25-04-2020, 01:47 AM
अध्याय 28
दोनों वहाँ से बलटाणा के पास उस होटल में पहुंचे जहां राणाआरपीसिंह सिंडीकेट की बोर्ड मीटिंग हो रही थी... लेकिन उस मीटिंग में एंट्री पास चाहिए था जो उन दोनों के पास नहीं था। तो ऋतु ने उस मीटिंग के आयोजक से मिलवाने का आग्रह किया... साधारणतः ऐसा नहीं होता की किसी बाहरी व्यक्ति को वो अपने मेहमान से मिलवाने के लिए ज्यादा इच्छुक हों ... लेकिन ऋतु ने उन्हें अपना एडवोकेट होना बताया तो वो थोड़ा दवाब में आए और आयोजक को बुलवाया... ऋतु का विजिटिंग कार्ड लिए हुये एक युवक बाहर आया और उसने रिसिप्शन पर आकार पूंछा कि एडवोकेट ऋतु सिंह कौन हैं... तो ऋतु सोफ़े से उठ खड़ी हुई और उसे बताया तो उस युवक ने ऋतु के पैर छूए और बोला
“बुआ जी! क्षमा चाहता हूँ... आपका मोबाइल नंबर मेरे पास नहीं था और आपके घर सूचना देना चाहता नहीं था.... मेरा नाम भानु प्रताप सिंह है... आपके सबसे बड़े भाई राणा रविन्द्र प्रताप सिंह का बेटा... आइए आप मेरे साथ चलिये” इतना कहकर वो ऋतु को साथ आने का इशारा करके अंदर की ओर पलटा ऋतु अवाक सी उसके पीछे-पीछे चल दी और पवन भी... अंदर जाकर उसने ऋतु और पवन को सामने सोफ़े पर बैठने का इशारा किया... वहाँ दूसरे सोफ़े पर पहले से भी एक व्यक्ति बैठा हुआ था... भानु ने ऋतु के बराबर में बैठते हुये बताया कि आज की मीटिंग में कोई ज्यादा लोग नहीं बुलाये गए हैं.... सिर्फ टॉप मैनेजमेंट के लोग मिलकर फैसला लेंगे और सर्क्युलर भेजकर बाकी शेयरहोल्डर्स की सहमति ले ली जाएगी... साथ ही वहाँ पहले से बैठे व्यक्ति का परिचय कराया...नाम रणवीर सत्यम और कंपनी के सीईओ हैं.....
ऋतु ने बैठकर उस हॉल में नज़र घुमाई तो कोई फॉर्मल मीटिंग जैसी व्यवस्था नहीं थी.... हाल में 4 सोफ़े पड़े हुये थे 4 सीटर और उनके सामने 4 सेंटर टेबल्स फिर उसने प्रश्नवाचक रूप से भानु की ओर देखा
“अभी तक कोई नहीं आया... या मीटिंग खत्म हो गयी”
“जी! अभी तक मीटिंग शुरू भी नहीं हुई है... वैसे आप चंडीगढ़ कब आयीं... आप कंपनी की वैबसाइट से किसी का भी नंबर लेकर कॉल कर देतीं तो आपको वहाँ से ही ले लिया होता...वैसे आप को इकी सूचना कहाँ से मिली” भानु ने वेटर के लाये हुये ड्रिंक्स और स्नैक्स को लेने का इशारा करते हुये कहा
“ये सब छोड़ो...बस आ गयी ना... ये बताओ कि आज मीटिंग में अपने परिवार से कौन-कौन आ रहा है” ऋतु ने व्यग्रता से कहा
“परिवार के ज़्यादातर लोग.... और उनमें से कम से कम 1 को तो आप अच्छी तरह जानती हैं” भानु ने रहस्यमयी तरीके से कहा
“कौन? कहीं पापा तो नहीं.... क्योंकि कल वो भी दिल्ली से बाहर गए थे...” ऋतु ने कहना चाहा तो
“नहीं.... उनमें इतनी हिम्मत नहीं कि वो यहाँ परिवार का सामना कर सकें.... हम लोगों के साथ जैसा उन्होने व्यवहार किया...उसकी ग्लानि ही उन्हें हमसे मिलने से रोक देती है..... बलराज बाबा, मोहिनी अम्मा या रागिनी बुआ के अलावा हैं... जिन्हें आप बहुत अच्छी तरह जानती हैं” भानु ने कहा तो ऋतु ने चोंकते हुये उसे देखा
“अभी 15 मिनट रुकिए.... बस 15 मिनट” भानु ने फिर बताया
“ठीक है! …. अच्छा रवि भैया... वो भी आएंगे मीटिंग में” ऋतु ने उत्सुकता से कहा
“नहीं बुआ जी! पिताजी तो गाँव से ही पहले दिल्ली चले आए यहाँ ये सबकुछ तैयार किया .... और फिर कहीं और चले गए….. वहीं रहते हैं.... यहाँ कभी नहीं आते... बस कभी-कभी कोई जरूरी संदेश आ जाता है” भानु ने दुख भरे स्वर में कहा और उसकी आँखों में आँसू छलक आए ये देखकर ऋतु से रहा नहीं गया तो उसने भानु के बालों पर हाथ फिराते हुये उसकी आँखों में झाँका
“ऋतु जी! में राणा जी का बहुत पुराना मित्र हूँ....... उनके बारे में मेरे अलावा किसी को जानकारी नहीं है.... सिर्फ में ही उनके संपर्क में हूँ.... और मुझे लगता है कि अब उनके इस अज्ञातवास से वापस लौटने का समय आ गया है.... तो कोशिश करूंगा कि उन्हें घर वापसी के लिए मना सकूँ” अब तक चुपचाप बैठकर इस सब को देख रहे रणवीर सत्यम ने अचानक कहा तो ऋतु ने उसकी ओर देखा
“बस आप सबसे एक ही प्रार्थना है.... कि .... जो कुछ जैसा आपके सामने आ रहा है, चल रहा है उसको वैसा ही स्वीकार करें... और सभी सवालों के जवाब के लिए राणा जी के संदेश या उनके स्वयं आप सभी से मिलने का इंतज़ार करें। क्योंकि ज्यादा कुरेदने से इन सब के घाव भी हरे हो जाएंगे.... सिवाय दुख और दर्द के और कुछ भी नहीं मिलेगा किसी को.... बस कुछ दिन का समय दें मुझे” रणवीर ने आगे कहा तो ऋतु ने सहमति में सिर हिलाया
तभी भानु के मोबाइल पर कॉल आया तो वो उस कॉन्फ्रेंस रूम से बाहर चला गया और थोड़ी देर बाद भानु वहाँ एक 18-19 साल की लड़की व एक 40-42 साल की औरत के साथ अंदर आया तो रणवीर सत्यम भी उठकर खड़े हो गए और उस औरत को नमस्ते करने लगे.... लेकिन ऋतु को सबसे ज्यादा आश्चर्य तब हुआ जब पावन उन्हें देखते ही उठकर खड़ा हुआ और हाथ जोड़कर नमस्ते करने लगा... पावन और उनकी नजर आपस में मिली तो दोनों एक दूसरे को देखकर ऐसे मुस्कुराए जैसे पुरानी पहचान हो.... उस लड़की ने भी सबको हाथ जोड़कर नमस्ते किया। वो चलकर सीधे ऋतु के पास आयी और उसे अपने सीने से लगा लिया
“कैसी हो ऋतु... मुझे तो पहचनती भी नहीं होगी... छोटी सी थी जब मेंने देखी थी... और पवन तुम कैसे हो? घर पर सब ठीक तो हैं” उन्होने कहा तो ऋतु को और भी आश्चर्य हुआ।
“बस आपका और भैया का आशीर्वाद है... मम्मी-पापा सब ठीक-ठाक हैं....आपसे मिलने की उम्मीद नहीं थी... में तो यही सोचकर आया था कि शायद यहाँ से आप लोगों के बारे में कुछ पता चलेगा” पवन ने मुसकुराते हुये कहा अब ऋतु पर रुका नहीं गया
“पवन तुम इन्हें जानते हो....? कैसे?” ऋतु ने पवन से पूंछा
“बुआ ये मेरी मम्मी हैं और ये मेरी बहन है वैदेही.... पवन चाचा जी को मेंने बचपन में देखा था... अब तो लगभग 8-9 साल से देखा ही नहीं तो पहचान भी नहीं पाया... लेकिन मम्मी तो जानती ही हैं.... वैसे चाचा जी अपने तो मुझे पापा के नाम से पहचान ही लिया होगा फिर अपने क्यों नहीं बताया?” भानु ने कहा
“बेटा में चाहता था कि कोई ऐसा मिले जो मुझे जानता भी हो तो उनसे बात करता पहले, वरना तो जाने से पहले तुमसे भैया-भाभी के बारे में जरूर पूंछता” पवन ने भानु से कहा
“एक मिनट... अब तुम मुझे ही नजरंदाज करने लगे। मेंने पूंछा कि तुम भाभी को कैसे जानते हो.... और भाभी! ये बताओ में आपको कैसे जानती जब आप कभी मिली ही नहीं मुझे इतने सालों से?” ऋतु ने कहा
“बेटा जब मोहिनी चाची ने ही हमसे मिलना नहीं चाहा तो कैसे मिलती में?” वो औरत यानि भानु की माँ सुशीला ने कहा
“और मेम! मेंने आपको बताया था न.... उन भैया के बारे में... जिनकी वजह से में आज इस कामयाबी को हासिल कर पाया हूँ.... वो राणा भैया हैं......... राणा रविन्द्र प्रताप सिंह......... उस दिन विक्रम भैया की वसीयत में उनका नाम देखने से पहले ही में जानता था कि इस सारे परिवार और इस सारी संपत्ति के मुखिया राणा भैया ही हैं......... इसीलिए उस दिन में आपको रीटेल स्वराज के ऑफिस में लेकर गया था.......... मुझे अभय सर के यहाँ इंटर्नशिप के लिए राणा भैया के कहने पर ही विक्रम भैया ने भेजा था....” पवन ने मुसकुराते हुये कहा
“इसका मतलब ये सब सोची समझी योजना थी.... वो काव्या जिसने मुझे फोन करके बोर्ड मीटिंग के बारे में बताया.....” ऋतु ने गुस्से में पवन से कहा
“नहीं...नहीं... वो तो उसे खासतौर पर इसलिए ही बताया गया ..... क्योंकि तुम अभी कल ही उससे मिली और तुरंत ही तुम्हें डाइरेक्टर बनाया जा रहा....तो वो तुमसे बात जरूर करती..... हाँ... बात अगर पुरानी हो गयी होती तो शायद ऐसा वो भूल भी जाती... इसलिए ये किया” पवन ने मुसकुराते हुये कहा
“चलो भाभी जी... अब सारी बातें खत्म करो और ये रहे सारे बोर्ड प्रस्ताव, मेंने सभी पर साइन कर दिये हैं.... आप इन्हें ले जाओ और जब सबके हस्ताक्षर हो जाएँ तो मुझे दिल्ली भिजवा देना.... और इन दोनों को घर ले जाकर असली सर्प्राइज़ तो दो....” रणवीर ने मुसकुराते हुए सुशीला सिंह से कहा
“तो तुम भी चलो... फिर हमारे साथ ही दिल्ली निकल जाना” सुशीला ने कहा
“नहीं भाभी जी आप तो जानती हैं...... कल से आया हुआ हूँ... अब जाकर कंपनी और घर दोनों के हालचाल देखता हूँ.... फिर आपको तो दिल्ली आना ही है.... तब आप सबसे और दिल्ली वालों से भी मुलाक़ात करूंगा...फुर्सत से” कहते हुये रणवीर ने सभी कागज भानु को दिये और वहाँ से निकल गया
“चलो बुआ अब घर चलते हैं...” वैदेही ने ऋतु का हाथ पकड़ते हुये कहा
“हाँ चलो” कहते हुये ऋतु ने गुस्से से पवन को घूरकर देखा तो वो फिर से मुस्कुरा गया
................................
“अब ये बताओ भाभी... आपने ये मीटिंग यहाँ होटल में क्यों रखी....क्योंकि यहाँ और तो कोई आया नहीं.... हमें अप घर ले जा रही हो और वो जो सीईओ रणवीर सत्यम हैं.... उन्हें भी घर चलने को बोला था आपने?” ऋतु ने रास्ते में सुशीला से सवाल किया
“इसकी 2 वजह थीं... पहली तो ये कि में तुम्हें मिलना चाहती थी..... लेकिन घर पर कोई सर्प्राइज़ है तुम्हारे लिए... सीधा वहीं बुला लेती तो तुम उस सर्प्राइज़ में ही खो जाती फिर हम एक दूसरे को इतना जान नहीं पाते... और दूसरा ये होटल हमारे नए मैनिजिंग डाइरेक्टर रणविजय सिंह का है........... तो इसमें कोई तैयारी तो करनी नहीं थी….. वो कॉन्फ्रेंस रूम असल में हमारे टॉप मैनेजमेंट का कैंप ऑफिस है चंडीगढ़ में.... इसीलिए उसमें बिना हमारी अनुमति के होटल का स्टाफ भी नहीं आता” सुशीला ने मुसकुराते हुये कहा
“ऐसा क्या सर्प्राइज़ है…. अब बता भी दीजिये भाभी” ऋतु ने भी मुसकुराते हुये कहा
“ये लो आ गए..... अब खुद ही देख लेना” मोतिया हाइट्स कॉम्प्लेक्स में गाड़ी अंदर मुड़ते ही सुशीला ने कहा
“इसका मतलब बेकार में वहाँ तक दौड़ना पड़ा.... हम यहीं तो उतरे थे बस से... पहले ही बता दिया होता की अप यहीं रहती हैं तो हम तो पैदल ही घर आ जाते” ऋतु ने गुस्से भरी नजरों से पावन को देखते हुये सुशीला से कहा
इस पर सुशीला नौर पावन दोनों एक दूसरे की ओर देखकर हंस दिये
गाड़ी अंदर जाकर आखिरी बिल्डिंग के सामने रुकी और सभी उतरकर भानु के पीछे-पीछे चल दिये। वहाँ लिफ्ट देखकर ऋतु ने लिफ्ट की ओर कदम बढ़ाए तो सुशीला ने सीढ़ियों की तरफ इशारा किया। ऋतु ने एक बार उस 15 मंज़िला बिल्डिंग के ऊपर की ओर देखा और गहरी सांस लेकर उनके पीछे चल दी। पहली मंजिल पर ही सीडियों से ऊपर आते ही भानु ने बैन तरफ के फ्लॅट की घंटी बजाई तो एक ऋतु की उम्र की ही लड़की ने दरवाजा खोला और उन सबको मुस्कुराकर देखने लगी तो सुशीला ने उसे ऋतु की ओर इशारा किया... उसने आगे बढ़कर ऋतु के पैर छूए
“दीदी नमस्ते”
“ये धीरेंद्र की पत्नी है निशा.... तुम्हारी छोटी भाभी.... तभी रसोईघर से एक बहुत सुंदर औरत सलवार उरते में दुपट्टे से अपना पसीना पोंछते हुये निकली
“भाभी जी नमस्ते” पवन ने आगे बढ़कर उस औरत के पैर छूए
“आ गया तू.... अब तुझे फुर्सत कहाँ मिलती होगी” कहते हुये वो औरत आगे आयी और आकार उसने ऋतु के पैर छूए
“ऋतु बेटा तुम तो कभी मिली ही नहीं.... चलो आज सुशीला दीदी की वजह से तुमसे भी मुलाक़ात हो गयी” कहते हुये उसने ऋतु को गले लगा लिया
“मेरी वजह से या तुम्हारी वजह से.... तुमने और पवन ने ही ये सारा खेल रचा है... और में तो किशनगंज जाकर इनसे मिलने वाली थी लेकिन तुमने उल्टे दिल्ली से न सिर्फ इन्हें बल्कि मुझे भी यहाँ बुला लिया.....ऋतु बेटा.... ये तुम्हारी छोटी भाभियों में सबसे बड़ी हैं.... यानि मुझसे छोटी.... नीलम.... रणविजय भैया की पत्नी”
“भाभी जी नमस्ते” ऋतु ने उलझे से स्वर में कहा
“अब चलो अंदर तो आ जाओ....” नीलम ने कहा तो ऋतु ने उलझे से अंदाज में ड्राइंग रूम में नजर घुमई जैसे कहना छह रही हो कि अभी और कितना अंदर जाना है... घर में तो आ ही गए
पवन ने तबतक सामने के कमरे का दरवाजा खोला और उसमें घुस गया नीलम भी उसके पीछे ऋतु का हाथ पकड़े कमरे में घुसी
“भैया........आप?” सामने बैठे व्यक्ति को देखते ही ऋतु के मुंह से निकला
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दोनों वहाँ से बलटाणा के पास उस होटल में पहुंचे जहां राणाआरपीसिंह सिंडीकेट की बोर्ड मीटिंग हो रही थी... लेकिन उस मीटिंग में एंट्री पास चाहिए था जो उन दोनों के पास नहीं था। तो ऋतु ने उस मीटिंग के आयोजक से मिलवाने का आग्रह किया... साधारणतः ऐसा नहीं होता की किसी बाहरी व्यक्ति को वो अपने मेहमान से मिलवाने के लिए ज्यादा इच्छुक हों ... लेकिन ऋतु ने उन्हें अपना एडवोकेट होना बताया तो वो थोड़ा दवाब में आए और आयोजक को बुलवाया... ऋतु का विजिटिंग कार्ड लिए हुये एक युवक बाहर आया और उसने रिसिप्शन पर आकार पूंछा कि एडवोकेट ऋतु सिंह कौन हैं... तो ऋतु सोफ़े से उठ खड़ी हुई और उसे बताया तो उस युवक ने ऋतु के पैर छूए और बोला
“बुआ जी! क्षमा चाहता हूँ... आपका मोबाइल नंबर मेरे पास नहीं था और आपके घर सूचना देना चाहता नहीं था.... मेरा नाम भानु प्रताप सिंह है... आपके सबसे बड़े भाई राणा रविन्द्र प्रताप सिंह का बेटा... आइए आप मेरे साथ चलिये” इतना कहकर वो ऋतु को साथ आने का इशारा करके अंदर की ओर पलटा ऋतु अवाक सी उसके पीछे-पीछे चल दी और पवन भी... अंदर जाकर उसने ऋतु और पवन को सामने सोफ़े पर बैठने का इशारा किया... वहाँ दूसरे सोफ़े पर पहले से भी एक व्यक्ति बैठा हुआ था... भानु ने ऋतु के बराबर में बैठते हुये बताया कि आज की मीटिंग में कोई ज्यादा लोग नहीं बुलाये गए हैं.... सिर्फ टॉप मैनेजमेंट के लोग मिलकर फैसला लेंगे और सर्क्युलर भेजकर बाकी शेयरहोल्डर्स की सहमति ले ली जाएगी... साथ ही वहाँ पहले से बैठे व्यक्ति का परिचय कराया...नाम रणवीर सत्यम और कंपनी के सीईओ हैं.....
ऋतु ने बैठकर उस हॉल में नज़र घुमाई तो कोई फॉर्मल मीटिंग जैसी व्यवस्था नहीं थी.... हाल में 4 सोफ़े पड़े हुये थे 4 सीटर और उनके सामने 4 सेंटर टेबल्स फिर उसने प्रश्नवाचक रूप से भानु की ओर देखा
“अभी तक कोई नहीं आया... या मीटिंग खत्म हो गयी”
“जी! अभी तक मीटिंग शुरू भी नहीं हुई है... वैसे आप चंडीगढ़ कब आयीं... आप कंपनी की वैबसाइट से किसी का भी नंबर लेकर कॉल कर देतीं तो आपको वहाँ से ही ले लिया होता...वैसे आप को इकी सूचना कहाँ से मिली” भानु ने वेटर के लाये हुये ड्रिंक्स और स्नैक्स को लेने का इशारा करते हुये कहा
“ये सब छोड़ो...बस आ गयी ना... ये बताओ कि आज मीटिंग में अपने परिवार से कौन-कौन आ रहा है” ऋतु ने व्यग्रता से कहा
“परिवार के ज़्यादातर लोग.... और उनमें से कम से कम 1 को तो आप अच्छी तरह जानती हैं” भानु ने रहस्यमयी तरीके से कहा
“कौन? कहीं पापा तो नहीं.... क्योंकि कल वो भी दिल्ली से बाहर गए थे...” ऋतु ने कहना चाहा तो
“नहीं.... उनमें इतनी हिम्मत नहीं कि वो यहाँ परिवार का सामना कर सकें.... हम लोगों के साथ जैसा उन्होने व्यवहार किया...उसकी ग्लानि ही उन्हें हमसे मिलने से रोक देती है..... बलराज बाबा, मोहिनी अम्मा या रागिनी बुआ के अलावा हैं... जिन्हें आप बहुत अच्छी तरह जानती हैं” भानु ने कहा तो ऋतु ने चोंकते हुये उसे देखा
“अभी 15 मिनट रुकिए.... बस 15 मिनट” भानु ने फिर बताया
“ठीक है! …. अच्छा रवि भैया... वो भी आएंगे मीटिंग में” ऋतु ने उत्सुकता से कहा
“नहीं बुआ जी! पिताजी तो गाँव से ही पहले दिल्ली चले आए यहाँ ये सबकुछ तैयार किया .... और फिर कहीं और चले गए….. वहीं रहते हैं.... यहाँ कभी नहीं आते... बस कभी-कभी कोई जरूरी संदेश आ जाता है” भानु ने दुख भरे स्वर में कहा और उसकी आँखों में आँसू छलक आए ये देखकर ऋतु से रहा नहीं गया तो उसने भानु के बालों पर हाथ फिराते हुये उसकी आँखों में झाँका
“ऋतु जी! में राणा जी का बहुत पुराना मित्र हूँ....... उनके बारे में मेरे अलावा किसी को जानकारी नहीं है.... सिर्फ में ही उनके संपर्क में हूँ.... और मुझे लगता है कि अब उनके इस अज्ञातवास से वापस लौटने का समय आ गया है.... तो कोशिश करूंगा कि उन्हें घर वापसी के लिए मना सकूँ” अब तक चुपचाप बैठकर इस सब को देख रहे रणवीर सत्यम ने अचानक कहा तो ऋतु ने उसकी ओर देखा
“बस आप सबसे एक ही प्रार्थना है.... कि .... जो कुछ जैसा आपके सामने आ रहा है, चल रहा है उसको वैसा ही स्वीकार करें... और सभी सवालों के जवाब के लिए राणा जी के संदेश या उनके स्वयं आप सभी से मिलने का इंतज़ार करें। क्योंकि ज्यादा कुरेदने से इन सब के घाव भी हरे हो जाएंगे.... सिवाय दुख और दर्द के और कुछ भी नहीं मिलेगा किसी को.... बस कुछ दिन का समय दें मुझे” रणवीर ने आगे कहा तो ऋतु ने सहमति में सिर हिलाया
तभी भानु के मोबाइल पर कॉल आया तो वो उस कॉन्फ्रेंस रूम से बाहर चला गया और थोड़ी देर बाद भानु वहाँ एक 18-19 साल की लड़की व एक 40-42 साल की औरत के साथ अंदर आया तो रणवीर सत्यम भी उठकर खड़े हो गए और उस औरत को नमस्ते करने लगे.... लेकिन ऋतु को सबसे ज्यादा आश्चर्य तब हुआ जब पावन उन्हें देखते ही उठकर खड़ा हुआ और हाथ जोड़कर नमस्ते करने लगा... पावन और उनकी नजर आपस में मिली तो दोनों एक दूसरे को देखकर ऐसे मुस्कुराए जैसे पुरानी पहचान हो.... उस लड़की ने भी सबको हाथ जोड़कर नमस्ते किया। वो चलकर सीधे ऋतु के पास आयी और उसे अपने सीने से लगा लिया
“कैसी हो ऋतु... मुझे तो पहचनती भी नहीं होगी... छोटी सी थी जब मेंने देखी थी... और पवन तुम कैसे हो? घर पर सब ठीक तो हैं” उन्होने कहा तो ऋतु को और भी आश्चर्य हुआ।
“बस आपका और भैया का आशीर्वाद है... मम्मी-पापा सब ठीक-ठाक हैं....आपसे मिलने की उम्मीद नहीं थी... में तो यही सोचकर आया था कि शायद यहाँ से आप लोगों के बारे में कुछ पता चलेगा” पवन ने मुसकुराते हुये कहा अब ऋतु पर रुका नहीं गया
“पवन तुम इन्हें जानते हो....? कैसे?” ऋतु ने पवन से पूंछा
“बुआ ये मेरी मम्मी हैं और ये मेरी बहन है वैदेही.... पवन चाचा जी को मेंने बचपन में देखा था... अब तो लगभग 8-9 साल से देखा ही नहीं तो पहचान भी नहीं पाया... लेकिन मम्मी तो जानती ही हैं.... वैसे चाचा जी अपने तो मुझे पापा के नाम से पहचान ही लिया होगा फिर अपने क्यों नहीं बताया?” भानु ने कहा
“बेटा में चाहता था कि कोई ऐसा मिले जो मुझे जानता भी हो तो उनसे बात करता पहले, वरना तो जाने से पहले तुमसे भैया-भाभी के बारे में जरूर पूंछता” पवन ने भानु से कहा
“एक मिनट... अब तुम मुझे ही नजरंदाज करने लगे। मेंने पूंछा कि तुम भाभी को कैसे जानते हो.... और भाभी! ये बताओ में आपको कैसे जानती जब आप कभी मिली ही नहीं मुझे इतने सालों से?” ऋतु ने कहा
“बेटा जब मोहिनी चाची ने ही हमसे मिलना नहीं चाहा तो कैसे मिलती में?” वो औरत यानि भानु की माँ सुशीला ने कहा
“और मेम! मेंने आपको बताया था न.... उन भैया के बारे में... जिनकी वजह से में आज इस कामयाबी को हासिल कर पाया हूँ.... वो राणा भैया हैं......... राणा रविन्द्र प्रताप सिंह......... उस दिन विक्रम भैया की वसीयत में उनका नाम देखने से पहले ही में जानता था कि इस सारे परिवार और इस सारी संपत्ति के मुखिया राणा भैया ही हैं......... इसीलिए उस दिन में आपको रीटेल स्वराज के ऑफिस में लेकर गया था.......... मुझे अभय सर के यहाँ इंटर्नशिप के लिए राणा भैया के कहने पर ही विक्रम भैया ने भेजा था....” पवन ने मुसकुराते हुये कहा
“इसका मतलब ये सब सोची समझी योजना थी.... वो काव्या जिसने मुझे फोन करके बोर्ड मीटिंग के बारे में बताया.....” ऋतु ने गुस्से में पवन से कहा
“नहीं...नहीं... वो तो उसे खासतौर पर इसलिए ही बताया गया ..... क्योंकि तुम अभी कल ही उससे मिली और तुरंत ही तुम्हें डाइरेक्टर बनाया जा रहा....तो वो तुमसे बात जरूर करती..... हाँ... बात अगर पुरानी हो गयी होती तो शायद ऐसा वो भूल भी जाती... इसलिए ये किया” पवन ने मुसकुराते हुये कहा
“चलो भाभी जी... अब सारी बातें खत्म करो और ये रहे सारे बोर्ड प्रस्ताव, मेंने सभी पर साइन कर दिये हैं.... आप इन्हें ले जाओ और जब सबके हस्ताक्षर हो जाएँ तो मुझे दिल्ली भिजवा देना.... और इन दोनों को घर ले जाकर असली सर्प्राइज़ तो दो....” रणवीर ने मुसकुराते हुए सुशीला सिंह से कहा
“तो तुम भी चलो... फिर हमारे साथ ही दिल्ली निकल जाना” सुशीला ने कहा
“नहीं भाभी जी आप तो जानती हैं...... कल से आया हुआ हूँ... अब जाकर कंपनी और घर दोनों के हालचाल देखता हूँ.... फिर आपको तो दिल्ली आना ही है.... तब आप सबसे और दिल्ली वालों से भी मुलाक़ात करूंगा...फुर्सत से” कहते हुये रणवीर ने सभी कागज भानु को दिये और वहाँ से निकल गया
“चलो बुआ अब घर चलते हैं...” वैदेही ने ऋतु का हाथ पकड़ते हुये कहा
“हाँ चलो” कहते हुये ऋतु ने गुस्से से पवन को घूरकर देखा तो वो फिर से मुस्कुरा गया
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“अब ये बताओ भाभी... आपने ये मीटिंग यहाँ होटल में क्यों रखी....क्योंकि यहाँ और तो कोई आया नहीं.... हमें अप घर ले जा रही हो और वो जो सीईओ रणवीर सत्यम हैं.... उन्हें भी घर चलने को बोला था आपने?” ऋतु ने रास्ते में सुशीला से सवाल किया
“इसकी 2 वजह थीं... पहली तो ये कि में तुम्हें मिलना चाहती थी..... लेकिन घर पर कोई सर्प्राइज़ है तुम्हारे लिए... सीधा वहीं बुला लेती तो तुम उस सर्प्राइज़ में ही खो जाती फिर हम एक दूसरे को इतना जान नहीं पाते... और दूसरा ये होटल हमारे नए मैनिजिंग डाइरेक्टर रणविजय सिंह का है........... तो इसमें कोई तैयारी तो करनी नहीं थी….. वो कॉन्फ्रेंस रूम असल में हमारे टॉप मैनेजमेंट का कैंप ऑफिस है चंडीगढ़ में.... इसीलिए उसमें बिना हमारी अनुमति के होटल का स्टाफ भी नहीं आता” सुशीला ने मुसकुराते हुये कहा
“ऐसा क्या सर्प्राइज़ है…. अब बता भी दीजिये भाभी” ऋतु ने भी मुसकुराते हुये कहा
“ये लो आ गए..... अब खुद ही देख लेना” मोतिया हाइट्स कॉम्प्लेक्स में गाड़ी अंदर मुड़ते ही सुशीला ने कहा
“इसका मतलब बेकार में वहाँ तक दौड़ना पड़ा.... हम यहीं तो उतरे थे बस से... पहले ही बता दिया होता की अप यहीं रहती हैं तो हम तो पैदल ही घर आ जाते” ऋतु ने गुस्से भरी नजरों से पावन को देखते हुये सुशीला से कहा
इस पर सुशीला नौर पावन दोनों एक दूसरे की ओर देखकर हंस दिये
गाड़ी अंदर जाकर आखिरी बिल्डिंग के सामने रुकी और सभी उतरकर भानु के पीछे-पीछे चल दिये। वहाँ लिफ्ट देखकर ऋतु ने लिफ्ट की ओर कदम बढ़ाए तो सुशीला ने सीढ़ियों की तरफ इशारा किया। ऋतु ने एक बार उस 15 मंज़िला बिल्डिंग के ऊपर की ओर देखा और गहरी सांस लेकर उनके पीछे चल दी। पहली मंजिल पर ही सीडियों से ऊपर आते ही भानु ने बैन तरफ के फ्लॅट की घंटी बजाई तो एक ऋतु की उम्र की ही लड़की ने दरवाजा खोला और उन सबको मुस्कुराकर देखने लगी तो सुशीला ने उसे ऋतु की ओर इशारा किया... उसने आगे बढ़कर ऋतु के पैर छूए
“दीदी नमस्ते”
“ये धीरेंद्र की पत्नी है निशा.... तुम्हारी छोटी भाभी.... तभी रसोईघर से एक बहुत सुंदर औरत सलवार उरते में दुपट्टे से अपना पसीना पोंछते हुये निकली
“भाभी जी नमस्ते” पवन ने आगे बढ़कर उस औरत के पैर छूए
“आ गया तू.... अब तुझे फुर्सत कहाँ मिलती होगी” कहते हुये वो औरत आगे आयी और आकार उसने ऋतु के पैर छूए
“ऋतु बेटा तुम तो कभी मिली ही नहीं.... चलो आज सुशीला दीदी की वजह से तुमसे भी मुलाक़ात हो गयी” कहते हुये उसने ऋतु को गले लगा लिया
“मेरी वजह से या तुम्हारी वजह से.... तुमने और पवन ने ही ये सारा खेल रचा है... और में तो किशनगंज जाकर इनसे मिलने वाली थी लेकिन तुमने उल्टे दिल्ली से न सिर्फ इन्हें बल्कि मुझे भी यहाँ बुला लिया.....ऋतु बेटा.... ये तुम्हारी छोटी भाभियों में सबसे बड़ी हैं.... यानि मुझसे छोटी.... नीलम.... रणविजय भैया की पत्नी”
“भाभी जी नमस्ते” ऋतु ने उलझे से स्वर में कहा
“अब चलो अंदर तो आ जाओ....” नीलम ने कहा तो ऋतु ने उलझे से अंदाज में ड्राइंग रूम में नजर घुमई जैसे कहना छह रही हो कि अभी और कितना अंदर जाना है... घर में तो आ ही गए
पवन ने तबतक सामने के कमरे का दरवाजा खोला और उसमें घुस गया नीलम भी उसके पीछे ऋतु का हाथ पकड़े कमरे में घुसी
“भैया........आप?” सामने बैठे व्यक्ति को देखते ही ऋतु के मुंह से निकला
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