुछ छांट कर निकाले जो पैसे के लिए कुछ भी करने को तैयार हो....यहाँ तक कि जिस्म्फ़रोशी भी.... पहले तो नाज़िया ने माना किया लेकिन उन लोगों के दवाब और इस वादे... कि किसी को जबर्दस्ती किसी काम के लिए ज़ोर नहीं दिया जाएगा.... सिर्फ उन्हें ही जोड़ा जाएगा जो अपनी खुशी से शामिल हो और जब तक चाहें तभी तक.....नाज़िया ने अपने पास अनेवाली औरतों लड़कियों को इशारे में ये प्रस्ताव देना शुरू कर दिया.... कुछ औरतें लड़कियां इच्छुक हुईं तो नाज़िया ने उन्हें अपने एजेंट से मिलवाना शुरू किया... ऐसे ही धीरे धीरे नाज़िया इस दलदल में उतरती चली गयी.....
जब धनदा बड़े स्तर पर चलने लगा तो नाज़िया ने नोएडा में एक मकान ले लिया और वहाँ रहकर इस काम को चलाने लगी.... पहले तो वो उन लड़कियों-औरतों को उन एजेंट के हवाले कर देती थी... बदले में वो उसे कुछ न कुछ दे देते थे... जो सही समझते। लेकिन अब इस धंधे को नाज़िया बहुत अच्छे से समझ चुकी थी तो उसने उन एजेंट के काम के अलावा अपने से जुड़ी औरतों-लड़कियों से खुद धंधा करवाना शुरू कर दिया इससे उन रंडियों को भी ज्यादा कमाई होने लगी और नाज़िया को भी दलाली में अच्छा खासा फाइदा होने लगा.... इधर उसकी बेटी नीलोफर भी अब बड़ी हो रही थी, नाज़िया को उसके भविष्य की भी फिकर थी...इस समय नीलोफर कि उम्र आठ साल थी।
1984 की बात है उसे उसके एजेंट ने एक आदमी का पता दिया कि वो उससे मिलकर बात कर ले वो फर्जी पासपोर्ट बनाता है इससे उनके नए एजेंटों को यहाँ घुसने में मदद मिलेगी.... नाज़िया उस पते पर जाकर मिली तो वहाँ एक लड़का मिला जिसने बताया कि जो इस काम को करते हैं वो उनके लिए काम करता है...उनका नाम विजयराज सिंह है... पिछले महीने उनकी पत्नी का देहांत हो गया है तो वो आजकल कम के सिलसिले में न तो यहाँ आ रहे हैं और ना ही कहीं आ-जा रहे हैं... क्योंकि उनके 2 बच्चे हैं उनकी देखरेख के लिए उन्हें अपने घर ही रहना होता है.... वैसे वो चाहें तो अपने घर से ही उसका काम कर दिया करेंगे... यहाँ के काम से जुड़ा सबकुछ वो अपने पास ही घर पर रखते हैं.....तो नाज़िया चाहे तो उनसे मिल सकती है।
नाज़िया ने उस लड़के से विजयराज सिंह का पता लिया तो वो नोएडा में ही उसके घर से 5-6 किलोमीटर दूर रहते थे। नाज़िया उनके घर पहुंची तो वहाँ विजयराज सिंह की बेटी रागिनी और बेटा विक्रम मिला रागिनी तब चौदह पंद्रह साल की और विक्रम सात-आठ साल का लगभग नीलोफर के बराबर का ही था। रागिनी ने नाज़िया को बताया कि विजयराज सिंह किसी कम से कहीं गए हुये हैं और रात तक वापस आ जाएंगे....वो कल सुबह जल्दी आ जाए तो मुलाक़ात हो सकती है...क्योंकि दिन में हो सकता है कि वो फिर कहीं निकल जाएँ
दूसरे दिन नाज़िया सुबह ही नीलोफर को साथ लेकर विजयराज के घर पहुंची तो वो कहीं जाने को तैयार थे....उनके बच्चे भी नहीं दिख रहे थे.... तो उन्होने बताया कि उनके बच्चे कल शाम को उनके बड़े भाई जयराज सिंह के यहाँ चले गए हैं और कुछ दिन वहीं रुकेंगे.... क्योंकि वो घर पर रुक नहीं पते और सारा दिन बच्चे अकेले ही घर पर रहते हैं.... फिर उन्होने नाज़िया से उनके पास आने कि वजह पूंछी तो नाज़िया ने बताया...अभी इन लोगों में बातें चल ही रही थीं कि तभी रेडियो पर सूचना आयी कि देश की प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी की गोली मार्कर हत्या कर दी गयी है नाज़िया ने तुरंत ही अपने घर जाने के लिए बोला और वहाँ से निकलकर मेन रोड पर आयी तब तक सिक्युरिटी की गाडियाँ शहर में बल्कि पूरे देश में ही धारा 144 लगाए जाने कि घोषणा करती हुई दिखीं.... साथ ही वो सभी को जहां हैं वहीं अंदर रहने की चेतावनी भी दे रहे थे.... नाज़िया अपनी बेटी को लिए असमंजस में खड़ी थी वहाँ बस-रिक्शा कुछ भी नहीं था और बेटी को लेकर इतनी दूर कैसे जाए। तभी विजयराज सिंह उसके पास पहुंचे और बोले कि अब अप अपने घर नहीं जा पाओगी इसलिए यहीं मेरे घर रुक जाओ...शाम तक सब शांत रहा तो वो खुद साथ जाकर छोड़ आएंगे...अभी बच्ची के साथ अकेली औरत का ऐसे माहौल में निकलना सही नहीं, नाज़िया को भी लगा कि यही सही रहेगा और वो विजयराज सिंह के साथ उनके ही घर वापस आ गयी।
नीलोफर कि कहानी जारी रहेगी.......... ये सिर्फ नीलोफर कि ही नहीं.........इस परिवार के कुछ और लोगों से भी जुड़ी बातें सामने लेकर आएगी...........जैसे अभी विजयराज सिंह के बारे में भी कुछ छुपे हुये पहलू सामने आ रहे हैं
साथ बने रहिए
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अब तक आपने पढ़ा कि नीलोफर सभी के सामने अपनी कहानी सुनाती है कि कैसे उसके नाना पटियाला से लाहौर जाकर बसे और कैसे उसकी माँ नाज़िया एक जासूस के रूप में दिल्ली आयी... फिर यहाँ आपातकाल लग जाने पर दिल्ली से पटियाला अपने परिवार के लोगों के पास पहुँच गयी.... जहां उसके पकड़े जाने के दर से उसके रिशतेदारों ने उसकी शादी परिवार के ही एक लड़के आसिफ से करा दी...और शादी के साल भर के अंदर ही उसके एक बेटी हुई जिसका नाम नीलोफर रखा गया...
नीलोफर ने अब आगे बताना शुरू किया
नाज़िया अब सबकुछ भूलकर पटियाला में अपने पति और बेटी के साथ रहने लगी... यहाँ कि सरकार ने उस पर कोई ध्यान भी नहीं दिया क्योंकि वो पासपोर्ट वीसा द्वारा तो यहाँ आयी नहीं थी... जिससे उसके हिंदुस्तान आने का कोई रेकॉर्ड होता.... और ना ही उसके परिवार वाले ही उसकी तलाश कर सकते थे... क्योंकि लाहौर में इंटेलिजेंस के अधिकारियों ने उन्हें कह दिया था कि हिंदुस्तान में एमेर्जेंसी खत्म होते ही उसे वापस निकाल लाएँगे...उन लोगों को भी लगता था कि वो या तो हिंदुस्तान में कहीं फंस गयी, मारी गयी या छुप गयी है... जिस वजह से उससे संपर्क नहीं हो पा रहा है
ऐसे ही वक़्त गुजरता गया और फिर 1977 में आपातकाल खत्म हुआ और चुनाव से नयी सरकार बनी... तो अब तक छुपे बैठे सारे इंटेलिजेंस एजेंट सक्रिय हो गए और उन्होने नाज़िया से भी संपर्क करने कि कोशिश की। लेकिन नाज़िया का कोई पता नहीं चल सका... तो उन्होने लाहौर में अपने अफसरान को नाज़िया के लापता होने कि खबर दी... उन्होने भी नाज़िया को मरा हुआ मान लिया... और उसके घरवालों को कह दिया कि वो वहाँ से भागकर कहीं छुप गयी है... इसलिए उसे गद्दार माना जाएगा... अगर ये लोग उसके लिए कोई बवाल करने कि कोशिश करेंगे तो इन्हें भी पूरे खानदान को मुल्क से गद्दारी के जुर्म में फांसी दे दी जाएगी।
इस पर बहुत दिनों तक मुजफ्फर हुसैन और उसके बेटे शांत बैठे रहे...एक तरह से उन्होने नाज़िया को भुला सा दिया लेकिन नाज़िया कि माँ... माँ का दिल अपने बच्चों को ऐसे कैसे भुला सकता है...उसने ज्यादा ज़ोर दिया, बार-बार कहा तो मुजफ्फर और उसके दोनों बेटे फिर जाकर इंटेलिजेंस वालों से मिले और उनसे कहा कि वो उनके रिशतेदारों से पटियाला किसी तरह से उनका संपर्क कराएं... हो सकता है कि वो लोग अपने तरीके से उसे वहाँ ढूंढ सकें। ये सुनकर इंटेलिजेंस वालों कि आँखों में भी चमक आ गयी... उन्हें भी लगा कि हो सकता है इस तरह उन्हें नाज़िया वापस मिल जाए। दुश्मन मुल्क में एक-एक एजेंट कीमती होता है... वो भी उसे खोना नहीं चाहते थे। उन्होने पटियाला में मुजफ्फर के रिशतेदारों कि जानकारी ली और अपने एजेंट जो हिंदुस्तान में थे उन्हें भेज दी... कि इस जगह नाज़िया का सुराग लगाएँ...और जरूरत पड़ने पर उन लोगों को मुजफ्फर का हवाला देकर उसकी बेटी को ढूँढने कि गुजारिश करें... लेकिन उन्हें इस बात कि भनक न लाग्ने दें कि नाज़िया जासूसी के लिए यहाँ आयी हुई थी।
और फिर एक दिन नाज़िया के सामने उसका गुज़रा हुआ कल फिर से आ गया जब एक मौलवी साहब उनके घर आए और मुजफ्फर के हवाले से उसकी बेटी कि गुमशुदगी कि इत्तला दी। पटियाला में नाज़िया के ससुराल वालों को लगा कि इससे नाज़िया को भी खुशी होगी और मुजफ्फर भी निश्चिंत हो जाएगा...इसलिए उन्होने सिलसिलेवार उन मौलवी साहब को सबकुछ बताया और नाज़िया से भी मिलवाया... नाज़िया ने उनसे मुलाक़ात की तो उनकी बातों से ही समझ गयी कि ये उसके परिवार वालों कि ओर से नहीं... इंटेलिजेंस कि ओर से उसका पता करने आए हैं, लेकिन जब वो सामने आ ही गयी तो अब वो कुछ नहीं कर सकती थी। जाते जाते वो मौलवी नजीय को अपना नाम-पता-फोन नंबर दे गया और उसके ससुरालवालों से कह गया कि ये मामला दो देशों.... वो भी दुश्मन देशों के बीच का है... इसलिए नाज़िया को एक बार दिल्ली आकर उनसे मिलना होगा... वहीं से वो उसका कुछ इंतजाम करा देंगे जिससे वो हमेशा पटियाला में रह सके।
परिवार वालों ने इसे साधारण तरीके से लिया लेकिन इस मामले कि गंभीरता को नाज़िया समझती थी, कि अगर वो दिल्ली जाकर उन लोगों से नहीं मिली तो हो सकता है उसकी और उसके पति, बेटी व परिवारवालों कि जान खतरे में पड़ जाए, या फिर अगर वो लोग और कुछ न कर सके तो यहाँ की इंटेलिजेंस को सूचना देकर उसे अवैध रूप से दूसरे देश से आकर यहाँ रहने के जुर्म में पकड़वा दें। अब नाज़िया के सामने सबसे बड़ी मुश्किल ये थी कि इन सब बातों को वो किसी से यहाँ तक कि अपने पति से भी नहीं कह सकती थी... वो लोग यहाँ अच्छे रसूख वाले लोग थे... जासूसी का मामला सामने आते ही क्या पता वो ही नाज़िया को पकड़वा देते... खुद को देशद्रोह और जासूसी के इल्ज़ाम से बचाने के लिए....इसी कशमकश में नाज़िया ने 2-3 दिन निकाल दिये फिर फैसला किया कि वो दिल्ली जाकर उन लोगों से एक बार मिलेगी और किसी ना किसी तरह इस मामले को निपटाएगी.... क्योंकि उसकी एक भी गलती यहाँ उसके ससुराल वालों और लाहौर में उसके घरवालों के लिए बहुत बड़ी मुसीबत बन सकती थी। लेकिन उसके ससुराल वाले उसे अकेले तो जाने नहीं देते उन्होने उसे आसिफ के साथ दिल्ली भेजने का फैसला किया और बेटी भी छोटी थी अभी उसका दूध पीती थी तो उसको तो साथ ले ही जाना था। इस तरह से आसिफ, नाज़िया और नीलोफर तीनों दिल्ली आ गए।
दिल्ली आकर वो नबी करीम के इलाके में एक मस्जिद में उस मौलवी से मिलने गए वहाँ पहुँचने पर उनके रुकने की व्यवस्था मस्जिद के पास ही मौलवी ने एक मकान में की और उन्हें बताया की 1-2 दिन में ही उनके सिलसिले में लाहौर बात करके वो कुछ हल निकलेगा। नाज़िया तो उसकी बातों का मतलब समझ रही थी कि ये आसिफ के सामने कुछ बात नहीं करेंगे और ना ही वो आसिफ के सामने कोई बात कर सकती थी खुलकर।
दूसरे दिन सुबह ही मौलवी ने अपने साथ आए एक लड़के से उन्हें मिलवाया और आसिफ को कहा कि वो उस लड़के के साथ चला जाए और कुछ लोगों से मिले जिनके द्वारा नाज़िया को यहाँ रखने के लिए लीगल कागजात का इंतजाम हो सके। नाज़िया आसिफ को उनके साथ अकेला नहीं भेजना चाहती थी लेकिन फिर उसे लगा कि शायद वो मौलवी उससे बात करने के लिए बहाने से आसिफ को वहाँ से अलग हटा रहा है तो उसने कोई ऐतराज नहीं किया। आसिफ के जाने के बाद मौलवी ने नाज़िया को वापस दिल्ली आकर इंटेलिजेंस का काम करने को कहा तो नाज़िया ने इनकार कर दिया और उनसे उसे अपने परिवार के साथ सुकून से रहने देने कि गुजारिश की जिस पर मौलवी ने कहा कि नाज़िया को आज शाम तक का वक़्त दिया जाता है...अपना फैसला लेने का.... और फैसला यही होना चाहिए कि वो फिर से दिल्ली में अपना काम शुरू करेगी... इस स्तिथि में उसे पटियाला वालों से अलग करने का इंतजाम वो खुद करेंगे और कुछ दिनों में उसे वापस लाहौर भेजने का भी इंतजाम कर दिया जाएगा...... अगर वो इस बात पर तैयार नहीं होती तो यहाँ और वहाँ दोनों जगह ही सिर्फ उसे ही नहीं उसके परिवार को भी इसका अंजाम भुगतना होगा।
नाज़िया सारे दिन कशमकश में उलझी आसिफ के वापस लौटने का इंतज़ार करती रही। उसने फैसला कर लिया था कि अब लाहौर में कुछ भी हो लेकिन वो यहाँ आसिफ और उसके परिवार को सबकुछ सच-सच बताकर इन सब के चंगुल से छूट जाएगी, वो लोग आखिरकार हैं तो उसके खानदानी ही... किसी भी हालत में उसको अपना ही लेंगे और अच्छे रसूखवाले हैं तो शायद किसी तरह से उसके परिवार को भी लाहौर से पटियाला बुलवा सकें तो आगे से सभी यहीं रहेंगे।
शाम हुई और फिर रात हो गयी लेकिन आसिफ वापस लौटकर नहीं आया... रात को मौलवी कुछ लोगों के साथ नाज़िया के पास आया
“ आज दिन में आसिफ का कत्ल हो गया है... लाश सिक्युरिटी को मिली है.... उसकी शिनाख्त उसके पास मौजूद कागजात से हो गयी है... पटियाला से उसके घरवाले दिल्ली पहुँच रहे हैं....” मौलवी ने कहा तो नाज़िया जैसे सकते में आ गयी
“क्यों मार दिया उसे... तुमने तो मुझे शाम तक का वक़्त दिया था ना” नाज़िया ने चिल्लाते हुये कहा तो मौलवी मुस्कुरा दिया
“तुझे क्या लगा.... तू यहाँ से वापस लौट जाएगी....जब तक वो जिंदा रहता तू हरगिज वापस नहीं आती...... और सुन उस कत्ल की वारदात को तूने अपने किसी यार के साथ अंजाम दिया है... और तू अपने उसी यार के साथ भाग गयी है” मौलवी बोला
“इससे तुम्हें क्या हासिल होगा.... मुझे यहाँ भी तो सिक्युरिटी तलाश करेगी ही” नाज़िया ने रोते हुये कहा
“ये दिल्ली करोड़ों की आबादी का शहर है.... बिना जाने, बिना सुराग के कोई किसी को नहीं पहचान सकता.... चल अब इनके साथ यहाँ से निकल जा और जहां ये लेकर जा रहे हैं वहीं रुकना.... में इस मामले को निपटाकर 2-3 दिन में तुझसे वहीं आकर मिलता हूँ.... फिर देखता हूँ क्या करना है तेरा” मौलवी ने साथ आए लोगों की ओर इशारा करते हुये कहा
“में कहीं नहीं जाऊँगी......... मुझे मारना है तो मार दो, सिक्युरिटी के हवाले करना है तो कर दो” नाज़िया ने अपने आँसू पोंछते हुये कहा
“तुझे मारने की क्या जरूरत है” कहते हुये मौलवी ने इशारा किया तो साथ खड़े एक आदमी ने नाज़िया की गोद से नीलोफर को छीन लिया
“इसको मारने का इल्ज़ाम भी तेरे ऊपर ही आयेगा, अगर इसकी लवारीश लाश मिली तो.... और तेरा....तू जासूसी के काम नहीं आएगी तो इन सबके जिस्म कि भूख मिटाने के काम तो आएगी.... और आखिर में यहीं किसी कोठे पर पहुंचा के हमारे मिशन के लिए कुछ फ़ंड में इजाफा कर लिया जाएगा” मौलवी ने मुसकुराते हुये कहा
“ऊपरवाले से डरो... इस मासूम बच्ची को तो बख्श दो....इसने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है....तुम जो कहोगे में करने को तैयार हूँ...बताओ कहाँ जाना है” नाज़िया ने आखिरकार हथियार डालते हुये कहा
नाज़िया पढ़ी लिखी और उस पर भी एक जासूस की ट्रेनिंग लेकर बहुत कुछ जानने समझने लगी थी.... वो भी समझ चुकी थी कि ये लोग जो कह रहे हैं... वो कर भी देंगे और दूसरी बात उसके साथ एक नहीं कई बातें खिलाफ जाती हैं... एक तो वो दूसरे देश से चोरी छुपे यहाँ घुसपेठकरके आयी है, दूसरे वो एक जासूस है... इसलिए उसको मामले में फंसाया जा रहा है.... इस बात पर यकीन करने के बाद भी कोई उसका साथ नहीं देगा ... न सिक्युरिटी और ना आसिफ के घरवाले, तीसरे आसिफ के कत्ल हो जाने के बाद.... चाहे वो कातिल न सही... लेकिन ये तो साबित होगा ही कि कत्ल नाज़िया कि वजह से हुआ... तो क्या आसिफ के घरवाले उसे कुबूल करेंगे............. ये सबकुछ बस कुछ ही पल में सोचकर नाज़िया ने फैसला लिया कि.... अब आसिफ तो इस दुनिया मे नहीं रहा... लेकिन अपनी बेटी को वो किसी भी हालत में खतरे में नहीं डालेगी... जो भी, जैसा भी हो...वो अपने ऊपर हर ज़ोर-जुल्म सहेगी लेकिन अपनी बेटी, अपने आसिफ की निशानी को वो एक खुशहाल ज़िंदगी देगी.... बस सही वक़्त और मौका मिलने की देर है....और उसके लिए अभी उसे इन लोगों कि सब बातें मान लेनी चाहिए।
उसी वक़्त वो लोग नाज़िया और उसकी बेटी को लेकर चुपचाप उत्तर प्रदेश के किसी गाँव में पहुँच गए और एक परिवार के साथ उन लोगों के रिश्तेदार के रूप में रुक गए... फिर 2-3 दिन बाद वो मौलवी आया और उससे नाज़िया ने अकेले में बात करने को कहा।
दोनों की बातचीत के बाद नाज़िया काम करने को तो तैयार हो गयी लेकिन उसकी एक ही शर्त थी.... इंटेलिजेंस से जुड़ा ना उसके पास कोई आयेगा और ना ही वो किसी के पास जाएगी.... क्योंकि उसकी बच्ची जब तक छोटी है तो उसे किसी अंजान जगह पर रहने और कम की व्यवस्था करा दी जाए जिससे की वो एक आम पारिवारिक औरत की तरह रह सके ..... साथ ही जो भी कम उसे दिया जाएगा.... वो ऐसा हो जिसे वो अपनी बच्ची को साथ लेकर भी कर सके....और पटियाला या लाहौर के लोगों को किसी भी तरह से ये भरोसा दिलाना होगा की किसी ने आसिफ का कत्ल कर दिया और नाज़िया को अगवा करके ले गए....नाज़िया आसिफ की कातिल नहीं...बल्कि वो भी मज़लूम थी.....और वो अब कहीं किसी से नहीं मिलेगी....हमेशा के लिए यहीं रहकर इंटेलिजेंस का काम देखेगी और अपनी बेटी को पालेगी।
उन लोगों ने उसे दिल्ली के जमुनापार इलाके में नयी आबाद हो रही लक्ष्मी नगर नाम की कॉलोनी में बसा दिया और काम के नाम पर एक सिलाई-कढ़ाई सिखाने का सेंटर खुलवा दिया ...... वहाँ रहनेवाले ज़्यादातर लोग या तो दिल्ली में नौकरियाँ करते थे या पास में बसाये जा रहे नए शहर नोएडा में बन रही फैक्ट्रियों के निर्माण में लगे हुये थे.... ज़्यादातर मिडिल क्लास लोग थे.... ज्यादा गरीब भी नहीं लेकिन पैसे के लिए परेशान भी.... उन लोगों के काम पर जाने के बाद उन घरों की औरतें लड़कियां भी ऐसे काम सीखना और करना चाहती थीं जिससे की कुछ एक्सट्रा आमदनी हो.... तो नाज़िया का सेंटर अच्छा चल पड़ा... साथ ही उन लोगों के लिए भी नाज़िया कुछ छोटे मोटे काम जैसे खबर को इधर से उधर देने का काम करने लगी.... फिर उन लोगों ने नाज़िया को समझाया कि वो अपने पास आनेवाली औरतों लड़कियों में से कुछ छांट कर निकाले जो पैसे के लिए कुछ भी करने को तैयार हो....यहाँ तक कि जिस्म्फ़रोशी भी.... पहले तो नाज़िया ने माना किया लेकिन उन लोगों के दवाब और इस वादे... कि किसी को जबर्दस्ती किसी काम के लिए ज़ोर नहीं दिया जाएगा.... सिर्फ उन्हें ही जोड़ा जाएगा जो अपनी खुशी से शामिल हो और जब तक चाहें तभी तक.....नाज़िया ने अपने पास अनेवाली औरतों लड़कियों को इशारे में ये प्रस्ताव देना शुरू कर दिया.... कुछ औरतें लड़कियां इच्छुक हुईं तो नाज़िया ने उन्हें अपने एजेंट से मिलवाना शुरू किया... ऐसे ही धीरे धीरे नाज़िया इस दलदल में उतरती चली गयी.....
जब धनदा बड़े स्तर पर चलने लगा तो नाज़िया ने नोएडा में एक मकान ले लिया और वहाँ रहकर इस काम को चलाने लगी.... पहले तो वो उन लड़कियों-औरतों को उन एजेंट के हवाले कर देती थी... बदले में वो उसे कुछ न कुछ दे देते थे... जो सही समझते। लेकिन अब इस धंधे को नाज़िया बहुत अच्छे से समझ चुकी थी तो उसने उन एजेंट के काम के अलावा अपने से जुड़ी औरतों-लड़कियों से खुद धंधा करवाना शुरू कर दिया इससे उन रंडियों को भी ज्यादा कमाई होने लगी और नाज़िया को भी दलाली में अच्छा खासा फाइदा होने लगा.... इधर उसकी बेटी नीलोफर भी अब बड़ी हो रही थी, नाज़िया को उसके भविष्य की भी फिकर थी...इस समय नीलोफर कि उम्र आठ साल थी।
1984 की बात है उसे उसके एजेंट ने एक आदमी का पता दिया कि वो उससे मिलकर बात कर ले वो फर्जी पासपोर्ट बनाता है इससे उनके नए एजेंटों को यहाँ घुसने में मदद मिलेगी.... नाज़िया उस पते पर जाकर मिली तो वहाँ एक लड़का मिला जिसने बताया कि जो इस काम को करते हैं वो उनके लिए काम करता है...उनका नाम विजयराज सिंह है... पिछले महीने उनकी पत्नी का देहांत हो गया है तो वो आजकल कम के सिलसिले में न तो यहाँ आ रहे हैं और ना ही कहीं आ-जा रहे हैं... क्योंकि उनके 2 बच्चे हैं उनकी देखरेख के लिए उन्हें अपने घर ही रहना होता है.... वैसे वो चाहें तो अपने घर से ही उसका काम कर दिया करेंगे... यहाँ के काम से जुड़ा सबकुछ वो अपने पास ही घर पर रखते हैं.....तो नाज़िया चाहे तो उनसे मिल सकती है।
नाज़िया ने उस लड़के से विजयराज सिंह का पता लिया तो वो नोएडा में ही उसके घर से 5-6 किलोमीटर दूर रहते थे। नाज़िया उनके घर पहुंची तो वहाँ विजयराज सिंह की बेटी रागिनी और बेटा विक्रम मिला रागिनी तब चौदह पंद्रह साल की और विक्रम सात-आठ साल का लगभग नीलोफर के बराबर का ही था। रागिनी ने नाज़िया को बताया कि विजयराज सिंह किसी कम से कहीं गए हुये हैं और रात तक वापस आ जाएंगे....वो कल सुबह जल्दी आ जाए तो मुलाक़ात हो सकती है...क्योंकि दिन में हो सकता है कि वो फिर कहीं निकल जाएँ
दूसरे दिन नाज़िया सुबह ही नीलोफर को साथ लेकर विजयराज के घर पहुंची तो वो कहीं जाने को तैयार थे....उनके बच्चे भी नहीं दिख रहे थे.... तो उन्होने बताया कि उनके बच्चे कल शाम को उनके बड़े भाई जयराज सिंह के यहाँ चले गए हैं और कुछ दिन वहीं रुकेंगे.... क्योंकि वो घर पर रुक नहीं पते और सारा दिन बच्चे अकेले ही घर पर रहते हैं.... फिर उन्होने नाज़िया से उनके पास आने कि वजह पूंछी तो नाज़िया ने बताया...अभी इन लोगों में बातें चल ही रही थीं कि तभी रेडियो पर सूचना आयी कि देश की प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी की गोली मार्कर हत्या कर दी गयी है नाज़िया ने तुरंत ही अपने घर जाने के लिए बोला और वहाँ से निकलकर मेन रोड पर आयी तब तक सिक्युरिटी की गाडियाँ शहर में बल्कि पूरे देश में ही धारा 144 लगाए जाने कि घोषणा करती हुई दिखीं.... साथ ही वो सभी को जहां हैं वहीं अंदर रहने की चेतावनी भी दे रहे थे.... नाज़िया अपनी बेटी को लिए असमंजस में खड़ी थी वहाँ बस-रिक्शा कुछ भी नहीं था और बेटी को लेकर इतनी दूर कैसे जाए। तभी विजयराज सिंह उसके पास पहुंचे और बोले कि अब अप अपने घर नहीं जा पाओगी इसलिए यहीं मेरे घर रुक जाओ...शाम तक सब शांत रहा तो वो खुद साथ जाकर छोड़ आएंगे...अभी बच्ची के साथ अकेली औरत का ऐसे माहौल में निकलना सही नहीं, नाज़िया को भी लगा कि यही सही रहेगा और वो विजयराज सिंह के साथ उनके ही घर वापस आ गयी।
नीलोफर कि कहानी जारी रहेगी.......... ये सिर्फ नीलोफर कि ही नहीं.........इस परिवार के कुछ और लोगों से भी जुड़ी बातें सामने लेकर आएगी...........जैसे अभी विजयराज सिंह के बारे में भी कुछ छुपे हुये पहलू सामने आ रहे हैं
साथ बने रहिए
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