16-04-2020, 12:16 PM
(16-04-2020, 12:24 AM)Niharikasaree Wrote: और मैं तो जान बूझ कर इन्हे ललचाने के लिए जरूर बैकलेस में
टीवी के सामने बैठकर , उनकी गोद में ,... वो भी लहंगे चोली में , कितनी यादें ताजा कर दी आपने , सच में बैकलेस का मतलब पीठ में आठ दस चुम्मी तो हो ही जाती हैं और मैं तो जान बूझ कर इन्हे ललचाने के लिए जरूर बैकलेस में
कोमल जी,
"मैं तो जान बूझ कर इन्हे ललचाने के लिए जरूर बैकलेस में ", एकदम सच्ची, कसम से, जब मैं चोली, या बैकलेस ब्लाउज पहनती हु, और उसे, पेहेनते हुए यही सोचती हु, बेटा निहारिका, आज तू गई , दिन मैं दो - तीन बार पैंटी बदलनी पड़ेगी, और रात को "भूखा शेर" जो दिन भर से "रात" होने का इंतज़ार कर रहा है,
हर आधे घंटे मैं किसी भी बहाने से, पास बुला लेना , या आ जाना
"निहारिका ", मेरी ऑफिस की फाइल नहीं मिल रही, कहाँ रख दी.
उफ़,
सुनते ही मेरी "निचे वाली" पानी छोड़ देती है, और जोबन तन जाते हैं, मेरा चेहरा गर्म।
दो - तीन सेकण्ड्स, के लिए दिखाई नहीं देता, बस मुँह से यही निकलता है " आयी".
जाते हुए, अपने को कोसती हु, और पहनो "बैकलेस", अब भुगतो।
कोमल जी,
उफ़, क्या "पिक" लगायी है आपने, दिल के अरमान जगा दिये, एक ऐसा ही ब्लाउज बनवाने की इच्छा है, कब से, पर टेलर के सामने "बोल" ही नहीं पाती। एक तो उसका "चक्षु ***" चलता रहता है, ऊपर से अगर ऐसा ब्लाउज , हिम्मत ही नहीं हुई.
...भी ननदिया का नंबर हैबाजी जो जीतनी है उससे ," मेरे भैया नाम भी न ले सकते छूना तो दूर की बात , ..." बस उसके सामने उसी के हाथ सेऔर एक बार जीत गयी मैं तो चार घंटे के लिए ननद रानी पर मेरा कब्जा ,...ओह, सच्ची, ननदिया , कच्ची - कली, " फूल" बनने का समय , हाय , हम भी थे "कच्ची- कलि", उफ़। ... नहीं लिखा जा रहा अब। .....अब तो "ननदिया", के साथ ही, दोबारा "जी" लेंगी वो पल.
एक मीठे इंतज़ार के साथ। .....
निहारिका जी बिल्कुल सही कहा आप ने
जब बैकलैस पहनों ओर निच्चे अगर गलती से बिना उस के लहँगा तो फिर दिन भर गोद मे ही रहना है और वो सीधा पीछे से दरार में
ओर खड़ी कर के भी दीवार से चिपका देँगे ओर
पिच्छे से लहंगे के ऊपर से सटाक ,सटाक 8 10 थप्पड़
चाशनी टपक ही जाएगी हमारी
फिर कोन रोकने टोकने वाला जब मूड हुआ
बिस्तर पर दोहरी ओर लहँगा पेट पे
ओर एक धक्के में अंदर
आप बीती लिखी है आप ने