18-04-2020, 02:08 PM
क्या कहूं
शब्दहीन हूँ मैं।
जवानी की दहलीज पर कदम रखने के हर पलों के जो चित्र उकेरती हैं आप , ...एक एक पल , मन में चल रहा संघर्ष, लज्जा भी और मन भी करता है ,
कोमल जी,
औरत ही दूसरी औरत को समझ सकती है।
आज आपने यह सत्य साबित कर दिया की आप मैं रचना समझने की व् व्यक्त करने की ग़हरी समझ है. जो पंकितिया आपने नारी को समर्पित करि हैं, भले ही वो लिखी किसी और ने हैं पर सबके सामने आज पुनरजीवित करि हैं, उसके लिए आपको साधुवाद।
बस प्रसाद जी की कामायनी की ये पंक्तिया याद आ जाती हैं
मैं रति की प्रतिकृति लज्जा हूँ मैं शालीनता सिखाती हूँ,
मतवाली सुन्दरता पग में नू.................
आज समझ तो पाई हूँ मैं दुर्बलता में नारी हूँ,
अवयव की सुन्दर कोमलता लेकर मैं सबसे हारी हूँ।
एक लाइन लिख पाउंगी - "हाँ मैं नारी हूँ." - सहने वाली "धरा" व् " शक्ति" दोनों।
आप की पोस्ट एक बार में पढ़ने की नहीं होती , बार बार और यादों से जोड़ जोड़ कर ,... और फिर कैसे दिन गुजर जाते हैं
गुड़िया की शादी रचाने वाली , उनकी डोली विदा करने वाली खुद डोली में बैठकर कैसे चली जाती हैं
अद्भुत
जी,कोमल जी, सही, बिलकुल सही,
एक विडम्बना देखो,
माँ के घर मैं - परायी अमानत
ससुराल मैं - पराये घर से आयी.
का कौन सा - ठोर, कौन सा ठिकाना
बस आपकी प्रोतसाहन की भरी "पोस्ट" सर्वोच पुरस्कार है. तहे दिल से शुक्रिया , बस प्यार बनाये रखिये।
इंतज़ार मैं। ........
आपकी निहारिका
सहेलिओं , पाठिकाओं, पनिहारिनों, आओ कुछ अपनी दिल की बातें करें -
लेडीज - गर्ल्स टॉक - निहारिका