21-02-2019, 03:35 AM
जेठ ने पटा कर मेरी चुदाई कर दी
एक महीने बाद मैं घर लौटी थी. पिछले एक महीने से मेरे पति देव घर पर अकेले ही थे. मैं महीने भर से जेठ जी के यहाँ देल्ही मे थी. दीदी यानी मेरी जेठानी की डेलिवरी के समय कॉंप्लिकेशन्स आ जाने के कारण अर्जेन्सी मे मे गइ थी. मेरे जेठ अमर देल्ही मे रहते हैं. उनका सॉफ्टवेर का बिज़्नेस है. मैने शादी के बाद से ही महसूस किया था कि जेठ जी मुझ पर कुछ ज़्यादा ही मेहरबान थे. देखने मे काफ़ी खूबसूरत हैं इसलिए मैं भी उनकी आग को हवा देती रही. वो अक्सर मुझे छुने या मेरे निकट रहने की कोशिश करते थे. मैं भी मौका देख कर उन्हें अपने योवन के दीदार करा देती थी. जेठानी जी बड़ी ही प्यारी सी महिला है. मेरी उनसे अच्छी पट ती है. सेक्स के मामले मे वो भी काफ़ी खुले विचारों वाली महिला है. हम नेहरु नगर मे रहते हैं. पति देव एक प्राइवेट कंपनी मे मार्केटिंग मे काम करते हैं. हमारी शादी को दो साल हो गये थे. अभी कोई बच्चा नही हुआ था. इसलिए हम सेक्स का भरपूर आनंद लेते हैं. हमारा परिवार काफ़ी ओपन ख़यालों का है. मेरी सासू जी ने शादी के बाद वाले दिन ही मुझे कहा था, “हमारे घर मे परदा प्रथा नहीं है इस लिए घूँघट लेने की कोई ज़रूरत नहीं है.” मैं घर मे गाउन सलवार कमीज़ पहनती थी. जो कभी कभी काफ़ी सेक्सी भी होती थी मगर मुझे कभी किसीने नहीं टोका. मेरी जेठानी भी काफ़ी सेक्सी लगती है. खैर वापस घटना पर आया जाए. पति देव तो महीने भर के भूखे थे घर पहुँचते ही मुझे अपनी बाहों मे ले लिए. मैं उन्हें कुछ सताना चाहती थी इसलिए उनकी बाहों से मछली की तरह निकल गयी. उन्हें अंगूठा दिखा कर हंसते हुए बेडरूम की तरफ भागी, पिछे पिछे वो मुझे पकड़ने के लिए भागते हुए बेडरूम मे आगये. उन्होने अंदर घुस कर दरवाज़ा बंद कर दिया और मुझ पर झपाटे. मेरी सारी का एक छोर उनकी हाथ मे आगया सो एक झटके से उन्होने मेरे बदन से सारी को अलग कर दिया. मैं ब्लाउस और पेटिकोट मे उन्हें छकाने लगी. मगर कब तक? मैं भी तो चाहती थी कि वो मुझे पकड़ ले. उन्हों ने मुझे बिस्तर पर पटक दिया फिर तो मेरे सारे वस्त्र एक एक कर के मेरा साथ छोड़ गये. मैं पूरी निर्वस्त्र लेट गयी. उन्हों ने जल्दी से अपने वस्त्र खोले और मुझ पर सवार हो गये. उनका उतावलापन देख कर मैं हँसने लगी. उन्होने मेरी टाँगों को मोड़ कर मेरी छाती से लगा दिया और अपना लिंग मेरी योनि मे प्रवेश करा कर ज़ोर ज़ोर से धक्के लगाने लगे. अ
एक महीने बाद मैं घर लौटी थी. पिछले एक महीने से मेरे पति देव घर पर अकेले ही थे. मैं महीने भर से जेठ जी के यहाँ देल्ही मे थी. दीदी यानी मेरी जेठानी की डेलिवरी के समय कॉंप्लिकेशन्स आ जाने के कारण अर्जेन्सी मे मे गइ थी. मेरे जेठ अमर देल्ही मे रहते हैं. उनका सॉफ्टवेर का बिज़्नेस है. मैने शादी के बाद से ही महसूस किया था कि जेठ जी मुझ पर कुछ ज़्यादा ही मेहरबान थे. देखने मे काफ़ी खूबसूरत हैं इसलिए मैं भी उनकी आग को हवा देती रही. वो अक्सर मुझे छुने या मेरे निकट रहने की कोशिश करते थे. मैं भी मौका देख कर उन्हें अपने योवन के दीदार करा देती थी. जेठानी जी बड़ी ही प्यारी सी महिला है. मेरी उनसे अच्छी पट ती है. सेक्स के मामले मे वो भी काफ़ी खुले विचारों वाली महिला है. हम नेहरु नगर मे रहते हैं. पति देव एक प्राइवेट कंपनी मे मार्केटिंग मे काम करते हैं. हमारी शादी को दो साल हो गये थे. अभी कोई बच्चा नही हुआ था. इसलिए हम सेक्स का भरपूर आनंद लेते हैं. हमारा परिवार काफ़ी ओपन ख़यालों का है. मेरी सासू जी ने शादी के बाद वाले दिन ही मुझे कहा था, “हमारे घर मे परदा प्रथा नहीं है इस लिए घूँघट लेने की कोई ज़रूरत नहीं है.” मैं घर मे गाउन सलवार कमीज़ पहनती थी. जो कभी कभी काफ़ी सेक्सी भी होती थी मगर मुझे कभी किसीने नहीं टोका. मेरी जेठानी भी काफ़ी सेक्सी लगती है. खैर वापस घटना पर आया जाए. पति देव तो महीने भर के भूखे थे घर पहुँचते ही मुझे अपनी बाहों मे ले लिए. मैं उन्हें कुछ सताना चाहती थी इसलिए उनकी बाहों से मछली की तरह निकल गयी. उन्हें अंगूठा दिखा कर हंसते हुए बेडरूम की तरफ भागी, पिछे पिछे वो मुझे पकड़ने के लिए भागते हुए बेडरूम मे आगये. उन्होने अंदर घुस कर दरवाज़ा बंद कर दिया और मुझ पर झपाटे. मेरी सारी का एक छोर उनकी हाथ मे आगया सो एक झटके से उन्होने मेरे बदन से सारी को अलग कर दिया. मैं ब्लाउस और पेटिकोट मे उन्हें छकाने लगी. मगर कब तक? मैं भी तो चाहती थी कि वो मुझे पकड़ ले. उन्हों ने मुझे बिस्तर पर पटक दिया फिर तो मेरे सारे वस्त्र एक एक कर के मेरा साथ छोड़ गये. मैं पूरी निर्वस्त्र लेट गयी. उन्हों ने जल्दी से अपने वस्त्र खोले और मुझ पर सवार हो गये. उनका उतावलापन देख कर मैं हँसने लगी. उन्होने मेरी टाँगों को मोड़ कर मेरी छाती से लगा दिया और अपना लिंग मेरी योनि मे प्रवेश करा कर ज़ोर ज़ोर से धक्के लगाने लगे. अ
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
