17-04-2020, 10:40 AM
(This post was last modified: 17-04-2020, 10:47 AM by Niharikasaree. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
- माँ - क्या हुआ, सब ठीक , तू उठी नहीं। क्या दर्द जायदा है.
मैं - अब क्या बोलती , "मूड्स" , मैं बोली, हम्म, है थोड़ा।
फिर, याद आया की माँ भी तो होने वाली थी, पुछु जरा.
मैं - आपका , ...... दर्द है क्या
पूरा न पूछ पायी
माँ - हम्म, है तो हो गया, सवेरे आज।
फिर चुप्पी।।।।।।।।
मन मैं सोच रही थी आज कॉलेज जाओ या नहीं।
.........................................................................
प्रिय सहेलिओं ,
निहारिका का प्यार भरा नमस्कार ,
अब आगे ,
सहेलियों , अब क्या था, लेट हो गई थी. कालेज के लिए , फिर सोचा चलो पहले फ्रेश हो जाते हैं फिर सोचा जायेगा।
गई, बाथरूम - पैड्स दिखाई दिया, अखबार मैं लिपटा था, ओह, शायद माँ ने रखा होगा फिर डस्टबिन मैं डालना भूल गयी होंगी।
इतने मैं, माँ की आवाज आयी, बाथरूम के बाहर से, निहारिका, सुन अरे मैं वो इस्तेमाल किया पैड हटाना भूल गई, तेरा भी हटा लेना और डस्टबिन मैं डाल आना.
मैं - हाँ, माँ। मैंने अभी देखा। कर दूंगी।
फिर मैं , आयी बाथरूम से बाहर, कर दिया माँ का बताया काम, फिर चाय पीते माँ के साथ बात कर रही थी.
माँ बोली - मुझे आज कपडे धोने थे , पर कमर मैं दर्द हो रहा है, पीरियड्स की वजह से , कोई नहीं कल या बाद मैं देख लेंगे। मेरे ही तो हैं.
मैं - माँ , मैं धो देती हु, इसमें क्या है। साथ ही मेरी दो - तीन कुर्ती भी धूल जायेंगी , हर कपडा मशीन मैं नहीं डाल सकते।
माँ - आह, लो जी हो गयी मेरी बेटी बड़ी , देखो तो माँ का ध्यान। तुझे कॉलेज नहीं जाना ? चली है कपडे धोने।
फिर, मुझे और मेरे जोबन को देखते हुए बोली [ अब घर मैं माँ के सामने दुप्पटा नहीं लेती थी, है पिताजी के सामने तो लेती थी, पहले डर से फिर शर्म से] हम्म, बड़ी तो हो गई मेरी बेटी। अब तो कुछ सोचना ही पड़ेगा, तेरे बारे मैं. आज बात करती हूँ तेरे पिताजी से.
मैं - क्या हुआ, मैंने अपने जोबन को देखा , फिर माँ को देखा, फिर से पूछा क्या हुआ, ऐसा क्यों बोल रही हो.
माँ - हंसती हुई , अब ऐसे गदराई जवान लड़की को कोई घर मैं बैठा के रखता है क्या , हाथ पीले कर , अगले घर भी जाना है, वहां करना सब.
उफ़, दस सेकंड तक कोई आवाज नहीं निकली , हलक सुख गया था, आँखों मैं डर , ख़ुशी, रोमांस, और नीचे गीलापन सब एक साथ.
मैं - हटो माँ, कुछ भी बोल देती हो, अभी कहाँ, अभी तो एक - डेढ़ साल बाकि है. मन मैं ख़ुशी हो रही थी एक अनजाने सफर की, बहुत शादी मैं जा चुकी थी, एक और मोड़ पर थी , जून मैं।
फिर मैं बोली, लाओ माँ, दे दो कपडे , आज कॉलेज नहीं जा रही, लेट तो वैसे भी हो गई हूँ.
माँ ने कपडे दिए, दो साड़ी साथ के ब्लाउज , पेटीकोट एक साथ गोल -मोल कर रखे थे , मैं गयी अपने रूम मैं, दो कुर्ती निकल कर लायी साथ की सलवार, दुपट्टा लेते, लेते छोड़ दिया की चल जायेगा दो - एक बार और , फिर ब्रा और पैंटी भी उठा लिए सोचा इनको भी हाथ से निकल देती हु, मशीन मैं ब्रा का हुक टूट गया था अटक के, पता नहीं कैसे।
आज तो कपडे धोने का मूड बना दिया "मूड्स" ने , हलकी स्माइल आ ही गयी.
बाथरूम मैं, नल चलु कर बाल्टी भरने को रख दी, दूसरी बाल्टी मैं, "निरमा" दाल कर झाग बना रही थी, की अचानक माँ आ गयी.
माँ - अच्छा , तो ऐसे धोने है कपडे, खेल ले, शाम हो जानी है ऐसे तो, हट ला मैं कर देती हु.
मैं - नहीं माँ, हो जायेगा, झाग से खेलने मैं मज़ा आ रहा था. बस बाल्टी भर ही गई.
माँ - अच्छा, अब और मत खेलने लग जाना। और जायदा थकना मत, नहीं हो तो रहने देना, कर लुंगी मैं.
मैं - आप जाओ माँ, कर लुंगी।
फिर, थोड़ा और खेला, झाग से।
माँ की साड़ी खोली और "निरमा" मैं डाली और अपनी कुर्ती और सलवार भी. ब्रा और पैंटी , सोचा "रिन" से रगड़ दूंगी इनको।
माँ के पेटीकोट को देखा , अरे यह कैसे छूट गए , मैंने पेटीकोट उठाया तो उसमे से माँ की पैंटी गिरी , ओह पैंटी, चलो "रिन" से इनको भी निकल दूंगी धोकर।
फिर , मैंने बाल्टी से साड़ी को निकला और सोचा हल्का सा रिन भी लगा दू, फिर साफ़ पानी मैं दो कर निकल देती हूँ. करीब आधा - पोना घंटा हो गया मेरे और माँ के कपडे धोते हुए, कपडे धूल चुके थे।
फिर याद आयी, अरे ब्रा और पैंटी भी हैं, फिर बैठी निचे , सलवार ऊपर करि घुटनो तक , गीली तो हो ही गयी थी, सोचा की इसे भी धो कर निकाल देती हु, पर यह धूल चुके कपडे भी हैं न, इन्हे सूखने डाल कर, नहाने के बाद धो लुंगी। हम्म , यही सही रहेगा।
फिर मैंने , माँ की पैंटी हाथ मैं ली, दो थी , एक गहरे नीले कलर की, दूसरी हरे कलर की, मेरी एक काली व् दूसरी नीले कलर की थी, कॉटन की थी सब, हाथ मैं रिन लिया और लगी लगाने, बीच मैं से माँ की पैंटी का कलर हट सा गया था, जैसे उसका कलर निकल गया हो, "वो" जगह जहां "नीचे वाली" का संपर्क होता है, उस जगह से मेरी वाली का भी रंग उड़ने लगा था , हल्का सा ही उडा था, पर दिखा रहा था, फिर देखा की, पैंटी "वही" से कट भी गयी है , घिस - घिस के छेद सा हो गया है , मेरी वाली नयी थी, दो - तीन महीनै ही हुए थे पर माँ की कुछ पुरानी थी.
मेरा दिमाग फ़ैल हुआ , समझ मैं नहीं आया, एक तो कलर "वही" से क्यों उड़ गया, दूसरा कट कैसे गई, "नीचे वाली" जगह तो नरम व् मुलायम होती है.
इसी उलझान के साथ जल्दी से रगड़ने लगी रिन ब्रा, और पैंटी पर फिर बाहर जाकर रस्सी पर साड़ी डाली , पेटीकोट डाला , कुर्ती व् सलवार डाली, सूखने को.
फिर एक कुर्ती के नीचे, अपनी ब्रा और पैंटी डाली, और एक पेटिकोट के नीचे माँ की पैंटी डाल दी सूखेने , माँ को भी ऐसे ही देखा था , ब्रा - पैंटी ढक कर सूखाते हुए, सो मैंने भी वही किया।
अलग से सुखाते हुए शर्म आ रही थी, पड़ोस वाली भाभी देख लेंगी तो क्या सोचेंगी।
फिर जल्दी से, अंदर आ गयी, सोचा अब नहा लेती हु,
..............
मैं - अब क्या बोलती , "मूड्स" , मैं बोली, हम्म, है थोड़ा।
फिर, याद आया की माँ भी तो होने वाली थी, पुछु जरा.
मैं - आपका , ...... दर्द है क्या
पूरा न पूछ पायी
माँ - हम्म, है तो हो गया, सवेरे आज।
फिर चुप्पी।।।।।।।।
मन मैं सोच रही थी आज कॉलेज जाओ या नहीं।
.........................................................................
प्रिय सहेलिओं ,
निहारिका का प्यार भरा नमस्कार ,
अब आगे ,
सहेलियों , अब क्या था, लेट हो गई थी. कालेज के लिए , फिर सोचा चलो पहले फ्रेश हो जाते हैं फिर सोचा जायेगा।
गई, बाथरूम - पैड्स दिखाई दिया, अखबार मैं लिपटा था, ओह, शायद माँ ने रखा होगा फिर डस्टबिन मैं डालना भूल गयी होंगी।
इतने मैं, माँ की आवाज आयी, बाथरूम के बाहर से, निहारिका, सुन अरे मैं वो इस्तेमाल किया पैड हटाना भूल गई, तेरा भी हटा लेना और डस्टबिन मैं डाल आना.
मैं - हाँ, माँ। मैंने अभी देखा। कर दूंगी।
फिर मैं , आयी बाथरूम से बाहर, कर दिया माँ का बताया काम, फिर चाय पीते माँ के साथ बात कर रही थी.
माँ बोली - मुझे आज कपडे धोने थे , पर कमर मैं दर्द हो रहा है, पीरियड्स की वजह से , कोई नहीं कल या बाद मैं देख लेंगे। मेरे ही तो हैं.
मैं - माँ , मैं धो देती हु, इसमें क्या है। साथ ही मेरी दो - तीन कुर्ती भी धूल जायेंगी , हर कपडा मशीन मैं नहीं डाल सकते।
माँ - आह, लो जी हो गयी मेरी बेटी बड़ी , देखो तो माँ का ध्यान। तुझे कॉलेज नहीं जाना ? चली है कपडे धोने।
फिर, मुझे और मेरे जोबन को देखते हुए बोली [ अब घर मैं माँ के सामने दुप्पटा नहीं लेती थी, है पिताजी के सामने तो लेती थी, पहले डर से फिर शर्म से] हम्म, बड़ी तो हो गई मेरी बेटी। अब तो कुछ सोचना ही पड़ेगा, तेरे बारे मैं. आज बात करती हूँ तेरे पिताजी से.
मैं - क्या हुआ, मैंने अपने जोबन को देखा , फिर माँ को देखा, फिर से पूछा क्या हुआ, ऐसा क्यों बोल रही हो.
माँ - हंसती हुई , अब ऐसे गदराई जवान लड़की को कोई घर मैं बैठा के रखता है क्या , हाथ पीले कर , अगले घर भी जाना है, वहां करना सब.
उफ़, दस सेकंड तक कोई आवाज नहीं निकली , हलक सुख गया था, आँखों मैं डर , ख़ुशी, रोमांस, और नीचे गीलापन सब एक साथ.
मैं - हटो माँ, कुछ भी बोल देती हो, अभी कहाँ, अभी तो एक - डेढ़ साल बाकि है. मन मैं ख़ुशी हो रही थी एक अनजाने सफर की, बहुत शादी मैं जा चुकी थी, एक और मोड़ पर थी , जून मैं।
फिर मैं बोली, लाओ माँ, दे दो कपडे , आज कॉलेज नहीं जा रही, लेट तो वैसे भी हो गई हूँ.
माँ ने कपडे दिए, दो साड़ी साथ के ब्लाउज , पेटीकोट एक साथ गोल -मोल कर रखे थे , मैं गयी अपने रूम मैं, दो कुर्ती निकल कर लायी साथ की सलवार, दुपट्टा लेते, लेते छोड़ दिया की चल जायेगा दो - एक बार और , फिर ब्रा और पैंटी भी उठा लिए सोचा इनको भी हाथ से निकल देती हु, मशीन मैं ब्रा का हुक टूट गया था अटक के, पता नहीं कैसे।
आज तो कपडे धोने का मूड बना दिया "मूड्स" ने , हलकी स्माइल आ ही गयी.
बाथरूम मैं, नल चलु कर बाल्टी भरने को रख दी, दूसरी बाल्टी मैं, "निरमा" दाल कर झाग बना रही थी, की अचानक माँ आ गयी.
माँ - अच्छा , तो ऐसे धोने है कपडे, खेल ले, शाम हो जानी है ऐसे तो, हट ला मैं कर देती हु.
मैं - नहीं माँ, हो जायेगा, झाग से खेलने मैं मज़ा आ रहा था. बस बाल्टी भर ही गई.
माँ - अच्छा, अब और मत खेलने लग जाना। और जायदा थकना मत, नहीं हो तो रहने देना, कर लुंगी मैं.
मैं - आप जाओ माँ, कर लुंगी।
फिर, थोड़ा और खेला, झाग से।
माँ की साड़ी खोली और "निरमा" मैं डाली और अपनी कुर्ती और सलवार भी. ब्रा और पैंटी , सोचा "रिन" से रगड़ दूंगी इनको।
माँ के पेटीकोट को देखा , अरे यह कैसे छूट गए , मैंने पेटीकोट उठाया तो उसमे से माँ की पैंटी गिरी , ओह पैंटी, चलो "रिन" से इनको भी निकल दूंगी धोकर।
फिर , मैंने बाल्टी से साड़ी को निकला और सोचा हल्का सा रिन भी लगा दू, फिर साफ़ पानी मैं दो कर निकल देती हूँ. करीब आधा - पोना घंटा हो गया मेरे और माँ के कपडे धोते हुए, कपडे धूल चुके थे।
फिर याद आयी, अरे ब्रा और पैंटी भी हैं, फिर बैठी निचे , सलवार ऊपर करि घुटनो तक , गीली तो हो ही गयी थी, सोचा की इसे भी धो कर निकाल देती हु, पर यह धूल चुके कपडे भी हैं न, इन्हे सूखने डाल कर, नहाने के बाद धो लुंगी। हम्म , यही सही रहेगा।
फिर मैंने , माँ की पैंटी हाथ मैं ली, दो थी , एक गहरे नीले कलर की, दूसरी हरे कलर की, मेरी एक काली व् दूसरी नीले कलर की थी, कॉटन की थी सब, हाथ मैं रिन लिया और लगी लगाने, बीच मैं से माँ की पैंटी का कलर हट सा गया था, जैसे उसका कलर निकल गया हो, "वो" जगह जहां "नीचे वाली" का संपर्क होता है, उस जगह से मेरी वाली का भी रंग उड़ने लगा था , हल्का सा ही उडा था, पर दिखा रहा था, फिर देखा की, पैंटी "वही" से कट भी गयी है , घिस - घिस के छेद सा हो गया है , मेरी वाली नयी थी, दो - तीन महीनै ही हुए थे पर माँ की कुछ पुरानी थी.
मेरा दिमाग फ़ैल हुआ , समझ मैं नहीं आया, एक तो कलर "वही" से क्यों उड़ गया, दूसरा कट कैसे गई, "नीचे वाली" जगह तो नरम व् मुलायम होती है.
इसी उलझान के साथ जल्दी से रगड़ने लगी रिन ब्रा, और पैंटी पर फिर बाहर जाकर रस्सी पर साड़ी डाली , पेटीकोट डाला , कुर्ती व् सलवार डाली, सूखने को.
फिर एक कुर्ती के नीचे, अपनी ब्रा और पैंटी डाली, और एक पेटिकोट के नीचे माँ की पैंटी डाल दी सूखेने , माँ को भी ऐसे ही देखा था , ब्रा - पैंटी ढक कर सूखाते हुए, सो मैंने भी वही किया।
अलग से सुखाते हुए शर्म आ रही थी, पड़ोस वाली भाभी देख लेंगी तो क्या सोचेंगी।
फिर जल्दी से, अंदर आ गयी, सोचा अब नहा लेती हु,
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इंतज़ार मैं। ........
आपकी निहारिका
सहेलिओं , पाठिकाओं, पनिहारिनों, आओ कुछ अपनी दिल की बातें करें -
लेडीज - गर्ल्स टॉक - निहारिका