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पुरानी हिन्दी की मशहूर कहनियाँ
फिर दिन ऐसे ही बीतने लगे थे, अब मैंने वो सब काम तो छोड़ दिए थे, लेकिन उनको चोदने की इच्छा तो मेरे मन अब भी थी और वो मेरे मन से बिना चुदाई किए नहीं जाने वाली थी। फिर जब वो 24 साल की हुई तब उनकी शादी हो गई और वो अपने ससुराल चली गई और फिर उसके बाद से ही मेरे अच्छे दिन शुरू हो गये। फिर शादी के बाद जब पहली बार दीदी मेरे घर आई, तब दीदी बहुत सुंदर लग रही थी। फिर रात को जब हम सोने गये, तब पता नहीं मेरे मन में क्या हुआ? मैंने फिर से उनके बदन को छूना शुरू किया। अब वो उस साड़ी में ही सो रही थी, तब मेरा हाथ उनकी पतली गोरी चिकनी कमर पर चला गया। फिर उसी समय मैंने दीदी के मुँह से हल्की सी आह की आवाज सुनी और मुझे थोड़ा अजीब सा लगा, लेकिन फिर मेरी उससे आगे बढ़ने की हिम्मत नहीं हुई। फिर अगली सुबह मेरी कुछ जल्दी ही आंख खुल गई, तब मैंने पाया कि दीदी मुझसे चिपकी हुई थी और उनका पैर मेरे ऊपर था और उनकी साड़ी घुटनों तक ऊपर उठी हुई थी और उनका हाथ मेरी पेंट के ऊपर से मेरे लंड को पकड़े हुए था।

अब मुझे यह सब देखकर बहुत अच्छा लगा, तब मैंने भी अपनी तरफ से थोड़ी बदमाशी करने का विचार बना लिया और फिर मैंने उनका हाथ पहले तो अपने लंड पर से हटा दिया और फिर मैंने अपनी पेंट को खोला और थोड़ी नीचे करके और अपना अंडरवियर भी थोड़ा सा नीचे सरका लिया जिसकी वजह से मेरा लंड अब बिल्कुल फ्री होकर आजाद हो गया था। फिर मैंने दीदी का हाथ अपने नंगे लंड पर रखा और धीरे-धीरे दीदी के ब्लाउज के सारे बटन खोल दिए, तब मैंने देखा कि वो अंदर काले रंग की ब्रा पहने हुए थी। अब में वैसे ही लेटा रहा, जब थोड़ी देर के बाद दीदी की आँख खुली तब शायद वो एकदम चकित रह गई। फिर मैंने डर की वजह से अपनी आंख नहीं खोली, लेकिन मुझे इतना जरूर लगा था कि वो थोड़ी सी हड़बड़ा जरुर गई है। फिर मैंने कुछ देर बाद अपनी आँख थोड़ी सी खोली तब मैंने देखा कि दीदी अपने ब्लाउज के बटन बंद कर रही थी, मैंने फिर से अपनी आँख को बंद कर लिया। अब दीदी ने मेरे लंड को मेरे अंडरवियर में छुपाया और वो तुरंत उठकर कमरे से बाहर चली गई। दोस्तों हम हर रात को सोते समय अंदर से कमरे का दरवाजा बंद करके सोते है इस वजह से किसी को कुछ पता नहीं चला था।
फिर थोड़ी देर के बाद में भी उठा, लेकिन अब मुझे बहुत डर लग रहा था कि बाहर पता नहीं क्या हो रहा होगा? कहीं दीदी माँ से तो वो सभी बातें नहीं बोल देगी? फिर थोड़ी देर तक में वैसे ही बैठा सोचता रहा। फिर थोड़ी देर के बाद दीदी मेरे लिए चाय लेकर मेरे कमरे में आ गई और उन्होंने मुझे चाय दे दी, वो मुझसे कुछ नहीं बोली थी, लेकिन उस समय वो बहुत शांत ना जाने किस सोचा विचारी में लगी हुई थी। अब मेरी तो हालत धीरे धीरे खराब हो रही थी और में चाय पीने के बाद अपने कमरे से बाहर आ गया, मैंने देखा कि पापा अपने ऑफिस जाने के लिए तैयार हो रहे थे और माँ अपने कामों में लगी थी और दीदी भी शांत लगने की कोशिश कर रही थी, लेकिन शायद उसके दिमाग में वही सब घूम रहा था। फिर उन्होंने किसी से इस बात को नहीं कहा और वो दिन ऐसे ही निकल गया। फिर उस रात को जब हम सोने गये, तब दीदी अपनी उसी पुराने कपड़ो में थी जिसको वो शादी से पहले हमेशा पहना करती थी, वो टॉप-स्कर्ट में मेरे सामने थी। अब मुझे यह देखकर बहुत अच्छा लगा कि चलो आज शायद बहुत दिनों के बाद मज़े करने का मौका मिलेगा।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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