21-02-2019, 03:37 AM
अचानक उनकी नज़र मेरी छातियो के बीच झूलते पेंडेल पर पड़ी. “वाउ! क्या शानदार पेंडेल है.” उन्हों ने कहा. “गोल्ड के उपर डाइमंड्स लगे हैं.” “तभी तो इतना चमक रहा है” उन्होंने धक्के मारते हुएकहा. ” चमकेगा नहीं? किसी ने प्यार से मुझे भेंट किया है.’ मैं उन्हें परेशान करने के मूड मे थी. मैं भी नीचे से धक्के लगाने लगी. ” किसने? मैं भी तो जानूं भला ऐसा कौन कदरदान है तुम्हारा.” ” मैं नहीं बताउन्गि.” वो बार बार पूच्छने लगे. मैं पिच्छले महीने भर की घटनाओं के बारे मे सोच कर बुरी तरह गरम हो गयी थी. “चलो बता ही देती हूँ. यह मुझे अमर ने दिया है.” मैने कहा. ” भैया ने? वो कंजूस तुम्हें इतना कीमती गिफ्ट देगा मैं मन ही नहीं सकता. कैसे चूना लगाया उसे.” “क्यों ना देता महीने भर खिदमत जो की थी उसकी.” मैने आँखें मतकाते हुए कहा. “कैसी खिदमत?” ” हर तरह की. मुन्नी दीदी की कमी नहीं खलने दी.” मैने कहा. ” कैसे? क्या हुआ था? सब बताओ” “क्यों? तुम जो देल्ही मे काम का बहाना कर के हर महीने एक दो चक्कर लगा लेते हो. मुझे कभी बताया कि वहाँ कौन सा काम करते हो मुन्नी दीदी की बाहों मे?”मैने उन पर वार किया. वो पहले तो एकदम से सकते मे आगाये. फिर पूछा, “तुम्हें किसने बताया?” ” तुम्हारी प्रेमिका ने ही बताया” मैने कहा, “तुम इतने सालों से दीदी के साथ एंजाय कर रहे थे तो किसीने मौका मिलते ही तुम्हारी बीबी से जी भर कर एंजाय किया” ” वो सब तो ठीक है मगर सब हुआ कैसे बताओ तो सही.” उन्हों ने कहा. ” पहले मुझे इस राउंड को ख़तम करो फिर बताऊंगी.” वो ज़ोर ज़ोर से धक्के मारने लगा. फिर मैं उसके उपर आगाई. इस तरह काफ़ी देर तक हम एक दूसरे को पछाडने की कोशिश करते हुए एक साथ ही हार गये. रघु यानी मेरा पति पसीने से लथपथ मेरी बगल मे लेटा हुआ था. मैं भी ज़ोर ज़ोर से साँसे ले रही थी. “अब बताओ” रघु ने कहा. “क्या?” “चीटार! अब तो दोनो ही खल्लास हो गये अब तो बता दो ” वो मिन्नतें करने लगा. मैं उसे बताने लगी. हम दोनो उस दिन सुबह दस बजे देल्ही पहुँचे. सीधे हॉस्पिटल ग
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
