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Romance मोक्ष : तृष्णा से तुष्टि तक
#65
अध्याय 25


इधर अनुराधा के ऊपर जाने के बाद रागिनी ने ऋतु को साथ लिया और अपने कमरे में आकर पलंग पर बैठ गयी।

“क्या सोचा है ऋतु... उस समय में सबके सामने इस कंपनी को लेकर कोई बात नहीं करना चाहती थी.... अगर कोई ऐसी कंपनी है जिसमें हमारे पूरे परिवार की हिस्सेदारी है... तो उसे चला कौन रहा है... ये तुम्हें पता लगाना होगा.......और सबसे बड़ा सवाल ये है की अब तक पूरे घर में अकेला विक्रम ही ऐसा था जो सबसे जुड़ा हुआ था... तो उसकी मौत पर बाकी कोई क्यों नहीं आया.... यहाँ तक की न तो कंपनी से कोई आया और न ही शांति को किसी ने खबर दी... जबकि होना तो ये चाहिए कि जब राणा जी कि सारी संपत्तियाँ और अधिकार विक्रम के पास हैं तो कंपनी भी विक्रम ही चला रहा होगा... और कंपनी के पास पूरी डिटेल्स भी होंगी कि कौन कौन हैं परिवार में हैं और कहाँ हैं.... क्योंकि उन सबको कंपनी पैसा भेजती होगी...................और ये बड़े ताऊजी के बेटे राणा रवीद्र प्रताप सिंह जिंदा भी हैं या नहीं, हैं तो कहाँ हैं, इनका परिवार कहाँ है, इनके और भाई बहन भी होंगे.............. लेकिन कमाल है.......... जो परिवार का मुखिया है...........उसी का कोई अता-पता नहीं... यहाँ तक कि बड़े ताऊजी से जुड़ी किसी भी बात का कहीं कोई जिक्र ही नहीं.................. मोहिनी चाची भी बहुत कुछ जानती हैं...... लेकिन उन्होने हमें तो छोड़ो कभी तुम्हें भी किसी बात कि भनक नहीं लगने दी।”

“दीदी...दीदी...दीदी... इतना भी मत सोचो.... अभी कल ही तो अप कह रहीं थीं की सबकुछ भूलकर हम सब को नए सिरे से शुरुआत करनी है.............और अब फिर से आप इन्हीं उलझनों में डूबती जा रही हो” ऋतु ने भी रागिनी के दूसरे हाथ को अपने हाथ में पकड़ा और प्यार से उसके माथे को चूमते हुये कहा

“एक उलझन खत्म होती है तो दूसरी शुरू हो जाती है.......अब देख लो तुम्हारे ताऊजी यानि मेरे पिताजी का एक और नया कारनामा शुरू हो गया... मुझे तो ये समझ नहीं आता कि हमारे घर में हमसे बड़े-बड़े सभी ऐसे ही थे क्या.... बलराज चाचाजी के कारनामे सुधा ने सुनाये ही.... गजराज चचाजी का कुछ पता नहीं... और अब ये जयराज ताऊजी .... इंका कोई कारनामा तो सामने नहीं आया है... लेकिन इनके बेटे राणाजी का वजूद तो विक्रम से भी ज्यादा जबर्दस्त था घर में.... लेकिन घर के मुखिया होते हुये भी उनका कोई अता-पता नामो-निशान ही नहीं कि वो आखिर कहाँ गायब हो गए.... उनके कोई और भाई-बहन थे या नहीं, उनकी शादी भी हुई या नहीं... अगर हुई तो उनकी पत्नी बाल-बच्चे सब कहाँ हैं........” रागिनी ने कहा 

“दीदी एक बात आप भूल रही हैं?” ऋतु ने मुसकुराते हुये कहा

“क्या?” रागिनी ने आश्चर्य से पूंछा

“बड़े ताऊजी का भी एक कारनामा सामने आ चुका है, .... उनका अपनी पहली पत्नी से संबंध विच्छेद हो गया था और उन्होने दूसरी शादी भी कि थी... और उनकी दूसरी पत्नी के एक बेटी भी हुई थी 14 अगस्त 1979 को.... अब ये नहीं पता कि उनकी पहली पत्नी के कोई संतान थी या नहीं... और ये राणाजी भाई साहब पहली ताईजी के बेटे हैं या दूसरी के....

दीदी सवाल बहुत से हैं लेकिन जवाब हमें खुद ही ढूँढने होंगे........हर सवाल के.... इसलिए आप अभी निश्चिंत होकर सो जाओ.... में भी सो रही हूँ और कल सुबह से इन सबके बारे में पता लगाने के बारे में सोचते हैं” ऋतु ने कहा तो रागिनी भी अनमने मन से बिस्तर पर लेट गयी और ऋतु भी उसके बराबर में ही लेटकर सोने कि तैयारी करने लगी

...........................................

सुबह उठकर सभी ने सामान्य तरीके से अपनी दिनचर्या में लग गए। अनुराधा और प्रबल को कॉलेज जाना था तो वो दोनों तैयार होने लगे, इधर अनुभूति भी ऊपर अपने कमरे में तयार हो रही थी...उसे भी स्कूल जाना था। शांति को रागिनी ने सुबह ही नीचे बुला लिया था और अब वो दोनों मिलकर रसोईघर में बच्चों के लिए नाश्ता तैयार करने लगीं... थोड़ी देर बाद ऊपर से अनुभूति अपना बैग लेकर स्कूल ड्रेस में तैयार होकर आ गयी... उसने देखा की हॉल में कोई नहीं है तो वो अपना बैग वहीं रखकर रसोईघर में पहुंची और रागिनी को नमस्ते किया

“आंटी नमस्ते” उसकी आवाज सुनते ही रागिनी ने पलटकर देखा तो अनुभूति दरवाजे में खड़ी रागिनी को ही देख रही थी

“आंटी! माँ आप देख रही हैं... सबकुछ जानकर भी ये मुझे आंटी ही कह रही है” रागिनी ने शांति से कहा

“अब आपने जैसे मुझे जो कहा वो मानना ही पड़ा... ऐसे ही उसे भी आप समझा ही लेंगी” शांति ने मुसकुराते हुये रागिनी और अनुभूति की ओर देखकर कहा

“देखो माँ... मेंने आपसे कुछ गलत तो नहीं कहा.... जब आपने मेरे पिताजी से बकायदा शादी की है तो फिर आप मेरी माँ ही हुई ना.... लेकिन अब भी आप मेरी पूरी बात नहीं मान रहीं.... आप मुझे आप नहीं तुम कहकर बुलाया करो” रागिनी ने शांति से कहा और फिर अनुभूति की ओर देखकर बोली “सुन छोटी तेरे और मेरे पिताजी एक हैं.... तेरी माँ को में माँ कहती हूँ... तो में तेरी क्या हुई...क्या कहेगी तू मुझसे”

“जी... जी आप मेरी दीदी हैं...और में आपको दीदी कहूँगी” अनुभूति ने हड्बड़ाते हुए कहा तो रागिनी मुस्कुरा गयी तभी किसी ने पीछे से आकार अनुभूति को अपनी बाहों में भर लिया तो वो चौंक गयी

“अरे बुआ जी आप डर क्यों रही हैं... में हूँ ना...आपके साथ...हमेशा” अनुराधा ने अनुभूति को अपनी ओर घुमाते हुये कहा

“माँ! जल्दी से नाश्ता लगा दो... में और प्रबल छोटी बुआजी को स्कूल छोडते हुये कॉलेज निकल जाएंगे” अनुराधा ने अनुभूति की ओर मुसकुराते हुये देखकर कहा

“नाश्ता तो लगा रही हूँ में........ ऋतु कहाँ है........सुबह से वो कमरे से ही नहीं निकली उसे भी बुला लो.........वो भी नाश्ता कर लेगी” रागिनी ने अनुराधा से कहा तो वो पलटकर रागिनी के कमरे की ओर चली गयी, अनुभूति भी बाहर हॉल में पहुंची तो वहाँ प्रबल पहले ही बैठा हुआ था... अनुभूति दूसरे सोफ़े पर प्रबल के सामने जाकर बैठ गयी....दोनों एक दूसरे को चोरी-चोरी नजरें झुकाये तिरछी नजरों से देख तो रहे थे लेकिन एक दूसरे से बात करने की हिम्मत नहीं कर प रहे थे

“लाली! तू यहाँ कैसे? और देख ये मेरा बॉयफ्रेंड है..... इस पर नजर मत डाल, वरना मुझे जानती है” उन दोनों की आँख मिचोली चल ही रही थी की वहाँ एक नई आवाज गूंजी तो दोनों जैसे होश में आए और हड्बड़ाकर दरवाजे की ओर देखा तो वहाँ से अनुपमा अंदर आती दिखाई दी...अंदर आकर वो सोफ़े पर अनुभूति के पास ही बैठ गयी

“नन...नहीं दीदी ऐसी कोई बात नहीं...” अनुभूति सिर्फ इतना ही बोल पायी डरे हुये चेहरे से 

“अनु ये फालतू की बातें मत किया कर... हर समय तेरे दिमाग में यही भरा रहता है........ ये मेरी बुआ जी हैं....... विक्रम भैया की बहन....” प्रबल ने अनुपमा से कहा तो वो ज़ोर ज़ोर से हंसने लगी

“विक्रम भैया.......... हा हा हा और अब उनकी ये बहन बुआ जी.... हा हा हा हा” अनुपमा ने कहा तो

“अरे पागल वो तो हम बचपन से कहते आए थे इसलिए ये विक्रम कह रहा है...... तुझे तो मालूम ही है... विक्रम चाचाजी या ताऊजी जो भी हों मेरे....... ये उनका बेटा है... और रागिनी बुआ... उनकी बहन हैं..... उनके पिताजी की 2 शादियाँ हुई थी... शांति आंटी की बेटी मेरी और विक्रम की बुआ हुई या नहीं” अनुराधा ने भी अंदर आकर प्रबल के पास बैठते हुये कहा

“मुझे नहीं समझ में आता तेरी फॅमिली का... ये इतने साल से यहाँ रह रहीं थीं तब तो ऐसा कुछ सुनने में नहीं आया....अब रागिनी बुआ के आते ही नए नए राज खुल रहे हैं............ चलो कॉलेज चलते हैं” अनुपमा ने कहा

“अभी बस नाश्ता करके चलेंगे... जाते हुये ही रास्ते में छोटी बुआ जी को भी स्कूल छोडते जाएंगे”

तभी ऋतु, रागिनी और शांति भी नाश्ता लेकर आ गईं तो सबने वहीं हॉल में बैठकर नाश्ता किया और अनुराधा सबको गाड़ी में बैठकर निकाल गयी

...................................

अनुराधा, अनुपमा, अनुभूति और प्रबल के जाने के बाद रागिनी ने ऋतु से पूंछा की वो अब क्या और कैसे करेगी तो ऋतु ने बताया कि वो सुबह सॉकर उठने के बाद से ही बिस्तर पर पड़ी इंटरनेट पर इन सब चीजों को ढूंढ रही थी और उसने पवन से भी बात की है.... 

“दीदी ये राणाआरपीसिंह सिंडीकेट बहुत सारी कंपनियों का समूह है...होल्डिंग कंपनी..... इस कंपनी के सीईओ का नाम रणविजय सत्यम है जो वास्तव में कंपनी चला रहे हैं... कंपनी के एमडी विक्रमादित्य सिंह हैं आज भी और चेयरमैन राणाआरपीसिंह हैं, कंपनी के पंजीकृत कार्यालय का पता सुनकर आप चौंक जाएंगी” ऋतु ने बताया

“कहाँ पर है... कोटा हवेली का या गाँव का” रागिनी ने बिना किसी उत्सुकता के शांत भाव से पूंछा

“गाँव का, और मुख्य कार्यालय या संचालन कार्यालय यहीं दिल्ली का है.... गुरुग्राम-महरौली मार्ग पर दिल्ली-हरियाणा सीमा पर आया नगर में....... में यही तो कहती हूँ... मेंने बेशक वकालत पढ़ी है और वकालत कर रही हूँ... लेकिन किसी भी मामले में आप मुझसे जल्दी समझ लेती हैं कि क्या हो सकता है” ऋतु ने मुसकुराते हुये कहा

“और पवन से क्या बात हुई?” रागिनी ने पूंछा

“पवन अभी कुछ देर में आ रहा है में उसके साथ जाऊँगी.... जो, काम के लिए उसे बोला था उसी सिलसिले में कहीं बात करने जाना है... पहले तो घर जाकर अपनी गाड़ी लेकर आती हूँ... क्योंकि एक गाड़ी तो बच्चों को स्कूल-कॉलेज जाने के लिए ही चाहिए, एक आपके और शांति ताईजी के लिए और एक मुझे” ऋतु ने अपना दिन का कार्यक्रम बताया

“ठीक है... लेकिन वहाँ चाचाजी-चाचीजी से कुछ कहना-सुनना मत... वैसे चाहे रहने ही दो उनसे गाड़ी मत लाओ... जरूरत होगी तो एक गाड़ी कोटा से ही और मंगा लेंगे, वहाँ अभी 3 गाडियाँ खड़ी हैं... सुरेश पूनम तो 1-2 गाड़ी ही इस्तेमाल करते होंगे” रागिनी ने जवाब दिया

“नहीं दीदी... ऐसी कोई बात नहीं... गाड़ी के लिए वो कुछ नहीं कहेंगे...” ऋतु ने कहा और तैयार होने चली गयी

...............................................

“पवन! ये तो काफी बड़ी रिटेल चेन है दिल्ली एनसीआर की इसकी फ्रेंचाइजी लेकर हमें पब्लिसिटी या मार्केटिंग करने की जरूरत भी नहीं... इसके तो नाम से ग्राहक खुद चलकर आयेगा और ऑनलाइन भी ऑर्डर आते हैं” ऋतु ने रिटेल स्वराज का बोर्ड देखकर कहा

पवन और ऋतु पहले तो घर से बलराज सिंह के घर गए पवन की बुलेट से फिर वहाँ से ऋतु की कार लेकर ग्रेटर नोएडा में रिटेल स्वराज नाम की कंपनी के ऑफिस गए उनका स्टोर अपने इलाके में शुरू करने की बात करने

घर पहुँचने पर बलराज सिंह और मोहिनी दोनों ने सामान्य तरीके से बात की, मोहिनी चाय बनाने रसोई में गईं तो ऋतु भी रसोई में चली गयी उनके साथ वहाँ मोहिनी ने ऋतु को अपने गले से लगाया और उसके ही नहीं रागिनी, अनुराधा और प्रबल सबके हालचाल लिए। फिर चाय पीकर ऋतु अपनी कार लेकर पवन के साथ ग्रेटर नोएडा चली आयी। पवन की बुलेट वहीं बलराज सिंह के घर छोड़ दी। जब ऋतु मोहिनी के साथ रसोई में थी तो बलराज सिंह ने पवन के साथ बात की और उसके बारे में जानकारी ली।

“मेम! आप अपना बैंक खाता संख्या दे दीजिये और यहाँ हस्ताक्षर कर दें” ऋतु और पवन वहाँ सारी बात करने के बाद जमानत राशि का बैंक हस्तांतरण करके उनके द्वारा अथॉरिटी लेटर मिलने की प्रतीक्षा कर रहे थे तभी एक लड़की ने आकर उनसे कहा

“मेंने सारी जानकारी आपके आवेदन पत्र पर दे दी है... वैसे मेरे बैंक खाते की जानकारी आप क्यों मांग रही हैं...” ऋतु ने कहा

“मेम इस बारे में बात करने के लिए आपको हमारी रिलेशनशिप मैनेजर जिनसे आपकी बात हुई है...उन्होने बुलाया है” उस लड़की ने ऋतु से कहा तो ऋतु भी उठकर उसके साथ चल दी, पीछे-पीछे पवन भी

केबिन में ऋतु के अंदर आते ही वहाँ मौजूद रिलेशनशिप मैनेजर उठकर खड़ी हुई और उसने ऋतु को बैठने को कहा, ऋतु और पवन को थोड़ा अजीब लगा... लेकिन वो सामने पड़ी कुर्सियों पर बैठ गए... उनके पास गयी लड़की ने भी अपने हाथ में मौजूद कागजातों को टेबल पर रख दिया और अपनी मैनेजर के इशारे पर बाहर चली गयी। मैनेजर ने अपनी कुर्सी पर बैठकर उनकी ओर देखा

“सॉरी मेम अपने पहले क्यों नहीं बताया कि आप हमारी पेरेंट कंपनी कि अंशधारक हैं आप कहीं भी और कितने भी स्टोर शुरू करा सकती हैं... आपको कोई जमानत राशि जमा नहीं करनी होगी...आज ही आपके पास कंपनी की फील्ड टीम पहुँच जाएगी उन्हें जगह दिख दें एक सप्ताह के अंदर आपका स्टोर शुरू हो जाएगा...” कहते हुये उसने ऋतु के खाते में जमानत राशि वापस भेजने के लिए एक फॉर्म पर उसके हस्ताक्षर कराये और खाता संख्या लिखकर सिस्टम में अपडेट कर दिया

“आपको किसने बताया की में शेयरहोल्डर हूँ.... मुझे अपनी पेरेंट कंपनी का नाम बताइये?”

“जी ये राणाआरपीसिंह सिंडीकेट की सहायक कंपनी है और आप सिंडीकेट की अंशधारक हैं...आपका आधार नंबर डालते ही हमारे सिस्टम में दिखने लगा....” रिलेशनशिप मैनेजर ने बताया “और आपका मोबाइल नंबर भी अब हमारे सिस्टम में आ चुका है तो किसी भी सहायता के लिए सिर्फ कॉल कर दें”

“ठीक है” बोलकर ऋतु उठकर खड़ी हुई तो वो रिलेशनशिप मैनेजर भी खड़ी हुई और ऋतु से हाथ मिलाया। ऋतु को उसका पहले का व्यवहार और अब का व्यवहार कुछ अलग लगा लेकिन उसने कुछ कहा नहीं और पवन के साथ वहाँ से चली आयी

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इधर ऋतु के जाने के बाद रागिनी और शांति ने घर के काम निबटाये और बैठकर आपस में बात करने लगीं... दोनों ने बात करके ये निर्णय लिया कि अब घर में रहने कि व्यवस्था इस तरीके से कि जाए जिससे पूरा परिवार एक दूसरे के संपर्क में रह सके...इसलिए रागिनी और शांति नीचे कि मंजिल पर रहेंगी.... ऋतु को भी नीचे की मंजिल पर ही साथ रखने का सोचा गया.... लेकिन ये फैसला ऋतु को खुद करना था..... दूसरी मंजिल पर 3 कमरे थे जो तीनों बच्चों अनुराधा, प्रबल और अनुभूति को दिये जाएंगे.... और तीसरी मंजिल के 2 कमरे मेहमानों के लिए...

अभी इन दोनों में बातें चल ही रही थीं कि बाहर एक गाड़ी रुकने कि आवाज आयी दोनों ने दरवाजे पर कोई आहात होने का इंतज़ार किया लेकिन कुछ देर में गाड़ी के दरवाजे खुलने और बंद होने, फिर गाड़ी के वापस जाने की आवाज आयी तो उन्होने सोचा कि शायद कोई आस-पड़ोस में आया होगा इसलिए ज्यादा गौर नहीं किया लेकिन जब उनके गेट पर से घंटी बजाई गयी तो शांति और रागिनी दोनों उठकर खड़ी हुईं और पर पहुँचीं। वहाँ मोहिनी खड़ी हुई थीं... शांति ने गेट खोला और मोहिनी को अंदर आने का रास्ता दिया, मोहिनी के अंदर आने के बाद गेट बंद करके तीनों हॉल में आ गईं। अब तक न मोहिनी ने कुछ कहा और न ही इन दोनों ने ही उनसे कुछ कहा। 

“में शांति जी और तुमसे कुछ बात करना चाहती हूँ इसीलिए यहाँ आयी हूँ” मोहिनी ने रागिनी से कहा

“वैसे तो में ये चाहती हूँ कि जो भी बात आप कहना चाहती हैं वो सबके सामने हो... ऋतु, अनुराधा और प्रबल अब बच्चे नहीं रहे और अनुभूति भी इतनी छोटी नहीं कि वो हमारी बातों को समझ न सके वो भी मौजूद रहेगी.... लेकिन अभी इन सभी के आने में समय है तो तब तक हम आपस में बात कर लेते हैं” रागिनी ने कहा

“कोई जल्दबाज़ी नहीं है.... में आज तुम सब के साथ ही रहूँगी जब तक बात पूरी नहीं हो जाती.... चाहे रात तक ही क्यों ना रुकना पड़े...लेकिन एक बात में बच्चों के आने से पहले ही अप दोनों को बताना चाहती हूँ जिसको सुनकर शायद आप दोनों के ही मन में कुछ अलग सा महसूस होगा” मोहिनी ने दोनों को देखते हुये कहा

“कोई बात नहीं... अभी में कुछ खाने-पीने को लाती हूँ....आप क्या लेंगी चाय या कॉफी?” रागिनी ने सोफ़े से उठते हुये कहा

“में दिल्ली में बेशक रहती हूँ... लेकिन मेरा जन्म भी गाँव में हुआ और गाँव में रही भी हूँ... तो कॉफी पीने कि आदत नहीं... चाय ही पीती हूँ” कहते हुये मोहिनी मुस्कुरा दीं तो रागिनी रसोईघर कि ओर चली गयी और थोड़ी देर बाद चाय लेकर आ गयी

“हाँ! अब बताइये चाचीजी क्या कह रहीं थीं आप” रागिनी ने मोहिनी से पूंछा

“पहल बात तो तुम जयराज भाई साहब की बेटी नहीं हो बल्कि उनसे छोटे विजयराज भाई साहब की बेटी हो” रागिनी की ओर देखते हुये मोहिनी ने कहा

“मुझे पता है” मोहिनी के अंदाजे के बिलकुल विपरीत रागिनी ने शांत भाव से मुसकुराते हुये कहा

“दूसरी बात.... शांति जी... विजयराज भाई साहब कि दूसरी पत्नी हैं.... यानि तुम्हारी सौतेली माँ और अनुभूति तुम्हारी सौतेली बहन है” मोहिनी ने रागिनी कि प्रतिक्रिया पर अपनी उत्सुकता दबाते हुये दूसरा धमाका किया हालांकि पहले सवाल पर ही रागिनी कि प्रतिक्रिया से उनके मन में बहुत सारे सवाल उठ खड़े हुये थे जिंका जवाब पाने के लिए वो बेचैन थीं

“ये भी मुझे पता है...और माँ को भी सब पता है.... अब आप अगर तीसरी बात भी वो बताना चाहती हैं जो में सोच रही हूँ तो मुझे ये भी पता है कि .......... विक्रम मेरा सगा भाई था” रागिनी ने मोहिनी कि मनोदशा को देखते हुये अपनी ओर से और एक वार किया

“चलो अच्छा हुआ तुम दोनों को एक दूसरे के बारे में सबकुछ पता चल गया.... लेकिन ऐसा हुआ कैसे” अब मोहिनी से अपनी उत्सुकता छिपाई नहीं गयी तो उन्होने आखिरकार सवाल कर ही दिया

“आपने तो सबकुछ जानते हुये भी छुपाने और हमें गुमराह करने की पूरी कोशिश कि लेकिन फिर भी सच्चाई किसी न किसी तरह सामने आ ही गयी” कहते हुये रागिनी ने इन सारी बातों के सामने आने का बताया कि कैसे उन सब को ये पता चला

“लेकिन आपने अभी तक ये तो बाते ही नहीं कि राणा रविन्द्र प्रताप सिंह कौन हैं और कहाँ हैं?” ये तीनों अभी आपस में बात कर ही रहीं थीं कि पीछे से आयी आवाज ने उन्हें चोंका दिया

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RE: मोक्ष : तृष्णा से तुष्टि तक - by kamdev99008 - 20-04-2020, 07:07 PM



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