01-05-2020, 03:56 AM
हम्म, तो दोनों बाते कर रही थी, और मैं चुपचाप खाना खा रही थी, और मैं टेंशन - ए - पैंटी मैं थी. अचानक , सहेली बोली -
सहेली - निहारिका, तू बोलती क्यों नहीं कुछ, अरे कल के फंक्शन के बारे मैं, सुमन भाभी के बारे मैं ,
मैं - हम्म, बड़ी याद आ रही है "सुमन भाभी" की.
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प्रिय सहेलिओं ,
निहारिका का प्यार भरा नमस्कार ,
अब आगे ,
हम्म, मेरा ध्यान खाने मैं नहीं था , उस कमिनी की बातो पर था कही वो बातो - बातो मैं मेरी पैंटी की बात न कह दे. कोई भरोसा नहीं था. और जब माँ या सुमन भाभी के साथ मिल जाती तो उफ़, घंटो बीत जाते, उस दौरान मुझे कम ही साथ बैठते थे , बच्ची जो थी उन सब के लिए.
हाँ , बचपना गया तो नहीं था , पर जवानी आ गयी थी, पूरी। जो एक बार देख ले उसकी नज़र दुबारा पड ही जाती थी, और यही देख कर इतरा कर हंसती और दुपट्टा ठीक कर लेती, जोबन पर.
पर जो आज हुआ , मैं पैंटी उतरने पर मजबूर हो गयी थी , इतना गीला पन वो भी एकदम एक - तार की चाशनी जैसा ऐसा पहेली बार ही हुआ है. हाँ, कुछ तो निकलता था ही , चिकना सा। पैंटी की बीच वाली जगह गीली रहती थी अक्सर।
फिर वो मूवी, मूड्स। और मेरा ध्यान टुटा, और मैं बोली - बड़ी याद आ रही है "सुमन भाभी" की.
मेरी सहेली और मेरी माँ दोनों एक दूसरे को देखने लगे, फिर हंस दिए। और मैं झल्ली कुछ समझ मैं नहीं आ रहा था.
मैं - क्या हुआ , क्यों हंस रही हो दोनों।
माँ - कुछ नहीं, तू खाना खा.
मैं - हम्म, बस हो गया , खा लिया।
सहेली - अब तो तुझे नींद आ रही होगी, हैं न. ऐसा कर तू जा , और जा कर सो. मैं जा रही हूँ सुमन भाभी से मिलने।
माँ - रुक , न। मैं भी चलती हूँ.
मैं - अच्छा जाओ.
मैंने सोचा , अच्छा है, दोनों गए , एक तो मैं पैंटी वहां से हटा दू, और दूसरी पेहेन लेती हूँ, नहीं तो फिर मौका न मिले।
दूसरा अगर यह दोनों अगर सुमन भाभी के साथ बातो मैं लग गए तो मुझे काफी समय मिल जायेगा , वो मूवी देखने का.
यह सोच कर मैं अपने कमरे मैं चल दी, और हल्का दरवाजा बंद कर लिया। अब जोबन और जवानी ढक कर ही रखी जाती हैं न.
मैं मुझे दरवाजा बंद होने की आवाज आयी और दोनों के जाने की भी. फिर भी मैंने उठ कर चेक किया की गयी या नहीं, देखा तो कोई नहीं था. कुछ शांति मिली।
मैं, भागकर गयी बाथरूम मैं अपनी पैंटी लेने , उफ़ कहाँ गयी? यही तो थी.
ओह, साली कमीनी , उसका ही काम है. अब ?
तभी मेरी सहेली वापस आयी, और मैं बस बाथरूम से निकली ही थी, मुझे देखा और हंसने लगी.
मैं - ला दे, मुझे।
सहेली - क्या, दू? मूवी डाल तो दी तेरे मोबाइल मैं, "निहारिका " फोल्डर मैं है.
मैं - जायदा भोली मत बन, जल्दी ला. मुझे धोना भी है.
पैंटी को.
सहेली - फिर तो नहीं मिलेगी।
मैं - तू पागल है क्या , पता है कितनी गीली हैं. कहाँ रखी है. बता।
तब सहेली ने अपनी ब्रा मैं से , मेरी पैंटी निकली और दिखाई।
यह मैं तो तुझे नहीं देती अगर मैं सुमन भाभी के नहीं जा रही होती, और सुमन भाभी ने अगर इसे देख ली होती तो मेरे साथ यहाँ आ जाती और तेरी खैर नहीं थी फिर.
मैं - समझी नहीं।
सहेली - समझ जाएगी। ही, ही,
ले , मेरी पेंटी को खोल कर उसे सूंघते हुए बोली, क्या नशा है, निहारिका तू एटम बम्ब है. बस तुझे नहीं पता.
मैं - पागल, गन्दी, ला, जल्दी दे। पता नहीं क्या कर रही है.
सहेली - साली, सच्ची, पागल तो कर ही दिया है. इस खुशबू ने.
मैंने उसके हाथ से पानी पैंटी ली और सीधा बाथरूम मैं, सहेली जाते हुए बोली -
सहेली ० - जा रही हूँ, अभी दो - चार घंटे लग जायेंगे हमे सुमन भाभी के यहाँ, तू देख लेना "वो"।
मैं - तू जा तो सही, सोचूंगी।
फिर वो हँसते हुए निकल जाती है, दरवाजा बंद करने की आवाज से कुछ शांति मिली, और अब मैंने पैंटी को खोल कर देखा तो सारी चाशनी गायब थी. बस हल्का निशान ही बाकी रह गया था.
अरे , "वो" सब कहाँ गया ? इतनी जल्दी तो नहीं सूखता , ...........
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. एक पहेली -
कोई महिला पाठक बता सकती हैं की क्या हुआ होगा मेरी पैंटी के साथ?
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वैसे सवाल तो बचकाना है, आज के हिसाब से। पर उस समय। ..... एक सवाल था मेरे लिए।
इंतज़ार मैं। ........
आपकी निहारिका
सहेलिओं , पाठिकाओं, पनिहारिनों, आओ कुछ अपनी दिल की बातें करें -
लेडीज - गर्ल्स टॉक - निहारिका