14-04-2020, 05:04 AM
मैं, चुप खड़ी, देख रही थी, मुँह से आवाज निकलने की कोशिश करि तो, निकले न , होंठ एकदम सुख गए थे। मन ही मन सोच जा रही थी, क्या बोलूँगी , कैसे बोलूंगी। .
तभी, काउंटर खली हो गया था दुकान का , दुकानवाला जोर से बोला, हाँ जी मैडम क्या चाहिए आपको। ..........
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प्रिय सहेलिओं ,
निहारिका का प्यार भरा नमस्कार ,
अब आगे ,
हम लड़कियों ने शायद सभी ने कभी न कभी यह सिचुएशन फेस करि होगी जब हमे अपने "जरूरत" की चीज़ अकेले लेनी पड गई हो. और हर महीने होने वाली जरूरत की चीज़, ख़तम भी होती है, हॉस्टल मैं रहनेवाली या पेइंग गेस्ट रहने वाली लड़कियां , वर्किंग विमेंस , हाउस वाइफ सभी, कभी न कभी "पैड्स" की जरूरत होती है, और ऐसा मौका जब लेन अकेले गई होंगी, और पहेली बार तो उफ़ तौबा , क्या हालत होती है.
अब पहेली बार हो , या उम्र के साथ अनुभव हो , पर जब अकेले जाना होता है दुकान पर तब हमारी हालत हम ही जानते हैं.
तो, दुकानवाले की आवाज एक बार फिर से आयी , मैडम, क्या दू आपको।
मैं - [मन मैं ] साले, ज़हर दे दे, कितनी ज़ोर से चिल्ला कर बोलै जा रहा है.
खैर, कुछ गलती मेरी भी थी, मैं दुकान से थोड़ा दूर ही थी, शायद पांच या दस कदम, मैं आगे आयी काउंटर तक. कुछ देर दुकान मैं देखा , खोजा पर उफ़, नहीं दिखा शायद घबराहट , बैचनी की वजह से, अब वजह कुछ भी हो, मैं दुकान मैं देखे जा रही थी, और वो मुझे। बोल कोई नहीं रहा था.
[मन मैं - अब तो बोलना ही पड़ेगा]
मैं - भैया , वो ग्रीन वाला दे दीजिये। [ साला, नाम लेना ही भूल गई] वो। ......... व्हीसपर बोला , धीरे से।
दुकानवाला०- मैडम, क्या ग्रीन वाला , गोली , दवा. कोई पर्ची है डॉक्टर की.
मैं - [मन मैं] उफ़, गधे, को क्या बोलो। फिर बोली, भइया, वो व्हिस्पर आता हैं न, ग्रीन वाला। माँ ने वो ही मंगाया है.
दुकानवाला - अच्छा , ग्रीन व्हिस्पर, एक और आया है अभी नया , अगर चाहो तो इसका इस्तेमाल कर के देख लो , रेट बढ़िया है. माल भी जयादा है, २०% एक्स्ट्रा।
थी कोई नै कंपनी आल डे , आल नाईट, कुछ ऐसा ही , पिंक पैक था लग भी नया रहा था, मोटा भी , शायद दुकांवाल सही कह रहा था.
मैं - नहीं , भइया वो ग्रीन ही दे दो. माँ ने वो ही मंगाया है.
दुकानवाला - कोई नहीं , मैं दोनो दे देता हूँ, एक आपके काम आ जायेगा। पैसे कहाँ जा रहे हैं. आ जायेंगे
उफ़, मैं, शर्म से लाल, आँख नीची, दुपट्टे मैं ऊँगली घुमा रही थी, चेहरा गर्म , बगल मैं से पसीना बहता हुआ महसूस हुआ. फिर जोबन ढकते हुए बोली
मैं - नहीं भइया, एक ही दे दो, कितने पैसे हुए?
दुकानवाला - जैसे, नया पैड्स का पैकेट चिप्पकाने मैं लगा हुआ था, शायद उसे पता चल गया था की मैं, पैड्स नहीं खरीदी हु और शायद पहेली बार ही आयी हु.
मैं - बस , न नुकुर ही कर रही थी, और इंतज़ार की वो पैसे बताये और मैं घर भागू पैसे देकर।
इतने मैं, कुछ कॉलेज के तीन - चार लड़के आ गए , दुकानवाले को देख कर बोले, भाई, दो पैकेट "मूड्स" के देना।
मैं अनजान, बानी देख रही थी, यह साले कहा से आ मरे, अभी ही आना था, यह दुकांवाल दे भी नहीं रहा , क्या माँगा है. पागल लड़के ने.
अब, जाकर समझ आया, की "मूड्स" क्या था , जब "सब" हो गया.
लड़कियां मासूम होती हैं कुछ मेरी जैसे , बेवकूफ, हाँ, शायद सही भी था बेवकूफ शब्द मेरे लिए उस समय .
दुकानवाले - ने जल्दी से दो पैकेट "मूड्स" के उसको दिए , और व्हिस्पर "ग्रीन" पैक मेरे सामने रख दिया। और उस लड़के से बोलै ५० रुपए हो गए आपके।
फिर मुज़से बोला , मैडम आपके , इतने। ....... हो गए हो गए , मैंने जल्दी से पैसे दिए और, उसने कागज़ की थैली मैं डाला कर एक पस्टिक बैग मैं रखा और दे दिया मुझे उन लड़को के सामने। मैं चलने को हुई, तो वो दुकानवाला बोला। ..
दुकानवाला - मैडम, आपके बाकि पैसे , उफ़ , जल्दी से पैसे लिए और मैं करीब - करीब भागी वहां से. पीछे से एक लड़का बोला, आज सड़क गीली है, ध्यान से भाई फिसल जाओगे। फिर सब हसने लगे.
मैं - शर्म से, लाल चेहरा लिए वहां से निकल आयी, रास्ते भर, गीली सड़क के बारे मैं सोचते हुए, घर तक आ कर मुझ मुर्ख को समझ आया की, वो किस "सड़क" की बात कर रहा था. ग़ुस्सा तो बहुत आया, पर अब क्या था, सांप निकल गया, अब पीटो लाठी।
घर आकर, माँ लो मैं ले आयी.
माँ - अच्छा , अब रख दे, आगे से ध्यान रखना , ला उसमे से दो निकल कर मुझे दे दे.
मैं - अच्छा माँ।
फिर, मैंने पैकेट मैं से दो - तीन पैड्स निकले और माँ को देने गई।
माँ-जा अलमारी मैं रख दे मेरी।
मैं - अच्छा माँ, मैं अलमारी मैं रखने गई, तो ड्रावर खोला तो उसमे एक पैकेट था "मूड्स" का। .....
अब फिर, हलचल।
यु तो मन कभी माँ की अलमारी मैं जाती नहीं थी, आज शायद पहेली बार था , पैकेट उठाने की सोचा ही था की , देखु क्या है यह की आ गई माँ के आवाज। ...
माँ - निहारिका , हो गया क्या , आ जा जल्दी।
मैं - आयी माँ, बस पैड्स रखे , और अलमीरा बंद करि और तेज़ी से , आ गयी बाहर।
धड़कन तेज़ थी, शरीर गर्म। माँ से पूछने की हिम्मत नहीं हुई तब भी और आज भी नहीं है.
अब तो इतने साल हो गए "करवाते" हुए , अब तो "फ्लेवर" वाले भी आते हैं, पर वो याद उस समय की है, वो मासूमियत , वो अनजानापन, जवानी का ज़ोर , कुछ पूछने की हिचक।
फिर मैंने सोचा की अपनी सहेली से बात करुँगी कॉलेज जा कर.
फिर माँ ने खाना लगा दिया , खाकर सोने गई, तो सोचा "चेक" कर लू, "दूसरा" दिन था न आज, गई बाथरूम मैं, देखा, फ्लो जयादा था , भर गया था पैड् किया चेंज, नया लगाया। और सोने गई, पर नींद कहा आनी थी,
"मूड्स" ........
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एक गुंजारिश -
सभी महिलाओ व् लड़किओं से, अपना एक्सपीरियंस शेयर करे , पहेली बार अकेले "पैड्स" खरीदने का। वो पहेली बार की फीलिंग , अहसास हमेशा याद रहता है.
इंतज़ार मैं। ........
आपकी निहारिका
सहेलिओं , पाठिकाओं, पनिहारिनों, आओ कुछ अपनी दिल की बातें करें -
लेडीज - गर्ल्स टॉक - निहारिका