28-11-2018, 04:43 PM
अपडेट 4।
रमा एक लौड़े की खोज में।
दूसरी तरफ राहुल आने वाली घटनाओं से बेखबर सो रहा था , सुबह कोई 6 बजे उसकी नींद खुली तो उसे हैरानी हुई की आज माँ ने उसे जगाया नहीं पर उसे लगा की माँ। पक्का उसे जगाने आईं होगी और वो जागा नहीं होगा 'आज तो पिटाई पक्का उसने मन में सोचा' और भाग के सीधा रसोई में गया ,इस बात से बिल्कुल अनजान की उसका तम्बूरा अभी भी तना हुआ है और उसकी निक्कर से साफ़ पता चल रहा है वैसे उसे पता भी होता तो भी वो यही सोचता की मालिश से उसका लण्ड कितना ताकतवर हो गया है उसे इसमें शर्म की कोई बात नज़र नहीं आती । रसोई में रमा बर्तन धो रही थी , और रमा की पीठ उसकी तरफ थी नाइटी में से उसके सुडोल गांड साफ़ नज़र आ रही थी रमा की मांसल गांड देखते ही राहुल का मन आया की वो गांड को ज़ोर से दबाये इस उभरी हुई चीज़ को वो अभी अपने सपनों में ही खोया हुआ था जब रमा को लगा की उसके पीछे कोई खड़ा है वो पीछे घुमी तो राहुल की उभरी हुई निक्कर को देख उसकी हँसी छूट गयी
"उठ गया ...सो लेता कुछ देर और" वो मुस्कुराते हुए बोली ।
"सॉरी माँ आज मैं उठ नहीं पाया ,मैं अभी सारा काम कर देता हूँ" वो डरते हुए बोला ।
"हम्म काम तो तू कर ही लेगा ये तो मैं देख ही रही हूँ...और डर मत आज मैंने खुद नहीं उठाया तुझे " रमा ने राहुल के उठे हुए लण्ड को घूरते हुए कहा । और फिर कुछ देर रुक कर बोली "राहुल तू निक्कर के अंदर कच्छा क्यों नहीं पहनता?"
"मुझे गर्मी लगती है और मेरा नुन्नु दुखता है कच्छे में " राहुल ने मासूमियत से जवाब दिया । उसे समझ नहीं आ रहा था की माँ उसे कच्छा पहने को क्यों कह रही है
"अच्छा पर अब तू बड़ा हो गया है न इसलिए ...कच्छा न पहना गन्दी बात होती है " रमा बोली ।
रमा ने उसे वंही खड़ा रहने को कहा और अपने कमरे से अपने पति का एक कच्छा ले आई और राहुल को देते हुए बोली "ले पहन ले इसे । राहुल ने भी बिना किसी शर्म के निक्कर रमा के सामने ही उतार दी और उसका तनतनाता लण्ड रमा को सलामी देने लगा राहुल ने कच्छा पहन लिया पर उसका लिंग था ही इतना बड़ा और ऊपर से तना हुआ झट से कच्छे के छेद(जो पेशाब करने के लिये बना होता है) से बाहर आ गया
"माँ मेरा नुन्नु तो कच्छे में आ ही नहीं रहा क्या करूँ?" राहुल परेशान होते हुए पूछा
"रुक मैं सिखाती हूँ कैसे पहनते हैं...... नुन्नु को ऐसे पकड़ के कच्छे की टांग वाली तरफ कर देते हैं " रमा ने इशारे से समझाते हुए कहा ।
राहुल ने दो तीन बारी कोशिश की पर बेकार ऊपर से लण्ड दुखने लगा वो अलग "माँ मुझे नहीं आता " उसने आखिर थककर कहा । रमा समझ गयी उसे ही अब इस अजगर को संभालना होगा ये सोचते ही उसके पुरे बदन में सिहरन दौड़ गयी । रमा राहुल के पास गयी और उसने राहुल के लण्ड को पकड़ लिया 'हे राम कितना मोटा है' रमा ने मन में सोचा और ये सच ही था लण्ड उसकी मुठी में आ ही नहीं रहा था 2 ऊँगली जितनी जगह खाली थी । रमा का मन तो कर रहा था की अभी इसी वक़्त ये मूसल उसकी फ़ुद्दी में घुस जाये पर वो जानती थी की सभी घर पे हैं इसलिए उसने जल्दी से राहुल को बताया की नुन्नु को कंहाँ रखते है कच्छे में । और उसे जल्दी से निक्कर पहने को कहा
"माँ देखो नुन्नु अभी भी नंगा है"
"बेटा ये ऐसे ही होता है तू निक्कर पहन ले तो नंगा नहीं रहेगा" रमा ने राहुल से कहा जो कच्छे की टांग से बाहर झांक रहे अपने लिंग की तरफ इशारा कर रहा था । "चल जाके नहा ले ज्यादा बातें मत बना वरना कॉलेज के लिए लेट हो जायेगा"
सब बच्चों को कॉलेज और फिर पति को दुकान भेजने के बाद रमा घर की साफ़ सफाई में लग गयी ,कोई 11 बजे वो घर के सब काम करके फ्री हुई तो उसने अपनी पिंकी की माँ को आवाज़ लगाईं "अरे पिंकी की मम्मी अगर काम निपट गया हो तो आओ चाये पीते हैं ...'शांति' भी बस शूरु होने वाला है"
"आई रमा " तरनजीत ने जवाब दिया । तरनजीत 35 साल की भरे बदन की महिला थी उसका रंग पंजाबियों की तरह साफ़ और कद काठी काफी मजबूत थी । तरनजीत काफी रंगीन मिज़ाज की औरत थी शादी के बाद भी उसके कई मर्दों के साथ सम्बन्ध थे । तरन अपने मोटे कुहलों को मटकाती हुई रमा के कमरे में दाखिल हुई उसने रमा के चेहरे को देखते की जान लिया की रमा के साथ रात को क्या हुआ होगा ।
"क्या रमा आज फिर भाई साहब फुस हो गए क्या?" उसने रमा को आँख मारते हुए पूछा
"क्या बताऊँ दीदी इस आदमी से तो तंग आ गयी हूँ मैं आज तो पुरे 93 दिन हो गए " रमा ने तरन की तरफ चाय का कप बढ़ाते हुए कहा ।
"रमा तू क्यों इस आदमी के साथ क्यों बरबाद हो रही है , जैसे लहसुन बिना सब्जी नहीं जचती वैसे ही लौड़े बिना औरत की ज़िन्दगी ही क्या ?" तरन ने चाय की चुस्की लेते हुए कहा
"दीदी तुम कह तो सही रही हो पर मैं कर ही क्या सकती हूँ ?"
"रमा तुम भाईसाहब को किसी अच्छे डॉक्टर को क्यों नहीं दिखाती आज हर बिमारी का इलाज है ....मैं एक दिन भी चुदाई के बिना नहीं रह सकती...तू पता नहीं कैसी जीती है"
"दीदी अब क्या कहुँ तुमसे, ये किसी डॉक्टर के पास जाते नहीं ...पर मैंने सोचा शरमाते होंगे तो इन्हें बिना बताये ही कई डॉक्टरों की दवाई ले आती थी और इनके खाने में मिला देती थी पर कोई लाभ नहीं हुआ मैं तो पूरी तरह से टूट चुकी हूँ तुम ही बताओ क्या करूँ मैं" रमा ने सिसकते हुए कहा ।
"ओह रमा हिम्मत मत हारो..तुम बुरा न मानो तो एक तरकीब है मेरे पास कहो तो बताऊँ?" तरन ने रमा को सहलाते हुए कहा
"दीदी तुम्हारी किसी बात का बुरा माना है आज तक जो अब बुरा मानु गी" रमा ने आस की नज़रों से तरन की और देखते हुए कहा ।
"रमा तू मेरे देवर रवि को तो जानती हैं न ? बहुत पूछता है तेरे बारे में मेरी मिन्नतें कर रहा है साल भर से की तेरी उससे बात करवा दूँ , तू बोले तो करूँ बात" तरन ने रमा को आँख मारते हुए कहा ।
"नहीं नहीं दीदी रहने दो" रमा ने घबराते हुए कहा
"क्यों तुझे अच्छा नहीं लगता क्या?" तरन सवालिया नज़रों से रमा को घूरते हुए कहा
" नहीं दीदी वो बात नहीं रवि जैसा सुन्दर और जवान लड़का जिस लड़की को मिलेगा उसकी तो ज़िन्दगी बन जायेगी...पर वो अभी लड़का है कालेज पड़ता है ...उसकी जिंदगी खराब हो जायेगी " रमा ने उतेज़ित होते हुए कहा
"हा हा रमा मैं तो तुझे चालाक समझती थी तू तो बिलकुल भोली है बच्चों की तरह...जिसे तू लड़का कह रही है न वो लड़का तेरी मेरी जैसी चार की चुदाई एक साथ कर सकता" तरन ने हँसते हुए कहा
"क्या दीदी तुम तो कुछ भी कहती हो" रमा तरन को हलका धक्का देते हुए कहा पर तभी वो सारा मामला समझ गयी और हँसते हुए "तो इसका मतलब तुम और रवि करते हो?"
"रमा तू करने की बात करती है मैं तो लगभग रोज़ उससे चुदती हों अब ऐसी आदत पड़ गयी है की अगर एक दिन भी उसका लौड़ा न लूँ तो मेरी चूत की हालत बुरी हो जाती है"
"ओह दीदी तो कल जब दिन में रवि आया था तो तब भी तुमने .......अब समझी तभी कल तुम मेरे पास नहीं आई...पर अगर पिंकी के पापा को पता चल गया तो?...तुम्हें डर नहीं लगता " रमा हैरान होते हुए पूछा ..रमा मन ही मन सोच रही थी कि ऐसा देवर काश उसे मिला होता
"रमा तू विशवास नहीं करेगी कल तो पिंकी के पापा ने सारा खेल देख ही लिया होता पर रवि के ही तेज़ दिमाग ने बालबाल बचा लिया"
"क्यों क्या हुआ बताओ न" रमा बोली उसे अब मज़ा आने लगा था जैसे हमें पोर्न देखते हुए आता है ।
"हम्म हम्म मज़ा ले रही है ?" तरन ने रमा को छेड़ते हुए कहा फिर वो पालथी मार के बैठ गयी और सुनाने लगी
"रमा क्या बताऊँ तुझे कल तो एक पल के लिए मेरी सांसे ही रुक गयीं थी हुआ ये की रवि आम तौर से 10 बजे के आसपास आता है और 1 बजे तक चला जाता है ,उसे घंटी न बजानी पड़े इसलिए मैं दरवाजे पर कुण्डी नहीं लगाती ...पर कल वो 11 बजे तक नहीं आया मुझे लगा की अब नहीं आएगा तो मैं रसोई में खाना बनाने चली मैं आटा गूंध रही थी की उसने मुझे पीछे आके दबोच लिया कस के और मेरे कबूतरों को मसलने लगा । मैं कहा भी की क्या कर रहे हो पिंकी के पापा आ जाएंगे पर उस पे तो ठरक हावी थी उसने झट से मेरी नाइटी ऊपर की और घुसा दिया अपना बड़ा मोटा लौड़ा मेरी चूत में गुसेड़ दिया ,कमीने का इतना मोटा है की हर बार लेते हुए मेरी हालत पतली हो जाती है । मैंने कहा भी रवि से की तेल-वेल लगा ले पर उसने तो तब तक रेल चलानी शुरू कर भी दी थी ,मैं शेल्फ पे झुकी हुई थी और वो मेरे कबूतरों को पकड़ के पूरी ताकत से धक्के दे रहा था । पर तभी घंटी बजी पर मैं करती क्या मेरी तो सिटी-पिटी गुम हो गयी , 'रवि पक्का तुम्हारे भैया होंगे' पर उसे तो जैसे पहले ही सब पता था बोला 'पूछो की कौन है और भाग कर बाथरूम में चलो' मैंने आवाज लगाई "कौन है". और भाग कर बाथरूम में पहुँच गए हम दोनों । बाहर से ये बोले 'मैं हूँ तरन दवाजा खोल' । मैं जो पहले डरी हुई थी और डर गयी मेरे पूरा बदन कांप रहा था कुछ समझ नहीं आ रहा था की क्या जवाब दूँ । पर रवि ने धीरे से मेरे कान में कहा कि कहो मैं नहा रही हूँ ..आती हूँ, मैंने ऐसा ही किया । रवि मुझ से ज्यादा चालाक था उसने इतनी सी देर में सब सोच लिया था उसने झट से मेरी नाइटी उतारी और पानी से मुझे भिगो दिया और तौलिया मुझे देते हुए बोला इसे लपेट लो और जाके दरवाजा खोलो । मैंने तोलिया लपेटा और जाके दरवाजा खोला । मैं अभी भी डर रही थी कि पिंकी के पापा गुस्सा होंगे पर भगवान कि दया से ऐसा कुछ नहीं हुआ । मुझे तौलिए में देख कहने लगे की तुझे इतनी भी क्या जल्दी थी दरवाजा खोलने की आराम से कपडे पहन के खोलती । उनकी ये बात सुन के मेरी जान में आई मख्खन लगाने के लिए मैंने उनसे कहा आपको इंतज़ार करना पड़ता इसिलए ऐसे आ गयी । उनको बस कुछ कागज़ लेने थे दफ्तर के ,उन्होंने वो लिए और चले गए । उनके जाने के बाद हमने अपना अधूरा काम बड़े आराम से पूरा किया । " तरन ने अपनी बात खत्म की ।
"ओह दीदी तुम्हारे तो मज़े हैं पर देवर से चुदते हुए तुम्हें बुरा नहीं लगता ?" रमा बोली
"रमा तू किस जमाने में रह रही है ,आज के जमाने में कोई रिश्ता नहीं होता बस चूत और लण्ड होते हैं ....वैसे लण्ड तो अपने राहुल का भी बड़ा मस्त है" तरन ने चटकारा लेते हुए कहा
"हाय राम तुम कैसी बातें करती हो ...राहुल तो अभी बच्चा है उसे तो छोड़ दो यार" रमा ने कहा वो सोच रही थी की तरन कितनी बड़ी चुदकड़ है उसके बेटे पर भी नज़र है उसकी । 'नहीं राहुल सिर्फ और सिर्फ मेरा है' उसने खुद से कहा ।
"मैं कैसे बातें कर रही हूँ ? सारी मोहल्ले की औरतों की नज़र है राहुल पे , तू उसे कच्छा तो पहनाती नहीं और राहुल सारा दिन अपना हथौड़े जैसा लण्ड लिए इधर उधर घूमता रहता है ...कसम खा के कहती हूँ अच्छा मौका है तेरे पास इससे पहले की कोई पराई औरत तेरे कुंवारे लड़के को मर्द बनाये तू खुद ही ऐसा कर ले" तरन ने रमा को आँख मारते हुए कहा ।
" क्या दीदी कुछ भी बोलती हो राहुल बेटे जैसा है" रमा बोली
" बेटा तो नहीं है न ? और इतना ही बेटा मानती हो तो उसे नोकरों की तरह क्यों रखती हो? फिर बेटा नहीं माँ के दुख दूर करेगा तो क्या दुश्मन करेंगे?"तरन ने प्यार भरी आवाज़ में रमा से कहा ।
"बोल तो तुम सही रही हो ...मैंने उसके साथ बड़ा बुरा बरताव किया है पर दीदी मेरा दिल नहीं मानता ..उसका लण्ड देख लेती हूँ तो सारे बदन में आग लग जाती है पर .."
"पर वर छोड़ रमा कसम खा के कहती हूँ कुंवारे लौड़े का मज़ा अलग ही होता है" तरन ने रमा के दिल को टटोलते हुए कहा । वो जानना चाहती थी की आखिर रमा के दिमाग में चल क्या रहा है । वो तो रमा के जरिये राहुल तक पहुँचने की बात सोच रही थी पर वो बेहद चालाक थी उसे पता था की वो सीधे कभी राहुल को नहीं पा सकती इसिलए वो रमा को गर्म कर रही थी ।
"दीदी ये क्या कह रही हो रिश्तों में यह सब ठीक नहीं होता" रमा ने संभलते हुए कहा ।
'साली कितना नाटक करती है' तरन ने मन में सोचा । वो जानती थी की रमा कई महीने से सम्भोग नहीं कर पाई है और बस थोडा और उकसाने की देर है फिर यह रवि से भी चुदेगी और अपने बेटे से भी ।"रमा रिश्ते तो होते ही हैं हमें सुख देने के लिए और सोच तू कहीं बाहर चक्कर चलाये तो बदनामी का डर है ऊपर से अगर राहुल को भी बाहर चुदाई की लत पड़ गयी तो बेचारा कहीं का नहीं रहेगा तू मोहल्ले की औरतों को नहीं जानती बड़ी बुरी नीयत है उनकी" तरन ने तरूप का इक्का चला । और उसका वार सही जगह जाके लगा । रमा सोचने लगी की बात तो ये सही कह रही है अगर वो राहुल के साथ अपनी प्यास भुजाती है तो घर की बात घर में ही रह जायेगी ।
" ठीक है दीदी देखती हूँ ...पर तुम बताओ क्या तुम कभी घर में चुदी हो ?" उसने अपना बचा-खुचा शक मिटाने के लिए तरन से पूछा ।
"मेरी तो पहली ही चुदाई अपने ही घर में हुई थी और देखो किसी को कुछ पता नहीं चला" तरन ने उसे कहा ।
"दीदी बताओ न कैसे किया तुमने ये सब और किसके साथ"
"रमा तेरी यह हालत मुझसे देखी नहीं जाती इसिलए सिर्फ तुझे बता रही हूँ आज तक ये बात मेरे सिवा किसी को नहीं पता ....बात तब की है जब मैं कुंवारी थी , हमारा गांव बेहद पिछड़ा हुआ है बापू को शराब की लत थी कोई काम नहीं करता था ।माँ ही खेतीबाड़ी करती ,घर संभालती पर जमीन कम होने के कारण माँ को गलत काम करना पड़ता ।मुखिया के यहाँ जब भी कोई अफसर आता तो मुखिया माँ को बुला लेता बदले में काफी पैसे मिलते जिससे घर आराम से चल जाता ऊपर से कुछ बचत भी हो जाती । एक दिन की बात है रात के 8 बजे थे बापू अभी आये नहीं थे ,मुखिया का एक नोकर आया उसने माँ से कुछ बात की और चला गया । माँ ने मुझे कहा की कोई बड़ा अफसर आया है हमारी ज़मीन की बात करने के लिए जो तुम्हारे चाचा ने हथिया ली है । मैं तब कुछ भी जानती थी दुनियादारी के बारे में मैं माँ की बातों में आ गयी । फिर माँ बोली ,भोली आज तू जाके मेरे बिस्तर पर लेट जा ऊपर रजाई ओढ़ लेना क्योंकि अगर तेरे बापू को पता चल गया की मैं घर से बाहर हूँ तो वो मार पिटाई करेंगे मेरी अच्छी बेटी अपने परिवार के लिए इतना तो करेगी न । पर रमा मैं डर रही थी कि अगर बापू को पता चल गया तो मेरी खैर नहीं तो यही बात मैंने माँ को बताई पर माँ ने कहा तेरे बापू तो दारू में टुन होके आते हैं और आते ही सो जाते हैं उन्हें नहीं पता चलेगा । माँ ने मुझे मिन्नते करके मना लिया । मैं चुपचाप माँ के बिस्तर पर जाके लेट गयी और रजाई ओढ़ के चुपचाप लेट गयी और दिया भी भुजा दिया पुरे कमरे में बस अँधेरा ही अँधेरा था कुछ नज़र नहीं आ रहा था । कोई 1 घंटे बाद बापू गाना गाते हुए अंदर आये डर के मारे मेरी तो घिग्गी बंध गयी दिल ज़ोरों से धड़कने लगा बापू थे भी 6फुट लम्बे चौड़े और पिटाई तो ऐसी करते थे की रूह कांप जाए । आते ही वो मेरे बिस्तर पर चढ़ गए और मेरी रजाई खींचते हुए बोले रज्जो साली तेरा पति बाहर है और तू सो गयी । मैंने दोनों हाथों से कस के रजाई को पकड़ रखा था पर बापू ने उसे ऐसे हटा लिया जैसे किसी 2 साल के बच्चे के हाथ से कोई खिलौना ले रहे हों डर के मारे मैं चुपचाप लेटी रही ।'साली रांड तेरा पति भूखा है और तू सो रही है' बापू ने शराब की गंध वाली गरम सांसे छोड़ते हुए कहा , मैं कुछ न कह पाई न कह सकती थी । 'साली नाटक करती है ...बोल रोटी निकाल रही है या नहीं' बापू चीख रहे थे पर मैं सोने का नाटक करती रही ।मुझे क्या पता था की क्या होने वाला है बापू किसी भूखे शेर की तरह मुझ पर चढ़ गए और मेरे होंठ चूसने लगे , पहली बार किसी मर्द ने मेरे साथ ऐसा किया किया था मुझे डर तो लग रहा था पर मज़ा भी आने लगा मैं भी बापू का साथ देने लगी । 'रज्जो आज तेरे होंठ कितने नरम लग रहे पहले तो ऐसे नहीं थे ' बापू बुदबुदाये । मैं फिर चुप रही बोलती तो बापू को पता चल जाता मुझे लगा बापू चूमने के बाद मुझे छोड़ देंगे पर बापू तो नशे में धुत थे और इससे पहले मुझे कुछ पता चलता या मैं कुछ कर पाती उन्होंने मेरी कमीज़ को गले से पकड़ा और एक ही झटके में फाड़ दिया ,ऊपर से उस दिन मैं अंदर कुछ पहन भी नहीं रखा था मैं हाथों से अपनी छातियाँ ढक पाती उससे पहले ही बापू ने एक निपल को मुंह में ले लिया और चूसने लगे 'आह...आह...' मैं सिसक पड़ी । पर नशे में होने के बापू को कुछ पहचान नहीं पाई 'साली रांड तभी कहता हूँ की चुदाई करवाया कर अब इतने दिनों बाद होगा तो दर्द तो होगा ही...वैसे आज तो तेरे मोम्मे बड़े गोल-गोल और मज़े दार लग रहे हैं" बापू के मुँह से ऐसी बातें सुन मुझे अच्छा लगने लगा ऊपर से वो मेरे मम्मों को चूस रहे थे मसल रहे थे उसके कारण एक अजीब सा मस्ती मुझ पर हावी हो रही थी आज मुझे सहलियों की बात पर यकीन हो रहा था जो केहती थी कि चुदाई में जो मज़ा है वो किसी और चीज़ में नहीं है । बापू थोड़े से नीचे हुए और मेरी नाभी चाटने लगे उनके गर्म खुरदरी जीभ ने जैसे ही मेरी नाभी को छुआ मेरा पूरा बदन बुरी तरह कांप उठा । न जाने कितनी देर बापू मेरे बदन से खिलवाड़ करते रहे फिर अचानक वो उठे कुछ देर उन्होंने कुछ किया मुझे लगा जान बची पर मेरा दिल तो चाह रहा था की वो ऐसा और करें पर मैं कुछ बोल तो सकती नहीं थी । और सही बात तो ये थी की बापू सिर्फ अपने कपडे खोलने के लिए उठे थे ये बात मेरी सलवार पर हुए हमले से मैं जान गयी और दूसरे ही पल मेरी सलवार और कच्छी मेरे बदन से अगल हो गयी । बापू ने अपना हथौड़े सा भारी लौड़ा मेरी कुंवारी चूत पर रख दिया , मुझे लगा ये क्या अब भी मैंने बापू को न रोका तो पाप होगा । अपनी सारी हिम्मत जोड़ के मैंने कहा 'बापू मैं भोली' मुझे लगा था एक ज़ोर दार तपड़ मेरे मुँह पर पड़ेगा पर बापू ने जैसे कुछ सुना ही नहीं और लौड़े को चूत के मुँह पर सेट करते रहे और बोले 'भोली हुन जान दे होली होली' और एक ज़ोर दार हमला मेरी फूल सी चूत पर हुआ और उनके मूसल लण्ड का मोटा टोपा मेरी चूत में जाके फस गया । मैं दर्द से बिलबिला उठी 'आ..आ..माँ मर गयी...' पर नशे में चूर बापू पर मेरी चीखों का कोई असर नहीं हुआ उन्होंने एक और ज़ोर का धक्का दिया और मेरी चूत मूसल लण्ड से भर गयी ..'आई ...मर गयी बापू मर जाउंगी मैं निकालो बाहर बापू बापू....' पर बापू ने बिना कुछ कहे ही एक और झटका दिया मैं तो जैसे दर्द से बेहोश सी हो गयी कुछ देर के लिए मेरी आँखें घूम गयीं ..बदन से सारी ताकत निकल गयी निढाल हो चुकी थी मैं ..बापू मेरे दोनों मम्मों को ज़ोर से पकड़ लिया और लण्ड आगे पीछे करना शूरु किया मुझे तो लग रहा था की मेरी चूत भी जैसे आगे पीछे हो रही हो ...बापू के धक्कों की रफ़्तार बढ़ती जा रही थी मुझ में इतनी भी ताकत नहीं थी की चीख सकूँ ...बस आह...आह..बापू नहीं...माँ बचा लो ..मैं बस ये कहती रही पर बापू धक्के पे धक्का मारे जा रहे थे और हर धक्के के साथ मेरी साँसे हलक में अटक जाती ..पुच पुच..फच फच की आवाज़ें पुरे कमरे में गूंजने रही थी और बापू मुझे ऐसे चोद रहे थे जैसे किसी लाश को चोद रहे हों ,दर्द से मैं बेहाल थी पर मुझे अब मज़ा भी आने लगा था पुरे बदन में गुदगुदी सी होने लगी थी जो हर झटके के साथ बढ़ती जा रही थी मैं ज्यादा देर न टिक सकी और झड़ गयी कुछ पलों के लिए लगा जैसे मैं स्वर्ग में हूँ पर जैसे ही चरम आंनद ख़त्म हुआ मुझे लगा की मेरी बची खुची ताकत भी निकल गयी है मैं बेसुध हो गयी । जब होश आया तो 2-3 दीये जल रहे थे बापु ज़मीन पर पालथी मार के बैठे हुए थे और खुद से बातें कर थे 'हाय कितना बड़ा पापी हूँ मैं अपनी ही बेटी का बलात्कार कर दिया भगवान मुझे कभी माफ़ नहीं करेगा' बापू खुद को कोस रहे थे उनकी हालत देख मेरा जी भर आया पर मुझे क्या पता था की ये सब नाटक है । बापू तो दूसरे राउंड की त्यारी कर रहे थे । मैंने बापू को बड़े प्यार से ऊपर से नीचे तक देखा उनका 8इंच लंबा और 4इंच मोटा लौड़ा देख मेरी तो जान ही निकल गयी । मैंने सोचा पक्का आज तो फट गयी होगी मेरी । किसी तरह ताकत बटोर के मैं उठी ताकि अपनी बुर का हाल देख सकूँ । रमा क्या बताऊँ तुझे उठी तो क्या देखती हूँ मेरी टाँगो के बीच वाली चादर पर खून ही खून था मेरी फूल सी चूत सूज के गोभी का फूल बन चुकी थी । मैं रोने लगी तभी बापू की आवाज़ आई 'साले हरामी तेरी ही वजह से मेरी बेटी का ये हाल हुआ है आज तुझे जड़ से ही काट दूँगा' मैंने रोते रोते बापू की तरफ देखा बापू के एक हाथ में चाकु और दूसरे में उन्होंने अपना मूसल लण्ड पकड़ा हुआ था और वो उसे काटने जा रहे थे "
" ओह तो क्या अंकल ने अपना लौड़ा काट लिया?" रमा जो अभी तक दम साधे सुन रही थी बोल पड़ी ।
"रमा तू अभी तक नहीं समझी बापू तो मछली को पकड़ने के लिए जाल बिछा रहे थे और उनका निशाना सही जगह लगा था । मैं घबरा गयी 'बापू इसमें इसका क्या कसूर है' मैंने बापू से कहा ये सोचे बिना की मैं जाल में फसती जा रही हूँ बापू यही सुनना चाहते थे उन्होंने नाटक और तेज़ कर दिया 'सही कहती है बेटी गलती तो मेरी है मैं अपना गला काट के इस पाप से मुक्ति पा लूँगा तू मुझे माफ़ कर दे' बापू ने चाकू अपने गले पर रखते हुए कहा । इस बात को सुन के तो मेरे हाथ पांव फूल गए कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करूँ दिमाग में बस एक ही बात आई की सारा दोष मुझे अपने ऊपर लेना होगा
'बापू गलती मेरी है मैं चाहती थी की यह सब हो इसीलिए जब माँ ने मुझे यहाँ सोने को कहा तो मैं मान गयी' मैंने बापू से कहा ।
'नहीं तू झूठ बोल रही है तू तो सारा वक़्त रोक रही थी पर देख मैंने क्या कर दिया मुझे जीने का कोई हक़ नहीं है' बापू ने कहा
'बापू मैं सच में यही चाहती थी पर डर भी रही थी इसिलए मना करने का नाटक कर रही थी'
'फिर झूठ बोल रही है तू तुझे ये भी पता नहीं होगा की आज तेरे साथ क्या हो गया है..बोल पता भी है तुझे क्यों तू मुझे बचाना चाहती है'
'बापू मैं सच बोल रही हूँ मैं भी चाहती थी की तुम मेरी चुदाई करो' मैंने बापू को बचाने के लिए कहा । मेरी यह बात सुन के वो बिस्तर पर आ गए ।
'झूट मत बोल ...तू तो फरिश्ता है और मैं दानव तुझे तो यह भी पता नहीं होगा इसे क्या कहते हैं ...इस को पहले काटूँगा फिर अपना गला बेटी मुझे मत रोक' बापू ने अपने मूसल लण्ड को पकड़ के हिलाते हुए कहा ।
'बापू मैं कोई बच्ची नहीं हूँ इसे लौड़ा कहते हैं...मैं सिर्फ पहले ही चुदना नहीं चाहती अब भी मेरा मन है की तुम मुझे चोदो' मैंने भावनाओं में बहकर कह दिया मुझे क्या पता था बापू भी यही चाहते हैं । वो कुछ देर अपना सिर पकड़ ले बैठे रहे फिर उन्होंने एक ज़ोर दार तपड़ मेरे मुंह पर दे मारा मैं बिस्तर पर ढेर हो गयी
'साली रांड अपने बाप से चुदेगी ...बाप को नरक में भेजेगी अब देख मैं तेरा क्या हाल करता हूँ ।' बापू मेरी टांगों को पकड़ते हुए कहा
'बापू क्या कर रहे हो होश में आओ' मैं विनती की पर बापू पर भूत सवार हो चूका था ।
बापू ने एक तकिया मेरे सिर के नीचे ठूस दिया 'साली बड़ा चुदने का शौक है न अब अपनी आँखों से देख कैसे चोदता हूँ तुझे' बापू ने अपना लौड़ा मेरी चूत पर सेट कर दिया और रगड़ने लगे । बापू का गर्म लौड़ा मेरी चूत के दाने से रगड़ खाने लगा कुछ पलों में मैं जल बिन मछली की तरह तड़पने लगी 'बापू ..आह..बापू ...मत करो मैं...'मैं बापू को रुकने के लिए कहना चाहती थी पर मेरा बदन अकड़ गया और मैं एक बार फिर झड़ गयी ।
'साली रांड देख कितनी बड़ी चुदकड़ है तू अपने बाप के सामने झड़ रही है शर्म नहीं आती तुझे ..अब तुझे सबक सिखाना ही पड़ेगा ' बापू ने मेरी एक टांग को पकड़ के 90 डिग्री के कोण पर उठा लिया और अपने टोपे को चूत के होंठों पर रख एक ज़ोर दार धक्का दिया । दर्द से मेरी तो जान ही निकल गयी मुझे लगा जैसे मेरी पूरी चूत लण्ड से भर गयी हो पर देखती क्या हूँ की अभी तो बस लण्ड का मुँह ही अंदर जा पाया है । मैंने उठने की पर बापू ने एक और झटका दिया इस बार तो लगा जैसे लोहे की सलाख मेरी चूत में घुस गयी हो ।'साले हरामी अपनी ही बेटी की चूत फाड़ दी ....निकाल बाहर ...' दर्द के कारण मैं सब भूल मान मर्यादा भूल गयी थी । 'साली अपने बाप को गाली निकालती है ..अभी तो तेरे साथ नरमी बरत रहा था पर अब असली चुदाई होगी तेरी' बापू ने मेरे गले को दोनों हाथों से पकड़ लिया .अपने लौड़े को चूत से बाहर निकाला और अपनी पूरी ताकत से धक्का लगाया...और नामुमकिन काम को एक ही झटके में कर दिया दर्द से मेरा सारा बदन कांपने लगा मैं अपनी नाभि के पास साफ़ एक उभार को देख सकती थी पर सिर्फ निढाल पड़े रहने के अलावा मेरे पास कोई चारा नहीं था । मैंने अपना सारा बदन ढीला छोड़ दिया ...उधर बापू दूसरे वार की त्यारी में था उसने लण्ड को बाहर खिंचा और फिर वैसा ही झटका दिया उसका लण्ड मेरी कसी चूत के सारे विरोध को तोड़ता हुआ मेरी बच्चे दानी से जा टकराया । दर्द के मारे मेरी आँखें ऊपर चढ़ गयी साँसे धौंकनी की तरह चलने लगी । बापू कोई दुश्मन तो था नहीं बाप था मेरा मेरी ये हालत देख बापू का मन भी पसीज गया बापू लण्ड को चूत में ही फसा रहने दिया ,मेरी गर्दन भी छोड़ दी और मुझ पर लेट गया और मेरे गालों को चूमते हुए बोला 'भोली भोली ...मेरी बच्ची बस हो गया मुश्किल काम'
'बापू तूने तो जान ही निकाल दी मेरी ..अब तो छोड़ दे' मैंने जवाब दिया
'बेटी जितना दर्द होना था हो लिया अब तो तेरी मज़ा लेने की बारी है' बापू में मेरे होंठो को अपने होंठों से चूम लिया ..बापू के इस लाड दुलार से दर्द कुछ कम हुआ । मैं भी मज़े लेना चाहती थी आखिर इतनी पीड़ा जो सही थी मैंने कुछ हक़ तो बनता था । बापू ने धीरे -2 अपनी कमर हिलानी शुरू की मज़ा आने लगा मुझे भी दर्द भी कम हो गया । बापू मेरे स्तनों को चूसते हुए हलके हलके धक्के मारते रहे मेरा बदन फिर अकड़ने लगा था पर इस बार मुझे बापू का लण्ड भी फूलता हुआ महसूस हुआ बापू ने मुझे कस के बाँहों में भर लिया और धक्कों की रफ़्तार तेज़ कर दी इधर मैं भी बापू से लिपट गयी मेरा काम होने वाला था बापू ने झटके और जानदार कर दिए ।। और किस्मत का खेल देखो की हम दोनों बिलकुल एक साथ झड़ गए मेरी छूट बापू के गर्म माल से भर गए । हम इतने थक चुके थे की उसी हालत में सो गए । रात को माँ वापस आई और मुझे जगाया मेरी मालिश की गर्म गर्म दूध पिलाया और फिर मुझे बतया की ये सब उन दोंनो की सकीम थीं । उन्हें पता चल गया था की मेरा चक्कर एक शादीशुदा आदमी से चल रहा और अगर मैं ये सब उसके साथ करती तो सारे गांव को पता चल जाता और बदनामी होती , फिर माँ ने कहा जब भी इस ऐसा वैसा मन हो तो बापू है न तुझे कहीं बाहर जाने की ज़रुरत नहीं । रमा अब तू सोच कितनी लड़कियों की ज़िन्दगी खराब होती है । कुछ करें तो बदनामी न करें तो मौत से भी बुरी ज़िंदगी उससे तो अच्छा है माँ बाप ही कुछ करें मज़ा भी पूरा और कोई बदनामी भी नहीं ।" तरन ने अपनी बात खत्म की । तरन ने बेशक झूठ बोला था और ये बात रमा अच्छे से जानती थी क्योंकि तरन की माँ खुद रमा को बता चुकी थी की उसका पति नपुंसक था और तरन एक बाबा का प्रसाद थी जैसे की रमा के तीन बच्चे पर रमा ने तरन से कुछ नहीं कहा क्योंकि अब वो मन बना चुकी थी की चाहे कुछ भी हो जाये वो अपनी चूत की खाज राहुल के लण्ड से ही भुजाये गी । बातें करते हुए 2 कब बज गए दोनों को ही पता नहीं चला था । रमा के तीनों बच्चे शोर मचाते हुए घर में गुस्से।
"ठीक है रमा मैं चलती हूँ पिंकी भी आती ही होगी"
"ठीक है दीदी आज तुमने जो मेरे लिए किया है उसे मैं कभी नहीं भूलूँगी" रमा ने भी नाटक करते हुए कहा ।
रमा एक लौड़े की खोज में।
दूसरी तरफ राहुल आने वाली घटनाओं से बेखबर सो रहा था , सुबह कोई 6 बजे उसकी नींद खुली तो उसे हैरानी हुई की आज माँ ने उसे जगाया नहीं पर उसे लगा की माँ। पक्का उसे जगाने आईं होगी और वो जागा नहीं होगा 'आज तो पिटाई पक्का उसने मन में सोचा' और भाग के सीधा रसोई में गया ,इस बात से बिल्कुल अनजान की उसका तम्बूरा अभी भी तना हुआ है और उसकी निक्कर से साफ़ पता चल रहा है वैसे उसे पता भी होता तो भी वो यही सोचता की मालिश से उसका लण्ड कितना ताकतवर हो गया है उसे इसमें शर्म की कोई बात नज़र नहीं आती । रसोई में रमा बर्तन धो रही थी , और रमा की पीठ उसकी तरफ थी नाइटी में से उसके सुडोल गांड साफ़ नज़र आ रही थी रमा की मांसल गांड देखते ही राहुल का मन आया की वो गांड को ज़ोर से दबाये इस उभरी हुई चीज़ को वो अभी अपने सपनों में ही खोया हुआ था जब रमा को लगा की उसके पीछे कोई खड़ा है वो पीछे घुमी तो राहुल की उभरी हुई निक्कर को देख उसकी हँसी छूट गयी
"उठ गया ...सो लेता कुछ देर और" वो मुस्कुराते हुए बोली ।
"सॉरी माँ आज मैं उठ नहीं पाया ,मैं अभी सारा काम कर देता हूँ" वो डरते हुए बोला ।
"हम्म काम तो तू कर ही लेगा ये तो मैं देख ही रही हूँ...और डर मत आज मैंने खुद नहीं उठाया तुझे " रमा ने राहुल के उठे हुए लण्ड को घूरते हुए कहा । और फिर कुछ देर रुक कर बोली "राहुल तू निक्कर के अंदर कच्छा क्यों नहीं पहनता?"
"मुझे गर्मी लगती है और मेरा नुन्नु दुखता है कच्छे में " राहुल ने मासूमियत से जवाब दिया । उसे समझ नहीं आ रहा था की माँ उसे कच्छा पहने को क्यों कह रही है
"अच्छा पर अब तू बड़ा हो गया है न इसलिए ...कच्छा न पहना गन्दी बात होती है " रमा बोली ।
रमा ने उसे वंही खड़ा रहने को कहा और अपने कमरे से अपने पति का एक कच्छा ले आई और राहुल को देते हुए बोली "ले पहन ले इसे । राहुल ने भी बिना किसी शर्म के निक्कर रमा के सामने ही उतार दी और उसका तनतनाता लण्ड रमा को सलामी देने लगा राहुल ने कच्छा पहन लिया पर उसका लिंग था ही इतना बड़ा और ऊपर से तना हुआ झट से कच्छे के छेद(जो पेशाब करने के लिये बना होता है) से बाहर आ गया
"माँ मेरा नुन्नु तो कच्छे में आ ही नहीं रहा क्या करूँ?" राहुल परेशान होते हुए पूछा
"रुक मैं सिखाती हूँ कैसे पहनते हैं...... नुन्नु को ऐसे पकड़ के कच्छे की टांग वाली तरफ कर देते हैं " रमा ने इशारे से समझाते हुए कहा ।
राहुल ने दो तीन बारी कोशिश की पर बेकार ऊपर से लण्ड दुखने लगा वो अलग "माँ मुझे नहीं आता " उसने आखिर थककर कहा । रमा समझ गयी उसे ही अब इस अजगर को संभालना होगा ये सोचते ही उसके पुरे बदन में सिहरन दौड़ गयी । रमा राहुल के पास गयी और उसने राहुल के लण्ड को पकड़ लिया 'हे राम कितना मोटा है' रमा ने मन में सोचा और ये सच ही था लण्ड उसकी मुठी में आ ही नहीं रहा था 2 ऊँगली जितनी जगह खाली थी । रमा का मन तो कर रहा था की अभी इसी वक़्त ये मूसल उसकी फ़ुद्दी में घुस जाये पर वो जानती थी की सभी घर पे हैं इसलिए उसने जल्दी से राहुल को बताया की नुन्नु को कंहाँ रखते है कच्छे में । और उसे जल्दी से निक्कर पहने को कहा
"माँ देखो नुन्नु अभी भी नंगा है"
"बेटा ये ऐसे ही होता है तू निक्कर पहन ले तो नंगा नहीं रहेगा" रमा ने राहुल से कहा जो कच्छे की टांग से बाहर झांक रहे अपने लिंग की तरफ इशारा कर रहा था । "चल जाके नहा ले ज्यादा बातें मत बना वरना कॉलेज के लिए लेट हो जायेगा"
सब बच्चों को कॉलेज और फिर पति को दुकान भेजने के बाद रमा घर की साफ़ सफाई में लग गयी ,कोई 11 बजे वो घर के सब काम करके फ्री हुई तो उसने अपनी पिंकी की माँ को आवाज़ लगाईं "अरे पिंकी की मम्मी अगर काम निपट गया हो तो आओ चाये पीते हैं ...'शांति' भी बस शूरु होने वाला है"
"आई रमा " तरनजीत ने जवाब दिया । तरनजीत 35 साल की भरे बदन की महिला थी उसका रंग पंजाबियों की तरह साफ़ और कद काठी काफी मजबूत थी । तरनजीत काफी रंगीन मिज़ाज की औरत थी शादी के बाद भी उसके कई मर्दों के साथ सम्बन्ध थे । तरन अपने मोटे कुहलों को मटकाती हुई रमा के कमरे में दाखिल हुई उसने रमा के चेहरे को देखते की जान लिया की रमा के साथ रात को क्या हुआ होगा ।
"क्या रमा आज फिर भाई साहब फुस हो गए क्या?" उसने रमा को आँख मारते हुए पूछा
"क्या बताऊँ दीदी इस आदमी से तो तंग आ गयी हूँ मैं आज तो पुरे 93 दिन हो गए " रमा ने तरन की तरफ चाय का कप बढ़ाते हुए कहा ।
"रमा तू क्यों इस आदमी के साथ क्यों बरबाद हो रही है , जैसे लहसुन बिना सब्जी नहीं जचती वैसे ही लौड़े बिना औरत की ज़िन्दगी ही क्या ?" तरन ने चाय की चुस्की लेते हुए कहा
"दीदी तुम कह तो सही रही हो पर मैं कर ही क्या सकती हूँ ?"
"रमा तुम भाईसाहब को किसी अच्छे डॉक्टर को क्यों नहीं दिखाती आज हर बिमारी का इलाज है ....मैं एक दिन भी चुदाई के बिना नहीं रह सकती...तू पता नहीं कैसी जीती है"
"दीदी अब क्या कहुँ तुमसे, ये किसी डॉक्टर के पास जाते नहीं ...पर मैंने सोचा शरमाते होंगे तो इन्हें बिना बताये ही कई डॉक्टरों की दवाई ले आती थी और इनके खाने में मिला देती थी पर कोई लाभ नहीं हुआ मैं तो पूरी तरह से टूट चुकी हूँ तुम ही बताओ क्या करूँ मैं" रमा ने सिसकते हुए कहा ।
"ओह रमा हिम्मत मत हारो..तुम बुरा न मानो तो एक तरकीब है मेरे पास कहो तो बताऊँ?" तरन ने रमा को सहलाते हुए कहा
"दीदी तुम्हारी किसी बात का बुरा माना है आज तक जो अब बुरा मानु गी" रमा ने आस की नज़रों से तरन की और देखते हुए कहा ।
"रमा तू मेरे देवर रवि को तो जानती हैं न ? बहुत पूछता है तेरे बारे में मेरी मिन्नतें कर रहा है साल भर से की तेरी उससे बात करवा दूँ , तू बोले तो करूँ बात" तरन ने रमा को आँख मारते हुए कहा ।
"नहीं नहीं दीदी रहने दो" रमा ने घबराते हुए कहा
"क्यों तुझे अच्छा नहीं लगता क्या?" तरन सवालिया नज़रों से रमा को घूरते हुए कहा
" नहीं दीदी वो बात नहीं रवि जैसा सुन्दर और जवान लड़का जिस लड़की को मिलेगा उसकी तो ज़िन्दगी बन जायेगी...पर वो अभी लड़का है कालेज पड़ता है ...उसकी जिंदगी खराब हो जायेगी " रमा ने उतेज़ित होते हुए कहा
"हा हा रमा मैं तो तुझे चालाक समझती थी तू तो बिलकुल भोली है बच्चों की तरह...जिसे तू लड़का कह रही है न वो लड़का तेरी मेरी जैसी चार की चुदाई एक साथ कर सकता" तरन ने हँसते हुए कहा
"क्या दीदी तुम तो कुछ भी कहती हो" रमा तरन को हलका धक्का देते हुए कहा पर तभी वो सारा मामला समझ गयी और हँसते हुए "तो इसका मतलब तुम और रवि करते हो?"
"रमा तू करने की बात करती है मैं तो लगभग रोज़ उससे चुदती हों अब ऐसी आदत पड़ गयी है की अगर एक दिन भी उसका लौड़ा न लूँ तो मेरी चूत की हालत बुरी हो जाती है"
"ओह दीदी तो कल जब दिन में रवि आया था तो तब भी तुमने .......अब समझी तभी कल तुम मेरे पास नहीं आई...पर अगर पिंकी के पापा को पता चल गया तो?...तुम्हें डर नहीं लगता " रमा हैरान होते हुए पूछा ..रमा मन ही मन सोच रही थी कि ऐसा देवर काश उसे मिला होता
"रमा तू विशवास नहीं करेगी कल तो पिंकी के पापा ने सारा खेल देख ही लिया होता पर रवि के ही तेज़ दिमाग ने बालबाल बचा लिया"
"क्यों क्या हुआ बताओ न" रमा बोली उसे अब मज़ा आने लगा था जैसे हमें पोर्न देखते हुए आता है ।
"हम्म हम्म मज़ा ले रही है ?" तरन ने रमा को छेड़ते हुए कहा फिर वो पालथी मार के बैठ गयी और सुनाने लगी
"रमा क्या बताऊँ तुझे कल तो एक पल के लिए मेरी सांसे ही रुक गयीं थी हुआ ये की रवि आम तौर से 10 बजे के आसपास आता है और 1 बजे तक चला जाता है ,उसे घंटी न बजानी पड़े इसलिए मैं दरवाजे पर कुण्डी नहीं लगाती ...पर कल वो 11 बजे तक नहीं आया मुझे लगा की अब नहीं आएगा तो मैं रसोई में खाना बनाने चली मैं आटा गूंध रही थी की उसने मुझे पीछे आके दबोच लिया कस के और मेरे कबूतरों को मसलने लगा । मैं कहा भी की क्या कर रहे हो पिंकी के पापा आ जाएंगे पर उस पे तो ठरक हावी थी उसने झट से मेरी नाइटी ऊपर की और घुसा दिया अपना बड़ा मोटा लौड़ा मेरी चूत में गुसेड़ दिया ,कमीने का इतना मोटा है की हर बार लेते हुए मेरी हालत पतली हो जाती है । मैंने कहा भी रवि से की तेल-वेल लगा ले पर उसने तो तब तक रेल चलानी शुरू कर भी दी थी ,मैं शेल्फ पे झुकी हुई थी और वो मेरे कबूतरों को पकड़ के पूरी ताकत से धक्के दे रहा था । पर तभी घंटी बजी पर मैं करती क्या मेरी तो सिटी-पिटी गुम हो गयी , 'रवि पक्का तुम्हारे भैया होंगे' पर उसे तो जैसे पहले ही सब पता था बोला 'पूछो की कौन है और भाग कर बाथरूम में चलो' मैंने आवाज लगाई "कौन है". और भाग कर बाथरूम में पहुँच गए हम दोनों । बाहर से ये बोले 'मैं हूँ तरन दवाजा खोल' । मैं जो पहले डरी हुई थी और डर गयी मेरे पूरा बदन कांप रहा था कुछ समझ नहीं आ रहा था की क्या जवाब दूँ । पर रवि ने धीरे से मेरे कान में कहा कि कहो मैं नहा रही हूँ ..आती हूँ, मैंने ऐसा ही किया । रवि मुझ से ज्यादा चालाक था उसने इतनी सी देर में सब सोच लिया था उसने झट से मेरी नाइटी उतारी और पानी से मुझे भिगो दिया और तौलिया मुझे देते हुए बोला इसे लपेट लो और जाके दरवाजा खोलो । मैंने तोलिया लपेटा और जाके दरवाजा खोला । मैं अभी भी डर रही थी कि पिंकी के पापा गुस्सा होंगे पर भगवान कि दया से ऐसा कुछ नहीं हुआ । मुझे तौलिए में देख कहने लगे की तुझे इतनी भी क्या जल्दी थी दरवाजा खोलने की आराम से कपडे पहन के खोलती । उनकी ये बात सुन के मेरी जान में आई मख्खन लगाने के लिए मैंने उनसे कहा आपको इंतज़ार करना पड़ता इसिलए ऐसे आ गयी । उनको बस कुछ कागज़ लेने थे दफ्तर के ,उन्होंने वो लिए और चले गए । उनके जाने के बाद हमने अपना अधूरा काम बड़े आराम से पूरा किया । " तरन ने अपनी बात खत्म की ।
"ओह दीदी तुम्हारे तो मज़े हैं पर देवर से चुदते हुए तुम्हें बुरा नहीं लगता ?" रमा बोली
"रमा तू किस जमाने में रह रही है ,आज के जमाने में कोई रिश्ता नहीं होता बस चूत और लण्ड होते हैं ....वैसे लण्ड तो अपने राहुल का भी बड़ा मस्त है" तरन ने चटकारा लेते हुए कहा
"हाय राम तुम कैसी बातें करती हो ...राहुल तो अभी बच्चा है उसे तो छोड़ दो यार" रमा ने कहा वो सोच रही थी की तरन कितनी बड़ी चुदकड़ है उसके बेटे पर भी नज़र है उसकी । 'नहीं राहुल सिर्फ और सिर्फ मेरा है' उसने खुद से कहा ।
"मैं कैसे बातें कर रही हूँ ? सारी मोहल्ले की औरतों की नज़र है राहुल पे , तू उसे कच्छा तो पहनाती नहीं और राहुल सारा दिन अपना हथौड़े जैसा लण्ड लिए इधर उधर घूमता रहता है ...कसम खा के कहती हूँ अच्छा मौका है तेरे पास इससे पहले की कोई पराई औरत तेरे कुंवारे लड़के को मर्द बनाये तू खुद ही ऐसा कर ले" तरन ने रमा को आँख मारते हुए कहा ।
" क्या दीदी कुछ भी बोलती हो राहुल बेटे जैसा है" रमा बोली
" बेटा तो नहीं है न ? और इतना ही बेटा मानती हो तो उसे नोकरों की तरह क्यों रखती हो? फिर बेटा नहीं माँ के दुख दूर करेगा तो क्या दुश्मन करेंगे?"तरन ने प्यार भरी आवाज़ में रमा से कहा ।
"बोल तो तुम सही रही हो ...मैंने उसके साथ बड़ा बुरा बरताव किया है पर दीदी मेरा दिल नहीं मानता ..उसका लण्ड देख लेती हूँ तो सारे बदन में आग लग जाती है पर .."
"पर वर छोड़ रमा कसम खा के कहती हूँ कुंवारे लौड़े का मज़ा अलग ही होता है" तरन ने रमा के दिल को टटोलते हुए कहा । वो जानना चाहती थी की आखिर रमा के दिमाग में चल क्या रहा है । वो तो रमा के जरिये राहुल तक पहुँचने की बात सोच रही थी पर वो बेहद चालाक थी उसे पता था की वो सीधे कभी राहुल को नहीं पा सकती इसिलए वो रमा को गर्म कर रही थी ।
"दीदी ये क्या कह रही हो रिश्तों में यह सब ठीक नहीं होता" रमा ने संभलते हुए कहा ।
'साली कितना नाटक करती है' तरन ने मन में सोचा । वो जानती थी की रमा कई महीने से सम्भोग नहीं कर पाई है और बस थोडा और उकसाने की देर है फिर यह रवि से भी चुदेगी और अपने बेटे से भी ।"रमा रिश्ते तो होते ही हैं हमें सुख देने के लिए और सोच तू कहीं बाहर चक्कर चलाये तो बदनामी का डर है ऊपर से अगर राहुल को भी बाहर चुदाई की लत पड़ गयी तो बेचारा कहीं का नहीं रहेगा तू मोहल्ले की औरतों को नहीं जानती बड़ी बुरी नीयत है उनकी" तरन ने तरूप का इक्का चला । और उसका वार सही जगह जाके लगा । रमा सोचने लगी की बात तो ये सही कह रही है अगर वो राहुल के साथ अपनी प्यास भुजाती है तो घर की बात घर में ही रह जायेगी ।
" ठीक है दीदी देखती हूँ ...पर तुम बताओ क्या तुम कभी घर में चुदी हो ?" उसने अपना बचा-खुचा शक मिटाने के लिए तरन से पूछा ।
"मेरी तो पहली ही चुदाई अपने ही घर में हुई थी और देखो किसी को कुछ पता नहीं चला" तरन ने उसे कहा ।
"दीदी बताओ न कैसे किया तुमने ये सब और किसके साथ"
"रमा तेरी यह हालत मुझसे देखी नहीं जाती इसिलए सिर्फ तुझे बता रही हूँ आज तक ये बात मेरे सिवा किसी को नहीं पता ....बात तब की है जब मैं कुंवारी थी , हमारा गांव बेहद पिछड़ा हुआ है बापू को शराब की लत थी कोई काम नहीं करता था ।माँ ही खेतीबाड़ी करती ,घर संभालती पर जमीन कम होने के कारण माँ को गलत काम करना पड़ता ।मुखिया के यहाँ जब भी कोई अफसर आता तो मुखिया माँ को बुला लेता बदले में काफी पैसे मिलते जिससे घर आराम से चल जाता ऊपर से कुछ बचत भी हो जाती । एक दिन की बात है रात के 8 बजे थे बापू अभी आये नहीं थे ,मुखिया का एक नोकर आया उसने माँ से कुछ बात की और चला गया । माँ ने मुझे कहा की कोई बड़ा अफसर आया है हमारी ज़मीन की बात करने के लिए जो तुम्हारे चाचा ने हथिया ली है । मैं तब कुछ भी जानती थी दुनियादारी के बारे में मैं माँ की बातों में आ गयी । फिर माँ बोली ,भोली आज तू जाके मेरे बिस्तर पर लेट जा ऊपर रजाई ओढ़ लेना क्योंकि अगर तेरे बापू को पता चल गया की मैं घर से बाहर हूँ तो वो मार पिटाई करेंगे मेरी अच्छी बेटी अपने परिवार के लिए इतना तो करेगी न । पर रमा मैं डर रही थी कि अगर बापू को पता चल गया तो मेरी खैर नहीं तो यही बात मैंने माँ को बताई पर माँ ने कहा तेरे बापू तो दारू में टुन होके आते हैं और आते ही सो जाते हैं उन्हें नहीं पता चलेगा । माँ ने मुझे मिन्नते करके मना लिया । मैं चुपचाप माँ के बिस्तर पर जाके लेट गयी और रजाई ओढ़ के चुपचाप लेट गयी और दिया भी भुजा दिया पुरे कमरे में बस अँधेरा ही अँधेरा था कुछ नज़र नहीं आ रहा था । कोई 1 घंटे बाद बापू गाना गाते हुए अंदर आये डर के मारे मेरी तो घिग्गी बंध गयी दिल ज़ोरों से धड़कने लगा बापू थे भी 6फुट लम्बे चौड़े और पिटाई तो ऐसी करते थे की रूह कांप जाए । आते ही वो मेरे बिस्तर पर चढ़ गए और मेरी रजाई खींचते हुए बोले रज्जो साली तेरा पति बाहर है और तू सो गयी । मैंने दोनों हाथों से कस के रजाई को पकड़ रखा था पर बापू ने उसे ऐसे हटा लिया जैसे किसी 2 साल के बच्चे के हाथ से कोई खिलौना ले रहे हों डर के मारे मैं चुपचाप लेटी रही ।'साली रांड तेरा पति भूखा है और तू सो रही है' बापू ने शराब की गंध वाली गरम सांसे छोड़ते हुए कहा , मैं कुछ न कह पाई न कह सकती थी । 'साली नाटक करती है ...बोल रोटी निकाल रही है या नहीं' बापू चीख रहे थे पर मैं सोने का नाटक करती रही ।मुझे क्या पता था की क्या होने वाला है बापू किसी भूखे शेर की तरह मुझ पर चढ़ गए और मेरे होंठ चूसने लगे , पहली बार किसी मर्द ने मेरे साथ ऐसा किया किया था मुझे डर तो लग रहा था पर मज़ा भी आने लगा मैं भी बापू का साथ देने लगी । 'रज्जो आज तेरे होंठ कितने नरम लग रहे पहले तो ऐसे नहीं थे ' बापू बुदबुदाये । मैं फिर चुप रही बोलती तो बापू को पता चल जाता मुझे लगा बापू चूमने के बाद मुझे छोड़ देंगे पर बापू तो नशे में धुत थे और इससे पहले मुझे कुछ पता चलता या मैं कुछ कर पाती उन्होंने मेरी कमीज़ को गले से पकड़ा और एक ही झटके में फाड़ दिया ,ऊपर से उस दिन मैं अंदर कुछ पहन भी नहीं रखा था मैं हाथों से अपनी छातियाँ ढक पाती उससे पहले ही बापू ने एक निपल को मुंह में ले लिया और चूसने लगे 'आह...आह...' मैं सिसक पड़ी । पर नशे में होने के बापू को कुछ पहचान नहीं पाई 'साली रांड तभी कहता हूँ की चुदाई करवाया कर अब इतने दिनों बाद होगा तो दर्द तो होगा ही...वैसे आज तो तेरे मोम्मे बड़े गोल-गोल और मज़े दार लग रहे हैं" बापू के मुँह से ऐसी बातें सुन मुझे अच्छा लगने लगा ऊपर से वो मेरे मम्मों को चूस रहे थे मसल रहे थे उसके कारण एक अजीब सा मस्ती मुझ पर हावी हो रही थी आज मुझे सहलियों की बात पर यकीन हो रहा था जो केहती थी कि चुदाई में जो मज़ा है वो किसी और चीज़ में नहीं है । बापू थोड़े से नीचे हुए और मेरी नाभी चाटने लगे उनके गर्म खुरदरी जीभ ने जैसे ही मेरी नाभी को छुआ मेरा पूरा बदन बुरी तरह कांप उठा । न जाने कितनी देर बापू मेरे बदन से खिलवाड़ करते रहे फिर अचानक वो उठे कुछ देर उन्होंने कुछ किया मुझे लगा जान बची पर मेरा दिल तो चाह रहा था की वो ऐसा और करें पर मैं कुछ बोल तो सकती नहीं थी । और सही बात तो ये थी की बापू सिर्फ अपने कपडे खोलने के लिए उठे थे ये बात मेरी सलवार पर हुए हमले से मैं जान गयी और दूसरे ही पल मेरी सलवार और कच्छी मेरे बदन से अगल हो गयी । बापू ने अपना हथौड़े सा भारी लौड़ा मेरी कुंवारी चूत पर रख दिया , मुझे लगा ये क्या अब भी मैंने बापू को न रोका तो पाप होगा । अपनी सारी हिम्मत जोड़ के मैंने कहा 'बापू मैं भोली' मुझे लगा था एक ज़ोर दार तपड़ मेरे मुँह पर पड़ेगा पर बापू ने जैसे कुछ सुना ही नहीं और लौड़े को चूत के मुँह पर सेट करते रहे और बोले 'भोली हुन जान दे होली होली' और एक ज़ोर दार हमला मेरी फूल सी चूत पर हुआ और उनके मूसल लण्ड का मोटा टोपा मेरी चूत में जाके फस गया । मैं दर्द से बिलबिला उठी 'आ..आ..माँ मर गयी...' पर नशे में चूर बापू पर मेरी चीखों का कोई असर नहीं हुआ उन्होंने एक और ज़ोर का धक्का दिया और मेरी चूत मूसल लण्ड से भर गयी ..'आई ...मर गयी बापू मर जाउंगी मैं निकालो बाहर बापू बापू....' पर बापू ने बिना कुछ कहे ही एक और झटका दिया मैं तो जैसे दर्द से बेहोश सी हो गयी कुछ देर के लिए मेरी आँखें घूम गयीं ..बदन से सारी ताकत निकल गयी निढाल हो चुकी थी मैं ..बापू मेरे दोनों मम्मों को ज़ोर से पकड़ लिया और लण्ड आगे पीछे करना शूरु किया मुझे तो लग रहा था की मेरी चूत भी जैसे आगे पीछे हो रही हो ...बापू के धक्कों की रफ़्तार बढ़ती जा रही थी मुझ में इतनी भी ताकत नहीं थी की चीख सकूँ ...बस आह...आह..बापू नहीं...माँ बचा लो ..मैं बस ये कहती रही पर बापू धक्के पे धक्का मारे जा रहे थे और हर धक्के के साथ मेरी साँसे हलक में अटक जाती ..पुच पुच..फच फच की आवाज़ें पुरे कमरे में गूंजने रही थी और बापू मुझे ऐसे चोद रहे थे जैसे किसी लाश को चोद रहे हों ,दर्द से मैं बेहाल थी पर मुझे अब मज़ा भी आने लगा था पुरे बदन में गुदगुदी सी होने लगी थी जो हर झटके के साथ बढ़ती जा रही थी मैं ज्यादा देर न टिक सकी और झड़ गयी कुछ पलों के लिए लगा जैसे मैं स्वर्ग में हूँ पर जैसे ही चरम आंनद ख़त्म हुआ मुझे लगा की मेरी बची खुची ताकत भी निकल गयी है मैं बेसुध हो गयी । जब होश आया तो 2-3 दीये जल रहे थे बापु ज़मीन पर पालथी मार के बैठे हुए थे और खुद से बातें कर थे 'हाय कितना बड़ा पापी हूँ मैं अपनी ही बेटी का बलात्कार कर दिया भगवान मुझे कभी माफ़ नहीं करेगा' बापू खुद को कोस रहे थे उनकी हालत देख मेरा जी भर आया पर मुझे क्या पता था की ये सब नाटक है । बापू तो दूसरे राउंड की त्यारी कर रहे थे । मैंने बापू को बड़े प्यार से ऊपर से नीचे तक देखा उनका 8इंच लंबा और 4इंच मोटा लौड़ा देख मेरी तो जान ही निकल गयी । मैंने सोचा पक्का आज तो फट गयी होगी मेरी । किसी तरह ताकत बटोर के मैं उठी ताकि अपनी बुर का हाल देख सकूँ । रमा क्या बताऊँ तुझे उठी तो क्या देखती हूँ मेरी टाँगो के बीच वाली चादर पर खून ही खून था मेरी फूल सी चूत सूज के गोभी का फूल बन चुकी थी । मैं रोने लगी तभी बापू की आवाज़ आई 'साले हरामी तेरी ही वजह से मेरी बेटी का ये हाल हुआ है आज तुझे जड़ से ही काट दूँगा' मैंने रोते रोते बापू की तरफ देखा बापू के एक हाथ में चाकु और दूसरे में उन्होंने अपना मूसल लण्ड पकड़ा हुआ था और वो उसे काटने जा रहे थे "
" ओह तो क्या अंकल ने अपना लौड़ा काट लिया?" रमा जो अभी तक दम साधे सुन रही थी बोल पड़ी ।
"रमा तू अभी तक नहीं समझी बापू तो मछली को पकड़ने के लिए जाल बिछा रहे थे और उनका निशाना सही जगह लगा था । मैं घबरा गयी 'बापू इसमें इसका क्या कसूर है' मैंने बापू से कहा ये सोचे बिना की मैं जाल में फसती जा रही हूँ बापू यही सुनना चाहते थे उन्होंने नाटक और तेज़ कर दिया 'सही कहती है बेटी गलती तो मेरी है मैं अपना गला काट के इस पाप से मुक्ति पा लूँगा तू मुझे माफ़ कर दे' बापू ने चाकू अपने गले पर रखते हुए कहा । इस बात को सुन के तो मेरे हाथ पांव फूल गए कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करूँ दिमाग में बस एक ही बात आई की सारा दोष मुझे अपने ऊपर लेना होगा
'बापू गलती मेरी है मैं चाहती थी की यह सब हो इसीलिए जब माँ ने मुझे यहाँ सोने को कहा तो मैं मान गयी' मैंने बापू से कहा ।
'नहीं तू झूठ बोल रही है तू तो सारा वक़्त रोक रही थी पर देख मैंने क्या कर दिया मुझे जीने का कोई हक़ नहीं है' बापू ने कहा
'बापू मैं सच में यही चाहती थी पर डर भी रही थी इसिलए मना करने का नाटक कर रही थी'
'फिर झूठ बोल रही है तू तुझे ये भी पता नहीं होगा की आज तेरे साथ क्या हो गया है..बोल पता भी है तुझे क्यों तू मुझे बचाना चाहती है'
'बापू मैं सच बोल रही हूँ मैं भी चाहती थी की तुम मेरी चुदाई करो' मैंने बापू को बचाने के लिए कहा । मेरी यह बात सुन के वो बिस्तर पर आ गए ।
'झूट मत बोल ...तू तो फरिश्ता है और मैं दानव तुझे तो यह भी पता नहीं होगा इसे क्या कहते हैं ...इस को पहले काटूँगा फिर अपना गला बेटी मुझे मत रोक' बापू ने अपने मूसल लण्ड को पकड़ के हिलाते हुए कहा ।
'बापू मैं कोई बच्ची नहीं हूँ इसे लौड़ा कहते हैं...मैं सिर्फ पहले ही चुदना नहीं चाहती अब भी मेरा मन है की तुम मुझे चोदो' मैंने भावनाओं में बहकर कह दिया मुझे क्या पता था बापू भी यही चाहते हैं । वो कुछ देर अपना सिर पकड़ ले बैठे रहे फिर उन्होंने एक ज़ोर दार तपड़ मेरे मुंह पर दे मारा मैं बिस्तर पर ढेर हो गयी
'साली रांड अपने बाप से चुदेगी ...बाप को नरक में भेजेगी अब देख मैं तेरा क्या हाल करता हूँ ।' बापू मेरी टांगों को पकड़ते हुए कहा
'बापू क्या कर रहे हो होश में आओ' मैं विनती की पर बापू पर भूत सवार हो चूका था ।
बापू ने एक तकिया मेरे सिर के नीचे ठूस दिया 'साली बड़ा चुदने का शौक है न अब अपनी आँखों से देख कैसे चोदता हूँ तुझे' बापू ने अपना लौड़ा मेरी चूत पर सेट कर दिया और रगड़ने लगे । बापू का गर्म लौड़ा मेरी चूत के दाने से रगड़ खाने लगा कुछ पलों में मैं जल बिन मछली की तरह तड़पने लगी 'बापू ..आह..बापू ...मत करो मैं...'मैं बापू को रुकने के लिए कहना चाहती थी पर मेरा बदन अकड़ गया और मैं एक बार फिर झड़ गयी ।
'साली रांड देख कितनी बड़ी चुदकड़ है तू अपने बाप के सामने झड़ रही है शर्म नहीं आती तुझे ..अब तुझे सबक सिखाना ही पड़ेगा ' बापू ने मेरी एक टांग को पकड़ के 90 डिग्री के कोण पर उठा लिया और अपने टोपे को चूत के होंठों पर रख एक ज़ोर दार धक्का दिया । दर्द से मेरी तो जान ही निकल गयी मुझे लगा जैसे मेरी पूरी चूत लण्ड से भर गयी हो पर देखती क्या हूँ की अभी तो बस लण्ड का मुँह ही अंदर जा पाया है । मैंने उठने की पर बापू ने एक और झटका दिया इस बार तो लगा जैसे लोहे की सलाख मेरी चूत में घुस गयी हो ।'साले हरामी अपनी ही बेटी की चूत फाड़ दी ....निकाल बाहर ...' दर्द के कारण मैं सब भूल मान मर्यादा भूल गयी थी । 'साली अपने बाप को गाली निकालती है ..अभी तो तेरे साथ नरमी बरत रहा था पर अब असली चुदाई होगी तेरी' बापू ने मेरे गले को दोनों हाथों से पकड़ लिया .अपने लौड़े को चूत से बाहर निकाला और अपनी पूरी ताकत से धक्का लगाया...और नामुमकिन काम को एक ही झटके में कर दिया दर्द से मेरा सारा बदन कांपने लगा मैं अपनी नाभि के पास साफ़ एक उभार को देख सकती थी पर सिर्फ निढाल पड़े रहने के अलावा मेरे पास कोई चारा नहीं था । मैंने अपना सारा बदन ढीला छोड़ दिया ...उधर बापू दूसरे वार की त्यारी में था उसने लण्ड को बाहर खिंचा और फिर वैसा ही झटका दिया उसका लण्ड मेरी कसी चूत के सारे विरोध को तोड़ता हुआ मेरी बच्चे दानी से जा टकराया । दर्द के मारे मेरी आँखें ऊपर चढ़ गयी साँसे धौंकनी की तरह चलने लगी । बापू कोई दुश्मन तो था नहीं बाप था मेरा मेरी ये हालत देख बापू का मन भी पसीज गया बापू लण्ड को चूत में ही फसा रहने दिया ,मेरी गर्दन भी छोड़ दी और मुझ पर लेट गया और मेरे गालों को चूमते हुए बोला 'भोली भोली ...मेरी बच्ची बस हो गया मुश्किल काम'
'बापू तूने तो जान ही निकाल दी मेरी ..अब तो छोड़ दे' मैंने जवाब दिया
'बेटी जितना दर्द होना था हो लिया अब तो तेरी मज़ा लेने की बारी है' बापू में मेरे होंठो को अपने होंठों से चूम लिया ..बापू के इस लाड दुलार से दर्द कुछ कम हुआ । मैं भी मज़े लेना चाहती थी आखिर इतनी पीड़ा जो सही थी मैंने कुछ हक़ तो बनता था । बापू ने धीरे -2 अपनी कमर हिलानी शुरू की मज़ा आने लगा मुझे भी दर्द भी कम हो गया । बापू मेरे स्तनों को चूसते हुए हलके हलके धक्के मारते रहे मेरा बदन फिर अकड़ने लगा था पर इस बार मुझे बापू का लण्ड भी फूलता हुआ महसूस हुआ बापू ने मुझे कस के बाँहों में भर लिया और धक्कों की रफ़्तार तेज़ कर दी इधर मैं भी बापू से लिपट गयी मेरा काम होने वाला था बापू ने झटके और जानदार कर दिए ।। और किस्मत का खेल देखो की हम दोनों बिलकुल एक साथ झड़ गए मेरी छूट बापू के गर्म माल से भर गए । हम इतने थक चुके थे की उसी हालत में सो गए । रात को माँ वापस आई और मुझे जगाया मेरी मालिश की गर्म गर्म दूध पिलाया और फिर मुझे बतया की ये सब उन दोंनो की सकीम थीं । उन्हें पता चल गया था की मेरा चक्कर एक शादीशुदा आदमी से चल रहा और अगर मैं ये सब उसके साथ करती तो सारे गांव को पता चल जाता और बदनामी होती , फिर माँ ने कहा जब भी इस ऐसा वैसा मन हो तो बापू है न तुझे कहीं बाहर जाने की ज़रुरत नहीं । रमा अब तू सोच कितनी लड़कियों की ज़िन्दगी खराब होती है । कुछ करें तो बदनामी न करें तो मौत से भी बुरी ज़िंदगी उससे तो अच्छा है माँ बाप ही कुछ करें मज़ा भी पूरा और कोई बदनामी भी नहीं ।" तरन ने अपनी बात खत्म की । तरन ने बेशक झूठ बोला था और ये बात रमा अच्छे से जानती थी क्योंकि तरन की माँ खुद रमा को बता चुकी थी की उसका पति नपुंसक था और तरन एक बाबा का प्रसाद थी जैसे की रमा के तीन बच्चे पर रमा ने तरन से कुछ नहीं कहा क्योंकि अब वो मन बना चुकी थी की चाहे कुछ भी हो जाये वो अपनी चूत की खाज राहुल के लण्ड से ही भुजाये गी । बातें करते हुए 2 कब बज गए दोनों को ही पता नहीं चला था । रमा के तीनों बच्चे शोर मचाते हुए घर में गुस्से।
"ठीक है रमा मैं चलती हूँ पिंकी भी आती ही होगी"
"ठीक है दीदी आज तुमने जो मेरे लिए किया है उसे मैं कभी नहीं भूलूँगी" रमा ने भी नाटक करते हुए कहा ।
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