18-02-2019, 04:08 PM
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अनोखी दास्तान
"काका, कल रात की बात को लेकर अभी तक नाराज हो ?" मेज पर काॅफी का प्याला रखकर ऑफिस का प्यून अनोखे अपना उदास चेहरा लिए सौम्या के चेम्बर से बाहर निकल रहा था, तभी अनोखे को सौम्या का सवाल सुनाई दिया तो वह रूककर सौम्या की ओर मुड़ा और अनमने स्वर में बोला- "नहीं मैडम।"
"मुझे पता हैं कि मेरे काका अपनी बिटिया से ज्यादा देर तक नाराज रह हीं नहीं सकते। बाइ द वे, आप कल को मुझे बार-बार काॅल क्यूँ किसलिए कर रहे थे ?"
"आपसे एक छोटा-सा काम पड़ गया था।"
"वो काम हुआ या नहीं ?"
"नहीं।"
"तो अब मुझे बता दीजिए, मेरी केपिसिटी के बाहर का नहीं होगा तो मैं जरूर करा दूँगी।"
"रहने दीजिए मैडम।"
"क्यूँ ?"
"क्योंकि हम जैसे छोटे-मोटे कर्मचारियों को अपनी जरा-जरा सी समस्याओं के लिए आप जैसे बड़े अधिकारियों को परेशान करना सही नहीं हैं।"
"और ये दिव्य ज्ञान आपको कल रात मेरे मुँह से फोन पर आपके लिए गुस्से से दो-चार उल्टी-सीधी बातें निकल जाने पर प्राप्त हुआ, हैं न ?"
सौम्या को अनोखे से अपने इस सवाल का कोई जवाब नहीं मिला तो कुछ पलों तक जवाब की प्रतीक्षा करने के बाद सौम्या ने अपनी बात आगे बढ़ाते हुए कहा- "काका, ऐसा क्यूँ होता हैं कि अक्सर लोग किसी इंसान के एक बार किए गए दुर्व्यवहार की वजह से उसके लम्बे समय से किए जा मधुर व्यवहार को भूल जाते हैं ? मैं जबसे इस ऑफिस में आयी हूँ तबसे आपकी उम्र का लिहाज करते हुए आपकी बड़ी से बड़ी गलतियों के लिए भी आपको डाँटने से खुद को रोकती आ रही हूँ लेकिन कल रात को अपनी फेमिली प्राॅब्लम्स की वजह से हद से ज्यादा डिस्टर्ब होने के कारण आपको डाँटने खुद नहीं रोक पायी तो आप मुझसे इतना नाराज हो गए कि मेरे पूछने के बावजूद मुझसे अपनी प्राॅब्लम तक शेयर तक नहीं करना चाह रहे हैं।"
"ऐसी बात नहीं हैं मैडम। न मैं आपसे नाराज हूँ और न आपके मेरे किए गए कल रात के दुर्व्यवहार की वजह से आपके लम्बे समय से किए जा रहे मधुर व्यवहार को भूला हूँ। दरअसल, मैं कल रात को अपनी बेटी जूही को उदास देखकर बहुत ज्यादा परेशान हो गया था और मुझे लग रहा था कि मैं उसकी बात आपसे करा दूँगा तो उसका उदासी पूरी तरह से दूर हो जाएगी, क्योंकि आप उसकी आदर्श होने की वजह से आपकी बातें उस पर जादू की तरह असर करती हैं। लेकिन आपने कल रात चार-पाँच बार फोन नहीं उठाया और इसके जब उठाया तो मेरी पूरी बात सुने बिना हीं मुझे बुरी तरह से फटकार कर फोन काट दिया तो मुझे लगा कि आपको अपनी घरेलू समस्याओं के लिए परेशान नहीं करना चाहिए, इसलिए मैं आपको अपनी ये परेशानी नहीं बताना चाह रहा था। आपको बुरा लगा हो तो माफी चाहता हूँ। मुझे पता नहीं था कि आप खुद अपनी पारिवारिक समस्याओं से जूझ रहीं हैं, नहीं तो कल रात को भी बार-बार फोन नहीं करता। कल रात की गलती के लिए भी माफी चाहता हूँ। भविष्य में कभी आपसे अपनी घरेलू परेशानियों को हल करने के लिए मदद माँगकर आपको परेशान नहीं करूँगा।"
"काका, आपने ये अभी ये कहकर मेरे दिल को जो चोट पहुँचाई हैं कि आप इन फ्यूचर कभी मुझसे अपनी डोमेस्टिक प्राॅब्लम को साॅल्व करने में हेल्प नहीं लेंगे, उसके लिए तो माफी माँगी हीं नहीं, जबकि आपको सिर्फ अपनी कही हुई इस बात के लिए माफी माँगने जरूरत हैं। चलिए, कोई बात नहीं। मैं आपको इस बात के लिए ऐसे हीं माफ कर देती हूँ लेकिन इस शर्त पर कि आप इन फ्यूचर मेरे साथ कभी भी ऐसी बातें नहीं करेंगे, जिससे मुझे ये लगे कि आप मुझे गैर समझते हैं। बोलिए, मेरी शर्त मंजूर हैं या नहीं ?"
"खुशी-खुशी मंजूर हैं।"
"अब आप ये बताइए कि आप मेरे कल रात के मिसबिहेव के लिए मेरे माफी माँगने पर मुझे माफ करेंगे या मेरी तरह बड़ा दिल दिखाकर बिना माफी माँगे हीं मुझे माफ कर देंगे ?"
"अरे मैडम, जब मैं आपसे नाराज हीं नहीं तो ....।"
"जब आपको पता हैं कि कोई मुझे मेरे कोश्चन का गोल-गोल घुमाकर डिप्लोमेटिक आन्सर देता हैं तो ऐसा आन्ससर मुझे बिल्कुल भी पसंद नहीं आता हैं, फिर आप मेरे कोश्चन का सीधा आन्सर देने की जगह उसकी जलेबी बना रहें हैं। मैं आपको ये मेरे कोश्चन का सीधा आन्सर देने के लिए ये सेकेंड एंड लास्ट चांस दे रही हूँ। यदि आपने इस बार मेरे कोश्चन की जलेबी बनाई तो हम दोनों के बीच का काका-बिटिया का रिश्ता हमेशा-हमेशा के खत्म हो जाएगा और इसके रिस्पांसिबल आप होंगे। चलिए, जल्दी से जवाब दीजिए क्योंकि आज की जनसुनवाई की कार्रवाई स्टार्ट करने का टाइम हो गया हैं।"
"मैं भी आपको ऐसा हीं माफ कर रहा हूँ।"
"थैंक्स। अब आप अपनी काॅफी उठाकर ले जाइए और बाहर खड़े लोगों में से बुजुर्गों और महिलाओं को प्राथमिकता देते हुए एक-एक करके अंदर भिजवाइए।"
"दूसरी काॅफी लेकर आना हैं नहीं ?"
"नहीं।"
"क्यों ?"
"क्योंकि मैंने अपना सारा टी-टाइम आपके साथ पर्सनल बातचीत में खर्च कर दिया हैं और ड्यूटी के टाइम से समय चुराकर चाय-काफी या किसी दूसरे पर्सनल काम के लिए खर्च करना मेरे प्रिंसिपल्स के खिलाफ हैं। ये बात आप खुद भी समझ लीजिए और बाहर घूम रहे हमारे ऑफिस के बाकी के कर्मचारियों को भी समझा दीजिए।"
"जी मैडम।" कहकर अनोखे मेज से काॅफी का प्याला उठाकर चेम्बर से बाहर निकल गया।
...........
ठंड के मौसम का सुबह के करीब साढ़े-आठ बजे समय था। सौम्या के सरकारी बंगले के लाॅन में सुहावनी धूप फैली हुई थीं। बंगले के कम्पाउंड के गेट से बंगले में जाने के रास्ते और कम्पाउंड में दाई ओर बनी पाॅर्किंग तक वाहनों के आने-जाने के रास्ते के छोड़कर पूरी लाॅन हरी-भरी मुलायम घास से ढँका हुआ था। लाॅन में मौजूद घास शबनम की बूँदों से बुना हुआ और लाॅन में बैठी सौम्या का भोला मुखड़ा चिंता व शोक से बुना हुआ चादर ओढ़े हुआ था।
सौम्या का मन कहाँ भटक रहा था, ये तो तय कर पाना मुश्किल हैं, लेकिन ये तो तय था कि उसका मन वहाँ हर्गिज नहीं था जहाँ उसकी काया मौजूद थीं, क्योंकि यदि उसका मन उसकी काया के साथ होता तो वह तेईस-चौबीस साल की उम्र की एक नवयुवती के स्कूटी लेकर बंगले के कम्पाउंड में दाखिल होने और अपनी स्कूटी पाॅर्क करके उसके करीब आकर खड़ी हो जाने की बात से बेखबर न होती।
"दीदी, हैलो ...। अरे, किसकी यादों में खोई हुई हो यार ?" काफी देर तक शांत खड़ी रहकर सौम्या की तंद्रा खुद-ब-खुद भंग होने का इंतजार करने के बाद आगंतुक नवयुवती ने चुटकी बजाते हुए शरारती लहजे में कहा तो सौम्या कुछ इस तरह से चौंक उठी, जैसे उसे गहरी नींद से जगा दिया गया हो।
"अरे जूही, तुम कब आयी ?" ख्यालों की दुनिया से बाहर निकलकर यथार्थ के धरातल के साथ ताल-मेल बिठाने का प्रयास करते हुए सौम्या ने आगंतुक नवयुवती से सवाल किया।
"करीब दो मिनट पहले।"
"मैं यहाँ बैठकर तुम्हारा हीं इंतजार कर रही थीं, लेकिन जिंदगी के बुने हुए मकड़जाल में उलझ जाने की वजह से मुझे तुम्हारे आने की भनक तक नहीं लगी। बैठों, मुझे तुम्हारे साथ कुछ जरूरी बातें करनी हैं।"
"कहिए ..।" सामने पड़ी खाली कुर्सी पर बैठने के बाद जूही ने उसकी ओर सवालिया निगाहों से देखते हुए कहा।
"मैंने तुमसे ये जानने के लिए यहाँ बुलाया हैं कि तुम परसो रात को किस वजह से इतनी ज्यादा उदास हो गई थीं कि तुम्हारे पापा को परेशान होकर मुझे बार-बार काॅल करने के लिए मजबूर होना पड़ा ?"
"इसकी कोई खास वजह नहीं थीं दीदी, बस पिछली बार के आईपीएस के प्री-टेस्ट की तरह इस बार आईएएस के प्री-टेस्ट में भी मेरी उम्मीदों पर पानी फिर गया, इसलिए थोड़ी निराश हो गई थीं।"
"थीं या अभी भी हो ?"
"अरे दीदी, जिसकी रोल माॅडल आप जैसी ग्रेट पर्सन हो, उसे अपना खोया हुआ काॅन्फिडेंस रिकवर करने में इतना समय लगेगा क्या ?"
"गुड ! मुझे तुम्हारा रिप्लाई बहुत पसंद आया। अब तुम ऐसा करों, पिछली नाकामयाबियों को भूल जाओ और अगले एग्जाम की तैयारी में अभी से जुट जाओं। मेरे गाईडेंस या कोई और हेल्प की जरूरत पड़े तो बेझिझक मेरे पास चली आना, ओके ?"
"जी दीदी।"
"चाय-काॅफी कुछ लोगी ?"
"नहीं दीदी, घर से कम्प्लिट ब्रेक फास्ट लेकर निकली हूँ।"
"तो ठीक हैं, अब तुम जा सकती हो।"
"दीदी, आप परमिशन दे तो मैं आपसे एक कोश्चन करना चाहती हूँ।"
"पूछो, क्या पूछना चाह रही हो ?"
"दीदी, हर वक्त आपकी आँखों में अजीब-सा दर्द क्यूँ नजर आता हैं ? पिछले एक-डेढ़ माह से तो आप कुछ ज्यादा उदास नजर आ रही हैं। ये आपकी कोई अधूरी आरजू की टीस हैं या ये किसी टूटे हुए ख्वाब के नुकीले टुकड़ों की चुभन का दर्द हैं जो आप दुनिया से छुपाकर रखती हैं ? मेरी बहुत बार इच्छा हुई कि आपसे इस बारे में बात करूँ, लेकिन आपकी पर्सनाल्टी ऐसी हैं कि आपसे ज्यादा सवाल-जवाब करने की हिम्मत हीं नहीं होती। आज भी मैंने आते हीं आपके साथ हँसी-मजाक करने की कोशिश की, लेकिन जैसे आपने मेरी ओर देखा, वैसे हीं मेरी हिम्मत जवाब दे गई। ये जानने के बाद भी कि आप नारियल की तरह ऊपर से हार्ड और अंदर से बिल्कुल साॅफ्ट हैं, फिर भी पता नहीं क्यूँ आपसे आपकी पर्सनल लाइफ के बारे में पूछने डर लगता हैं। आज मैं बड़ी मुश्किल से हिम्मत जुटाकर अपना कोश्चन आपके सामने रख पायी हूँ। यदि आपको लगता हैं कि आपको मुझे इसका आन्सर दीजिए, अदरवाइज मैं बिना आन्सर लिए जा सकती हूँ बट आपसे रिक्वेस्ट हैं कि आप मेरे इस टाइप का कोश्चन करने की बात का बुरा मत मानिएगा। आप कीजिए, मैंने ...।"
"अरे, हो गया यार। इतनी छोटी-सी बात के लिए कितनी सफाई दोगी ? एक कोश्चन हीं तो पूछा हैं तुमने, कोई क्राइम तो किया नहीं हैं जो एक के बाद एक सफाई दिए जा रही हो।"
"क्या अब मैं जाऊँ ?"
"क्यूँ , अपने कोश्चन का आन्सर नहीं सुनना हैं ?"
"इसका मतलब ये हुआ कि आप मुझे मेरे कोश्चन का आन्सर देने के लिए एग्री हैं। दिस इज ग्रेट एचिवमेंट फाॅर मी। इस पूरे डिस्ट्रिक्ट में शायद मैं हीं पहली ऐसी पर्सन हूँ जो इस डिस्ट्रिक्ट के भू-माफियाओं, खनन-माफियाओं, मिलावटखोरों, शराब-माफियाओं और तमाम तरह के दो नम्बर के कारोबारियों की रातों की नींदे और दिन का चैन उड़ाने वाली यंग कलेक्टर साहिबा की पर्सनल लाइफ के बारे में जानने का एचिवमेंट हासिल करने जा रहीं हैं। एम आई राइट दी ?"
"यू आर एब्सॅल्यूटली राइट, बट इतने छोटे-से एचिवमेंट के लिए तुम्हें इतना एक्साइटेड नहीं होना चाहिए, क्योंकि तुम भी फ्यूचर की आईएएस ऑफिसर हो, इसलिए तुम्हारे लिए एग्जाम की तैयारी के साथ-साथ अपने एक्साइटमेंट को काबू में रखना भी सीखना जरूरी हैं, अदरवाइज तुम एज द आईएएस ऑफिसर अपनी कोई विशिष्ट छाप नहीं छोड़ पाओगी।"
"ये सब मैं आपसे किसी और दिन सीख लूँगी, अभी तो आप मुझे अपनी लाइफ की स्टोरी सुना दीजिए, ताकि ये सन्डे मेरे लिए सुपर सन्डे बन जाए।"
"ठीक हैं, सुनो। मैं अपनी लाइफ की स्टोरी को उस चैप्टर से स्टार्ट करती हूँ, जो मेरी लाइफ का अब तक का सबसे खास और यादगार चैप्टर हैं। आज से लगभग सात साल पहले की बात हैं। उस समय मैं लगभग बीस साल की थीं और अपने होम टाउन में अपनी फेमिली के साथ रहकर उसी शहर के एक बड़े काॅलेज में एज द बीएससी फिफ्थ सेम स्टूडेंट स्टडी कर रही थीं। एक दिन मैं अपनी पहले से हीं तनावग्रस्त जिंदगी में एक बेहद अप्रिय घटना घट जाने की वजह से जिंदगी से पूरी तरह से हताश हो गई और सुसाइड करके अपनी जीवनलीला की इतिश्री करने के इरादे से अपने काॅलेज के पीछे मौजूद तालाब के पास पहुँच गई। इसके मैंने पहले आसपास देखकर ये सुनिश्चित किया कि मुझे अपनी जीवनयात्रा पर फुलस्टाॅप लगाने से रोकने वाला कोई नहींं हैं और और फिर तालाब के चक्कर लगाकर उस जगह की तलाश करने लगीं, जहाँ डूबने लायक गहरा पानी भी हो और उस जगह पर तालाब के किनारे से फर्स्ट अटैम्प में जम्प करके आसानी से पहुँचा भी जा सकता हो, क्योंकि मुझे लग रहा था कि मैं किनारे से छलाँग लगाते हीं सीधे पूरी तरह से डूबने लायक पानी में नहीं पहुँच पायी तो फिर शायद आगे बढ़कर गहरे पानी में जाने या बाहर आकर दुबारा तालाब कूदने का हौसला नहीं जुटा पाऊँगी और मुझे अपनी बदरंग और तनावग्रस्त जिंदगी के बोझ को ढोना कन्टिन्यु रखना पड़ेगा।" अपने जीवन की दास्तान सुनाते-सुनाते सौम्या अपने अतीत के गलियारे में पहुँच गई। वह अपने सामने नजर आनेवाली घास से ढँकी जमीन को इस तरह से देख रही थीं, जैसे उसे करीब सात वर्ष पूर्व उसके साथ घटी उस घटना के दृश्य जमीन के उस हिस्से पर नजर आ रहे हो, जो उसके अनुसार उसके जीवन के सबसे खास व यादगार अध्याय की शुरुआत थीं।
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