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लेडीज - गर्ल्स टॉक [ गर्ल्स व् लेडीज की आपसी बातचीत , किसी भी विषय पर जैसे ड्रेसिंग,
उफ़, कितने अरमान होते हैं लड़कियों के , घंटो आईने मैं मैं खुद दे बात कर लेती हैं, सपनो की दुनिया , सपनो का राजकुमार, गुड्डे - गुड़िया का खेल, और न जाने क्या - क्या , और मैं मूर्ख, बस अपने आप को देख के ही खुश हुए जा रही थी. 

अचानक , घंटी बजी, दरवाजे की,  कोई आया था , मैं जल्दी से रूम से बहार निकली , ट्वॉयल था हाथ मैं, डालना था बहार सूखने के लिए , हाथ मैं कंघा और टॉवल को गीले बालो मैं रगड़ते हुए  मैं चली, दरवाजे की और, माँ भी आ ही गयी  खोलने मेरे साथ ही. 

माँ ने दरवाजा खोला, देखा। 
........................

प्रिय सहेलिओं ,

निहारिका का प्यार भरा नमस्कार ,

अब आगे ,

 
मैं , एक तो डरी  हुई थी की आज क्या होगा मेरे साथ , माँ के भजन सुनना पड़ेंगे दिन भर,  कॉलेज नहीं गयी, और वो "मूड्स" वाली बात तो  गयी थी, माँ पड़ोस वाली भाभी से बात कर रही थी और मैं अपने आप से , फिर मुझे दोनों की बाते सुनाई दी.

सुमन भाभी कही जाने की बात  बोल रही थी माँ को,  होश मैं आयी जब सुमन भाभी ने मेरा नाम लिया " निहारिका" को भी साथ ले आना इसकी भी"उम्र" हो गयी है अब तो, और हंसने लगी दोनों, माँ बोली अच्छा ले आउंगी कितने बजे  आना है.

भाभी - आज शाम छे बजे से होगा शुरू फंक्शन , खाना खाना भी वही है , आना जरूर।

माँ - अच्छा सुमन , ठीक है, आ जाउंगी निहारिका के साथ.

मैं -  कुछ सुना नहीं, जबकि मैं वही थी, साला आज का दिन ही  ,ख़राब है. मैंने बस हंस के स्माइल पास कर दी भाभी को और नीचे देखने लगी. और करती भी क्या ?

भाभी - "निहारिका" आना जरूर , अभी बहुत कुछ सीखना है, फिर हंसने लगी। 

मेरी हालत,  उफ़,क्या बताऊ सहेलियों , मेरी समझ मैं कुछ नहीं आ रहा था , मैं बस स्माइल पास कर रही थी और माँ को देख रही थी, और माँ और सुमन भाभी दोनों मुझे। 

फिर भाभी  गयी, माँ ने दरवाजा बंद किया और बोला "निहारिका" आज शाम को जाना है फंक्शन मैं।  

मैं - , हाँ  माँ पर कौन सा फंक्शन कोई भजन - कीर्तन हैं तो मैं नहीं जाने वाली , एकदम पक जाती हु आपके साथ जाकर ,  रहो दो - तीन घंटे और थोड़ा सा प्रसाद लेकर  आ जाओ.

- माँ - पागल लड़की, तूने सुना नहीं , क्या बोला सुमन  ने , भजन  नहीं है " गोद - भराई " की रसम है।  क्या हो गया  है तुझे। सही कह रही थी सुमन , बहुत सिखाना पड़ेगा नहीं तो तू मेरी नाक ही कटा देगी।

मैं, पूरी कन्फ्यूज्ड , परेशां , क्या बोलू, "यह "गोद - भराई" क्या होती हैं, अब आज सुबह से अभी तक जो हुआ उसके बाद मेरी हिम्मत नहीं हुई माँ से कुछ पूछ लू.

मैं - ठीक है माँ , बस यही बोल पायी।

- माँ - चल ठीक है, एक काम कर तेरा एक अच्छा सा सूट निकाल ले शाम के लिए , मेरी साड़ी - ब्लाउज भी निकल देना। मैचिंग पेटीकोट के साथ। 

 क्या होगा इस लड़की का , भगवन अब तू ही कुछ कर, मैं तो हार गयी इस लड़की से, कहाँ तक सम्भालूंगी इस बावली को.आगे जाकर न जाने क्या करेगी, उफ़.....

कुछ - कुछ बोलती हुई, माँ गयी खाने की तैयारी करने , और मैं गयी अलमारी मैं से कपडे निकलने।  माँ के रूम मैं जाते ही, एक उत्तेजना हुई, "वो मूड्स" का पैकेट पड़ा होगा, अब देख लेती हु. 

जल्दी से , अल्मारी खोली, "मूड्स" उफ़, नहीं दिख रहा था, फिर इधर - उधर देखा नतीजा सिफर , अब गया चांस अब नहीं मिलेगा, जरूर माँ ने रख दिया होगा छुपा कर , जाने दो. कॉलेज मैं पूछती हु , साली बड़ी - बड़ी बाते करती हैं , देखती हूँ कुछ बता पाती हैं या यु ही फेंकती है.

फिर , माँ के लिए एक साड़ी निकली , हरा - नीला कलर था , पेटीकोट निकलने की सोचा नीला लू या हरा, नीला कलर जायदा था साड़ी मैं, सोचा नीला ही चल जायेगा , पर माँ से पूछ लेती हूँ,  कौन डांट खाये .

गयी, माँ के पास और साड़ी दिखते हुए बोली,  ठीक है, यह पेटीकोट नीला वाला, इस  .साड़ी मैं , चल जायेगा।

माँ - उफ़, लड़की, क्या हुआ है तुझे आज,  अरे,पागल , " गोद - भराई " की रसम है। कुछ लाल - पीला निकल यह क्या कलर लायी है, कुछ अंदाज़ा नहीं है तुझे फंक्शन का। 

अब, मैं फिर फंस गयी, हाँ बोलू तो मरू न बोलू तो भी, फिर मैंने बोला  ,  बस ऐसे ही ले आयी माँ, सबसे पहले यह ही दिखाई दी.

- माँ - अच्छा , रहने दे , मैं निकल लुंगी।  अपने सूट निकल ले.

-मैं  अच्छा माँ, मैं बस मुड़ी ही थी, की माँ की आवाज आयी, 

- माँ - "निहारिका", सुन वो पिंक वाला सूट हैं न तेरा , चूड़ीदार पजामी के साथं जिसके दुपट्टे पर कुछ काम है, वो ही निकल लेना। 

अच्छा हुआ माँ ने बता दिया , नहीं तो मैं, येलो एंड ब्लैक पटियाला निकलने वाली थी. बच गयी , ही ,ही [ मन मैं सोचा]

 मैं - ठीक है , माँ.

 देखते हुए बोली, तू तैयार हैं न, फिर मेरे "जोबन" को देखा, टॉप - टी थोड़ा टाइट ही था , मेरे जोबन कुछ जयादा ही बड़े दिख रहे थे.

फिर माँ  बोली, ठीक ही है,  दुपट्टा ले लेना  उप्पर से, अच्छे से , अभी मार्किट जाना है. खाना बना देती हूँ, बस रोटी ही बाकि हैं, फिर चलते  हैं.

मैं - ,हाँ  माँ ठीक है.

फिर मैं गयी अपने रूम मैं, एक वाइट दुपट्टा लिया जिसमे चारो और गुलाबी लैस लगी थी. ले कर रखा बेड पर और लगी बाल बनाने ,  सुख चुके थे। 

बाल बने, हुए यह सोच रही थी की " गोद - भराई " की रसम क्या  है। और माँ , मार्किट क्या लेने जा रही है.  दिन मैं, अक्सर माँ, मार्किट शाम को ही जाती थी पिताजी के साथ या संडे सुबहे।  जल्दी से बाल सुलझाए और रबर बैंड लगा लिया और दुपट्टा लेकर आ गयी बहार,   माँ खाना लिए तैयार थी। 

मैं - आ गयी माँ, लाओ। 

मैं और माँ , खाने बैठ गए, भरवां टिंडे  बनाये थे माँ  ने, कहते  के हाथ मैं जादू होता हैं, सही कहते हैं. गज्जब का स्वाद था.

 मैं,बना लेती हूँ, प वो स्वाद  हाथो मैं था , मुझे पागल के हाथो मैं नहीं, पर "ये " ऐसे कहते हैं स्वाद लेकर, जैसे  छप्पन भोग हो. पर पेट थोड़ा न भरता है, जब तक "चाशनी" का भोग न लगे , एक तो खाना बनाओ, खिलाओ फिर "ये" खुश और मेरी क़यामत। 

"अच्छा" लगता हैं जब "ये", तृप्त हो कर , मुझे धीरे -धीरे , गरम कर के खाते हैं, "चाशनी" का मज़ा  लेते हैं, मैं बस आँख बंद कर कर लेट जाती हूँ, और एक हाथ "इनके " सर पर , और दूसरा अपने "जोबन" पर , फिर  पता नहीं  कुछ मुझे।

[ उफ़,थोड़ा गर्म, और गीली हो गयी हूँ, बस कुछ लाइन और ही लिख पाउंगी। .....] 

हाँ, तो हम, खाना खा रहे थे , फिर माँ बोली, अभी मार्किट चलना है, गिफ्ट लाने, जल्दी खा , वापस आना हैं, तैयार होना हैं. अच्छा तू बता क्या  गिफ्ट मैं। .

मैं - क्या बोलू, ले लेना कुछ भी, वाल पेंटिंग , फ्लावर, और कोई गिफ्ट आइटम, दुकान पे मिल जाएँगी बहुत से। 

माँ- मुझे देखती हैं, अपना खाना रोक के, उफ़, तुझे तो शादी  वाले घर मैं ही छोड़ देना चाहिए, क्या करु तेरा, अब जल्दी खा। 

मैं यह सोचती रह गयी , क्या गलत बोला  मैंने। ..............

इंतज़ार मैं। ........

आपकी निहारिका 


सहेलिओं , पाठिकाओं, पनिहारिनों,  आओ कुछ अपनी दिल की बातें करें -
लेडीज - गर्ल्स टॉक - निहारिका 
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RE: लेडीज - गर्ल्स टॉक [ गर्ल्स व् लेडीज की आपसी बातचीत , किसी भी विषय पर जैसे ड्रेसिंग, - by Niharikasaree - 20-04-2020, 06:12 AM



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