25-04-2020, 08:55 AM
मन भाभी - उफ़, याद मत दिलाओ, साली पिंकी की याद आ गई.
मैं - "पिंकी" भाभी की याद , सुमन भाभी को , क्यों ?
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प्रिय सहेलिओं ,
निहारिका का प्यार भरा नमस्कार ,
अब आगे ,
बेड पर लेटी हुई थी, आँखों मैं नैनंद आ भी रही थी और नहीं भी बार -बार सुमन भाभी की बाते ध्यान मैं आ रही थी मन मैं हलचल थी आज के फंक्शन के बाद , मन मैं काफी सवाल घुमड़ रहे थे , "गोद - भराई", "बच्चा", "पेट" कितना बड़ा था, कैसे संभल लेती है औरत, उफ़, क्या मेरा भी इतना बड़ा होगा ? उफ़, बाप रे. और अगर बच्चा हुआ तो वो कैसे होता हैं. और यह नासपीटा "मूड्स", वो पिंकी भाभी कह रही थी की आज बिना मूड्स के , पर क्या करेंगी और उनकी पति मूड्स का क्या करते हैं. पिताजी ने भी कल "कुछ" किया था माँ के साथ , पर क्या ? क्या किया होगा ? फिर माँ ने "मूड्स" का पैकेट भी हटा दिया वहां से। और सुमन भाभी कह रही थी , जवान कच्ची - कली पर सारे ज़माने की नज़र होती है. औरतो की भी , "खास - काम " के लिए.
अब यह कौन सा खास काम होता यही औरतो और लड़कियों के बीच ? फिर मैंने टेबल लैंम्प जलाया और देखा अपने हाथो को जिनपे खूबसूरत मेहँदी रची थी, हाय ! कितनी सुन्दर है , कुछ देर तक उसे ही देखती रही. यु तो मेहँदी लगवाई थी मैंने काफी बार, पर यु ही की सब लगवा रही है तो मैं भी, पर आज कुछ अच्छा और अजीब लग रहा था.
गोरे हाथो मैं लाल- लाल मेहँदी की डिज़ाइन , उफ़ कुछ - कुछ दुल्हन वाली फीलिंग आ रही थी आज, "सच्ची" पर दुल्हन के साथ आगे "क्या" होता है इसका पूरा पता नहीं था.
शादी मैं जाना, हसना - खेला , मस्त , नाच -गाना , खाना पीना और थोड़ी छेड - छाड़ जिसमे मैं सीधा शामिल नहीं होती थी, पर देखा था की औरते कैसे "गन्दी" वाली बाट करती हैं एक रूम मैं इकठ्ठा होकर, कुछ आता था समझ मैं और कुछ नहीं।
अब, पूछो भी तो किस- से ? बस सुनते रहो और स्माइल देते रहो. और आ जाओ घर. फिर दो - चार महीने के बाद जिसकी शादी मैं गए थे वह से खबर मिलती की, "मेहमान" आने वाला है. पर "कैसे", कोई डिटेल "अंदर" वाली पता न थी.
फिर जाओ माँ के साथ रिश्तेदारी मैं, बधाई दे आओ, मैंने कई बार देखा है, शुरू मैं "पेट" नार्मल ही होता है पर कुछ महीने के बाद, आज वाली भाभी के जैसा हूँ जाता है, फिर बच्चा होने के बाद फिर पहले जैसा , जैसे कुछ हुआ ही न हो.
फिर मैंने, टेबल लैंप बंद किया , और कोशिश करने लगी सोने की, आँख बंद करते ही, सुमन भाभी और "मूड्स" फिर आखो के सामने थे. पता नहीं कब आँख लग गयी, जो सुबह माँ की आवाज के साथ ही खुली।
माँ - निहारिका , उठ, आज फिर लेट हो जाएगी।
मैं - हाँ, माँ आयी.
फिर उठ कर गयी बाथरूम मैं, दरवाजा बंद किया , आज टॉवल , ब्रा - पैंटी, कुर्ती - सलवार सब ले लिया था, कल का सबक याद था.
कपडे टाँगे, और टी- शर्ट उतारी , पिंक ब्रा मैं ऊठे हुए जोबन देखकर शर्म सी आ गयी , हाथ लगाया जोबन पर बा के ऊपर से तो हाथो मैं रची मेहँदी नजर आयी. हाय कितने सुन्दर लग रहे थे मेरे हाथ कोहनी तक मेहँदी लगी थी, शायद मेरे ही लगायी थी उसने कोहनी तक , दूसरी औरतो के तो बस हथेली पर ही लगायी थी कल मेरा ध्यान ही नहीं गया.
फिर, ब्रा का हुक खोला कंधे से ब्रा के स्ट्रैप्स उतार के और निकल के रख दी साइड मैं, दोनो जोबन जब मेरे मेहँदी वाले हाथ मैं दोबारा आये तो "सच्ची" क्या बताऊ उफ़, एक अलग ही दुनिया मैं जा पहुन्ची , मेहँदी भरे हाथ और बीच मैं इतराते हुए जोबन, और कड़क निप्पल। कुछ देर अपनी आँखे सेकने के बाद ध्यान आया , निहारिका तू कुछ करे आयी है बाथरूम मैं, ऐसी ही खड़े रहना है ?
फिर पैंटी और सलवार उतरे , बैठ गयी सीट पर "सु -सु " करने अपने हाथो को देखती हुई तभी "सीटी" की आवाज से ध्यान आया की फ्लश चलना है. मैं हंसी और चला दिया फ्लश।
फिर नाहा - धो कर बदन सुखाया और टॉवल सर पर लपेटा ताकि गीले बाल कुछ सुख जाए , ब्रा पहनी सफ़ेद वाली थी जिसमे पिंक फ्लावर थे और ब्रा के स्ट्रैप्स कफी पतले थे दूसरी ब्रा के मुकाबले। फिर मैंने ब्लैक पेंटी पहनी, अक्सर हम लड़कियाँ - औरते गहरे कलर की पेंटी ही इस्तेमाल करते हैं. पता नहीं कभी हिम्मत ही नहीं हुई, की कहले कलर या सफ़ेद कलर की पेंटी खरीद लू. बस नीला, काला, डीप हरा, बैंगनी और हो गया सिलेक्शन, हाँ ब्रा के मामले मैं कलर देखे जाते हैं, ब्लाउज या कुर्ती के मैचिंग के साथ।
पर लोगो की नज़र "नाज़रे" देख ही लेती हैं.
नाहा कर रूम मैं आयी , बाल सुखाये और आँखों मैं कालेज लगाया , मैरून ग्लॉसी लिपस्टिक लगायी, मेरा और लिपस्टिक का ग़हरा नाता रहा है, घर मैं भी मैं बिना लिपस्टिक के नहीं रहती आज भी, वो बात अलग है की, कई बार दुबारा लगनी पड़ जाती है. मेहेरबानी "पतिदेव" की. पर लिपस्टिक की कीमत वसूल हो जाती है, और फिर लानी भी तो उन्हे ही हैं.
गयी माँ के पास, माँ तैयार थी नास्ते के साथ, मेरे हाथो मैं मेहंदी देख कर बोली , वाह किती रची है तेरे हाथो मैं, सुन्दर लग रही है, दुल्हन के जैसे।
मैं , शर्म से लाल, आँखे नीचे खाने की थाली पर , क्या खा रही थी उसका भी पता नहीं, बस खा लिया और उठ गयी हाथ धोने के लिए, हाथ धोते हुए फिर , मेहँदी दिख गयी. उफ़ क्या हो रहा है मुझे, निप्पल एकदम से खड़े हो गए थे, वो तो अच्छा था की, जोबन पर दुप्पट्टा ओढ़ रखा था, नहीं तो कुर्ती से सीधा दिख रहे थे।
निकलो यहाँ से, जल्दी।
अच्छा माँ, जाती हूँ. - मैं निकलते हुए बोली।
माँ - अच्छा, ठीक है, ध्यान रखना।
मैंने गेट बंद किया, बाहर का, एक बार फिर दुपट्टा ठीक किया , जो मैं अक्सर करती हूँ, घर से निकलते हुए आज भी, "जमाना" ख़राब है जी.
स्कूटी उठाई, उफ़, पंचर , लो हो गया बंटाधार। अब जाओ कॉलेज , "मूड्स" का क्या होगा। नहीं - नहीं आज बस मैं ही चलते हैं , माँ को बाहर से ही बोला माँ, यह पंचर हो गयी है , मैं बस से जा रही हूँ.
माँ - अच्छा , ठीक है, मैं बनवा दूगी, किसी से कह के, तू जा.
मैं - ठीक है माँ.
फिर मन तेज़ी से चलती हुई, बस स्टॉप की तफर की और आने लगी, गली के बाहर वो ही मेडिकल दिखाई दिया , वहां फिर कुछ लड़के खड़े दिखे, पर हिम्मत नहीं हुई, जायदा देखने की, कंधो पे दुपट्टा संभाला और आगे चल दी.
कुछ देर में बस स्टॉप पर आ गयी, हल्का पसीना आ गया था, माथे पर और गर्दन पर , रुकी दुपट्टे के पल्लू से पोंछा कुछ आराम मिला , स्कूटी को भी आज ही पंचर होना था. साली वो कामिनी कब की कॉलेज पहुँच गयी होगी, मैं फिर लेट एक - दो क्लास निकल ही जायेगी, जब तक कालेज पहुंचूंगी।
एक बस आयी, लगभग भारी हुई थी, कुछ लोग चढ़ गए कोशिश कर के , में रह गयी की दूसरी आती होगी। कम लोग ही रह गए थे अब. बस के लिए। इतने मैं दूर से बस आती दिखाई दी, फिर मैंने आस - पास देखा की कितने लोग हैं, जाने के लिए, पांच - सात ही थे मुझे मिला के। हो जायेगा काम , बस का अब। इतने मैं एक औरत आयी, जिसका पेट निकला हुआ था, पर कल वाली के जैसा नहीं, कुछ काम ही था, सीधे पल्ले की साड़ी मैं अच्छे से ढँक रखा था, फिर भी दिखाई दे रहा था, मैंने उसे देखा, उसने मुझे फिर एक हलकी स्माइल दी उसने, फिर अपने पेट को देखा। फिर आती हुई बस को देखने लगी.
मुझे लगा , की पूछ लू, की इसी बस मैं जाना है, इस से पहले पूछ पाती, वो बोली, बेहेन एक काम कर दोगी मेरा ?
मैं - हाँ , जी बिलकुल।
औरत - मैं हॉस्पिटल जा रही हूँ चेकउप के लिए छठा महीना है, बस मैं चढ़ने मैं थोड़ी हेल्प करवा दो अब मर्दो को क्या बोलो।।
मैं - हाँ , क्यों नहीं, एक औरत ही दूसरी औरत के काम आती हैं, आप चिंता न करे.
इतने मैं बस रुकी, बस वाले को बोलै मैंने, भइया , जरा आने दो। जगह करो पलीज.
बस वाला - आइए मैडम, कहाँ हॉस्पिटल जाना है, अंदर आइए उसने एक सीट खली करवा दी, कुछ बच्चे थे शायद कॉलेज वाले।
हम दोनों सीट पर बैठ गयी, हॉस्पिटल मेरे कॉलेज के रास्ते मैं ही आता था , कुछ दूर पहले। मैंने उस से कहा, मैं आपके साथ हूँ, मेरी कॉलेज हॉस्पिटल के बाढ़ि आता हैं कुछ काम हो तो बता देना।
उसने कहा, बड़ी मेरबानी आपकी , इन दिनों मैं काफी समस्या हो जाती हैं, औरतो के साथ.
अब मेरा दीमाग चकरा गया, समस्या , कल तो खूब मस्ती कर के आयी हूँ, वहां तो कुछ नहीं था ऐसा ?
फिर वो बोली, अभी छठा चल रहा रहा है न , आठवे तक कुछ आराम आ जाये गा. तुम्हारी शादी की बात चल रही होगी , मेरे जोबन को देखती हुई बोली, उम्र हो गयी अब तो. कर लो.
मैं, शर्मा के, हम्म।
फिर सोचा इस से ही पूछ लेती हूँ की बच्चा कैसे आता है, कैसे होता है. हिम्मत नहीं हो रही थी, बस गाल लाल और पसीना।
वो बोली - आरी क्यों शर्म कर रही है, लड़कियों को शादी करनी ही है, और फिर बच्चा। ......
मैं - बच्चा , यह ही तो मालूम करना ही, पर पुछु कैसे , इसी उधेड़बुन मैं आगया हॉस्पिटल, वो बोली,
अच्छा अब मैं चली हूँ , सुन्दर हो , जवान हो जल्दी कर लेना शादी, औरत पूरी हो जाती है बच्चे के बाद..
मैं - जी, [ और क्या बोलती]
वो उठी , मैंने उसे सहारा दिया उठने मैं, मेरा हाथ उसके पेट से जा लगा, उसने मुझे देखा और हलकी सी स्माइल दी, फिर धीरे से बोली, मैं लड़की चाहती हूँ, पता नहीं क्या होगा, तुम जैसे सुन्दर लड़की।
मैं - शर्म से लाल , कुछ न बोल पायी, फिर वो धीरे से बस मैं से उतर गयी, और मुझे देखती रही, जब तक बस न चल दी. और मैं भी उसे। ..........
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इंतज़ार मैं। ........
आपकी निहारिका
सहेलिओं , पाठिकाओं, पनिहारिनों, आओ कुछ अपनी दिल की बातें करें -
लेडीज - गर्ल्स टॉक - निहारिका