21-02-2019, 10:29 AM
चंडीगड़ में मेरे चाचा का परिवार रहता था. चाचा की कई साल पहले मौत हो चुकी थी. घर में चाची, उनका बेटा और बहू रहते थे. उनकी बेटी भी थी जिसकी अब शादी हो चुकी थी. तय यह हुआ की मैं होस्टल में न रहकर चाचा के घर में रहकर इंजिनियरिंग के चार साल बिताऊँगा. पहले मैं इस बात से बहुत नाराज़ हुआ. मुझे लगा की कॉलेज का मज़ा तो होस्टल में ही आता है, लेकिन मुझे क्या पता था की वो चार साल मेरी ज़िंदगी के सबसे खूबसूरत चार साल होंगे.
कुछ महीने बाद मैं निकल पड़ा चंडीगड़ के लिए. रास्ते भर मैं खुश था की कई साल बाद मैं अपनी भाभी से मिलूँगा. सुमन मेरे चचेरे भाई रवि की बीवी का नाम है. रवि भैया मुझसे उम्र में आठ साल बड़े हैं. उन्होने कॉलेज ख़त्म करने के कुछ महीने बाद ही सुमन भाभी से शादी कर ली थी. मैं न जाने कितनी बार सुमन भाभी के नाम की मुट्ठी मारी थी. और थी भी वो तगड़ा माल. शादी के वक़्त जब भाभी को दुल्हन के कपड़ो में देखा था, तब लंड पर काबू पाना मुश्किल था. मैने बस यही सोचा था की रवि भैया कितने खुशकिस्मत हैं जो इस बला की खूबसूरत लड़की को चोदने को मिल रहा है उन्हे.
खैर मैं अगले दिन चंडीगड़ पहुँचा और चाची और भाभी ने मेरा स्वागत किया. चाची बोली, "अब तू आ गया है, चलो कोई तो मर्द होगा घर में, नही तो तेरा भाई हर समय इधर-उधर भागता रहता है बस". भैया की सेल्स की जॉब थी जिस वजह से वो हर वक्त बाहर रहते थे. सुमन भाभी मेरे लिए पानी लेकर आई. क्या ज़बरदस्त माल लग रही थीं वो. गुलाबी साड़ी में किसी स्वर्ग की अप्सरा जैसी खूबसूरत, गोरा सुडौल बदन जो किसी नामर्द के लंड में जान डाल दे. पर जो सबसे खूबसूरत था वो था उनके पल्लू से उनका आधा ढका पेट और उसमे से आधी झाँकती हुई ठुण्डी. मैने उनके हाथ से पानी लिया पर मेरी नज़र उनके पेट से हट नही पा रही थी. दिल करता था की बस पल्लू हटा के उनके पेट और ठुण्डी को चूम लू.
तभी अचानक भाभी बोल पड़ी "क्या देख रहे हो देवर जी".
मैं तोड़ा झेप गया. सोचने लगा कहीं भाभी कुछ ग़लत ना सोचे या चाची को ये न लगे कि मैं उनकी बहू को ताड़ रहा हूँ.
मेरी नज़र भाभी के चेहरे पर पड़ी. इतनी खूबसूरत थी वो जैसे मानो भगवान ने फ़ुर्सत में पूरा वक्त देकर उन्हे बनाया हो.
"क्क्क-कुछ नही भाभी" मैं कुछ भी बोल पाने में असमर्थ था.
कुछ महीने बाद मैं निकल पड़ा चंडीगड़ के लिए. रास्ते भर मैं खुश था की कई साल बाद मैं अपनी भाभी से मिलूँगा. सुमन मेरे चचेरे भाई रवि की बीवी का नाम है. रवि भैया मुझसे उम्र में आठ साल बड़े हैं. उन्होने कॉलेज ख़त्म करने के कुछ महीने बाद ही सुमन भाभी से शादी कर ली थी. मैं न जाने कितनी बार सुमन भाभी के नाम की मुट्ठी मारी थी. और थी भी वो तगड़ा माल. शादी के वक़्त जब भाभी को दुल्हन के कपड़ो में देखा था, तब लंड पर काबू पाना मुश्किल था. मैने बस यही सोचा था की रवि भैया कितने खुशकिस्मत हैं जो इस बला की खूबसूरत लड़की को चोदने को मिल रहा है उन्हे.
खैर मैं अगले दिन चंडीगड़ पहुँचा और चाची और भाभी ने मेरा स्वागत किया. चाची बोली, "अब तू आ गया है, चलो कोई तो मर्द होगा घर में, नही तो तेरा भाई हर समय इधर-उधर भागता रहता है बस". भैया की सेल्स की जॉब थी जिस वजह से वो हर वक्त बाहर रहते थे. सुमन भाभी मेरे लिए पानी लेकर आई. क्या ज़बरदस्त माल लग रही थीं वो. गुलाबी साड़ी में किसी स्वर्ग की अप्सरा जैसी खूबसूरत, गोरा सुडौल बदन जो किसी नामर्द के लंड में जान डाल दे. पर जो सबसे खूबसूरत था वो था उनके पल्लू से उनका आधा ढका पेट और उसमे से आधी झाँकती हुई ठुण्डी. मैने उनके हाथ से पानी लिया पर मेरी नज़र उनके पेट से हट नही पा रही थी. दिल करता था की बस पल्लू हटा के उनके पेट और ठुण्डी को चूम लू.
तभी अचानक भाभी बोल पड़ी "क्या देख रहे हो देवर जी".
मैं तोड़ा झेप गया. सोचने लगा कहीं भाभी कुछ ग़लत ना सोचे या चाची को ये न लगे कि मैं उनकी बहू को ताड़ रहा हूँ.
मेरी नज़र भाभी के चेहरे पर पड़ी. इतनी खूबसूरत थी वो जैसे मानो भगवान ने फ़ुर्सत में पूरा वक्त देकर उन्हे बनाया हो.
"क्क्क-कुछ नही भाभी" मैं कुछ भी बोल पाने में असमर्थ था.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.