22-04-2020, 10:32 PM
अध्याय 27
“क्या बात है ऋतु.... तुम सोई नहीं अब तक” मोहिनी को रात में टॉइलेट जाना था तो उन्होने देखा की ऋतु के कमरे में हल्की सी रोशनी थी... पास जाकर देखा तो ऋतु बेड पर लेटकर मोबाइल में कुछ पढ़ रही थी
“माँ! क्या अप किसी रणविजय सिंह को जानती हैं?” ऋतु ने उसकी बात का जवाब देने की बजाय उल्टा सवाल किया
“नहीं मेरी जानकारी में तो कोई नहीं है, क्या बात है...पूरी बात बताओ” मोहिनी ने पूंछा और उसके बराबर में लेटकर उसके बालों में हाथ फिराने लगी
“माँ रवि भैया की कंपनी जो पूरी फॅमिली को लेकर बनाई है उन्होने.... उसके एमडी पहले विक्रमादित्य भैया थे.... लेकिन उनकी मृत्यु के बाद उनकी जगह चंडीगढ़ से कोई रणविजय सिंह हैं उन्हें एमडी बनाया जा रहा है...और उनके बेटे समर प्रताप सिंह को कंपनी में डाइरेक्टर बनाया जा रहा है। पता नहीं मुझे ऐसा क्यूँ लग रहा है की ये रणविजय सिंह हमारे परिवार के ही कोई सदस्य हैं। में वहीं जा रही हूँ कंपनी की बोर्ड मीटिंग में, क्योंकि मुझे अभी उस रिलेशनशिप मैनेजर का कॉल आया था जिससे आज मिलकर आयी थी कंपनी का रीटेल स्टोर यहाँ शुरू करने के लिए... और अपना फोन नंबर देकर आयी थी” ऋतु ने बताया
“लेकिन अगर बोर्ड मीटिंग है तो वो रिलेशनशिप मैनेजर तुम्हें क्यों बता रहा है कंपनी की बोर्ड मीटिंग के बारे में...तुम तो उनके फ्रैंचाइज़ हुये ना” मोहिनी ने कहा
“माँ वो लड़की है.... और वो मुझे इसलिए बता रही है.....” कहती हुयी ऋतु चुप हो गयी और मुस्कुराने लगी
“क्या हुआ...ऐसे हंस क्यों रही हो.... क्या बात है” मोहिनी ने उलझन भरे स्वर में कहा
“क्योंकि में भी उस कंपनी में डाइरेक्टर एपाइंट की जा रही हूँ, रागिनी दीदी के साथ.... और वो चाहती है की में डाइरेक्टर बन जाने के बाद उसको कुछ फाइदा दूँ.... जान पहचान का.......... हालांकि कंपनी ने मुझे कोई सूचना नहीं दी है.... लेकिन उसे लगता है की कंपनी ने मुझे भी बुलाया होगा............ अब आप लोगों ने मुझे रोक लिया तो मुझे सुबह जल्दी निकालना होगा... क्योंकि में उन लोगों से मिलना चाहती हूँ.... की आखिर वो हैं कौन?” ऋतु ने बताया
“तो फिर तब ये बात तुमने क्यों नहीं बताई? तुम बता देती तो शायद हम रोकते भी नहीं और शायद साथ ही चलते...तुम्हारे पापा को भी बुला लेती” मोहिनी ने कहा
“इसीलिए.... इसीलिए तो नहीं बताया... पहले में खुद उनसे मिलकर सबकुछ समझ लेना चाहती थी.... ये नहीं की कोई भी कैसी भी खबर मिले और हम सब भागकर चल दें....... अगर कंपनी हमें बुलाना चाहती तो हमारे पास कंपनी से आधिकारिक सूचना आयी होती.... जो अभी तक ना तो मेरे पास आयी है और ना रागिनी दीदी के पास.... तो पहले इस मामले की तह तक जाकर समझना जरूरी लगा मुझे....उसके बाद ही आप लोगों को बताती” ऋतु ने अपना पक्ष रखा
“हाँ! ये भी सही कह रही हो तुम। ठीक है में भी ये बात अपने तक ही रखती हूँ.... तुम पहले पता करो...फिर देखते हैं” मोहिनी ने कहा
“अच्छा एक बता तो में पूंछना ही भूल गयी... आपने पापा को बुलाया था शाम खाने के लिए... लेकिन वो आए नहीं... क्या कहा उन्होने...” ऋतु को अचानक ध्यान आया...तो उसने पूंछा
“उनको कहीं जाना था.... इसलिए रात को ही निकल गए... कल वापस आएंगे...तब तक तुम भी वापस आ जाओगी” मोहिनी ने बताया
“ठीक है माँ.... अब अप भी सो जाओ.... मुझे भी सुबह जल्दी उठकर चंडीगढ़ जाना है” ऋतु ने कहा तो मोहिनी भी उठकर अपने कमरे में चली गयी... आज मोहिनी ऋतु और रागिनी नीचे सो रही थी और शांति ऊपर बच्चों के साथ थी...
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सुबह उठकर ऋतु जल्दी से तैयार हुई और मोहिनी उसे कश्मीरी गेट बस अड्डे से चंडीगढ़ की बस में बैठा आयी...इधर रविवार होने की वजह से बच्चों के भी कॉलेज कॉलेज की भी छुट्टी थी इसलिए वो भी सोकर नहीं उठा। रागिनी ने वापस आकर जब गाड़ी खड़ी की तो गाड़ी की आवाज सुनकर अनुपमा अपने घर से निकलकर बाहर आयी
“बुआ नमस्ते.... सुबह सुबह कहाँ घूमने गईं थीं?” अनुपमा ने रागिनी से मुसकुराते हुये कहा
“नमस्ते बेटा.... कहीं नहीं बस तुम्हारी छोटी बुआ को छोडने गयी थी... बस अड्डे पर” रागिनी ने कहा
“छोटी बुआ? मतलब लाली....??? क्यों उसको कहाँ जाना था?” अनुपमा ने उलझे से स्वर में कहा
“अच्छा तो अब अनुभूति अब तुम्हारे लिए भी लाली से छोटी बुआ हो गयी.... अरे... उतनी छोटी बुआ नहीं.... ऋतु को छोडने गयी थी” रागिनी ने मुसकुराते हुये कहा
“हा हा हा हा .... उतनी छोटी नहीं तो कुछ कम छोटी.... और अब जब लाली राधा की बुआ है तो मेरी भी हुई वैसे राधा कहाँ है...?” अनुपमा ने हँसते हुया कहा
“जब में गयी थी तब तक तो सब सो ही रहे थे.... आज रविवार है तो शायद अभी तक उठे भी ना हो....” कहते हुये रागिनी गेट से अंदर की ओर चल दी
अनुपमा भी रागिनी के पीछे-पीछे अंदर आयी और गेट से अंदर घुसकर सीधे सीढ़ियों से ऊपर दूसरी मंजिल पर पहुँच गयी ..... थोड़ी देर बाद
“माँ! माँ! देखो अनुपमा ने सारा बिस्तर भिगा दिया” प्रबल की आवाज पूरे घर में गूंज गयी तो अनुराधा और अनुभूति सोते से उठकर कमरे से बाहर को निकली तो देखा कि प्रबल सिर से पाँव तक पूरा भीगा हुया है और कमरे के दरवाजे पर खड़े बाहर को भागती अनुपमा का हाथ पकड़कर खींच रहा है... इन दोनों को सामने देखते ही अनुपमा ने अपने सरीर को ढीला छोड़ दिया और प्रबल के खींचने कि वजह से झटके से जाकर उसके सीने से लग गयी....
“प्रबल छोड़ इसे” अनुराधा ने कहा तो अनुपमा ने उसकी आँखों में आँखें डालकर उसको आँख मर दी और जानबूझकर प्रबल से और ज्यादा चिपककर उसकी गर्दन में बाहें दल दीं
“ये क्या कर रही है तू?” अनुराधा ने अनुपमा कि हरकत देखकर गुस्से से कहा
“में क्या कर रही हूँ... इसने मुझे पकड़ा हुआ है...और तू मुझसे ही कह रही है” अनुपमा ने प्रबल से और ज्यादा चिपकते हुये कहा
“छोड़ उसे... अब तू क्यों उसे पकड़े खड़ी है” अनुराधा ने कहा
“ओह हो ... मेंने उसे पकड़ा है या उसने मुझे पकड़ा है.... बड़ी आयी भाई की वकालत करने वाली... लाली तू बता किसने किसको पकड़ा...” अनुपमा ने भड़कते हुये कहा तो इनकी बहस बढ़ते देखकर प्रबल ने अनुपमा का हाथ छोडकर उसकी बाहें भी अपने गले से निकाल दीं लेकिन अनुपमा तो अनुपमा ठहरी प्रबल के हाथों से छुटते ही वो प्रबल के ऊपर गिरि और उसे लेती हुई फर्श पर।
“बुआ देखो प्रबल ने मुझे गिरा दिया” गिरते ही अनुपमा तुरंत ज़ोर से चिल्लाई जबकि प्रबल बेचारा नीचे दबा हुआ था और वो खुद उसके ऊपर थी
“अरे रे क्या हुआ बेटा” रागिनी इस धमाचौकड़ी को सुनकर पहले ही ऊपर आ गयी थी सो वो तुरंत भागती हुई उन दोनों के पास पहुंची और अनुपमा को हाथ पकड़कर उठाया... अनुपमा भी लड़खड़ाती सी उठी और रागिनी के कंधे के सहारे खड़ी हो गयी
“बुआ मेरे शायद चोट लग गयी है...प्रबल को भी हो सकता है लगी हो...” अनुपमा ने बिचारी बनते हुये अपनी जगह से उठकर खड़े होते प्रबल को देखा
“चल में देखती हूँ, कोई बाम लगा देती हूँ... और दर्द की दवा ले ले” रागिनी ने उससे कहा... इधर अनुराधा और अनुभूति दोनों अनुपमा को घूर-घूर कर देखे जा रही थी
“नहीं बुआ पता नहीं ...कभी बाद में फिर ज्यादा परेशानी हो.... इसलिए में और प्रबल दोनों ही डॉक्टर को दिखा आते हैं... सामने मेन मार्केट में ही” अनुपमा ने कहा तो रागिनी ने प्रबल को अनुपमा के साथ जाने का इशारा किया
“नहीं माँ! मुझे कुछ नहीं हुआ। में बिलकुल ठीक हूँ” प्रबल ने जल्दी से कहा
“तू ठीक होगा .... इसको तो दिखा के ले आ...और अपना भी दिखा लेना, बेचारी को चोट लग गयी” रागिनी ने प्रबल को आँखें दिखते हुये कहा तो मजबूरी में प्रबल को साथ जाना ही पड़ा... जाते-जाते अनुराधा ने रागिनी की नजर बचाकर प्रबल की ओर इशारा करते हुये अनुराधा को आँख मारी जिसे अनुभूति ने भी देख लिया...उन दोनों के जाते ही
“बेचारी को सुबह-सुबह ही चोट लग गयी... ये प्रबल भी सोच-समझकर नहीं करता कुछ भी... लड़कियों के साथ कहीं ऐसे लड़कों की तरह खींच-तान की जाती है.....” रागिनी ने कहा
“माँ! उसे कहीं चोट नहीं लगी...आप तो वैसे ही बहकावे में आ जाती हो” अनुराधा ने रागिनी की बात कटते हुये गुस्से से कहा तो रागिनी की हंसी छूट गयी
“पगली में कोई पुराने जमाने की ललिता पँवार नहीं हूँ... में भी तुम लोगों की तरह थी...में सब समझती हूँ... तेरा भाई अब जवान हो रहा है... माँ-बहन के अलावा भी किसी और लड़की से कैसे बात करनी है... ये में या तुम नहीं सीखा सकते... अनुपमा सिखा देगी...उसे दिल्ली के तौर तरीके भी... वो तेरे भाई को बहका नहीं रही.... बस तू चिढ़ती है इसलिए वो चिढ़ाती है.... वो कहीं बाहर की नहीं... अपने ही घर की लड़की है” रागिनी ने कहा तो अनुराधा और अनुभूति के चहरे पर भी मुस्कुराहट आ गयी
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इधर सुबह जब रागिनी ऋतु को बस में बैठाकर वहाँ से वापस लौट गयी तो उसके जाते ही ऋतु ने किसी को कॉल मिलाया
“हाँ! कहाँ पर हो”
दूसरी ओर से कुछ जवाब दिया गया
“ठीक है वहीं मिलना .... अभी 15-20 मिनट में पहुँच रही है मेरी बस.... बस का नंबर xxxxx है” कहते हुये ऋतु ने फोन काट दिया
बस अड्डे से निकालकर बस जब जीटी करनाल रोड पर मुकरबा चऔक पहुंची तो वहाँ चंडीगढ़ की ओर जाने वाली काफी बसें और सवारियाँ खड़े हुये थे... ये बस भी वहीं खड़ी हो गयी... कुछ सवारियाँ बस में चढ़ीं .... ऋतु खिड़की से बाहर देख रही थी जैसे किसी को तलाश कर रही हो... तभी उसके बराबर में कोई आकर खड़ा हुआ
“ऋतु मेम! में आ गया” ये पवन था... ऋतु ने उसी को फोन किया था.... असल में रात को ऋतु को पवन का फोन आया था की उसे रीटेल स्वराज की उस रिलेशनशिप मैनेजर काव्या रघुवंशी ने फोन करके वही सबकुछ बताया था जो की वो ऋतु को बता चुकी थी.... उसकी बात सुनकर पवन भी चौंक गया था तो उसने ऋतु को फोन लगाया... इस पर ऋतु ने उससे कहा की सुबह वो भी उसके साथ चंडीगढ़ चले... अकेले जाने से ऋतु को बेहतर लगा की वो पवन को भी साथ लेकर जाए
“आओ बैठो कहते हुये ऋतु ने खुद को खिड़की की ओर सरकाते हुये पवन को अपने बराबर में बैठने को कहा तो पवन उसके बराबर वाली सीट पर बैठ गया
“ये बताओ उस लड़की ने तुम्हें क्यों कॉल किया और तुम्हारा नंबर उसके पास कहाँ से आया.... वहाँ तो में सिर्फ अपना नंबर देकर आयी थी” ऋतु ने उत्सुकता से पूंछा
“मेम! जब आप फॉर्म भरकर वहाँ की प्रक्रिया पूरी कर रही थीं तब में उनके साथ बैठा हुआ था... तभी उन्होने मुझसे आपके बारे में पूंछा तो मेंने उन्हें बताया... उसी समय उन्होने मेरे बारे में भी जानकारी ली और मेरा मोबाइल नंबर भी लिया था” पवन ने झिझकते हुये कहा
“तो शर्मा क्यों रहे हो.... तुम्हें तो खुश होना चाहिए की एक लड़की ने तुम्हारा नंबर मांगा.... वरना लड़के ही लड़कियों से उनका नंबर मांगते हैं” ऋतु ने छेड़ते हुये कहा तो पवन और भी शर्मा गया
“मेम आप भी ऐसी बात करती हैं.... वो तो उन्होने इसलिए मेरा नंबर लिया था क्योंकि में आपका असिस्टेंट हूँ....” पवन बोला
इसी तरह बात करते वो दोपहर को जीरकपुर बाइपास ... मोतिया बस स्टैंड पर उतर गए लेकिन तभी ऋतु को ख्याल आया कि उन्होने जल्दबाज़ी में जाने का कार्यक्रम तो बना लिया है लेकिन मीटिंग कहाँ पर हो रही है... ये तो पता ही नहीं... ऋतु ने सोचा कि अब किस से पता किया तो पवन ने कहा कि काव्य से पता किया जा सकता है लेकिन ऋतु ने कहा कि अगर वो स्वयं फोन करेगी तो काव्य को भी अजीब लगेगा कि कंपनी में डाइरेक्टर नियुक्त होने वाले को मीटिंग का ही पता नहीं....
इस पर पवन ने कहा कि वो काव्य को फोन करके एड्रैस ले लेगा और उसे ये भी पता नहीं चलने देगा कि ऋतु उसके साथ है या ऋतु को कोई सूचना नहीं मिली... इस पर ऋतु ने कहा अगर ऐसा हो सकता है तो ठीक है। ऋतु कि सहमति मिलते ही पवन ने काव्या को फोन लगनेके लिए ऋतु से थोड़ा दूर जाना चाहा
“क्या हुआ यहीं से कर लो ना .... वहाँ दूर क्यों जा रहे हो मुझसे?” ऋतु ने कहा
“मेम! व...व...वो ऐसी कोई बात नहीं... लेकिन में सोच रहा था” पवन ने हकलाते हुये कहा
“क्या सोच रहे थे.... कोई ऐसी बात करनी है जिसका मुझे पता ना चले?” ऋतु ने उसे घूरते हुये कहा
“जी नहीं मेम! असल में कभी कोई बात ऐसे भी कह सकती है काव्या जो आपको अच्छी ना लगे.... आपको तो पता है... वो भी आपकी एम्प्लोयी है और में भी आपका जूनियर हूँ... तो एम्प्लोयी और एम्प्लोयर का रिश्ता सास-बहू जैसा होता है.... जैसे 2 बहुएँ जब अकेले में बात करती हैं तो सास की बुराई जरूर करती हैं.... ऐसा ही हमारे बीच भी बात होंगी तो आपकी बुराई भी कर सकती है वो... और मुझे भी उसकी हाँ में हाँ मिलनी पड़ेगी, शायद कुछ बुराई भी करनी पड़े” पवन ने शर्मीली सी मुस्कान के साथ ऋतु कि ओर देखते हुये कहा
“हा हा हा हा .... चलो मुझे भी शादी किए बिना ही सास बनने की फीलिंग मिल जाएगी.... यहीं बात कर लो... में कुछ नहीं कहूँगी और ना नाराज हौंगी... लेकिन स्पीकर ऑन कर लेना” ऋतु ने हँसते हुये कहा
“ठीक है मेम जैसी आपकी मर्जी... बाद में मुझे दोष मत देना” कहते हुये पवन ने काव्या को कॉल मिलाया और स्पीकर ऑन कर दिया
“हाइ पवन! रात तो 1 घंटे बात हुई ही थी... सुबह होते ही फिर बात करने का मन करने लगा क्या?” काव्या ने फोन उठाते ही कहा तो ऋतु ने घूरकर पवन को देखा, पवन झेंप गया
“हाइ काव्या! वो एक्चुअल्ली में चंडीगढ़ आया था... ऋतु मेम यहाँ आयी हुई हैं तो उनका कोई पेपर देने, लेकिन उनका फोन नहीं लग रहा अब मुझे ये भी नहीं पता कि मीटिंग कहाँ हो रही है जो उनके पास पहुँच सकूँ... तो मेंने सोचा कि तुमसे ही पता कर लूँ” पवन ने काव्या से कहा
“ये तो मुझे भी देखना होगा... यहाँ मेल आयी हुई है इस मीटिंग कि तो उसमें से एड्रैस देखकर बताती हूँ... तुम होल्ड रखो” कहते हुये काव्या ने फोन पर बात करना छोडकर अपनी ईमेल चेक करने लगी
“हाँ! ये एड्रैस नोट करो इस होटल में मीटिंग है और वहाँ कांटैक्ट पर्सन भानु प्रताप सिंह जी हैं... वो भी डाइरेक्टर हैं कंपनी में उन्हें कॉल कर लो... वो गाड़ी भेजकर तुम्हें बुला लेंगे उनका कांटैक्ट नंबर xxxxxxxxx है”
“ठीक है.... और थैंक्स” पवन ने कहा
“यार थैंक्स क्या हम तुम ही एक दूसरे के काम आएंगे... ये बॉस तो हम लोगों को बंधुआ मजदूर समझते हैं.... बताओ तुम्हें वहाँ चंडीगढ़ बुला लिया अपने पर्सनल काम से और अब मेडम फोन भी नहीं उठा रहीं... तुम्हें परेशान करने को बुलाया होगा... वरना जरूरी कम होता तो खुद फोन करके पूंछती और गाड़ी भेजकर बुला लेती” काव्या ने उधर से पवन के लिए अपनी सहानुभूति और ऋतु के लिए गुस्सा जाहिर किया
“अब क्या कहूँ काव्या जी! मजबूरी का फाइदा उठाता है हर कोई” पवन ने भी बेचारगी दिखते हुये कहा
“यार पवन तुम मुझे आप और जी मत बोला करो.... और हाँ याद रखना यहाँ मेंने तुम्हारा साथ दिया है... बदले में तुम्हें भी मेरा साथ देना होगा” काव्या ने बड़े अंदाज से कहा
“जी!... मतलब हाँ काव्या ... बताओ क्या करना होगा मुझे” पवन ने ऋतु की ओर देखते हुये कहा
“वहाँ से वापस आकर एक कॉफी मेरे साथ...बोलो मंजूर” काव्या ने शरारती अंदाज में बोला तो ऋतु कोअपनी हंसी दबाना मुश्किल हो गया
“ठीक है... वापस आकर कॉल करता हूँ... बाय” कहते हुये पवन ने फोन काटकर एक गहरी सांस ली
“लो तुम्हारा तो हो गया इंतजाम…. बिना चक्कर चलाये ही गर्लफ्रेंड मिल गयी.... अब चलें” ऋतु ने कहा
“सही है मेम! एक तो आपका काम करा दिया और असपे आप मेरा ही मज़ाक उड़ा रही हो.... चलिये चलते हैं.... या वैसे काव्या ने जो नंबर दिया था भानु प्रताप सिंह का... उनसे बात कर लें?” पवन बोला
“नहीं हम उसी एड्रैस पर चलते हैं सीधे... फिर देखते हैं” ऋतु ने कहा
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“क्या बात है ऋतु.... तुम सोई नहीं अब तक” मोहिनी को रात में टॉइलेट जाना था तो उन्होने देखा की ऋतु के कमरे में हल्की सी रोशनी थी... पास जाकर देखा तो ऋतु बेड पर लेटकर मोबाइल में कुछ पढ़ रही थी
“माँ! क्या अप किसी रणविजय सिंह को जानती हैं?” ऋतु ने उसकी बात का जवाब देने की बजाय उल्टा सवाल किया
“नहीं मेरी जानकारी में तो कोई नहीं है, क्या बात है...पूरी बात बताओ” मोहिनी ने पूंछा और उसके बराबर में लेटकर उसके बालों में हाथ फिराने लगी
“माँ रवि भैया की कंपनी जो पूरी फॅमिली को लेकर बनाई है उन्होने.... उसके एमडी पहले विक्रमादित्य भैया थे.... लेकिन उनकी मृत्यु के बाद उनकी जगह चंडीगढ़ से कोई रणविजय सिंह हैं उन्हें एमडी बनाया जा रहा है...और उनके बेटे समर प्रताप सिंह को कंपनी में डाइरेक्टर बनाया जा रहा है। पता नहीं मुझे ऐसा क्यूँ लग रहा है की ये रणविजय सिंह हमारे परिवार के ही कोई सदस्य हैं। में वहीं जा रही हूँ कंपनी की बोर्ड मीटिंग में, क्योंकि मुझे अभी उस रिलेशनशिप मैनेजर का कॉल आया था जिससे आज मिलकर आयी थी कंपनी का रीटेल स्टोर यहाँ शुरू करने के लिए... और अपना फोन नंबर देकर आयी थी” ऋतु ने बताया
“लेकिन अगर बोर्ड मीटिंग है तो वो रिलेशनशिप मैनेजर तुम्हें क्यों बता रहा है कंपनी की बोर्ड मीटिंग के बारे में...तुम तो उनके फ्रैंचाइज़ हुये ना” मोहिनी ने कहा
“माँ वो लड़की है.... और वो मुझे इसलिए बता रही है.....” कहती हुयी ऋतु चुप हो गयी और मुस्कुराने लगी
“क्या हुआ...ऐसे हंस क्यों रही हो.... क्या बात है” मोहिनी ने उलझन भरे स्वर में कहा
“क्योंकि में भी उस कंपनी में डाइरेक्टर एपाइंट की जा रही हूँ, रागिनी दीदी के साथ.... और वो चाहती है की में डाइरेक्टर बन जाने के बाद उसको कुछ फाइदा दूँ.... जान पहचान का.......... हालांकि कंपनी ने मुझे कोई सूचना नहीं दी है.... लेकिन उसे लगता है की कंपनी ने मुझे भी बुलाया होगा............ अब आप लोगों ने मुझे रोक लिया तो मुझे सुबह जल्दी निकालना होगा... क्योंकि में उन लोगों से मिलना चाहती हूँ.... की आखिर वो हैं कौन?” ऋतु ने बताया
“तो फिर तब ये बात तुमने क्यों नहीं बताई? तुम बता देती तो शायद हम रोकते भी नहीं और शायद साथ ही चलते...तुम्हारे पापा को भी बुला लेती” मोहिनी ने कहा
“इसीलिए.... इसीलिए तो नहीं बताया... पहले में खुद उनसे मिलकर सबकुछ समझ लेना चाहती थी.... ये नहीं की कोई भी कैसी भी खबर मिले और हम सब भागकर चल दें....... अगर कंपनी हमें बुलाना चाहती तो हमारे पास कंपनी से आधिकारिक सूचना आयी होती.... जो अभी तक ना तो मेरे पास आयी है और ना रागिनी दीदी के पास.... तो पहले इस मामले की तह तक जाकर समझना जरूरी लगा मुझे....उसके बाद ही आप लोगों को बताती” ऋतु ने अपना पक्ष रखा
“हाँ! ये भी सही कह रही हो तुम। ठीक है में भी ये बात अपने तक ही रखती हूँ.... तुम पहले पता करो...फिर देखते हैं” मोहिनी ने कहा
“अच्छा एक बता तो में पूंछना ही भूल गयी... आपने पापा को बुलाया था शाम खाने के लिए... लेकिन वो आए नहीं... क्या कहा उन्होने...” ऋतु को अचानक ध्यान आया...तो उसने पूंछा
“उनको कहीं जाना था.... इसलिए रात को ही निकल गए... कल वापस आएंगे...तब तक तुम भी वापस आ जाओगी” मोहिनी ने बताया
“ठीक है माँ.... अब अप भी सो जाओ.... मुझे भी सुबह जल्दी उठकर चंडीगढ़ जाना है” ऋतु ने कहा तो मोहिनी भी उठकर अपने कमरे में चली गयी... आज मोहिनी ऋतु और रागिनी नीचे सो रही थी और शांति ऊपर बच्चों के साथ थी...
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सुबह उठकर ऋतु जल्दी से तैयार हुई और मोहिनी उसे कश्मीरी गेट बस अड्डे से चंडीगढ़ की बस में बैठा आयी...इधर रविवार होने की वजह से बच्चों के भी कॉलेज कॉलेज की भी छुट्टी थी इसलिए वो भी सोकर नहीं उठा। रागिनी ने वापस आकर जब गाड़ी खड़ी की तो गाड़ी की आवाज सुनकर अनुपमा अपने घर से निकलकर बाहर आयी
“बुआ नमस्ते.... सुबह सुबह कहाँ घूमने गईं थीं?” अनुपमा ने रागिनी से मुसकुराते हुये कहा
“नमस्ते बेटा.... कहीं नहीं बस तुम्हारी छोटी बुआ को छोडने गयी थी... बस अड्डे पर” रागिनी ने कहा
“छोटी बुआ? मतलब लाली....??? क्यों उसको कहाँ जाना था?” अनुपमा ने उलझे से स्वर में कहा
“अच्छा तो अब अनुभूति अब तुम्हारे लिए भी लाली से छोटी बुआ हो गयी.... अरे... उतनी छोटी बुआ नहीं.... ऋतु को छोडने गयी थी” रागिनी ने मुसकुराते हुये कहा
“हा हा हा हा .... उतनी छोटी नहीं तो कुछ कम छोटी.... और अब जब लाली राधा की बुआ है तो मेरी भी हुई वैसे राधा कहाँ है...?” अनुपमा ने हँसते हुया कहा
“जब में गयी थी तब तक तो सब सो ही रहे थे.... आज रविवार है तो शायद अभी तक उठे भी ना हो....” कहते हुये रागिनी गेट से अंदर की ओर चल दी
अनुपमा भी रागिनी के पीछे-पीछे अंदर आयी और गेट से अंदर घुसकर सीधे सीढ़ियों से ऊपर दूसरी मंजिल पर पहुँच गयी ..... थोड़ी देर बाद
“माँ! माँ! देखो अनुपमा ने सारा बिस्तर भिगा दिया” प्रबल की आवाज पूरे घर में गूंज गयी तो अनुराधा और अनुभूति सोते से उठकर कमरे से बाहर को निकली तो देखा कि प्रबल सिर से पाँव तक पूरा भीगा हुया है और कमरे के दरवाजे पर खड़े बाहर को भागती अनुपमा का हाथ पकड़कर खींच रहा है... इन दोनों को सामने देखते ही अनुपमा ने अपने सरीर को ढीला छोड़ दिया और प्रबल के खींचने कि वजह से झटके से जाकर उसके सीने से लग गयी....
“प्रबल छोड़ इसे” अनुराधा ने कहा तो अनुपमा ने उसकी आँखों में आँखें डालकर उसको आँख मर दी और जानबूझकर प्रबल से और ज्यादा चिपककर उसकी गर्दन में बाहें दल दीं
“ये क्या कर रही है तू?” अनुराधा ने अनुपमा कि हरकत देखकर गुस्से से कहा
“में क्या कर रही हूँ... इसने मुझे पकड़ा हुआ है...और तू मुझसे ही कह रही है” अनुपमा ने प्रबल से और ज्यादा चिपकते हुये कहा
“छोड़ उसे... अब तू क्यों उसे पकड़े खड़ी है” अनुराधा ने कहा
“ओह हो ... मेंने उसे पकड़ा है या उसने मुझे पकड़ा है.... बड़ी आयी भाई की वकालत करने वाली... लाली तू बता किसने किसको पकड़ा...” अनुपमा ने भड़कते हुये कहा तो इनकी बहस बढ़ते देखकर प्रबल ने अनुपमा का हाथ छोडकर उसकी बाहें भी अपने गले से निकाल दीं लेकिन अनुपमा तो अनुपमा ठहरी प्रबल के हाथों से छुटते ही वो प्रबल के ऊपर गिरि और उसे लेती हुई फर्श पर।
“बुआ देखो प्रबल ने मुझे गिरा दिया” गिरते ही अनुपमा तुरंत ज़ोर से चिल्लाई जबकि प्रबल बेचारा नीचे दबा हुआ था और वो खुद उसके ऊपर थी
“अरे रे क्या हुआ बेटा” रागिनी इस धमाचौकड़ी को सुनकर पहले ही ऊपर आ गयी थी सो वो तुरंत भागती हुई उन दोनों के पास पहुंची और अनुपमा को हाथ पकड़कर उठाया... अनुपमा भी लड़खड़ाती सी उठी और रागिनी के कंधे के सहारे खड़ी हो गयी
“बुआ मेरे शायद चोट लग गयी है...प्रबल को भी हो सकता है लगी हो...” अनुपमा ने बिचारी बनते हुये अपनी जगह से उठकर खड़े होते प्रबल को देखा
“चल में देखती हूँ, कोई बाम लगा देती हूँ... और दर्द की दवा ले ले” रागिनी ने उससे कहा... इधर अनुराधा और अनुभूति दोनों अनुपमा को घूर-घूर कर देखे जा रही थी
“नहीं बुआ पता नहीं ...कभी बाद में फिर ज्यादा परेशानी हो.... इसलिए में और प्रबल दोनों ही डॉक्टर को दिखा आते हैं... सामने मेन मार्केट में ही” अनुपमा ने कहा तो रागिनी ने प्रबल को अनुपमा के साथ जाने का इशारा किया
“नहीं माँ! मुझे कुछ नहीं हुआ। में बिलकुल ठीक हूँ” प्रबल ने जल्दी से कहा
“तू ठीक होगा .... इसको तो दिखा के ले आ...और अपना भी दिखा लेना, बेचारी को चोट लग गयी” रागिनी ने प्रबल को आँखें दिखते हुये कहा तो मजबूरी में प्रबल को साथ जाना ही पड़ा... जाते-जाते अनुराधा ने रागिनी की नजर बचाकर प्रबल की ओर इशारा करते हुये अनुराधा को आँख मारी जिसे अनुभूति ने भी देख लिया...उन दोनों के जाते ही
“बेचारी को सुबह-सुबह ही चोट लग गयी... ये प्रबल भी सोच-समझकर नहीं करता कुछ भी... लड़कियों के साथ कहीं ऐसे लड़कों की तरह खींच-तान की जाती है.....” रागिनी ने कहा
“माँ! उसे कहीं चोट नहीं लगी...आप तो वैसे ही बहकावे में आ जाती हो” अनुराधा ने रागिनी की बात कटते हुये गुस्से से कहा तो रागिनी की हंसी छूट गयी
“पगली में कोई पुराने जमाने की ललिता पँवार नहीं हूँ... में भी तुम लोगों की तरह थी...में सब समझती हूँ... तेरा भाई अब जवान हो रहा है... माँ-बहन के अलावा भी किसी और लड़की से कैसे बात करनी है... ये में या तुम नहीं सीखा सकते... अनुपमा सिखा देगी...उसे दिल्ली के तौर तरीके भी... वो तेरे भाई को बहका नहीं रही.... बस तू चिढ़ती है इसलिए वो चिढ़ाती है.... वो कहीं बाहर की नहीं... अपने ही घर की लड़की है” रागिनी ने कहा तो अनुराधा और अनुभूति के चहरे पर भी मुस्कुराहट आ गयी
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इधर सुबह जब रागिनी ऋतु को बस में बैठाकर वहाँ से वापस लौट गयी तो उसके जाते ही ऋतु ने किसी को कॉल मिलाया
“हाँ! कहाँ पर हो”
दूसरी ओर से कुछ जवाब दिया गया
“ठीक है वहीं मिलना .... अभी 15-20 मिनट में पहुँच रही है मेरी बस.... बस का नंबर xxxxx है” कहते हुये ऋतु ने फोन काट दिया
बस अड्डे से निकालकर बस जब जीटी करनाल रोड पर मुकरबा चऔक पहुंची तो वहाँ चंडीगढ़ की ओर जाने वाली काफी बसें और सवारियाँ खड़े हुये थे... ये बस भी वहीं खड़ी हो गयी... कुछ सवारियाँ बस में चढ़ीं .... ऋतु खिड़की से बाहर देख रही थी जैसे किसी को तलाश कर रही हो... तभी उसके बराबर में कोई आकर खड़ा हुआ
“ऋतु मेम! में आ गया” ये पवन था... ऋतु ने उसी को फोन किया था.... असल में रात को ऋतु को पवन का फोन आया था की उसे रीटेल स्वराज की उस रिलेशनशिप मैनेजर काव्या रघुवंशी ने फोन करके वही सबकुछ बताया था जो की वो ऋतु को बता चुकी थी.... उसकी बात सुनकर पवन भी चौंक गया था तो उसने ऋतु को फोन लगाया... इस पर ऋतु ने उससे कहा की सुबह वो भी उसके साथ चंडीगढ़ चले... अकेले जाने से ऋतु को बेहतर लगा की वो पवन को भी साथ लेकर जाए
“आओ बैठो कहते हुये ऋतु ने खुद को खिड़की की ओर सरकाते हुये पवन को अपने बराबर में बैठने को कहा तो पवन उसके बराबर वाली सीट पर बैठ गया
“ये बताओ उस लड़की ने तुम्हें क्यों कॉल किया और तुम्हारा नंबर उसके पास कहाँ से आया.... वहाँ तो में सिर्फ अपना नंबर देकर आयी थी” ऋतु ने उत्सुकता से पूंछा
“मेम! जब आप फॉर्म भरकर वहाँ की प्रक्रिया पूरी कर रही थीं तब में उनके साथ बैठा हुआ था... तभी उन्होने मुझसे आपके बारे में पूंछा तो मेंने उन्हें बताया... उसी समय उन्होने मेरे बारे में भी जानकारी ली और मेरा मोबाइल नंबर भी लिया था” पवन ने झिझकते हुये कहा
“तो शर्मा क्यों रहे हो.... तुम्हें तो खुश होना चाहिए की एक लड़की ने तुम्हारा नंबर मांगा.... वरना लड़के ही लड़कियों से उनका नंबर मांगते हैं” ऋतु ने छेड़ते हुये कहा तो पवन और भी शर्मा गया
“मेम आप भी ऐसी बात करती हैं.... वो तो उन्होने इसलिए मेरा नंबर लिया था क्योंकि में आपका असिस्टेंट हूँ....” पवन बोला
इसी तरह बात करते वो दोपहर को जीरकपुर बाइपास ... मोतिया बस स्टैंड पर उतर गए लेकिन तभी ऋतु को ख्याल आया कि उन्होने जल्दबाज़ी में जाने का कार्यक्रम तो बना लिया है लेकिन मीटिंग कहाँ पर हो रही है... ये तो पता ही नहीं... ऋतु ने सोचा कि अब किस से पता किया तो पवन ने कहा कि काव्य से पता किया जा सकता है लेकिन ऋतु ने कहा कि अगर वो स्वयं फोन करेगी तो काव्य को भी अजीब लगेगा कि कंपनी में डाइरेक्टर नियुक्त होने वाले को मीटिंग का ही पता नहीं....
इस पर पवन ने कहा कि वो काव्य को फोन करके एड्रैस ले लेगा और उसे ये भी पता नहीं चलने देगा कि ऋतु उसके साथ है या ऋतु को कोई सूचना नहीं मिली... इस पर ऋतु ने कहा अगर ऐसा हो सकता है तो ठीक है। ऋतु कि सहमति मिलते ही पवन ने काव्या को फोन लगनेके लिए ऋतु से थोड़ा दूर जाना चाहा
“क्या हुआ यहीं से कर लो ना .... वहाँ दूर क्यों जा रहे हो मुझसे?” ऋतु ने कहा
“मेम! व...व...वो ऐसी कोई बात नहीं... लेकिन में सोच रहा था” पवन ने हकलाते हुये कहा
“क्या सोच रहे थे.... कोई ऐसी बात करनी है जिसका मुझे पता ना चले?” ऋतु ने उसे घूरते हुये कहा
“जी नहीं मेम! असल में कभी कोई बात ऐसे भी कह सकती है काव्या जो आपको अच्छी ना लगे.... आपको तो पता है... वो भी आपकी एम्प्लोयी है और में भी आपका जूनियर हूँ... तो एम्प्लोयी और एम्प्लोयर का रिश्ता सास-बहू जैसा होता है.... जैसे 2 बहुएँ जब अकेले में बात करती हैं तो सास की बुराई जरूर करती हैं.... ऐसा ही हमारे बीच भी बात होंगी तो आपकी बुराई भी कर सकती है वो... और मुझे भी उसकी हाँ में हाँ मिलनी पड़ेगी, शायद कुछ बुराई भी करनी पड़े” पवन ने शर्मीली सी मुस्कान के साथ ऋतु कि ओर देखते हुये कहा
“हा हा हा हा .... चलो मुझे भी शादी किए बिना ही सास बनने की फीलिंग मिल जाएगी.... यहीं बात कर लो... में कुछ नहीं कहूँगी और ना नाराज हौंगी... लेकिन स्पीकर ऑन कर लेना” ऋतु ने हँसते हुये कहा
“ठीक है मेम जैसी आपकी मर्जी... बाद में मुझे दोष मत देना” कहते हुये पवन ने काव्या को कॉल मिलाया और स्पीकर ऑन कर दिया
“हाइ पवन! रात तो 1 घंटे बात हुई ही थी... सुबह होते ही फिर बात करने का मन करने लगा क्या?” काव्या ने फोन उठाते ही कहा तो ऋतु ने घूरकर पवन को देखा, पवन झेंप गया
“हाइ काव्या! वो एक्चुअल्ली में चंडीगढ़ आया था... ऋतु मेम यहाँ आयी हुई हैं तो उनका कोई पेपर देने, लेकिन उनका फोन नहीं लग रहा अब मुझे ये भी नहीं पता कि मीटिंग कहाँ हो रही है जो उनके पास पहुँच सकूँ... तो मेंने सोचा कि तुमसे ही पता कर लूँ” पवन ने काव्या से कहा
“ये तो मुझे भी देखना होगा... यहाँ मेल आयी हुई है इस मीटिंग कि तो उसमें से एड्रैस देखकर बताती हूँ... तुम होल्ड रखो” कहते हुये काव्या ने फोन पर बात करना छोडकर अपनी ईमेल चेक करने लगी
“हाँ! ये एड्रैस नोट करो इस होटल में मीटिंग है और वहाँ कांटैक्ट पर्सन भानु प्रताप सिंह जी हैं... वो भी डाइरेक्टर हैं कंपनी में उन्हें कॉल कर लो... वो गाड़ी भेजकर तुम्हें बुला लेंगे उनका कांटैक्ट नंबर xxxxxxxxx है”
“ठीक है.... और थैंक्स” पवन ने कहा
“यार थैंक्स क्या हम तुम ही एक दूसरे के काम आएंगे... ये बॉस तो हम लोगों को बंधुआ मजदूर समझते हैं.... बताओ तुम्हें वहाँ चंडीगढ़ बुला लिया अपने पर्सनल काम से और अब मेडम फोन भी नहीं उठा रहीं... तुम्हें परेशान करने को बुलाया होगा... वरना जरूरी कम होता तो खुद फोन करके पूंछती और गाड़ी भेजकर बुला लेती” काव्या ने उधर से पवन के लिए अपनी सहानुभूति और ऋतु के लिए गुस्सा जाहिर किया
“अब क्या कहूँ काव्या जी! मजबूरी का फाइदा उठाता है हर कोई” पवन ने भी बेचारगी दिखते हुये कहा
“यार पवन तुम मुझे आप और जी मत बोला करो.... और हाँ याद रखना यहाँ मेंने तुम्हारा साथ दिया है... बदले में तुम्हें भी मेरा साथ देना होगा” काव्या ने बड़े अंदाज से कहा
“जी!... मतलब हाँ काव्या ... बताओ क्या करना होगा मुझे” पवन ने ऋतु की ओर देखते हुये कहा
“वहाँ से वापस आकर एक कॉफी मेरे साथ...बोलो मंजूर” काव्या ने शरारती अंदाज में बोला तो ऋतु कोअपनी हंसी दबाना मुश्किल हो गया
“ठीक है... वापस आकर कॉल करता हूँ... बाय” कहते हुये पवन ने फोन काटकर एक गहरी सांस ली
“लो तुम्हारा तो हो गया इंतजाम…. बिना चक्कर चलाये ही गर्लफ्रेंड मिल गयी.... अब चलें” ऋतु ने कहा
“सही है मेम! एक तो आपका काम करा दिया और असपे आप मेरा ही मज़ाक उड़ा रही हो.... चलिये चलते हैं.... या वैसे काव्या ने जो नंबर दिया था भानु प्रताप सिंह का... उनसे बात कर लें?” पवन बोला
“नहीं हम उसी एड्रैस पर चलते हैं सीधे... फिर देखते हैं” ऋतु ने कहा
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