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Adultery जोरू का गुलाम उर्फ़ जे के जी
(18-04-2020, 02:21 AM)Niharikasaree Wrote:
 "दो दिन कम एक साल पहले लगी बाजी की।  "


कोमल जी, 

एक साल की "फांस" चुभी हुई है. यह, फांस जब तक शरीर मैं होती है, तकलीफ देती है , और यहाँ तो एक साल से इक्सो निकलने का इंतज़ार हो रहा था.

 वो छिनार ,एकदम छिनरों वालीहंसी हँसते बोली। 
          " ये सब तो भैया खाते नहीं ,उन्हें एकदम नहीं पसन्द है "

एकदम "जले पे नमक" वाली स्थति , मन मैं आग लगी हो और होंटो पे स्माइल। उफ़, क्या चित्रण किया है आपने।

भावनाओ को लिखे बिना रहा नहीं गया , कोमल जी।  हम औरतो के जीवन मैं, इस तरह की कई "फासे" चुभी हुई है, कुछ वक़्त के साथ ख़तम तो न , पर चुभन काम हो गयी है. पर जब याद आती है तो , बैचनी बढ़ जाती है.

(18-04-2020, 02:37 AM)Niharikasaree Wrote:
"और मन तो बस यही करता था की उस साली के टॉप में हाथ डाल  के नोच लूँ ,दबोच लूँ।  "

कोमल जी, 

जब सामने  शिकार हो और "शिकार" के शिकार का इंतज़ार हो. हाथो को कैसे रोक पायी , समझ सकती हु, पर इंतज़ार का फल , खट्टा- मीठा,  नमकीन, गीला, चाशनी स भरा होगा। 

 लोग कहते हैं की नारियां अपनी भावनाएं कई ढंग से व्यक्त  करती हैं ,
                 पर पुरुष की भावनाओ का एक ही बैरोमीटर है ,उनका खूंटा।
  
सही है  ,औरत का पूरा जिस्म एक खुली किताब होता हैं, बस पढ़ने वाली आंखे चाहिए।  मर्द के थर्मामीटर का पारा और उसकी आंखे सब बता देती हैं.
 
 मंदिर में घी के दिए जलें ,मंदिर में। "
    मैं तुमसे पूछूं , हे ननदी रानी ,हे गुड्डी रानी ,
        अरे तोहरे जुबना का कारोबार कैसे चले ,
            अरे रातों का रोजगार कैसे चले, हे गुड्डी रानी। "
 ......
" अरे चने के खेत में बोया है गन्ना ,अरे बोया है गन्ना ,
        गुड्डी छिनरो को ले गया बभना , दबाये दोनों जुबना ,चने के खेत में।
            चने के खेत में पड़ी थी राई ,अरे पड़ी थी राई।
                गुड्डी को चोद रहा उनका भाई ,अरे चोद रहा गुड्डी का भाई ,चने के खेत में। '
 
यह हुई न बात, कोमल जी. 

"नीचे वाली" मैं  " रस  - चाशनी" का कारोबार शुरू हो गया है, यह जो मज़ा है लोक गीत के सटीक प्रहार का कोई बच नहीं पाता। अरमान जग जाते हैं. 

और गुड्डी वो प्लेट ले कर आगयी , और उसने टेबल पर ला के रख दिया। एक बड़ी सी प्लेट और साथ में एक दूसरी प्लेट से ढंकी।
                खोलो न , मैंने जिद की और
                        गुड्डी ने खोल दिया

बहुत खूब. बस तड़पते हुए। .... इंतज़ार। ..........   


 

फांस की बात एकदम सही कही आपने 


इस कहानी में वो लगी हुयी फांस बार वार सामने आती है 

और मैं सूद के साथ लौटाने में यकीन रखती हूँ ,

गाने आप को अच्छे लगे , असल में हम लोग , अगर ननद खाने की टेबल पर साथ तो तो बिना उसे छेड़े , और छेड़ छेड़ छाड़ बिना गारी गाये पूरी नहीं होती 

बस इस कथा यात्रा में साथ बनाये रखिये 

और बाकी की दोनों कहानियों में भी 

मोहे रंग दे 

होली के रंग 
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ANUSHKA IS ASHWIN'S SWEET WIFE - by ashw - 05-04-2019, 06:02 AM
RE: जोरू का गुलाम उर्फ़ जे के जी - by komaalrani - 18-04-2020, 11:33 AM



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