19-04-2020, 11:53 AM
(19-04-2020, 03:40 AM)Niharikasaree Wrote:तेज़ी से , अपने रूम मैं भागी। किया दरवाजा बंद , पीछे मुड़ी
सांस ऊपर की उप्पर और निचे की नीचे , माँ खड़ी थी सामने , हाथ मैं नयी बेडशीट लेकर खड़ी थी, शायद चेंज करनी आयी थी।
माँ - निहारिका। .............................................................
आज भी जब समय होता है तैयार होने का , तब कोशिश कर के लगा ही लेती हूँ, नहीं तो "पतिदेव" की मदद, पर उनकी मदद भारी पड़ती है, एक तो लिपस्टिक वापस लगाओ, लिप किस जो देनी पड़ती है, और जोबन दबवाओ जो अलग से. कर वो तो इसी फ़िराक मैं रहेते हैं की मैं कब उनको देखु और बोलू, "जी , ब्रा का हुक लगा दो न".
हमम, अब मैं ब्रा - पैंटी मैं थी, सोच रही थी आज क्या ड्रेस पहेनू सलवार - कुर्ती, जीन्स - टॉप, फिर एक स्कर्ट हाथ मैं आ गयी, सोचा आज यह ही ठीक है, बहार तो जाना नहीं है, चल जाएगी, लाल रंग की लॉन्ग स्कर्ट थी, घेर वाली, आज भी याद है, मार्किट मैं पहेली नज़र मैं पसंद आ गयी थी. फिर एक ब्लैक टॉप निकला, थोड़ा टाइट लगा पहने बाद, फिर सोचा अभी कुछ समय पहले तक तो ठीक आए रहा था, इसे क्या हुआ. ब्लैक टॉप मैं ब्लैक ब्रा नहीं दिखेगी, नहीं तो माँ आज इस पर भी भजन सुना देंगी। बड़ी हो गयी, कपडे पहनने के लखन नहीं हैं , नाक कटवा दो सारे ज़माने मैं माँ - पिताजी की. .....
फिर टॉप पेहन न लेने के बाद , अलमारी बंद कर, देखा, टॉप मैं से मेरे जोबान उफ़, क्या बताऊ। मैं खुद ही शर्मा गयी देख कर , फिर सोचा, माँ सही ही कह रही हैं शायद, "शादी" हो जनि चाहिए ..... एक करंट सा दौड़ा, "नीचे" से "उप्पर" "जोबन" तक.
उफ़, कितने अरमान होते हैं लड़कियों के , घंटो आईने मैं मैं खुद दे बात कर लेती हैं, सपनो की दुनिया , सपनो का राजकुमार, गुड्डे - गुड़िया का खेल, और न जाने क्या - क्या , और मैं मूर्ख, बस अपने आप को देख के ही खुश हुए जा रही थी.
अचानक , घंटी बजी, दरवाजे की, कोई आया था , मैं जल्दी से रूम से बहार निकली , ट्वॉयल था हाथ मैं, डालना था बहार सूखने के लिए , हाथ मैं कंघा और टॉवल को गीले बालो मैं रगड़ते हुए मैं चली, दरवाजे की और, माँ भी आ ही गयी खोलने मेरे साथ ही.
माँ ने दरवाजा खोला, देखा।........................
उफ़ एक एक चीज कितने डिटेल में आप लिखती हैं बस लगता है सामने पिक्चर चल रही है
या टाइम मशीन पर बैठ कर मैं उन दिनों में वापस पहुँच गयी हूँ
हाँ आप की कुछ शिकायतों से मैं सहमत नहीं हूँ ,
आखिर दुनिया में फ्री कुछ भी नहीं है तो
नहीं तो "पतिदेव" की मदद, पर उनकी मदद भारी पड़ती है, एक तो लिपस्टिक वापस लगाओ, लिप किस जो देनी पड़ती है,
तो दे दिया करिये न , आखिर हम सजती किस के लिए हैं साजन के लिए न , फिर लिपस्टिक लगाओ और कोई किस न करे तो लिपस्टिक की बर्बादी ,
और आज कल तो ऐसी आती हैं , जो चूस भी कोई ले तो नहीं छूटने वाली ,
और मेरे लिए तो मेरे बिना कहे ये ' वही वाली ' लाते हैं
क्योंकि दुबारा लगाने पर भी लॉक डाउन में तो सारा दिन घर में ही कब मन कर जाए और कुछ नहीं तो एक किस्सी तो बन ही जाती है
और जोबन दबवाओ जो अलग से. कर वो तो इसी फ़िराक मैं रहेते हैं की मैं कब उनको देखु और बोलू, "जी , ब्रा का हुक लगा दो न".
किसी ने कहा था जोबन और बगावत दोनों दबाने पर बढ़ते हैं , तो फिर दबा लिया तो अगर कहीं काम वाम से आठ दस दिन के लिए बाहर चलें जाए तो उसी जोबन को देख देख कर , कितना खाली खाली लगता है ,
अगर अच्छी टाइट खूब लो कट वाली बैकलेस चोली कट पहनूं और
कोई देख के ललचाये नहीं , चोरी से एक चुम्मी खुली पीठ पे न ले ले , एक चुटकी न काट ले तो भी तो बहुत खराब लगता है न ,...