21-02-2019, 09:46 AM
(This post was last modified: 28-09-2021, 11:36 AM by neerathemall. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
मैं एकदम चौंक पड़ी। अभी कुछ बोलती ही कि एक हाथ आकर मेरे मुँह पर बैठ गया। कान में कोई फुसफुसाया- जानेमन, मैं हूँ, सुरेश। कितनी देर से तुम्हारा इंतजार कर रहा था।
मैं चुप !
सुरेश, वही स्मार्ट-सा छोरा जो लड़कियों के बहुत आगे पीछे कर रहा था। मैं दम साधे लेटी रही। कमरे के अंधेरे में वह मुझे स्वीटी समझ रहा है।
"मुझे यकीन था कि तुम आओगी। एक एक पल पहाड़ सा बीत रहा था तुम्हारे इंतजार में। तुमने मुझे कितना तड़पाया !"
मेरा कलेजा जोरों से धड़क रहा था। कुछ बोलना चाहती थी मगर बोल नहीं फूट रहे थे। स्वीटी गुपचुप यह किसके साथ चक्कर चला रही है? मुझे तो वह कुछ बताती नहीं थी ! मेरे सामने तो वह बड़ी अबोध और कड़ी बनती थी। इस कमरे में आज उसे सोना था। मगर वह दूल्हे को देखने मंडप चली गई थी। मुझे नींद आ रही थी और रात ज्यादा हो रही थी। इसलिए उसके कमरे में आकर सो गई थी। चादर ढके बिस्तर पर दूसरा कौन सो रहा है देखा नहीं। सोचा कोई होगी। शादी के घर में कौन कहाँ सोएगा निश्चित नहीं रहता। अभी लेटी ही थी कि यह घटना !
"स्वीटी जानेमन, तुम कितनी अच्छी हो जो आ गई।"
उसका हाथ अभी भी मेरा मुँह बंद किए था।
"आइ लव यू।" उसने मेरे कान में मुँह घुसाकर चूम लिया। चुंबन की आवाज सिर से पाँव तक पूरे बदन में गूँज गई। मैं बहरी-सी हो गई। कलेजा इतनी जोर धड़क रहा था कि उछलकर बाहर आ जाएगा। मन हो रहा था अभी ही उसे ठेलकर बाहर निकल जाऊँ। मगर डर और घबराहट के मारे चुपचाप लेटी रही।
वह मेरी चुप्पी को स्वीकृति समझ रहा था। उसका हाथ मेरे मुँह पर से हट गया। उसने अपनी चादर बढ़ाकर मुझे अंदर समेट लिया और अपने बदन से सटा लिया। उसके सीने पर मेरे दिल की घड़कन हथौड़े की तरह बजने लगी।
"बाप रे कितनी जोर से धड़क रहा है।" उसने मानों खुद से ही कहा। मुझे आश्वस्त करने के लिए उसने मुझे और जोर से कस लिया- जानेमन आई लव यू, आई लव यू ! घबराओ मत।
मेरा मन कह रहा था- जूली, अभी समय है, छुड़ाओ खुद को और बाहर निकल जाओ। शोर मचा दो। तब यह समझेगा कि चुपचुप लड़की को छेड़ने का क्या नतीजा होता है। शादी अटेन्ड करने आया है या यह सब करने ?
मगर अब उससे जोर लगाकर छुड़ाने के लिए हिम्मत चाहिए थी। एक तरफ निकल जाने का मन हो रहा था दूसरी तरफ यह भी लग रहा था कि देखूँ आगे क्या करता है ! डर, घबराहट और उत्सुकता के मारे मैं जड़ हो रही।
उसका हाथ मेरी पीठ पर घूम रहा था। गालों पर उसकी गर्म साँसें जल रही थीं। मुझे पहली बार किसी पुरुष की साँस की गंध लगी। वह मुझे अजीब सा लगी। हालाँकि उसमें कुछ भी नहीं था। पर वह मुझे वह बुरी भी नहीं लगी। वह मेरी किंकर्तव्यमूढ़ता का फायदा उठा रहा था और मुझे आश्चर्य हो रहा था कि मैं कुछ कर क्यों नही रही। मुझे उसे तुरंत धक्का देकर बाहर निकल जाना चाहिए था और उसकी करतूत की अच्छी सजा देनी चाहिए।
मैंने सोच लिया अब और नहीं रुकूंगी। मैं छूटने के लिए जोर लगाने लगी। अब चिल्लाने ही वाली थी ... कि तभी उसके होंठ ढूंढते हुए आकर मेरे मुँह पर जम गए। मैं कुछ बोलना चाह रही थी और वह मेरे खुलते मुँह में से मेरी साँसें खींचते मुझे चूम रहा था। मेरी ताकत ढीली पड़ने लगी। दम घुटने लगा। मुझे निकलना था मगर लग रहा था मैं उसकी गिरफ्त में आती जा रही हूँ। मेरे दोनों हाथ उसकी हाथों के नीचे दबे कमजोर पड़ने लगे। मैं छूटना चाहती थी मगर अवश हो रही थी।
उसका हाथ पीछे मेरी पीठ पर ब्रा के फीते से खेल रहा था। कब उसने पीछे मेरे फ्रॉक की जिप खोल दी थी मुझे पता नहीं चला। उसका हाथ मेरी नंगी पीठ पर घूम रहा था और ब्रा के फीते को खींच रहा था। पहली बार पुरुष की हथेली का एक रूखा और ताकत भरा स्पर्श महसूस हुआ। मैं जड़ रहकर अपने को अप्रभावित रखना चाह रही थी मगर उसके घूमते हाथों का सहलाव और बदन पर बाँहों के बंधन का कसाव मुझे अलग रहने नहीं दे रहे थे। मुझे यह सब बहुत बुरा लग रहा था मगर अस्वीकार्य भी नहीं। मैं सोच भी नहीं सकती थी कि कभी यह सब मैं अपने साथ होने दूंगी। मगर ...
वह मेरे ब्रा के फीते को खोलने की कोशिश कर रहा था मगर हुक खुल नहीं रहा था। बेसब्र होकर उसने दोनों तरफ से पकड़कर जोर से झटके से खींच दिया। हुक टूट गया और फीते अलग हो गए। मुझे अपने बगलों और छाती पर ढीलेपन का, मुक्ति का एहसास हुआ। अभी तो वह बस पीठ छूकर ही पागल हो रहा था। आगे क्या होगा !
उसके होंठ मेरे होंठों से उतरकर गले पर आ रहे थे। उसके सांसों की सोंधी गंध दूर चली गई। वह फ्राक को कंधों पर से छीलने की कोशिश कर रहा था। उसने मेरी एक बांह फ्राक से बाहर निकाल दी और उसे सिर के ऊपर उठाकर उस हाथ को ऊपर से सहलाते हुए नीचे उतरकर मेरे बगल को हथेली में भर लिया। गर्म और गीली काँख पर उसका भरा भरा कसाव मादक लग रहा था। मुझसे अलग रहा नहीं जा रहा था। पहली सफलता से उत्साहित होकर उसने मुझे बाँहों में लपेटे हुए ही थोड़ा दूसरे करवट पर लिया और थोड़ी कोशिश से फ्राक की दूसरी बाँह भी बाहर निकाल दी। मेरे दोनों हाथों को ऊपर उठाकर उसने अपने हाथों में बांध लिया और मेरे बगलों को चूमने लगा। उसके गर्म नमकीन पसीने को चूसने चाटने लगा।
उसकी इस हरकत पर मुझे घिन आई मगर मुझे गुदगुदी हो रही थी और नशा-सा भी आ रहा था। मुझे नहीं मालूम था कि बगलों का चूमना इतना मादक हो सकता है। मैंने हाथ छुड़ाने की कोशिश बंद कर दी। मेरी सासें तेज होने लगीं। वह खुशी से भर गया। उसे यकीन हो गया कि अब मैं विरोध नहीं करूंगी। उसने मुझे सहारा देकर बिठाया और फ्राक सिर के ऊपर खींच लिया। ब्रा मेरी छाती पर झूल गई। उसने उसके फीते कंधों पर से सरकाकर ब्रा को निकालना चाहा मगर मैंने स्तनों को हाथों से दबा लिया। हाथों पर ब्रा के नीचे मुझे अपनी चूचियों की चुभन महसूस हुई। मेरी चूचियाँ टाइट होकर होकर खड़ी हो गई थीं। मैं शर्म से गड़ गई।
मैं चुप !
सुरेश, वही स्मार्ट-सा छोरा जो लड़कियों के बहुत आगे पीछे कर रहा था। मैं दम साधे लेटी रही। कमरे के अंधेरे में वह मुझे स्वीटी समझ रहा है।
"मुझे यकीन था कि तुम आओगी। एक एक पल पहाड़ सा बीत रहा था तुम्हारे इंतजार में। तुमने मुझे कितना तड़पाया !"
मेरा कलेजा जोरों से धड़क रहा था। कुछ बोलना चाहती थी मगर बोल नहीं फूट रहे थे। स्वीटी गुपचुप यह किसके साथ चक्कर चला रही है? मुझे तो वह कुछ बताती नहीं थी ! मेरे सामने तो वह बड़ी अबोध और कड़ी बनती थी। इस कमरे में आज उसे सोना था। मगर वह दूल्हे को देखने मंडप चली गई थी। मुझे नींद आ रही थी और रात ज्यादा हो रही थी। इसलिए उसके कमरे में आकर सो गई थी। चादर ढके बिस्तर पर दूसरा कौन सो रहा है देखा नहीं। सोचा कोई होगी। शादी के घर में कौन कहाँ सोएगा निश्चित नहीं रहता। अभी लेटी ही थी कि यह घटना !
"स्वीटी जानेमन, तुम कितनी अच्छी हो जो आ गई।"
उसका हाथ अभी भी मेरा मुँह बंद किए था।
"आइ लव यू।" उसने मेरे कान में मुँह घुसाकर चूम लिया। चुंबन की आवाज सिर से पाँव तक पूरे बदन में गूँज गई। मैं बहरी-सी हो गई। कलेजा इतनी जोर धड़क रहा था कि उछलकर बाहर आ जाएगा। मन हो रहा था अभी ही उसे ठेलकर बाहर निकल जाऊँ। मगर डर और घबराहट के मारे चुपचाप लेटी रही।
वह मेरी चुप्पी को स्वीकृति समझ रहा था। उसका हाथ मेरे मुँह पर से हट गया। उसने अपनी चादर बढ़ाकर मुझे अंदर समेट लिया और अपने बदन से सटा लिया। उसके सीने पर मेरे दिल की घड़कन हथौड़े की तरह बजने लगी।
"बाप रे कितनी जोर से धड़क रहा है।" उसने मानों खुद से ही कहा। मुझे आश्वस्त करने के लिए उसने मुझे और जोर से कस लिया- जानेमन आई लव यू, आई लव यू ! घबराओ मत।
मेरा मन कह रहा था- जूली, अभी समय है, छुड़ाओ खुद को और बाहर निकल जाओ। शोर मचा दो। तब यह समझेगा कि चुपचुप लड़की को छेड़ने का क्या नतीजा होता है। शादी अटेन्ड करने आया है या यह सब करने ?
मगर अब उससे जोर लगाकर छुड़ाने के लिए हिम्मत चाहिए थी। एक तरफ निकल जाने का मन हो रहा था दूसरी तरफ यह भी लग रहा था कि देखूँ आगे क्या करता है ! डर, घबराहट और उत्सुकता के मारे मैं जड़ हो रही।
उसका हाथ मेरी पीठ पर घूम रहा था। गालों पर उसकी गर्म साँसें जल रही थीं। मुझे पहली बार किसी पुरुष की साँस की गंध लगी। वह मुझे अजीब सा लगी। हालाँकि उसमें कुछ भी नहीं था। पर वह मुझे वह बुरी भी नहीं लगी। वह मेरी किंकर्तव्यमूढ़ता का फायदा उठा रहा था और मुझे आश्चर्य हो रहा था कि मैं कुछ कर क्यों नही रही। मुझे उसे तुरंत धक्का देकर बाहर निकल जाना चाहिए था और उसकी करतूत की अच्छी सजा देनी चाहिए।
मैंने सोच लिया अब और नहीं रुकूंगी। मैं छूटने के लिए जोर लगाने लगी। अब चिल्लाने ही वाली थी ... कि तभी उसके होंठ ढूंढते हुए आकर मेरे मुँह पर जम गए। मैं कुछ बोलना चाह रही थी और वह मेरे खुलते मुँह में से मेरी साँसें खींचते मुझे चूम रहा था। मेरी ताकत ढीली पड़ने लगी। दम घुटने लगा। मुझे निकलना था मगर लग रहा था मैं उसकी गिरफ्त में आती जा रही हूँ। मेरे दोनों हाथ उसकी हाथों के नीचे दबे कमजोर पड़ने लगे। मैं छूटना चाहती थी मगर अवश हो रही थी।
उसका हाथ पीछे मेरी पीठ पर ब्रा के फीते से खेल रहा था। कब उसने पीछे मेरे फ्रॉक की जिप खोल दी थी मुझे पता नहीं चला। उसका हाथ मेरी नंगी पीठ पर घूम रहा था और ब्रा के फीते को खींच रहा था। पहली बार पुरुष की हथेली का एक रूखा और ताकत भरा स्पर्श महसूस हुआ। मैं जड़ रहकर अपने को अप्रभावित रखना चाह रही थी मगर उसके घूमते हाथों का सहलाव और बदन पर बाँहों के बंधन का कसाव मुझे अलग रहने नहीं दे रहे थे। मुझे यह सब बहुत बुरा लग रहा था मगर अस्वीकार्य भी नहीं। मैं सोच भी नहीं सकती थी कि कभी यह सब मैं अपने साथ होने दूंगी। मगर ...
वह मेरे ब्रा के फीते को खोलने की कोशिश कर रहा था मगर हुक खुल नहीं रहा था। बेसब्र होकर उसने दोनों तरफ से पकड़कर जोर से झटके से खींच दिया। हुक टूट गया और फीते अलग हो गए। मुझे अपने बगलों और छाती पर ढीलेपन का, मुक्ति का एहसास हुआ। अभी तो वह बस पीठ छूकर ही पागल हो रहा था। आगे क्या होगा !
उसके होंठ मेरे होंठों से उतरकर गले पर आ रहे थे। उसके सांसों की सोंधी गंध दूर चली गई। वह फ्राक को कंधों पर से छीलने की कोशिश कर रहा था। उसने मेरी एक बांह फ्राक से बाहर निकाल दी और उसे सिर के ऊपर उठाकर उस हाथ को ऊपर से सहलाते हुए नीचे उतरकर मेरे बगल को हथेली में भर लिया। गर्म और गीली काँख पर उसका भरा भरा कसाव मादक लग रहा था। मुझसे अलग रहा नहीं जा रहा था। पहली सफलता से उत्साहित होकर उसने मुझे बाँहों में लपेटे हुए ही थोड़ा दूसरे करवट पर लिया और थोड़ी कोशिश से फ्राक की दूसरी बाँह भी बाहर निकाल दी। मेरे दोनों हाथों को ऊपर उठाकर उसने अपने हाथों में बांध लिया और मेरे बगलों को चूमने लगा। उसके गर्म नमकीन पसीने को चूसने चाटने लगा।
उसकी इस हरकत पर मुझे घिन आई मगर मुझे गुदगुदी हो रही थी और नशा-सा भी आ रहा था। मुझे नहीं मालूम था कि बगलों का चूमना इतना मादक हो सकता है। मैंने हाथ छुड़ाने की कोशिश बंद कर दी। मेरी सासें तेज होने लगीं। वह खुशी से भर गया। उसे यकीन हो गया कि अब मैं विरोध नहीं करूंगी। उसने मुझे सहारा देकर बिठाया और फ्राक सिर के ऊपर खींच लिया। ब्रा मेरी छाती पर झूल गई। उसने उसके फीते कंधों पर से सरकाकर ब्रा को निकालना चाहा मगर मैंने स्तनों को हाथों से दबा लिया। हाथों पर ब्रा के नीचे मुझे अपनी चूचियों की चुभन महसूस हुई। मेरी चूचियाँ टाइट होकर होकर खड़ी हो गई थीं। मैं शर्म से गड़ गई।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
