18-02-2019, 07:31 PM
सावधान ,…सावधान। चेतावनी ,.... चेतावनी।
इस में किंक है , समलैंगिक सम्बन्ध ( पुरुष एंव स्त्री दोनों ), आयु का अंतर ( खेली खायी भी कच्ची कलियाँ भी ), और बहुत कुछ गर्हित , जो सामन्यतया अनैसर्गिक , गर्हित माना जाता है वो सब कुछ है।
और ये अक्सर मेरी कहानियों में नहीं होता। बस एक बार सोचा , जिस गाँव कभी भी नहीं गयी , वहां भी चल के देखा जाय। लोग गालियां देंगे सह लुंगी , आखिर तारीफ कभी कभार जो मिल जाती है वो तो मैं आँचल /दुपट्टा पसार के ले लेती हूँ , तो गालियाँ कौन लेगा? तो इस लिए ये किंक वाली होली की कहानी लिखी गयी।
लेकिन इसका एक और कारण था मेरे एक मित्र , अग्रज और प्रेरक साथी लेखक , ये कहानी उन्हें ट्रिब्यूट के तौर पे भी है।
के पी या कथा प्रेमी , एक ही फोरम में हम दोनों लिखते थे , लेकिन अब वहां न वो हैं न मैं। सुधी पाठक जानते हैं।
खैर , अंजू मौसी , गीता चाची , कौन नहीं जानता। ). खैर तो इस कहानी में मैंने उनकी जमीन पे कुछ कहने की कोशिश की और होली और किंक के इस मिश्रण का जन्म हुआ , मैंने उन्हें मेल भी किया और उन्होंने साधुवाद भी दिया। ये उनका बड़प्पन था। जिस तरह से वो अनैसरगिक और श्रृंगार का मिश्रण करते हैं सब कुछ ग्राह्य और नैसर्गिक ही लगता है। मैं उनसे कोसों पीछे हूँ।
और अगर कहानी ऐसी तो सीक्वेल में भी वो बातें होंगी , समलैंगिक सम्बन्ध , उम्र का अंतर इत्यादि।
तो एक बार फिर आप से कर बध्द निवेदन , हर खासो आम से ये न कहना खबर न हुयी अगर आप को ये चीजें नहीं पंसद है , तो आप इस कहानी से गुरेज कर सकते हैं या फिर ट्राई कर सकते हैं और न पसंद आने पे वो भाग छोड़ के आगे बढ़ सकते है , क्योंकि कहानी में कुछेक प्रसंग ही ऐसे हैं
और अगर कुछ भी नहीं तो
तो फिर शुरू करती हूँ आप सबसे आदेश ले के
मजा पहली होली का, ससुराल में
इस कहानी का सीक्वेल , मूल कहानी के साथ साथ मैंने xossip पर पोस्ट किया था , और इस नए फोरम पर कोशिश करुँगी इस कहानी को और आगे बढ़ाऊं ,
थोड़ा किंक , थोड़ा वो गड़बड़ सड़बड़ , थोड़ी कच्ची कलियाँ और थोड़ी खूब खेली खायी ,... अगले भाग में , ... लेकिन पहले कहानी जहाँ छोड़ी थी वहीँ से शुरू करुँगी ,
यानि ट्रेन से , जहाँ मैं और मेरा ममेरा भाई डिब्बे में अकेला था फर्स्ट क्लास के केबिन में ,... और ये भी आ गए , फिर मेरे ममेरे भाई को धर दबोचा उन्होंने तो चलिए एक बार फिर शुरू करते हैं
मजा पहली होली का ससुराल में ,
इस में किंक है , समलैंगिक सम्बन्ध ( पुरुष एंव स्त्री दोनों ), आयु का अंतर ( खेली खायी भी कच्ची कलियाँ भी ), और बहुत कुछ गर्हित , जो सामन्यतया अनैसर्गिक , गर्हित माना जाता है वो सब कुछ है।
और ये अक्सर मेरी कहानियों में नहीं होता। बस एक बार सोचा , जिस गाँव कभी भी नहीं गयी , वहां भी चल के देखा जाय। लोग गालियां देंगे सह लुंगी , आखिर तारीफ कभी कभार जो मिल जाती है वो तो मैं आँचल /दुपट्टा पसार के ले लेती हूँ , तो गालियाँ कौन लेगा? तो इस लिए ये किंक वाली होली की कहानी लिखी गयी।
लेकिन इसका एक और कारण था मेरे एक मित्र , अग्रज और प्रेरक साथी लेखक , ये कहानी उन्हें ट्रिब्यूट के तौर पे भी है।
के पी या कथा प्रेमी , एक ही फोरम में हम दोनों लिखते थे , लेकिन अब वहां न वो हैं न मैं। सुधी पाठक जानते हैं।
खैर , अंजू मौसी , गीता चाची , कौन नहीं जानता। ). खैर तो इस कहानी में मैंने उनकी जमीन पे कुछ कहने की कोशिश की और होली और किंक के इस मिश्रण का जन्म हुआ , मैंने उन्हें मेल भी किया और उन्होंने साधुवाद भी दिया। ये उनका बड़प्पन था। जिस तरह से वो अनैसरगिक और श्रृंगार का मिश्रण करते हैं सब कुछ ग्राह्य और नैसर्गिक ही लगता है। मैं उनसे कोसों पीछे हूँ।
और अगर कहानी ऐसी तो सीक्वेल में भी वो बातें होंगी , समलैंगिक सम्बन्ध , उम्र का अंतर इत्यादि।
तो एक बार फिर आप से कर बध्द निवेदन , हर खासो आम से ये न कहना खबर न हुयी अगर आप को ये चीजें नहीं पंसद है , तो आप इस कहानी से गुरेज कर सकते हैं या फिर ट्राई कर सकते हैं और न पसंद आने पे वो भाग छोड़ के आगे बढ़ सकते है , क्योंकि कहानी में कुछेक प्रसंग ही ऐसे हैं
और अगर कुछ भी नहीं तो
तो फिर शुरू करती हूँ आप सबसे आदेश ले के
मजा पहली होली का, ससुराल में
इस कहानी का सीक्वेल , मूल कहानी के साथ साथ मैंने xossip पर पोस्ट किया था , और इस नए फोरम पर कोशिश करुँगी इस कहानी को और आगे बढ़ाऊं ,
थोड़ा किंक , थोड़ा वो गड़बड़ सड़बड़ , थोड़ी कच्ची कलियाँ और थोड़ी खूब खेली खायी ,... अगले भाग में , ... लेकिन पहले कहानी जहाँ छोड़ी थी वहीँ से शुरू करुँगी ,
यानि ट्रेन से , जहाँ मैं और मेरा ममेरा भाई डिब्बे में अकेला था फर्स्ट क्लास के केबिन में ,... और ये भी आ गए , फिर मेरे ममेरे भाई को धर दबोचा उन्होंने तो चलिए एक बार फिर शुरू करते हैं
मजा पहली होली का ससुराल में ,