23-04-2020, 08:31 AM
मैं - टेंशन मैं, करुँगी क्या वहां जाकर, माँ साथ होती तो ठीक था, सुमन भाभी के साथ, अब क्या। .......
तभी माँ बोली - निहारिका क्या हुआ,
मैं - कुछ नहीं, वो मुझे करना क्या है, वहां, " गोद - भराई " ...................
..................................
प्रिय सहेलिओं ,
निहारिका का प्यार भरा नमस्कार ,
अब आगे ,
मैं, टेंशन मैं थी, वहां जाकर करना क्या है, साथ मैं तो ठीक था, सुन लेती माँ के भजन, रोज का है. पर सुमन भाभी उफ़, पूरी मोहल्ले की डाकिया है, जब तक एक बात पुरे मोहल्ले की औरतो को न बता दे खाना हजम नहीं होता।
अगर, मेरी कोई बेवकूफी या कोइ गलती हो गयी, तो समझ लो, "डाकिया डाक लाया"- हो जायेगा।
अब मैं क्या करू?
इतने मैं माँ बोली - निहारिका , सुन. तेरा सूट निकल ले, प्रेस कर लेना अगर जरुरत लगे तो। और यह गिफ्ट, "साड़ी" सुमन के साथ उसे दे देना। समझी।
मैं - हा , माँ ठीक है,एकदम धीरे से बोली, और करती भी क्या।
फिर याद आया, छोटे - छोटे कंगन।
मैं - माँ,वो कंगन भी तो लाये थे न, वो नहीं देने क्या ?
माँ - अरे , पागल अभी नहीं, वो तो बच्चा हो जाये तब, देने के लिए मैंने पहले ही ले लिए , कौन जाता बाद मैं फिर.
मैं - "बच्चा" , अब यह "बच्चा" कहाँ से आ गया , "गोद - भराई " मैं. और बाद मैं क्यों, छुट्टी पाओ अभी देकर।
पर,अब कुछ पूछने की हिम्मत नहीं थी, पारा वैसे ही चढ़ा हुआ था .माँ का. सोचा भलाई इसी मैं है की चलो सूट निकलने।
मैं - माँ, मैं सूट को देखती हूँ, शायद प्रेस की जरुरत हो.
मैं गयी, अलमारी के पास, खोला, निकला सूट , देखा खोलकर, ठीक लगा मुझे तो. फिर बेड पर रख दिया। फिर सोचा हाथ - मुँह धो कर फ्रेश हो जाती हूँ, अभी तो टाइम है.
गयी, बाथरूम, दुपट्टा निकल कर बाथरूम के दरवाजे पर टांगा और लगी मुँह धोने, ठंडे पानी से एकदम ताज़गी आ गयी , दोनों हाथो पानी लेकर छपाक सीधा मुँह पर , कुछ पानी मेरे जोबन पर भी गिर गया , अब क्या ?
माँ ने देखा तो फिर भजन, दुपट्टा लिया, डाला कंधे पर , टॉवल से मुँह पोंछते हुए, सीधा कमरे मैं. अब क्या करू, अगर माँ ने बुला लिया तो , कर लेती हूँ चेंज टॉप को.
एक पीली टी - शर्ट निकली और पहन ली, थोड़ी पुरानी थी, गले से कुछ ढीली हो गयी थी, इसे अक्सर रात को सोते समय ही पहन लेती थी, गले की साइड से ब्रा का स्ट्राप दिख रहा था , पर जल्दी मैं ध्यान नहीं दिया। सोचा माँ को चाय बना कर दू , कुछ मूड ठीक होगा, साथ मैं भी पी लुंगी।
आ गई माँ के पास, बोली, माँ चाय बना दू, पियोगी ?
माँ - हाँ, मेरी बच्ची , कितनी समझदार है, जा बना ले.
मैं, खुश , अब डांट नहीं पड़ेगी। बच गयी.
माँ - निहारिका, तेरे दूसरी टी- शर्ट नहीं है, देख तो जरा, ब्रा का स्ट्राप दिख रहा है, पागल अब तो नादानी छोड़ , जवान हो गयी है. इधर बैठ, मेरे पास, फिर मेरी टी - शर्ट को ठीक करती हुई बोली।
माँ - बेटा, जमाना ख़राब है, लड़कियों को ही सम्भल कर चलना होता है, बोलने वाले नहीं चूका करते, चल घर मैं तो ठीक है, सोने के लिए, पर रूम से बहार आये तो ठीक कपडे पहना कर. अब जा , अच्छी सी चाय बना ला.
-मैं - जी,माँ. ।अभी लायी।
मैं, गयी किचन मैं, चाय का पानी चढ़ा दिया गैस पर , पत्ती डाली, थोड़ी अदरक डाली कूट कर, माँ को पसंद थी अदरक वाली चाय, दूध और शक्कर डाल कर इंतज़ार किया , दो - चार उफान आने पर गैस बंद करि, और कप मैं चाय डाली और ले आयी माँ के पास.
माँ - निहारिका, वाह अच्छी चाय बनाई तूने, चलो कुछ तो आया तुझे, फिर हंसने लगी,....
मैं - क्या माँ, खाना भी तो बना लेती हूँ, वो बात अलग है, रोटी कभी - कभी जल जाती हैं. ही , ही
ऐसे ही हंसी - मजाक मैं चाय ख़तम हुई, फिर माँ बोली, तू जा सूट चेक कर ले , एक बार प्रेस घुमा ही ले, मैं किचन मैं रख के थोड़ा आराम कर लेती हूँ.
अरे,सुमन को फ़ोन भी करना था, पहले वो ही कर लू, तू रख आ कप किचन मैं.
मैं - ठीक है, लाओ माँ.
माँ , फोन लगाती है, सुमन भाभी को.
माँ - हेलो, सुमन , कैसी है, सब आनंद - मंगल।
सुमन भाभी - हाँ जी, सब कुशल - मंगल, आप बताओ। कैसे फोन किया ?
माँ - अरे , सुबह तुझे बताना भूल गयी , मैं अभी साफ़ नहीं हुई पूरी तरह, मैं नहीं आ पाऊँगी आज.
सुमन भाभी - ओह, अब क्या, अब क्या करे मैंने तो उसे बोल दिया की मैं निहारिका और उसकी माँ को लेती आउंगी।
माँ - ऐसा कर , सुमन निहारिका को ही ले जाना , पागल कुछ तो सीखेगी। , ही ही,
सुमन भाभी - हाँ भाभी, शादी लायक हो गयी है, पर समझ इतनी नहीं है
माँ - हाँ री , अब क्या करू, कोशिश तो करती हूँ, पर अटक जाती हूँ, एक बाद एक बेवकुफो वाली हरकत मेरा दिमाग ही चढ़ जाता है.
सुमन भाभी - अच्छा , आप आराम करो , मैं आ कर ले जाउंगी निहारिका को.
माँ - अच्छा , सुमन मैं रखती हूँ।
सुमन भाभी - जी भाभी।
हो गयी थी दोनों की बात , मुझ बकरी को हलाल करने प्लानिंग। अभी शाम को समय था, माँ गयी आराम करने, मैंने सोचा , सूट प्रेस कर के मैं भी कुछ देर आराम कर लू.
सूट को फैलाया, देखा, जायदा सल नहीं थे पर गुंजाईश थी प्रेस की. सो निकाल ली प्रेस ही देर मैं, सूट ठीक, उसे टांगा
हेंगर पर और प्रेस साइड मैं रख कर पर.
आँख बंद करते ही , टेंशन, वहां जाकर करना क्या है, अरे अभी पूछ लेती माँ से, अब तक सो गयी होंगी , कहाँ फंसा दिया।
थोड़ी देर के बाद ,उठ गयी, नींद आयी पर थोड़ा आराम मिल गया, मार्किट की थकन जो थी. अब मैं फ्रेश थी, सोचा माँ को उठाऊ।
बाहर आकर देखा सुमन भाभी - और माँ , चाय पी रहे थे , तभी सुमन भाभी - बोली आजा , निहारिका अभी तेरी बात ही हो रही थी.
मैं - जी भाभी,
माँ - तेरी चाय यही रखी है, बस अभी लाई हूँ.
-मैं - जाकर बैठ गयी, माँ के पास, और ले लिया कप हाथ मैं चाय का. जो स्वाद माँ की चाय मैं था वो मेरी चाय मैं कहाँ, न जाने कब आएगा ऐसा स्वाद मेरी चाय मैं भी.
सुमन भाभी - निहारिका, तू तैयार नहीं हुई, जा, चाय पी कर तैयार हो जा.
मैं - जी भाभी।
फिर , मैंने चाय ख़तम करि, और कप रखे किचन मैं , और गई सीधा बाथरूम,
मुँह धोने को न चालू किया , आया याद फंक्शन तो लम्बा है शायद , "सु -सु" कर के चलो. नहीं तो दिक्कत होगी। नल बंद करके , स्कर्ट उठायी और पैंटी नीचे करि और बैठ गयी , एक हलकी सिटी सी आवाज आयी कुछ देर मैं ,फिर मैंने फ्लश को चला दिया जिस से आवाज न जाए बाहर।
उठी , पैंटी पहनी , स्कर्ट नीचे करि, और हाथ मुँह धो कर आ गयी बाहर बाथरूम से.. अपने रूम मैं जाकर अलमारी खोली, सोचा नयी ब्रा - पैंटी पेहेन ,लेती हूँ.
कौन सी ब्रा निकलू, हम्म,पिंक सूट है, पिंक ब्रा हैं न, मेरे पास, फिर मैंने अपनी टी - शर्ट उतारी फिर ब्रा के स्ट्रैप्स निकले कंधे पर से कर , हुक खोला और निकाल दी.
फिर , पिंक ब्रा ली, घुमा के हुक लगाया और , कंधे पर स्ट्रैप्स चढ़ा लिए, अब जल्दी मैं ऐसे ही करती हूँ, फिर पैंटी निकली पिंक वाली।
अपनी पहनी हुई पैंटी उतारी देखा , कुछ हल्का पीला सा था , कुछ गीला सा भी , वो तो अभी "सु-सु" करा है उस से, उफ़. आया याद, मार्किट मैं , सुनार और रिक्शे पर गीले हुई थी.
जल्दी से , पैंटी को बेड के किनारे दबा दिया , सोचा आ कर धो दूंगी। अभी जल्दी चलो.
नयी पैंटी पहनी, कुर्ती डाली, चूड़ीदार पायजामा उफ़, कुछ टाइट ही था, समय लगना ही था, और आ गयी माँ की आवाज,
माँ - निहारिका - हो गयी तैयार , जल्दी कर.
मैं - अंदर से, माँ, बस बाल बनाने हैं. आयी.
मैंने जल्दी से , बाल सुलझाए और रबर बैंड लगा लिया , सोचा तो चोटी करने का था, टाइट सूट और चूड़ीदार पर अच्छी लगती थी मेरी लम्बी चोटी।
दुपट्टा लिया और लगभग भागते हुए , आ गयी , चलो भाभी। जायदा देर तो नहीं हुई.
सुमन भाभी - अरे निहारिका, मेकउप नहीं किया कुछ.
मैं - उफ़, भूल गयी, चलो रहने दो
सुमन भाभी - अरे जवान लड़की है, कुछ तो कर, जा. जल्दी आना.
मैं , भाग कर गयी, सूट से मैच करती मेजेंटा लिपस्टिक लगा ली और आँखों मैं काजल बस और कुछ नहीं। वार्ना रात हो जाएगी आज तो.
बाहर माँ के पास आयी ,और बोली , - ठीक है?
- माँ - निहारिका, तू तो बड़ी सुन्दर लग रही है. नजर न लगे मेरी बच्ची को. सुमन जरा ध्यान रखना।
सुमन - जी भाभी, अब चले. निहारिका
मैं - जी भाभी, अच्छा माँ , चलती हूँ.
घर से निकलते ही धड़कन तेज़, हाथ मैं गिफ्ट पैक, और पसीना एक साथ आ रहा था , क्या करना है वहां जा कर. सुमन भाभी से पुछु ?
नहीं, " डाकिया डाक लाया " , चुप चलो देखा जायेगा जो होगा, माँ के भजन तो हैं ही सुननेको।
तब सुमन भाभी बोली - निहारिका तुझे पता है, फंक्शन के बारे मैं?
में - नहीं भाभी, जा रही हूँ आपके साथ देख लुंगी वहां।
सुमन भाभी - अरे "गोद - भराई " का फंक्शन है, जब कोई महिला गर्भवती होती है, तो नए मेहमान के स्वागत की तैयारी में पूरा परिवार जुट जाता है और सब लोगो को बुला कर एक फंक्शन होता है.
यह एक पारंपरिक रस्म है, जिसमें आने वाले बच्चे और गर्भवती को ढेरों आशीर्वाद दिए जाते हैं और दोनों के अच्छे स्वास्थ की कामना की जाती है चारो और हांसी - ख़ुशी का माहोल होता है. कुछ परिवारों में गोद भराई की रस्म गर्भावस्था के सातवें महीने में की जाती है कुछ के आठवे महीने मैं.। यह माना जाता है कि इन माह में मां और गर्भ में पल रहा शिशु पूरी तरह से सेफ होता है।
उफ़ ,इतना ज्ञान , सुमन भाभी आप ग्रेट हो , और मैं पागल,- मन मैं सोचा।
मैं - हम्म, भाभी। और क्या होगा।
सुमन भाभी - अरे बड़ा मज़ा आएगा , तू चल तो सही. मेहँदी , गेम्स , खाना - पीना , मस्ती, औरतो वाली बाते, सब.
हाथों में मेहंदी लगवाने के लिए मेहंदी वाले भी होंगे, तू भी लगवा लेना , नहीं तो मैं ही लगा दूंगी तेरे तो भीड़ हुई तो.
गेम्स, जैसे गर्भवती के पेट का आकार देखकर अंदाज़ा लगाना कि होने वाला बच्चा लड़की होगी या लड़का।
क्या खाने का मन किया - खट्टा - मीठा , मुल्तानी मिटटी या कुछ और. मौजूद महिलाएं इस बात का अंदाज़ा लगाएंगी कि गर्भवती को पूरे गर्भावस्था में सबसे ज्यादा क्या खाने की इच्छा हुई, खुद के बारे मैं भी , अगर कोई औरत बताना चाहे तो.
डिलीवरी की तारीख का अनुमान लगाना ,पेट देख कर , बच्चा कब होगा, दिन कौन सा होगा, कलर कैसा होगा , आँख और नाक किस पर जाएगी।
- मैं - मैं क्या बोलूंगी, वहां ?
सुमन भाभी - निहारिका, बड़ी जल्दी है तूज़े माँ बनने की , , ही ही , ही करती हूँ तेरी बात , तेरी माँ से।
मैं - धत, भाभी आप भी न.
ऐसे बाते करते हुए हम पहुँच गए , अच्छा खासा फंक्शन था , काफी भीड़ थी. सब औरते मुझे ही देख रही थी, सब साड़ी मैं , और मैं अकेली सूट मैं.
मैं - भाभी कुछ अजीब लग रहा है, सब मुझे ही देखे जा रहे हैं. मैंने जोबन भी ढक कर रखे हैं, कुछ गड़बड़ हुई क्या मुझ से।
सुमन भाभी - नहीं रे, एक तो तू बाला की खूबसूरत लग रही है, दूसरी तू अकेलि है जिसकी शादी नहीं हुई, कुंवारी, कच्ची कलि ।
फिर फंक्शन चालू हुआ, गीत - संगीत , हांसी - मजाक, एक दूसरे को छेड़ना -
सुमन भाभी - पिंकी सुन , अब तो दूसरा कर ले , हो गया तेरा बेटा ३ साल का.
पिंकी - जी भाभी, मैं तो कह रही हूँ, इनसे। यह मानते .ही नहीं। "मूड्स" लगा लेते हैं, बस.
सुमन भाभी - अरे कर ले कोशिश, आज रात, बिना "मूड्स" के, हो जा फ्री कर ले दो बच्चे। एक से भले दो.
पिंकी - जी भाभी, आज देखती हूँ, है आपके साथ.कौन है, नयी शादी हुई है क्या , सिंदूर - चूड़ा दिख नहीं रहा।
सुमन भाभी - अरे यह, कुंवारी है, एकदम कच्ची कली। इसकी माँ की तबियत जरा ख़राब थी, तो इसे भेज दिया। गिफ्ट देने।
मैं ० - चुप इनकी बाते सुन रही थी और हाथो मैं मेहँदी लगवा रही थी. उफ़ क्या माहौल था, मस्ती - मज़ा , खाना - पीना, मेहँदी- संगीत , गीत, छेड़छाड़ , बच्चे की बाते, और यह नासपीटा "मूड्स" यह पीछा ही नहीं छोड रहा मेरा।
[b]सुमन भाभी - निहारिका। .........................[/b]
इंतज़ार मैं। ........
आपकी निहारिका
सहेलिओं , पाठिकाओं, पनिहारिनों, आओ कुछ अपनी दिल की बातें करें -
लेडीज - गर्ल्स टॉक - निहारिका