21-02-2019, 09:59 AM
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अच्छा चलो अब सो ही जाते हैं। पर एक समस्या है?"
"वो क्या?"
"दरअसल मैं सोने से पहले दूध पीता हूँ।"
"ये क्या समस्या है, रसोई में जाकर पी लो।"
"वो... वो... रसोई में लाईट नहीं है ना। बिना लाईट के मुझे डर लगता है।"
"ऐसे तो बड़े शेर बनते हो।"
"तुम भी तो झाँसी की शेरनी हो, तुम ही ला दो ना।"
"मैं.. मैं... " इतने में ज़ोर की बिजली कड़की और निशा डर के मारे मेरी ख़िसक आई "मुझे भी अँधेरे से डर लगता है।"
"हे भगवान इस प्यासे को कोई मदद नहीं करना चाहता" मैंने तड़पते हुए मजनू की तरह जब शीशे पर हाथ रख एक्टिंग की तो निशा की हँसी निकल गई।
"मैं क्या मदद कर सकती हूँ?" उसने हँसते हुए पूछा
"तुम अपना ही पिला दो।"
"क्या मतलब?" उसने झट से अपना हाथ अपने उरोजों पर रख लिए "जीजू तुम फिर...?"
इतने बड़े अमृत-कलशों में दूध भरा पड़ा है थोड़ा सा पिला दो ना तुम्हारा क्या बिगड़ जाएगा" मैंने लगभग गिड़गिड़ाने के अन्दाज़ में कहा।
तो निशा पहले तो हँस पड़ी फिर नाराज़ होकर बोली,"जीजू तुम हद पार कर रहे हो।"
"अभी पार कहाँ की है तुम कहाँ पार करने दे रही हो?"
"जीजू मुझे नींद आ रही है" उसने आँखें तरेरते हुए कहा।
"हे भगवान क्या ज़माना आ गया है। कोई किसी की मदद नहीं करना चाहता।" निशा हँसते हुए जा रही थी। मैंने अपनी एक्टिंग करनी जारी रखी "सुना है झाँसी के लोगों का दिल बहुत बड़ा होता है पर अब पता चला कि बड़ा नहीं पत्थर होता है और पत्थर ही क्या पूरा पहाड़ ही होता है, टस से मस ही नहीं होता, पिघलता ही नहीं।" निशा हँसते-हँसते दोहरी होती जा रही थी। पर मेरी ऐक्टिंग चालू थी। "हे भगवान, इन ख़ूबसूरत लड़िकयों का दिल इतना पत्थर का क्यों बनाया है, इससे अच्छा तो इन्हें काली-कलूटी ही बना देता कम से कम किसी प्यासे पर तरस तो आ जाता।" मैंने अपनी ऐक्टिंग चालू रखी।
मैं तो शोले वाला वीरू ही बना था "जब कोई दूध का प्यासा मरता है तो अगले जन्म में वो कनख़जूरा या तिलचट्टा बनता है। हे भगवान, मुझे कनख़जूरा या तिलचट्टा बनने से बचा लो। हे भगवान मुझे नहीं तो कम से कम इस झाँसी की रानी को ही बचा लो।"
"क्या मतलब?"
"सुना है दूध के प्यासे मरते व्यक्ति की बददुआ से वो कंजूस लड़की अगले जन्म में जंगली बिल्ली बनती है। और इस ज्न्म में उसकी शादी २४वीं साल ही हो जाती है और अगले ३ सालों में ६ बच्चे भी हो जाते हैं।" मैंने आँखें बन्द किए अपने दोनों हाथ ऊपर फैलाए।
हँसते-हँसते निशा का बुरा हाल था। वो बोली "३ साल में ६ बच्चे... वो कैसे?"
मेरे कार्यक्रम की तो अब बस चंद लाईनें ही लिखनीं बाकी रह गई थीं। चिड़िया ने दाना चुगने के लिए जाल की ओर बढ़ना शुरु कर दिया था। मैंने कहा "अच्छा सच्चे आशिक़ की दुआ हो और भगवान की मर्ज़ी हो तो सबकुछ हो सकता है। हर साल दो-दो जुड़वाँ बच्चे पैदा हो सकते हैं।"
निशा ठहाके मारने लगी थी। हँसते-हँसते वो दोहरी होती जा रही थी। मैंने कहा चलो दूध नहीं पिलाना, ना सही, पर कम से कम एक बार दूध-कलश देख ही लेने दो।"
"देखने से क्या होगा?"
"मुझे तसल्ली हो जाएगी... एक झलक दिखाने से तुम्हारा क्या घिस जाएगा, प्लीज़ एक बार।"
"ओह... जीजू तुम भी ना... नहीं... ओह... तुम भी ........., मुझे अपनी बातों के जाल में फिर उलझा ही लिया ना, मुझे तुमसे कोई बात नहीं करनी है।"
"अरे किसी की प्यास बुझाने से पुण्य मिलता है।"
निशा अब पूरी तरह से गरम हो चुकी थी। उसके मन में कशमकश चल रही थी कि आगे बढ़े या नहीं। मैं जानता हूँ पहली बार की चुदाई से सभी डरतीं हैं। और वो तो अभी अनछुई कुँवारी कली थी। पर मेरा कार्यक्रम बिल्कुल सम्पूर्ण था। मेरे चुंगल से वो भला कैसे निकल सकती थी। उसने आँखें बन्द कर रखीं थीं।
फिर धीरे से बोली "बस एक बार ही देखना है और कोई शैतानी नहीं समझे?"
"ठीक है बस एक बार एक मिनट और २० सेकेण्ड के लिए, ओके, पक्का... प्रॉमिस... सच्ची..." मैंने अपने कान पकड़ लिए। उसकी हँसी निकल गई।
मेरा दिल ज़ोरों से धड़क रहा था। कमोबेश यही हालत निसा की भी थी। उसने काँपती आवाज़ में कहा "अच्छा पहले लाईट बन्द करो, मुझे शर्म आती है।"
ओह... अँधेरे में क्या दिखाई देगा? और फिर वो जंगली बिल्ली आ गई तो?"
"ओह.. जीजू.. .तुम भी..." इस बार उसने एक नम्बर का बदमाश नहीं कहा। और फिर उसने आँखें बन्द किए हुए ही काँपते हाथों से अपना टॉप थोड़ा सा उठा दिया...
उफ्फ... सिन्दूरी आमों जैसे दो रस-कूप मेरे सामने थे। ऐरोला कोई कैरम की गोटी जितना गुलाबी रंग का। घुण्डियाँ बिल्कुल तने हुए चने के दाने जितने। मैं तो बस मंत्रमुग्ध हो देखता ही रह गया। मुझे लगा जैसे मिक्की ही मेरे सामने बैठी है। उसके रस-कूप मिक्की से थोड़े ही बड़े थे पर थोड़े से नीचे झुके, जबकि मुक्की के बिल्कुल सुडौल थे. मैंने एक हाथ से हौले से उन्हें छू दिया। उफ्फ... क्या मुलायम नाज़ुक रेशमी अहसास था। जैसे ही मैंने उनपर अपनी जीभ रखी तो निसा की एक मीठी सी सीत्कार निकल गई।
"ओह जीजू... केवल देखने की बात हुई थी... ओह... ओह... यहा... अब... बस करो... मुझे से नहीं रुका जाएगा..." मैंने एक अमृत कलश पर जीभ रख दी और उसे चूसना चालू कर दिया। निशा की सीत्कार अब भी चालू थी। "ओह... जी... जू.... मुझे क्या कर दिया तुमने... ओह.. चोदो मुझे... आह। हाआआयय्य्ययय... ऊईईईईईई... माँ........ आआआहहहह... बस अब ओर नहीं, एक मिनट हो गया है" उसने मेरे सिर के बालों को अपने दोनों हाथों में ज़ोर से पकड़ लिया और अपनी छाती की ओर दबाने लगी। मैं कभी एक उरोज को चूसता, कभी दूसरे को। वो मस्त हुई आँखें बन्द किए मेरे बालों को ज़ोर से खींचती सीत्कार किए जा रही थी। इसी अवस्था में हम कोई ८-१० मिनट तो ज़रूर रहें होंगे। अचानक उसने मेरा सिर पकड़ कर ऊपर उठाया और मेरे होंठों को चूमने लगी, जैसे वो कई जन्मों की प्यासी थी। हम दोनों फ्रेंच किस्स करते रहे। फिर उसने मुझे नीचे ढकेल दिया और मेरे ऊपर लेट कर मेरे होंठ चूसने लगी। मेरा पप्पू तो अकड़ कर कुतुबमीनार बना पाजामे में अपना सिर फोड़ रहा था। मैं उसकी पीठ और नितम्बों पर हाथ फेर रहा था। क्या मुलायम दो ख़रबूज़े जैसे नितम्ब, कि किसी नामर्द का भी लंड खड़ा कर दे। मैंने उसकी गहरी होती खाई में अपनी उँगलियाँ फिरानी शुरु कर दी। उसकी चूत से रिसते कामरस से गीली उसकी चूत और गाँड का स्पर्श तो ऐसा था जैसे मैं स्वर्ग में ही पहुँच गया हूँ।
कोई ५ मिनट तक तो उसने मेरे होंठ चूसे ही होंगे। वैसे ही जैसे उस ब्लैक फॉक्स ने उस १५-१६ साल के लड़के के चूसे थे। फिर वो थोड़ी सी उठी और मेरे सीने पर ३-४ मुक्के लगा दिए। और बोली "जीजू तुमने आख़िर मुझे ख़राब कर ही दिया ना!"
मैंने धीरे से कहा "ख़राब नहीं प्यार करना सिखाया है"
थोड़ी देर बाद पता चलेगा' पर मैंने कहा "अरे छोड़ो इन बातों को जवानी के मज़ा लो, इस रात को यादगार रात बनाओ"
"नहीं जीजू, यह ठीक नहीं होगा। मैं अभी तक कुँवारी हूँ। मैंने पहले किसी के साथ कुछ नहीं किया। मुझे डर लग रहा है कोई गड़बड़ हो गई तो?"
"अरे मेरी रानी अब इतनी दूर आ ही गए हैं तो डर कैसा तुम तो बेकार डर रही हो, सभी मज़ा लेते हैं। इस जवानी को इतना क्यों दफ़ना रही हो। अपने मन और दिल से पूछो वो क्या कहता है।" मैंने अपना राम-बाण चला दिया। मैं जानता था वो पूरी तरह तैयार है पर पहली बार है इसलिए डर रही है। मन में हिचकिचाहट है। मेरे थोड़े से उकसावे पर वह चुदाई के लिए तैयार हो जाएगी। चूत और दिल इसके बस में अब कहाँ हैं, वो तो कब के मेरे हो चुके हैं। बस ये जो दिमाग में थोड़ा सा खलल है, मना कर रहा है। मेरी परियोजना का अन्तिम भाग सफलता पूर्वक पूरा हो गया था। अब तो बस उत्पाद का उदघाटन करना था।
मैंने उसका टॉप उतार दिया। दोनों क़बूतर आज़ाद हो गए। वो आँखें बन्द करके लेटी थी। होंठ काँप रहे थे। मैंने अभी तक उसकी चूत को हाथ भी नहीं लगाया था। आप तो जानते हैं मैं प्रेम गुरु हूँ और जल्दीबाज़ी में विश्वास नहीं रखता हूँ। मैं तो उसके मुँह से कहलवाना चाहता था कि 'मुझे चोदो'। अब मैंने उसके होठों पर उसके होंठ रख दिए। उसके नरम नाज़ुक रसीले होठ नहीं जैसे शहद से भरी फूलों की पँखुड़ियाँ हों। मैंने उसे गालों पर, पलकों पर, माथे पर, गले पर, कान पर, दोनों उरोजों पर, और नाभी पर चुम्बनों की झड़ी लगा दी। वो आआहहह... उहहहह... करती जा रही थी। अपने पैर पटक रही थी। उसकी सीत्कार तेज़ होती जा रही थी। वो बोली "ये मुझे क्या होता जा रहा है..." वो रोमांच से काँप रही थी। मैं जानता था अब वह झड़ने वाली है। अरे वो तो बिल्कुल कच्ची कली ही निकली। उसका शरीर अकड़ा और उसने मेरे होंठ ही काट लिए। उसके नाखून मेरी पीठ पर चुभ रहे थे। उसने एक हल्की सी सिसकारी मारी। लगता है उसकी चूत ने पानी छोड़ दिया। फिर वह ठंडी पड़ गई।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
