14-04-2020, 12:43 PM
(14-04-2020, 11:11 AM)@Kusum_Soni Wrote: मैं - अच्छा माँ, मैं अलमारी मैं रखने गई, तो ड्रावर खोला तो उसमे एक पैकेट था "मूड्स" का। .....
निहारिका जी ऊफ़्फ़ क्या टॉपिक छेड़ दिया है
वो बचपन की रातें जब मम्मी पापा हम को बच्चियां ही समझते थे और एक ही कमरे में सब का सोना होता था तब कभी किसी हलचल से अगर नींद टूट जाती तो जो सुनने को मिलता था ऊफ़्फ़ मत पूछो क्या हालत होती थी हमारी
पापा की आवाजें - सुन लेके नहीं आयी मेरा
मम्मी - मुझे नहीं पता ये सब
फिर पापा उठ के जाते और वो पैकेट ले के आते
सिरहाने रख के फिर मम्मी के साथ छेड छाड़ चालू
ओर पता नहीं कब मम्मी का पेटिकोट पलंग से निच्चे जाता कब मम्मी की चड्डी उतरती ओर मेरे कानों में सिर्फ ये पड़ता ohhh ऊफ़्फ़ नहीं प्लीज धीरे प्लीज नहीं ओर पापा के धक्के ओर तेज
साथ मे मम्मी से ज्यादा आवाज मत कर कुसुम की नींद खुल जाएगी और ये कहते ही एक ओर कस के
मम्मी के निच्चे से बेचारी माँ की क्या हालत उस समय होती होगी आज जब धक्के लगते है हमारे पता चलता है
निहारिका जी जब कहती है धीरे करो दर्द होता है तो हाथ पकड़ लेंगे और सर के पीछे करवा के ऊफ़्फ़ जो जटके मारते है क्या बताऊँ आप खुद भुगत रही है
लाजवाब लेखन आप का ओर साथ मे वो यादें
उम्मीद है कुछ बचपन की मम्मी पापा की मस्ती भी वर्णित होंगी एक दम निहारिका जी स्टाइल में जांनमारू
आप की कुसुम
निहारिका जी ऊफ़्फ़ क्या टॉपिक छेड़ दिया है
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पापा की आवाजें - सुन लेके नहीं आयी मेरा
मम्मी - मुझे नहीं पता ये सब
फिर पापा उठ के जाते और वो पैकेट ले के आते
सिरहाने रख के फिर मम्मी के साथ छेड छाड़ चालू
ओर पता नहीं कब मम्मी का पेटिकोट पलंग से निच्चे जाता कब मम्मी की चड्डी उतरती ओर मेरे कानों में सिर्फ ये पड़ता ohhh ऊफ़्फ़ नहीं प्लीज धीरे प्लीज नहीं ओर पापा के धक्के ओर तेज
साथ मे मम्मी से ज्यादा आवाज मत कर कुसुम की नींद खुल जाएगी और ये कहते ही एक ओर कस के
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कुसुम जी,
जी, एकदम सही कहा, आपने उन दिनों मैं समझ तो इतनी नहीं थी, और माँ - पिताजी भी बच्चा समझ करते थे , पर आवाजे तो आया ही करती थी, कुछ बड़ी होने पर , अलग रूम मैं सोया करती थी, रात को, अक्सर आवाजे आया ही करती थी, माँ की,अजी आप को सब्र ही नहीं है, थोड़ा आराम से, बच्चे है , पडोसी हैं, उहुह, आ। .....
आज हम भी देखो न , वो ही सब वापस दोहरा रहे है, बेचारी औरत कभी खुल कर मज़ा न ले पायी। बस "करवा" ले पर आवाज न निकले।
उन दिनों "मूड्स" क्या है, इसका इस्तेमाल क्या है, उन लड़को ने क्यों माँगा कई सवाल थे , शुरू से ही मैं "पीरियड्स" के दौरान "गर्म" होती थी, आखरी दिनों मैं, आज भी वो ही आलम है, अब तो "पीरियड्स" ख़तम होते ही "चाहिये" पर उन दिनों "बैचनी" बढ़ जाती थी, पर यह नहीं पता था "इसके" लिए बैचैन हूँ.
हम्म, हैं कुछ खट्टी - चटपटी यादे , बचपन से कुछ बड़ी होने की, कहती हूँ, आप भी और हमारी प्यारी सहेलिओं से भी निवेदन है की, कुछ सहयोग दे अपने चटपटी बातो से, बचपन के अनुभव शेयर करे।
आपके। ...
इंतज़ार मैं। ........
आपकी निहारिका
सहेलिओं , पाठिकाओं, पनिहारिनों, आओ कुछ अपनी दिल की बातें करें -
लेडीज - गर्ल्स टॉक - निहारिका