21-02-2019, 09:57 AM
मैं सोफ़े पर बैठ गया। जैसी ही बाथरूम का दरवाज़ा खुला गीले बालों से टपकती शबनम जैसी बूँदे, काँपते होंठ, क़मसिन बदन, बेल-बॉटम में कसी पतली-पतली जाँघों के बीच फँसी बुर का इतिहास और भूगोल यानी चीरा और फाँकें साफ़ महसूस हो रही थी। हे भगवान क्या फुलझड़ी है, पटाखा है, या कोई बम है। एक जादुई रोशनी से जैसे पूरा ड्राईंग-रूम ही भर उठा। अचानक एक बार जोर की बिजली कड़की और एक तेज धमाके के साथ पूरे मुहल्ले की लाईट चली गई। हॉल में घुप्प अँधेरा छा गया। उसके साथ ही डर के मार निशा की चीख सी निकल गई, "जीजू, ये क्या हुआ?" वो लगभग दौड़ती हुई फिर मेरी ओर आई। इस बार वह टकराई तो नहीं पर उसकी गरम साँसें मैं अपने पास ज़रूर महसूस कर रहा था।
"कौन सा उत्पाद लाँच कर रही हो?"
"दो उत्पाद हैं, एक तो गर्भाधान रोकने की गोली है, महीने में सिर्फ एक गोली और दूसरा बच्चों के अँगूठा चूसने और दाँतों से नाख़ून काटने की आदत से छुटकारा दिलाने की दवाई है, जिसे नाखूनों पर लगाया जाता है।"
"हे भगवान तुम सब लोग हमारी रोज़ी-रोटी छीन लेने पर तुले हो।"
"क्या मतलब?? हम तो बिज़नेस के साथ-साथ समाज सेवा भी कर रहे हैं।" निशा ने हैरानी से पूछा वो बात-बात में 'क्या मतलब' ज़रूर बोलती है।
"अरे भाई साफ़ बात है, तुम गर्भधारण रोकने की दवा की मार्केटिंग करती हो तो बच्चे कहाँ से पैदा होंगे और फिर हमारे उत्पाद जैसे बच्चों का दूध, बच्चों का आहार, बच्चों के तेल, नैप्पी, पावडर, साबुन कौन खरीदेगा?"
"और वो अँगूठा चूसने की आदत छुड़ाने की दवाई?"
"वो भी हम जैसे प्रेमियों के ऊपर उत्याचार ही है।"
"क्या... मत...लब?" निशा मेरा मुँह देखने लगी।
"शादी के बाद वो आदत अपने-आप छूट जाती है... उसकी ज़रूरत ही नहीं पड़ती। शादी के बाद भला कौन उसे अँगूठा चूसने देता है..." मैंने हँसते हुए कहा।
"कौन सा उत्पाद लाँच कर रही हो?"
"दो उत्पाद हैं, एक तो गर्भाधान रोकने की गोली है, महीने में सिर्फ एक गोली और दूसरा बच्चों के अँगूठा चूसने और दाँतों से नाख़ून काटने की आदत से छुटकारा दिलाने की दवाई है, जिसे नाखूनों पर लगाया जाता है।"
"हे भगवान तुम सब लोग हमारी रोज़ी-रोटी छीन लेने पर तुले हो।"
"क्या मतलब?? हम तो बिज़नेस के साथ-साथ समाज सेवा भी कर रहे हैं।" निशा ने हैरानी से पूछा वो बात-बात में 'क्या मतलब' ज़रूर बोलती है।
"अरे भाई साफ़ बात है, तुम गर्भधारण रोकने की दवा की मार्केटिंग करती हो तो बच्चे कहाँ से पैदा होंगे और फिर हमारे उत्पाद जैसे बच्चों का दूध, बच्चों का आहार, बच्चों के तेल, नैप्पी, पावडर, साबुन कौन खरीदेगा?"
"और वो अँगूठा चूसने की आदत छुड़ाने की दवाई?"
"वो भी हम जैसे प्रेमियों के ऊपर उत्याचार ही है।"
"क्या... मत...लब?" निशा मेरा मुँह देखने लगी।
"शादी के बाद वो आदत अपने-आप छूट जाती है... उसकी ज़रूरत ही नहीं पड़ती। शादी के बाद भला कौन उसे अँगूठा चूसने देता है..." मैंने हँसते हुए कहा।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.