18-02-2019, 04:09 PM
अनोखी दास्तान (भाग-2)
"मैडम, आठ-दस कदम लेफ्ट साइड जाकर जम्प लगाइए। जहाँ आप खड़ी हैं, उसके सामने आपकी जम्प की रेंज में वाटर की डेप्थ साढ़े चार फीट से ज्यादा नहीं हैं।" मैंने कुछ देर तक तालाब के चक्कर लगाकर अपनी मंजिल तक पहुँचने के लिए उपयुक्त जगह का चयन किया और उस जगह से दौड़कर तालाब में जम्प लगाने के लिए एक कदम बढ़ाया हीं था कि तभी बगलवाली झाड़ियों के पीछे से आयी एक अननाउन मेल वाइस सुनकर मैं चौंक उठी और मेरा बढ़ा हुआ कदम खुद-ब-खुद पीछे लौट गया।
"ये दुनिया इतनी कमीनी हैं कि न चैन से जीने देती हैं और न चैन से मरने देती हैं। मैं काॅलेज से डेढ़ किलोमीटर दूर इस सुनसान जगह पर ये सोचकर मरने आयी थीं कि यहाँ मुझे सुसाइड करने से रोकने कोई नहीं आएगा, लेकिन यहाँ तो मेरे और मेरी मौत के बीच अपनी टाँग अटकाने के लिए कोई पहले से मौजूद हैं।" मैंने झुँझलाते हुए मन हीं मन अपने आप से कहा और ये तय करने लगी कि झाड़ियों के पीछे मौजूद शख्स से निपटने के बाद अपनी मंजिल की ओर कदम बढ़ाऊँ या फिर उसे नजरअंदाज करके अपने मंजिल की ओर बढ़ जाऊँ।
"और हाँ, तालाब में जम्प लगाने से पहले एक सुसाइड नोट जरूर छोड़ देना या फिर अपने किसी क्लोज फ्रेंड या रिलेटिव को मैसेज सेंड करके सुसाइड करने का रिजन बता देना, अदरवाइज सिक्युरिटी बेवजह आपके फेमिली मेम्बर्स और क्लोज फ्रेंड्स को परेशान करेगी।" कुछ पलों तक सोच-विचार करने के बाद मैं इस नतीजे पर पहुँची हीं थीं कि झाड़ियों के पीछे मौजूद शख्स को नजरअंदाज कर देना चाहिए, क्योंकि उसकी बात से मुझे ऐसा नहीं लगा कि उसका मुझे तालाब में जम्प लगाने से रोकने का इरादा हैं और वो मुझसे बीस-बाईस कदम दूर होने की वजह से मुझे जम्प लगाने से रोकना भी चाहे तो नहीं रोक सकता था, लेकिन तभी उस शख्स ने बिना माँगे मुझे दुबारा एडवाइज दी तो मेरा गुस्सा सातवें आसमान पर जा पहुँचा।
"देखिए, आप जो कोई भी हैं, चुपचाप अपना काम कीजिए और मुझे अपना काम करने दीजिए, नहीं तो मैं तो मरूँगी हीं, साथ में आपको भी ले डूबूँगी।" मैंने झाड़ियों की तरफ देखकर उसके पीछे मौजूद शख्स को सर्द लहजे में चेतावनी दी।
"साॅरी, यू केन डू योर जाॅब।" उसने कुछ वैसा हीं जवाब दिया, जैसी मुझे उससे उम्मीद थीं।
"ये जो कोई भी हैं, इसने एक काम तो ये अच्छा किया कि इसने यहाँ अपनी मौजूदगी का अहसास दिला दिया, अदरवाइज मैं दिल में ये गलतफहमी लिए इस दुनिया से विदा हो जाती कि आजकल के लोग इतने ज्यादा भी बेरहम और संवेदनहीन नहीं हुए हैं कि किसी आत्महत्या करने वाले शख्स को देखकर अपनी आँखें बंद कर लें। आपका बहुत-बहुत धन्यवाद दोस्त। मुझे हमेशा सतानेवाली नेहा और उसकी उसकी माँ का भी शुक्रिया। मुझे सताने में इन दोनों माँ-बेटी का साथ देनेवाले मेरे पापा और दीदी को स्पेशल थैंक्स। मेरी अनफैथफुल फ्रेंड्स साक्षी, दीपिका, ....साॅरी यार, मैं तुम लोगों का हिसाब-किताब अपनी मम्मा के पास जाकर करूँगी, क्योंकि तुम लोगों का हिसाब करते तक कोई यहाँ आ गया तो बेवजह प्राॅब्लम क्रिएट हो जाएगी। ओके, गुड बाय माई डियर ब्यूटीफुल वर्ल्ड। मम्मा, मैं आपके पास आ रही हूँ।" झाड़ियों के पीछे मौजूद शख्स के कुछ देर के लिए मुझे मौत के मुँह में जाने से रोक देने की वजह से बदली मनःस्थिति में मेरे मन जो-जो बातें आ रही थीं, उन्हें जल्दी-जल्दी मुँह से बाहर निकालकर आखिरकार मैंने कुछ कदम दौड़कर तालाब में जम्प लगा लीं।
लेकिन तालाब के गहरे पानी में सिर तक डूबने के कुछ पलों बाद हीं मेरे नाक-मुँह में पानी घुसने की वजह से मेरे दम घुटने की तकलीफ और जान निकल जाने की आशंका से मुझे अहसास हो गया कि जिंदगी इतनी सस्ती भी नहीं होती हैं कि उससे इतनी आसानी से मोह खत्म हो जाए, जितना मैं जम्प मारने से पहले समझ रहीं थी। ये अहसास होते हीं मैं अपनी जिंदगी को बचाने के लिए हाथ-पैर चलाने लगी।
ये तो मैं आज तक नहीं जान पायी कि मेरे शरीर का कुछ हिस्सा डूबते समय हाथ-पैर चलाने की वजह से पानी से बाहर आया या फिर पानी के नीचे मौजूद ठोस जमीन से मेरे पैर टकराने की वजह से, लेकिन ये बात मैं उसी समय जान गई थीं कि मैं जैसे हीं मेरे गर्दन पानी से बाहर आयी, एक यंग ब्वाय ने किनारे से हाथ बढ़ाकर मुझे उसकी ओर आकर उसका थामने के लिए प्रेरित किया था, लेकिन मैं अपना पूरा प्रयास करने के बाद भी उसकी ओर एक इंच भी नहीं बढ़ पायी, क्योंकि मुझे स्विमिंग नहीं आती थीं। चंद लम्हों तक हाथ-पैर चलाकर अपनी गर्दन को पानी के ऊपर रख पाने के बाद मैं फिर से पानी के अंदर चली गई।
दुबारा डूबने पर भी मेरी चेतना ने तो पूरी तरह से मेरा साथ नहीं छोड़ा, पर मेरी हिम्मत और ताकत ने छटपटाते हुए मेरे शरीर का पूरी तरह से मेरा साथ छोड़ दिया था। कुछ पलों तक पानी के अंदर अपनी जिंदगी बचाने के लिए मन हीं मन ईश्वर से प्रार्थना लायक भर शक्ति देते रहने के बाद मेरी चेतना ने भी मेरा साथ छोड़ दिया।
'मैं जिंदा हूँ या मरकर किसी और दुनिया में पहुँच गई हूँ ?' जब दुबारा मेरे में शरीर में चेतना का संचार हुआ तो मैंने हैरानी से आँखें खोलकर इधर-उधर देखा और मन ही मन अपने आप से सवाल किया।
"आप किसी और दुनिया में नहीं बल्कि इसी दुनिया में हैं।" मेरे मन में उठे सवाल का किसी और के मुँह से जवाब सुनकर मैं और ज्यादा हैरान हो गई। जवाब देनेवाले की आवाज पहचानकर भी मैं कम हैरान नहीं थीं, क्योंकि ये उसी शख्स की आवाज थीं, जिसने मेरे तालाब में कूदने से पहले झाड़ियों के पीछे से मुझसे बात की थीं। इस बार उसकी आवाज उस जगह से करीब पचास मीटर दूर मौजूद एक विशाल बरगद के पेड़ के पीछे आ रही थीं, जहाँ मैं गीले कपड़ों में छोटी-छोटी घास से ढँकी जमीन पर लेटी हुई थीं। मैं समझ गई कि इसी शख्स ने मुझे तालाब से बाहर निकालकर मेरी जान बचाई हैं।
'अरे, लेकिन ये हैं कौन ? ये शायद वही हैं जो मेरे तालाब में डूबकर ऊपर आने पर नजर आया था। इसने पहले तालाब के किनारे से मेरी ओर हाथ बढ़ाकर ये कोशिश की कि मैं हाथ-पैर मारकर किसी तरह इसके करीब पहुँच जाऊँ और ये मुझे बाहर खींच ले, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया तो फिर इसने पानी में कूदकर मुझे बाहर निकाला होगा। थैंक्स गाॅड कि ये यहाँ था, नहीं तो इतनी देर में तो..., यार, पर मुझे बेहोश होने के बाद होश आया कितनी देर में ?' हाथ के सहारे से उठकर जमीन पर बैठने के बाद मन हीं मन विचारों का मंथन करते-करते ये सवाल मेरे दिमाग में उठा तो मैं एकाएक उस अजनबी और उसके मेरी जिंदगी बचाने के लिए किए गए क्रिया-कलापों के बारे में सोचना छोड़कर इस बारे में सोचने लगी कि मैंने अपनी जिंदगी की झँझटों से हमेशा के लिए छुटकारा पाने के चक्कर में कहीं अपने लिए नई मुसीबते तो पैदा नहीं कर लीं।
मैने ये जानने के लिए अपनी रिस्टवाॅच की ओर देखा कि काॅलेज से यहाँ आने के लिए निकलने से लेकर अब तक समय कितना खर्च हुआ तो पता चला कि मेरी रिस्टवाॅच उसमें पानी घुस जाने की वजह से बेकाम हो चुकी हैं।
"मैडम, आप लगभग दो बजकर सत्तावन मिनट पर हिरणी की तरह छलाँग लगाकर तालाब में कूदी थीं, इसके बाद करीब तीन मिनट तक आप तालाब के पानी में शाॅर्क की तरह गोते लगाती रही, इसके बाद मुझे तालाब में कूदकर आपको तलाशने और पानी से बाहर निकालने में करीब पाँच मिनट का टाइम लगा। करीब इतना हीं टाइम आपके फेफड़ों से पानी बाहर निकालने में लगा और इसके बाद होश में आने में आपने लगभग पैतीस मिनट का टाइम लिया, यानी इस आपके इस बेमतलब के फ्लाॅप शो में आपके पूरे अड़तालीस मिनट खर्च हुए और लगभग इतना हीं टाइम मेरा भी वेस्ट हुआ।" उस अजनबी ने बिना पूछे हीं मेरे इस सवाल का भी जवाब दे देने से मुझे ये सोचकर टेंशन से कुछ राहत मिली कि अभी मेरा काॅलेज टाइम खत्म होने में एक घंटे से भी कुछ ज्यादा समय बचा हुआ हैं।
'पर मैं इन गीले कपड़ों का क्या करूँगी, ऐसी हालत में काॅलेज वापस गई तो लोग सवालों की झड़ी लगा देंगे और नेहा मुझे इस हालत में देख लेगी, तब तो कयामत हीं आ जाएगी। वो पापा और दीदी से मुझे डाँट खिलाने का ये गोल्डन चांस अपने हाथ से जाने देगी, ये सोचना भी बेवकूफी होंगी। इस हालत में मैं घर भी नहीं जा सकती, क्योंकि आज वीकली मार्केट डे या किसी रिलेटिव के यहाँ कोई फँक्शन नहीं हैं इसलिए नेहा की चुड़ैल माँ के घर में न होने की पाॅसिब्लिटी न के बराबर हैं, ऊपर से आज दीदी के ऑफिस का हाॅफ डे होने की वजह से इस वक्त वे भी घर में फन फैलाए बैठी होगी। एक घंटा यही रूककर धूप में बैठी रहूँगी, तब भी कपड़े पूरी तरह से नहीं सूखेंगे, क्योंकि ठंड का मौसम होने की वजह से धूप भी तेज नहीं हैं। यार, मुझे सुसाइड करने के लिए इस सीजन में ये तरीका नहीं चुनना चाहिए था और चुना भी था तो इतना तो सोचना चाहिए था कि यदि बाइ चांस मुझे किसी ने बचा लिया तो उसके बाद मैं क्या करूँगी ? साले, इस बचाने वाले को भी तो सोचना चाहिए था कि जिस यंग गर्ल को वो बचा रहा हैं, वो गीले कपड़ों में यहाँ से घर कैसे जाएगी। बचाना था तो पानी में जम्प लगाने से पहले ही मुझे रोक लेता, लेकिन तब तो ये मुझे रोकने की बजाए झाड़ियों के पीछे से सुसाइड डूबने के लिए राइट प्लेस बता रहा था और अभी भी सामने आकर मेरी प्राॅब्लम का कोई साॅलुशन बताने की जगह पेड़ के पीछे छुपकर बैठा हैं। कैसा अजीब-सा बंदा हैं न यार ये। दो बार बात की तो शक्ल नहीं दिखाई और एक बार शक्ल दिखाई तो मुँह से कुछ बोला नहीं। चलो, इस बार इसकी शक्ल देखते हुए इसके साथ बात करती हूँ। ये भी पता चल जाएगा कि ये एग्जेक्टली हैं किस टाइप का और ये भी पता चल जाएगा कि इस सिच्युएशन से निकलने में ये मेरी कोई हेल्प कर सकता हैं या नहीं।"
"वहीं रूकिए, मैं दो मिनट में वहीं आ रहा हूँ।" खुद के साथ बातचीत बंद करके मैंं खड़ी हुई और दो-तीन कदम भी आगे नहीं बढ़ी थीं, तभी मुझे एक बार फिर उस अजनबी मददगार की आवाज सुनाई दीं तो मुझे न चाहते हुए भी अपने कदमों को ब्रेक लगाना पड़ा।
"उस पेड़ के पीछे आपकी कोई गर्लफ्रेंड छुपी हुई हैं क्या ?" डेढ़-दो मिनट बाद पेड़ के पीछे से निकलकर वो अजनबी मददगार मेरे पास आया तो मैंने उससे सवाल किया।
"मेरी कोई गर्लफ्रेंड हैं हीं नहीं तो उस पेड़ के पीछे कहाँ से आकर छुप जाएगी ?" उसने शांत स्वर में जवाब दिया।
"तो आपने मुझे वहाँ आने से क्यूँ रोक दिया था ?"
"उस समय मैं सिर्फ अंडरगारमेंट्स पहने हुए था, इसलिए।"
"क्यूँ ?"
"अरे यार, हर इंसान के अंदर इतना काॅमन सेंस तो होना हीं चाहिए कि किसी इंसान के पूरे गीले हो जाए और वो इस टाइप किसी सुनसान जगह पर हो तो वो जनरली उतने कपड़े उतारकर अलग सूखने डाल देता हैं, जितने कपड़ों के बिना उसे कोई देख भी ले तो......।"
"मैं आपकी बात समझ गई, बट मैं तो यहाँ भी अपने ......।"
"नो नीड टू एक्सप्लेन, बिकाॅज आई आलरेडी नो योर लिमिटेशन्स और इसी वजह से मैंने आपको गीले कपड़ों से निजात दिलाने की कोशिश नहीं की।"
"थैंक्स, बट मुझे तो कैसे भी करके अपने कपड़ों के गीलेपन से निजात पाना हीं पड़ेगा, क्योंकि मैं इन कपड़ों में यहाँ से कहीं भी नहीं जा सकती।" न जाने क्यूँ मुझे वो अजनबी कुछ देर की हीं मुलाकात में मुझे इतना अपना-सा लगने लगा था कि मैंने अपनी प्राॅब्लम उसके सामने इस तरह बेझिझक होकर रख दीं, जैसे वो मेरा काफी पुराना और काफी क्लोज फ्रेंड हो।
"यू आर राइट, बट ये बात किसी लांग जम्प काॅन्टेस्ट की फाइनलिस्ट की तरह दौड़कर तालाब में जम्प लगाने से पहले सोचना चाहिए था कि बाइ चांस आपको किसी ने मरने से पहले बाहर निकाल लिया तो आप इन गीले कपड़ों में घर कैसे जाएगी।"
"मुझे पता था क्या कि आप अचानक ओलिम्पिक स्विमर की तरह तालाब में कूदकर मुझे मरने से पहले बाहर निकाल लेंगे, जो मैं इस बारे में पहले सोचती ?"
"आपकी इस बात में तो लाॅजिक हैं, बट आप जो करने जा रहीं थीं, उसमें मुझे कोई लाॅजिक नजर नहीं आया। आई थिंक, इंसान को किसी भी सिच्युएशन में सुसाइड करने के बारे नहीं सोचना चाहिए।"
"आई कम्प्लिटली एग्री विद यू बट किसी इंसान को अपने घर में हर वक्त सिर्फ उलाहना और नफरत हीं मिलती हो और उसके बाहर भी उसके साथ हमदर्दी जताने वाला कोई न हो, ऊपर उसे हर फील्ड में लगातार एक के बाद एक नाकामयाबियाँ मिल रही हो तो वो मौत को गले नहीं लगाएगा तो क्या करेगा ?"
"आई डोंट एग्री विद यू क्योंकि हर इंसान के पास अपनी लाइफ की प्राॅब्लम्स साॅल्व करके अपनी जिंदगी खुशनुमा बनाने के ढेर सारे सालुशन्स होते हैं, लेकिन कुछ लोगों के साथ दिक्कत ये होती हैं कि उन्हें प्राॅब्लम्स के साॅलुशन्स दिखाई नहीं देते हैं। एक मिनट, लगता हैं कि उस प्राॅब्लम का साॅलुशन आ गया हैं जिसके लिए आप पिछले पाँच मिनट से परेशान हैं ?"
"मतलब ?" मैंने उलझनभरी निगाहों से उसकी ओर देखते हुए पूछा।
लेकिन उसने मेरे सवाल को नजरअंदाज करके अपने मोबाइल पर आयी किसी काॅल रिसीव की और काॅलर से आधे मिनट तक बात की और मुझसे 'दो मिनट में आ रहा हूँ' कहकर मेरे काॅलेज के अपोजिट डायरेक्टन में चला गया।
'अरे, ये बिना कोई रिजन बताए कहाँ चला गया ? कहीं ये मेरे साथ कोई गेम प्ले तो नहीं कर रहा हैं ?' उसके कुछ कदमों की दूरी करते हीं मैंने अपने दिमाग से सवाल किया।
'अरे यार सौम्या, कितनी ज्यादा शक्की हो गई हैं तू ? वो प्यारा बंदा तुझे किस एंगल से इस टाइप का लग रहा हैं ?' मेरे दिमाग के कुछ तय कर पाने पहले हीं मेरे दिल ने मुझे जवाब दे दिया।
'हाँ सौम्या, वो जो कोई भी हैं, काफी अच्छा लड़का हैं। उसने तेरी जान बचाने के लिए कितनी मेहनत की और तुझे इस बात का अहसास तक नहीं कराया कि उसने तुझ पर कोई अहसान किया। ऊपर से उसने तुझे कोल्ड से बचाने के बहाने तेरे कपड़े....।' मेरे दिमाग ने दिल की बात का समर्थन किया।
'ओके-ओके, समझ गई यार। एक्चुअली, मुझे भी वो बहुत क्यूट लग रहा हैं, बट वो मेरे साथ इस तरह का बिहेव क्यूँ कर रहा हैं, जैसे उसकी नजरों में मेरी एक लिविंग थिंग से ज्यादा वेल्यु न हो ? पहले उसने ये भाप लेने के बाद भी कि तालाब में सुसाइड करने के इरादे से जम्प मारने वाली हूँ, कोई एक्साइटमेंट नहीं दिखाया और फिर मुझे निकालने के बाद भी मुझे मेरे हाल पर छोड़कर अपने कपड़े सुखाने में बिजी हो गया।' मैंने अपने दिल और दिमाग के सामने अपनी बात रखी।
'सौम्या, तू कितनी अजीब लड़की हैं यार ? उसने तेरी गरिमा और लज्जा को कोई ठेस न पहुँचे, इसलिए तुझे सिर्फ उतना हीं ट्रीटमेंट दिया, जितना तेरी जान बचाने के लिए जरूरी था तो तुझे उसका बिहेव ठीक नहीं लग रहा हैं और तुझे वो इससे ज्यादा ट्रीटमेंट दे देता तो तू कहती, साले ने मुझे ट्रीटमेंट देने के बहाने .....?'
'साॅरी यार, बट वो मेरे होश में आने के बाद मुझसे सिम्पैथी तो जता हीं सकता था।'
'क्यूँ , वो तेरा कोई क्लोज फ्रेंड या क्लोज रिलेटिव हैं जो उसके तेरे साथ सिम्पैथी न जताने पर गुस्सा हो रहीं हैं ?'
'सही कहा यार, मैं उसकी क्या लगती हूँ जो वो मेरे साथ सिम्पैथी जताएगा या मेरे सुसाइड करने का रिजन पूछेगा। मुझे तो लगता हैं कि उसने मेरी इतनी हेल्प भी न चाहते हुए मजबूरी में की और वो मेरी कपड़ों की प्राॅब्लम साॅल्व करके मुझे बिना बुलाए गले पड़ी मुसीबत की तरह मुझसे छुटकारा पाकर ऐसे भूल जाएगा, जैसे वो मुझसे कभी मिला हीं नहीं।'
'क्या तू भी उसे भूल जाएगी ?'
'मैं तो उसे कभी नहीं भूल पाऊँगी। वो एक मधुर ख्वाब की तरह हमेशा मेरी यादों में रहेगा।'
'सिर्फ यादों में ?'
'हाँ।'
'यार सौम्या, ये तू ये कैसी बातें कर रही हैं ? तू तो हमेशा कहती थीं कि तुझे कोई ऐसा क्यूट-सा लड़का मिल जाए जिसके अंदर खूबसूरत लड़कियों को देखकर अनदेखा करने की अदा हो और जिसे खूबसूरत लड़कियों के आगे-पीछे घूमकर उन्हें इम्प्रेस करने में बिल्कुल भी इन्ट्रेस्ट न हो तो तू उसकी ओर हाथ बढ़ाने में जरा-सी भी देर लगाएगी और अब जब तुझे इस टाइप का लड़का मिल गया तो तू भाव खा रही हैं।'
'अरे यार, मैं भाव नहीं खा रही हूँ। मैं तो उससे गुस्सा हूँ। साला, एक तो इतने इंतजार के बाद मिला, ऊपर से मुझ पर जरा-सा भी ध्यान नहीं दे रहा हैं।'
'सौम्या, तुझे पक्का यकीन हैं कि ये वही हैं जिसकी तुझे लम्बे समय से तलाश थीं ?'
'हाँ यार, तभी तो मुझे उसके रूखे बर्ताव पर इतना गुस्सा आ रहा था, अदरवाइज मैं बेवकूफ हूँ क्या जो ये चाहती कि जिसे मैं जानती तक नहीं, उसे मेरी केयर करनी चाहिए।'
'सौम्या, तू कुछ ज्यादा तेज नहीं चल रहीं हैं ?'
'अरे, हद हो गई यार। बीस साल की उम्र हो जाने के बाद किसी के बारे में पहली बार कुछ सोचा और फिर भी तुम्हें सौम्या तेज चलती नजर आने लग गई।'
'साॅरी यार, मेरे कहने का मतलब ये नहीं था। मैं तो सिर्फ ये चाह रहा हूँ कि पहले जाँच-परख कर लें, फिर कुछ सोचना।"
'अरे यार, मैं इतनी भी बेवकूफ नहीं हूँ कि बिना जाँचे-परखे उसकी ओर हाथ बढ़ा दूँगी, बट आई एम श्योर कि वो मेरी कसौटी पर पक्का खरा उतरेगा, लेकिन ये भी तय हैं कि मैं इसकी कसौटी पर हीं खरी न उतरूँगी, क्योंकि उस पर मेरा फर्स्ट इम्प्रेसन काफी खराब पड़ा होगा। पता नहीं, वो मुझे कैसी लड़की समझ रहा होगा ? मुझे भी क्या जरूरत थीं, यहाँ आकर तालाब में छलाँग लगाने की ? इतने दिनों से जैसे अपमान के घूँट पीकर जी रही थीं, वैसे हीं आज हुए अपमान का जहर भी पीकर पचा लेती।'
'अरे बेवकूफ, तू यहाँ आकर इस तालाब छलाँग नहीं लगाती तो इससे तेरी मुलाकात भी नहीं होती और कभी होती भी तो न ये तुझ पर ध्यान देता और न तू उस पर।'
'हाँ यार, ये करके मैंने एक तरह से ....।'
"फिर से तालाब में जम्प मारने के बारे में तो नहीं सोच रही हैं ?" उस अजनबी ने मेरे करीब आकर मुस्कराते हुए सवाल किया तो मेरी अपने दिल और दिमाग के साथ चल रही बातचीत में अचानक व्यवधान पैदा हो गया। मैं अपने शरीर के दोनों कलपुर्जो के साथ बातचीत में इतनी मग्न थीं कि मुझे उसके आने के भनक तक नहीं लगी।
"कहाँ चले गए थे ?" मैंने उसके कोश्चन को इग्नोर करके उसी से एक कोश्चन कर लिया।
"आपके लिए कपड़े लेने।"
"मार्केट ?"
"अरे यार, इतनी जल्दी कोई मार्केट जाकर कपड़े खरीदकर वापस आ सकता हैं क्या ?"
"तो कहाँ से लेकर आए ?"
"एक दोस्त मेरे कहने पर मार्केट से खरीदकर लाया और सामने वाली रोड पर आकर मुझे दे गया। एक्चुअली, मैंने उसे आपके पेट से पानी निकालने के बाद ही काॅल करके ये काम करने के लिए कह दिया था।"
"उसने पूछा नहीं कि ये कपड़े आपने किसके लिए मँगाए ?"
"पूछा था।"
"तो आपने क्या कहा ?"
"बाद बताऊँगा, कहकर भगा दिया।
"बाद में पूछेगा तो क्या कहेंगे ?"
"कह दूँगा कि मेरा गर्ल्स की ड्रेस पहनने का मन हो रहा था, इसलिए मँगा लिए।"
"अरे यार, आप सडनली इस टाइप से बात क्यूँ करने लग गए ? एक सवाल हीं तो किया था मैनें।"
"यू मीन टू से कि ये आपका पहला हीं सवाल हैं ?"
"नहीं, बट मैंने इतने ज्यादा भी सवाल नहीं किए कि आपको इस तरह से चिढ़ जाना चाहिए।
"ओके, आई एग्री विद यू। प्लीज, अब आप टाइमपास करना बंद कीजिए और उन झाड़ियों के बीच जाकर अपने कपड़े चेंज कर लीजिए, जहाँ मैं सबसे पहले बैठा हुआ था।" कहकर उसने अपने हाथ का बड़ा-सा थैला मेरे हाथ में थमा दिया।
"आपके कहने का मतलब हैं कि खुले में ?"
"यहाँ कोई चेंजिंग रूम भी हैं ?"
"नहीं बट .....?"
"अब ये बट-वट छोड़ों यार। वो जगह चारों तरफ से झाड़ियों से ढँकी हुई हैं और इस जगह पर फिलहाल दूर-दूर तक हम दोनों के अलावा कोई नहीं हैं।"
"ओके, मैं जा रहीं हूँ बट .....।"
"अरे यार, मैं ताँका-झाँकी करने नहीं आऊँगा। आपको मुझ पर भरोसा नहीं है तो एक मजबूत क्लेम्बरिंग प्लांट का रोप लेकर मुझे किसी पेड़ से बाँध दो या फिर मैं इतनी दूर चला जाता हूँ कि आपके ड्रेस चेंज करते तक यहाँ आना चाहू तो भी न आ पाऊ।"
"अरे यार, आप बेवजह हीं गुस्सा हो रहे हैं। मैं तो ये कह रही थीं कि ये न्यू ड्रेस पहनकर घर जाऊँगी तो ......?"
"पहले किसी फ्रेंड के जाकर अपनी ओल्ड ड्रेस सूखा लेना और फिर .....।"
"समझ गई, बट अभी काॅलेज .....?"
"काॅलेज वापस मत जाना। ये सामनेवाली रोड से कोई ऑटो पकड़कर .....।"
"बट मेरा बैग तो क्लासरूम में हीं हैं, बिना काॅलेज गए उसे कैसे घर ले जाऊँगी ?"
"किसी फ्रेंड को काॅल करके ले जाने के लिए कह देना।"
"थैंक्स फाॅर एडवाइज, बट मैं अपनी किसी फ्रेंड को काॅल कैसे करूँगी ? मेरा मोबाइल तो मेरे बैग में हीं हैं।"
"मेरे मोबाइल से कर लेना यार।"
"ये तो मैंने भी सोचा था, बट मुझे काॅलेज की अपनी किसी फ्रेंड का काॅन्टेक्ट नम्बर याद नहीं हैं।"
"डोंट वॅरी, मैं पता करके आपको बता देता हूँ। बताइए, आपकी किस फ्रेंड का काॅन्टेक्ट नम्बर आपको चाहिए ?"
"दीपिका मिश्रा तो एक नम्बर की कमीनी हैं। उसे बैग ले जाने के लिए कहा तो वो अपने घर न ले जाकर मेरे घर छोड़ेगी ताकि मेरे फेमिली मेम्बर्स मुझपर काॅलेज से बंक मारने का एलीगेशन लगाकर मेरी क्लास ले। साक्षी यादव तो मेरे घर बैग छोड़ने नहीं जाएगी, बट वो नेहा को बता देगी कि ....।"
"ओ मैडम, ......।"
"साॅरी-साॅरी, प्लीज डाँटना मत। अब मैं डायरेक्ट राइट पर्सन का नेम बता रही हूँ। बस एक सेकेंड सोच लेने दीजिए। हाँ, आप विनीता शर्मा का नम्बर पता कर लीजिए, तब तक मैं ड्रेस चेंज करके आ जाती हूँ।"
"अरे यार, उसकी क्लास तो बता दीजिए। ओनली बाइ नेम .....।"
"बीएससी फिफ्थ सेम।"
"बाॅयो या मैथ्स ?"
"मैथ्स ।"
"आपका भी यही सब्जेक्ट हैं क्या ?"
"हाँ, सेम सब्जेक्ट-सेम क्लास।"
"ओह ! इसीलिए मैडम जी के दिमाग के सारे कलपुर्जे हिले हुए हैं। अरे आप जाइए, मैंने आपसे कुछ नहीं कहा। मैं अपने आपसे बातें कर रहा हूँ, आदत हैं मुझे इसकी।" उस अजनबी की ये बात सुनकर मेरे चेहरे पर मीठी मुस्कान आ गई। मेरा मन हुआ कि मैं कहू कि मुझे भी अपने आपसे बातें करने की आदत हैं लेकिन आपकी तरह बोलकर नहीं, बल्कि मन हीं मन में, पर उसकी फिर डाँट न पड़ जाए, ये सोचकर मन की बात मन में दबाए उन झाड़ियों के बीच चली गई, जहाँ से पहली हीं मुलाकात में मेरा दिल चुरा लेनेवाले बाजीगर की पहली बार मैंने आवाज सुनी थीं।
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