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Fantasy नया सफ़र
#4
शाम हो गयी थी.. 


'यार नेहा.. चल पानी वाले को पानी के लिए बोल आते हैं!'

'फोन नंबर तो है फोन कर दे ना'

'अरे इसी बहाने घूम भी आएँगे'

'हां चल' - फिर दोनो निकल पड़ी.

उनकी बिल्डिंग से करीब 100 मीटर की दूरी पर एक सड़क मुड़ती थी और उसी कोने मे राजू की एक छोटि सी दुकान थी. वैसे तो छोटा मोटा सब कुछ उस दुकान मे मिल जाता था पर पूरे मोहल्ले को पानी सप्लाइ राजू ही करता था.
दोनो जब दुकान पहुची वहाँ पर एक लड़का खड़ा था यही कोई 18 19 साल का.

'राजू तुम्हारा नाम है'

'नही मेरा नाम नंदू है. राजू मेरे भैया का नाम है. क्यू क्या हुआ? कुछ काम था?'

'हां हम इधर नये आए हैं! हमे पानी के कंटेनर चाहिए थे.'

'अच्छा कौन सी वाली बिल्डिंग मे?'

'वो 113/2 जो ब्लू वाली बिल्डिंग है ना..'

'हां हां समझ गया. 3र्ड 4थ फ्लोर मे भी हम ही देते हैं.'

'भैया आएँगे तो बता दूँगा. वैसे नाम क्या बताउ आपका.' - मौका मिलते ही लड़के ने चौका मार दिया था

नेहा तुनक कर बोली - 'पता ले लिया..नाम की बड़ी जल्दी पड़ी है तुझे.. कहना 2न्ड फ्लोर पर पानी का कंटेनर लेके आ जाए.'

'हद हो मेडम आप. सही जगह डेलिवरी देनी है इसके लिए तो जानना पड़ेगा ना..ठीक है मैं बोल दूँगा.'

'अरे यार तुम भी ना.. ऐसे क्या गुस्सा होना उस बेचारे पे.'

'बेचारा! उसकी नज़र किधर थी देखी थी तुमने.. चुपके चुपके देखे जा रहा था..तुम्हारे..'

'हा हा हा.. हां यार!! मुझे लगा था मैं बस ऐसे ही सोच रही.. पर मैने भी नोटीस किया .. चल कोई बात नही.. कितनो से बचाएगी मेरी इस कातिल जवानी को तू!'

'चुप कर साली! तेरे जैसो की वजह से ही ऐसे ऐरे गैरे लोग भी पीछे पड़ जाते हैं! वैसे तू इतनी बन ठन के क्यू निकली है?' 

'बन ठन के! नही तो!' 

ऐसे ही नोकझोक करते चल पड़ी दोनो आगे! रिचा ने एक मरून कलर का जारी वाला टॉप पहेन रखा था जो उसके गोरे बदन पे जच रहा था.. और उससे मॅचिंग डार्क मॅट लिपस्टिक. और खुले बालो के साथ गॉगल्स.. अब इसे आम भाषा मे बन ठन के ना कहे तो क्या कहे.
नेहा ने एक चूड़ीदार सलवार और कुरती पहेन रखी थी नीले रंग की, पर वो भी कम नही लग रही थी.. और नंदू उनकी खूबसूरती को पीछे से निहारे जा रहा था.

अचानक नंदू को पीछे से सर पर चपत पड़ी.. 

'क्या घूर रहा है बे! दुकान पे लड़कियो के पिछवाड़े ताड़ने के लिए पापा ने भेजा है तुझे'. नंदू सकपका गया.

सामने देखा तो 25 26 साल का हट्टा कट्टा जवान लड़का खड़ा था. ये और कोई नही राजू था.

'अरे भैया.. अब आपके सामने हुमको कोई पूछता ही नही..आपको पूछती हुई आई थी. नयी आई है वो शर्मा जी के नीचे वाले फ्लोर पर.'

'ये 113/2 पे?'

'हां. पानी का कंटेनर पहुचा देना.. 2न्ड फ्लोर पर.'

'हां तो जा पहुचा दे.. ताड़ रहा है यहा खड़े खड़े..'

'ना ना! अब तो आप ही जाओ .. देखे आप कौन से बड़े विश्वामित्रा हैं! हमसे ज़्यादा तो आप ताड़ते हो मोहल्ले की आइटम लोग को..ताड़ते क्या हो आप तो..'

'चुप कर साले! ज़्यादा बकवास ना कर! चल ख़ाता निकल.. मेहता जी का हिसाब लेके आया हूँ.'

इधर दोनो सहेलिया सड़क पर टहल रही थी.

'अच्छा हम जा कहाँ रहे हैं.. कहीं जा रहे या बस ऐवे ही टहल रहे.. तुझे देख के लग नही रहा टहल रहे.. कहीं जा रहे' - नेहा बोली

'अरे नही नही .. बस आस पास का एरिया देख रहे और क्या.. पार्क वॉर्क है क्या'

इतने मे रिचा ने रोड के दूसरी तरफ इशारा किया - 'वो देख पार्क'

दोनो ने रोड क्रॉस किया और पार्क के गेट पे खड़ी हो गयी..

'अब यहा क्यू खड़ी हुई.. अंदर चल' - नेहा ने कहा

रिचा मोबाइल देख रही थी.. 'अरे एक भी टवर नही आ रहा' - रिचा के दिमाग़ मे कुछ तो चल रहा था.. नेहा को भी ये अहसास हो गया था.

'टॉवेर का क्या करेगी'

इतने मे किसी ने पीछे से नेहा की आँखे बंद कर दी.. नेहा हड़बड़ा गयी..शायद कोई लड़का था.

'एहह छोड कौन है..' कहकर उसने कसकर कोहनी मार दी..

'आ' करता हुआ लड़का पीछे हुआ.. और ये देख रिचा सामने हस रही थी

'सुंदर तू? तू यहा क्या कर रहा है... साले इसका पीछा करते करते यहा भी आ गया? तेरी तो ज़ोइनिंग बॅंगलुर मे हो रही थी ना!' - एक एक कर दनादन सवाल दागती गयी नेहा गुस्से और अचंभे मे

'अरे अरे बस कर .. कितनी ज़ोर से मार दिया बेचारे को' - कहकर रिचा सुंदर का कंधा सहलाने लगी

सुंदर दर्द से पेट को दबाए था पर उसकी हसी नही रुक रही थी.. 'अरे यार साँस तो लेने दे.. इतनी ज़ोर से कोई मारता है क्या'

'और क्या मुझे हाथ लगाया ना हड्डी पसली तोड़ दूँगी..'

'अच्छा बाबा ठीक है डर गया! हा! देख तेरी दोस्त को.. इसकी तरह तू प्यार से बिहेव नही कर सकती' रिचा की ओर देख सुंदर ने कहा

नेहा - 'प्यार से.. मेरी जूती.. साले सारा प्यार निकल दूँगी तेरा .. जो करना है उसके साथ कर मुझे हाथ भी लगाया साले अगले जनम मे मिलेगा इससे तू'

'ओ भगवान अगले जनम भी नेहा से मिलाना मुझे' 

'अरे चुप करो दोनो तुमलोग जब देखो लड़ते रहते हो.. दोस्तो के जैसे रहो ना.. दोस्त तो हैं हम' - रिचा बीच मे आ गयी दोनो के.

'दोस्त होगा तेरा .. मेरी तो जूती भी इससे दूर रहे..'

सुंदर ने कान पकड़ते हुए कहा - 'बस बस सॉरी! गुस्सा थूक दे बेकार मे रिचा को परेशन कर रहे!'

रिचा - 'ओके.. चल सॉरी बोल दिया इसने.. जबकि मारा तूने.. सॉरी बोल दे अब तू भी'

नेहा - 'चल सॉरी! और दूर रहियो मेरे से'

'ठीक है नानी अम्मा.'

सुंदर रिचा और नेहा के साथ एक ही कॉलेज मे पढ़ता था. सुंदर एक साउथ इंडियन फॅमिली से बिलॉंग करता था और उसकी फॅमिली बंगलोर मे थी. पर रिचा पर तो जैसे वो लट्टू था.. हुआ तो प्लेसमेंट बंगलोर ऑफीस के लिए था उसका होमटाउन होने की वजह से .. पर उसने HR से बात करके अपनी ज़ोइनिंग लोकेशन कोलकाता करा ली और यहा चला आया.

'सारी कहानी सुनते ही नेहा और बिफर पड़ी! अच्छा ये खेल है तेरा.. और तू मेरी कैसी दोस्त है.. तुझे पता था ये सब और तूने बताया भी नही' - रिचा की ओर गुस्से से देख नेहा ने कहा.

'हां तू फिर मुझ पर गुस्सा होती.. अब जब तुझे गुस्सा तब भी होना था आज भी होना ही है तो 2 दिन बाद ही हो.. यही सोच मैने नही बताया.' - कहकर हँसने लगी

'अच्छा चल भूख लगी है कुछ स्नॅक्स देखते हैं'

'हां मैने देख लिया है.. चल डोसा खिलता हूँ'

'हां तू कैसे नही देखेगा.. तू डोसा खा.. जहा देख सबसे पहले डोसा ही दिखता है तुझे.'

'रेसिस्ट साली!'

'गाली दिया तूने मुझे' - कहकर नेहा दौड़ी सुंदर के पीछे!

'अरे यार रूको ना तुमलोग.. जब देखो शुरू हो जाते हो! चलो सॅंडविच खाते हैं उधर' - रिचा ने एक दुकान की ओर इशारा किया.

सुंदर ने कहा - 'हा चलो! वैसे मैने मज़ाक मे कहा था.. कोई डोसा बनाने वाला है ही नही इधर.. अप्पा कैसे जिएगा मैं इधर!'

नेहा हँसने लगी!

सबने सॅंडविच खाया.. और फिर चल पड़े वापस.

नेहा - 'तुम किधर जा रहे!'

'मैं भी उधर ही रहता हूँ..'

'वाह बेटा.. दोनो तोता मैना ने मिलकर सब इंतेज़ां कर रखा हैं.. कबसे ये सब चल रहा था'

'जब से तुमलोगो को घर मिला.. मैने भी पता कर लिया इधर ही. अब तो नेहा डार्लिंग डोसा खाने आता रहूँगा.'

'अरे यार चलो ना शांति से.. और तुम चुप करो'

'सॉरी बेबी.. लव यू' - कहकर उसने रिचा को गले लगा लिया

'उफ़ बड़ा प्यार उमड़ रहा सड़क पर'

'कही तंदूरी रोस्ट हो रहा क्या' - सुंदर ने चुटकी ली

'उफ़ फिर से तुम दोनो.. चलो कुछ समान भी साथ लेते चले..'

सब चल पड़े घर की ओर. रास्ते मे राजू की दुकान पर उन्होने आटा दाल वग़ैरा ले लिया और उसे पानी के लिए बोलकर आ गयी.

और जाते हुए उनकी मटकती कमर और गान्ड को इस बार बस नंदू ही नही राजू की नज़रे भी घूर रही थी. 

'ऐसी माल को तो हफ्ते भर भी पेलू तो भी मन ना भरे.. क्यू नंदू'

'अरे भैया.. हमारा भी कुछ जुगाड़ करा देना हफ्ते मे से दो तीन दिन.. अब हम भी बड़े हो गये हैं'

'हा हा बड़ा हो गया है.. देखूँगा कितना बड़ा हुआ है... चल अभी काम पर लग..'
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नया सफ़र - by sinureddy - 13-04-2020, 08:11 PM
RE: नया सफ़र - by sinureddy - 13-04-2020, 08:13 PM
RE: नया सफ़र - by sinureddy - 13-04-2020, 08:14 PM
RE: नया सफ़र - by sinureddy - 14-04-2020, 08:54 AM
RE: नया सफ़र - by sinureddy - 14-04-2020, 05:57 PM
RE: नया सफ़र - by sinureddy - 14-04-2020, 09:49 PM
RE: नया सफ़र - by sinureddy - 15-04-2020, 06:05 AM
RE: नया सफ़र - by Xxx2524 - 15-04-2020, 08:50 AM
RE: नया सफ़र - by sinureddy - 15-04-2020, 09:59 AM
RE: नया सफ़र - by Xxx2524 - 15-04-2020, 10:32 PM
RE: नया सफ़र - by sinureddy - 15-04-2020, 10:48 PM
RE: नया सफ़र - by sinureddy - 15-04-2020, 10:50 PM
RE: नया सफ़र - by sinureddy - 15-04-2020, 10:51 PM
RE: नया सफ़र - by sinureddy - 16-04-2020, 08:22 PM
RE: नया सफ़र - by Suryahot123 - 20-04-2020, 08:47 AM



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