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Adultery चार होंठ - दो ऊपर और दो नीचे
#7
निशा बेसुध सी आँखें बन्द किए लेटी थी। थोड़ी देर बाद उसने अपनी जाँघों की कैंची ढीली की और मेरा सिर पकड़ कर ऊपर की ओर सरकाया और अपने होंठ मेरे होंठों पर रखकर चूसने लगी। २-३ मिनट चूसने के बाद वो बोली "जीजू मुझे पता नहीं ये क्या होता जा रहा है। एक मदहोशी सी छा रही है। कुछ करो ना... उफ्फ... हाय्य्य्यययय..." एक ज़ोर की सीत्कार उसने ली। लगता था वो एक बार फिर झड़ गई है।
मैं उसके ऊपर आ गया। मैंने अपनी चड्डी फाड़ फेंकी। मेरा ७" का पप्पू आज तो लोहे की तरह सख़्त था। उसकी लम्बाई आधा इंच बढ़कर ७.५ इंच हो गई थी। मैंने कहा "क्या करूँ मेरी जान?"

"ओह... जीजू... अब मत तरसाओ... कर लो अपने मन की। ओह आप मेरे मुँह से क्या सुनना चाहते हैं। मुझे शर्म आती है। प्लीज़..." कुछ ना कहते हुए भी उसने सबकुछ कह दिया था। मैंने अपने लंड को उसकी चूत पर लगा दिया।

"ऊईईईई... माँआआ.... ओहहहह... जीजू वो... वो... निरोध (कॉण्डोम) तो लगा लो" निशा की आवाज़ काँप रही थी।

"मेरी रानी निरोध से मज़ा नहीं आएगा।"
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"पर वो... वो... अगर मैं गर्भवती हो गई तो...?"

"मेरी जान फिर तुम्हारा नया उत्पाद किस दिन काम आएगा? सिर्फ एक महीने में एक गोली?" मैंने कहा, और मन में सोचा 'साली मुझे पपलू समझती है।'

"ओह... जीजू, तुम भी एक नम्बर के बदमाश हो..." और उसने मुझे कससकर अपनी बाँहों में भर लिया।

"नहीं, मैं ..........................

"क्या मतलब?"

"वो बाद में अभी तो मज़ा लो।" और मैंने तकिये के नीचे से वैसलीन की डिब्बी से थोड़ी से वैसलीन निकाली और अपने लंड और निशा की चूत में एक उँगली भर कर गच्च से डाल दी। उसकी हल्की सी चीख निकल गई। मैंने ५-७ बार उँगली अन्दर-बाहर की। हे भगवान, साली की क्या मस्त सँकरी चूत है। एकदम कच्ची कली जैसी, फ़कत कुँवारी, कोरी रसमलाई जैसी। अब देर करना ठीक नहीं था।

मैंने अपने पप्पू को उसकी चूत के मुहाने पर रका और उसकी कमर के नीचे एक हाथ डाला। उसके होंठों को अपने मुँह में भर लिया और फिर एक ही झटके में ३ इंच लंड अन्दर ठोंक दिया। निशा की घुटी-घुटी चीख निकल गई। मैं तो प्रेम-गुरु था। मुझे पता था वो ज़रूर चीखेगी, इसीलिए मैंने उसके होंठों को अपने मुँह में ले रखा था। और उसकी कमर पकड़ रखी थी ताकि वो उछल कर मेरा काम ख़राब ना कर दे।

अभी धक्के मारने का समय नहीं हुआ था। कोई २-३ मिनट के बाद जब उसकी चूत कुछ आराम में आई और उसने पानी छोड़ा तब मैंने हौले-हौले धक्के लगाने शुरु किए पर अभी लंड पूरा नहीं घुसाया। मुझे पता था, अभी एक बाधा और बाक़ी है - उसकी झिल्ली उसकी सील उसकी नाज़ुक झिल्ली, उसकी कुँवारीच्छद। जिसके फटने का दर्द वो मुश्किल से सहन कर पाएगी। पर उसे भी तोड़ना था। मैंने उसके नितम्बों पर हाथ फेरना चालू रखा। उसकी गाँड के छेद से जैसे ही मेरी उँगलियाँ टकराईं तो मैं तो रोमांच से भर उठा. बालों की कंघी के दाँत जैसी गाँड की तीख़ी नोकदार सिलवटों वाला छेद। आहहहह... क्या मस्त क़यामत है साली की गाँड की छेद

(
मैंने उसके नितम्बों के नीचे एक तकिया और लगा दिया और अपना एक हाथ उसकी पतली कमर के नीचे डाल कर पकड़ लिया। अपने होंठ उसके होंठों पर रख करक उन्हें चूमा और फिर दोनों होंठ अपने मुँह में भर लिए। वो तो पूरी गरम और मस्त हो चुकी थी। उसने तो अब नीचे से हल्के-हल्के धक्के भी लगाने शुरु कर दिए थे। मैंने अपना लंड थोड़ा सा बाहर निकाला और एक ज़ोरदार धक्का लगा दिया। धक्का इतना ज़बर्दस्त था कि उसकी सील को तोड़ता हुआ गच्च से जड़ तक उसकी चूत में समा गया। निशा की घुटी-घुटी चीख़ बाहर कड़कड़ाती बिजली की आवाज़ में दब गई। वो दर्द के मारे छटपटाने लगी। उसने मेरी पीठ पर अपने नाखून इतने ज़ोर से गड़ाए कि मेरी पीठ पर भी ख़ून छलक आया। उसकी चूत से ख़ून का फव्वारा छूटा और मेरे लंड को भिंगोता हुआ तकिए पर गिरने लगा। निशा की कसमसाहट से उसके होंठ मेरे मुँह से निकलते ही वो ज़ोर से चीख़ी "ओईईईईई... माँ.... मर... गईईईईईईईई..." और उसकी आँखों से आँसू निकलने लगे।

मैंने उससे कहा "बस मेरी रानी अब दर्द खत्म ! अब तो बस आनन्द ही आनन्द है। बस अब चुप करो" मैंने उसके नमकीन स्वाद वाले आँसूओं पर अपनी जीभ रख दी। "जीजू आप भी एक नम्बर के कसाई हो, मुझे मार ही डाला... ओओईईईईई... निकाल बाहर.. मैं मर जाऊँगी... उईईईईई माँआआआआ...." वो रोए जा रही थी। मैं जानता ता ये दर्द ३-४ मिनट का है बाद में तो बस मज़े ही मज़े। मेरा पप्पू तो जैसे निहाल ही हो गया। इतनी कसी हुई चूत तो मधु की भी नहीं लगी थी, सुहागरात में।

कोई ५ मिनट के बाद निशा कुछ संयत हुई। उसकी चूत ने भी फिर से रस छोड़ना चालू कर दिया। मैंने उसकी कपोलों, होंठों और माथे पर चुम्बन लेने शुरु कर दिए। फिर मैंने उससे पूछा "क्यों मेरी मैना, अब दर्द कैसा है?" तो वह बोली "जीजू आपने तो मेरी जान ही निकाल दी, कोई कुँवारी लड़की को ऐसे चोदता है?"

"देखो अब जो होना था हो गया हा, अब तो बस इसके आगे स्वर्ग का सा आनन्द ही आनन्द है" और मैंने हौले-हौले धक्के लगाने शुरु कर दिए। निशा को भी अब थोड़ा मज़ा आने लगा था। मैंने कहा "मेरी मैना, अब तुम कली से फूल बन गई हो और मैं तुम्हारा मिट्ठू"
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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RE: चार होंठ - दो ऊपर और दो नीचे - by neerathemall - 21-02-2019, 10:00 AM



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