13-04-2020, 08:13 PM
रिचा और नेहा दो पक्की सहेलियाँ.. बचपन से एक साथ.. एक ही कॉलेज मे .. एक ही कॉलेज मे और अब साथ ही एक ही कंपनी मे जॉब करने वाली थी.. उनकी ज़ोइनिंग भी एक ही शहर मे.. दोनो काफ़ी खुश थी.. और जहाँ दोनो साथ हो कोई भी काम आसान नही होता उनके लिए. अपने घर से दूर दोनो आज पहली बार एक नये शहर मे आई थी.
रिचा के पापा मिस्टर जगमोहन चावला और नेहा के पापा मिस्टर विक्रम वर्मा बिज़्नेस पार्ट्नर थे. दोनो ने मिलकर बिसनेस शुरू किया और आज उनका कारोबार इतना बढ़ गया हैं कि कई राज्य के बड़े शख़्शियतो मे वो गिने जाते हैं. कभी बिज़्नेस तो कभी दोस्ती के सिलसिले मे दोनो की फॅमिली अक्सर साथ समय बिताती. और इसलिए नेहा और रिचा बचपन से काफ़ी अच्छी दोस्त बन गयी.
नेहा की माँ बचपन मे ही गुजर गयी थी, और विक्रम भी अक्सर बिज़्नेस मे बिज़ी हुआ करते थे इसलिए वो थोड़ी सी नकचड़ी और मुहफट सी हो गयी थी. पर फिर भी रिचा और उसकी दोस्ती मे कभी ज़रा सी भी दरार नही आई.
रिचा की मम्मी श्रिलता भी बिज़्नेस मे उनके पापा की हेल्प करती और उनके बिज़्नेस की मीडीया रेप्रेज़ेंटेटिव थी. जहाँ कहीं भी उनकी बिज़्नेस इन्वेस्टर्स की मीटिंग होती वो ही उनकी कंपनी को रेप्रेज़ेंट करती. उन्ही की एक फ्रेंड थी शहर मे चरुलाता सेन. उनके हज़्बेंड मिस्टर सूर्यकांत सेन शहर के एक जाने माने बिल्डर थे. इसलिए बिज़्नेस से रिलेटेड कॉंट्रॅक्ट्स की वजह से जगमोहन जी की भी उनसे अच्छी ख़ासी पटती थी. साथ ही इनके बिज़्नेस मे उन्होने भी इनवेस्ट कर रखा था. वैसे तो उनका अपना आलीशान घर था फिर भी शहर के बड़े बिल्डर होने के नाते उन्होने 2 3 फ्लॅट और खड़े कर लिए थे.
इसलिए रिचा और नेहा को ज़्यादा तकलीफ़ नही हुई और उन्हे एक बड़ा सा फुल्ली फर्निश्ड 2 BHK फ्लॅट मिल गया. ये सूर्यकांत ने अपने बेटे के लिए बनवाया था पर वो यहा रहता नही था.
दोनो सहेलियाँ जानती थी उनके पेरेंट्स बिज़ी होंगे और दोनो थोड़ी अब खुद से इनडिपेंडेंट सी भी हो गयी थी. तो दोनो ने खुद ही सारा इन्तेzआम किया और चली आई थी. दोनो अपने पेरेंट्स को जाड़ा परेशान नही करना चाहती थी.
एरपोर्ट से सूर्यकांत जी ने उन्हे पिक आप कर लिया और फिर अपने घर ले गये. वाहा से खाना वग़ैरा करके फिर उन दोनो को लेकर अपने फ्लॅट के लिए चल पड़े.
दोनो नये शहर मे आकर काफ़ी खुश थी.. एक नया सफ़र.. एक नयी शुरुआत. उनका फ्लॅट कंपनी के कॅंपस से ज़्यादा दूर नही था. पर मेन रोड से थोड़ा अंदर जाना होता था. कुछ ज़्यादा भीड़ भाड़ नही थी उस एरिया मे पर सड़के काफ़ी अच्छी थी. स्ट्रीट लाइट्स वग़ैरा भी थी. तो दोनो को सही लगा.
इनका फ्लॅट जिस बिल्डिंग मे था वो एक 4 मंज़िला बिल्डिंग थी. बिल्डिंग के आस पास कोई चहल पहल नही थी और बिल्डिंग की खिड़किया भी सारी बंद थी. ये देख नेहा ने रिचा से धीमे से मुस्कुराते हुए पूछा - अंकल ने पूरी बिल्डिंग तो हमे नही दे दी है.. लग नही रहा कोई और भी यहा रहता है. रिचा ने भी हामी भारी - हाँ ऐसा ही लग रहा. पर लगता नही इतने मेहरबान होंगे!
गेट से अंदर जाते ही उन्होने देखा दो हॅचबॅक पार्क्ड हैं.
'अंकल यहा और भी फॅमिलीस रहती है' - रिचा ने पूछा.
सूर्यकांत ने कहा - और क्या.. तुमलोग क्या भूत बांग्ला चाहती हो अपने लिए! - कह कर हंसने लगे.
'यहा पर 3 और फॅमिली हैं.. एक तीसरे माले पे और दो 4थे माले पे. 2न्ड फ्लोर मे तुम्हारा है. 1स्ट फ्लोर हमने अभी ऐसे ही खाली रखा हुआ है'. - कहते हुए उन्होने लिफ्ट का बटन दबाया.
'अच्छा'
'यहा सेक्यूरिटी नही है'
'ज़रूरत ही नही पड़ती. इस एरिया मे बगल मे ही पोलीस स्टेशन है. और कंपनी कॅंपस की वजह से रात भर उनकी गश्ती होती रहती है' - कहते हुए उन्होने लिफ्ट का दरवाजा खोला.
लिफ्ट से निकल कर दाहिने मे ही एक दरवाजा था जो उनका था. और बाएँ थोड़ा आगे करीब 14 15 फीट के बाद दूसरा दरवाजा था जिसपर ताला लगा था.
बिल्डिंग काफ़ी साफ़ सुथरी थी. ये देख नेहा ने पूछा - 'अंकल साफ़ सफाई करने वाले आते हैं'.
'हां, हमने एक बाई रखी हुई है. सुबह मे एक बार आती है और शाम मे एक बार. और हमने तुम्हारे लिए भी कह दिया है अंदर भी साफ़ करके जाएगी जब भी आए. तो तुम समय बता देना सुबह करना चाहती हो या शाम मे या दोनों टाइम'.
'ठीक है अंकल'.
'तो आज से ये है तुम्हारा घर. ये हॉल है, ये किचन... ये कामन बात रूम, ये एक बेडरूम है .. इससे सटा बाल्कनी का दरवाजा. ये एक बेडरूम है इसमे अटॅच्ड बातरूम. अभी पंखे फिट हैं इन सभी रूम मे. एसी चाहो तो लगवा दूँगा. पानी की कोई दिक्कत हो तो लिफ्ट के लेफ्ट साइड मे स्विच है ओं कर देना. और कुछ ज़रूरत हो तो बताओ..'
दोनो ने देखा.. बिल्कुल नया था और काफ़ी बड़ा था 2 BHK के हिसाब से.. बेडरूम बड़े बड़े.. किचन भी बड़ा और बाथ रूम भी बड़े. अटॅच बाथरूम मे टब भी लगा था. सोफा फ्रिड्ज वॉशिंग मशीन, टीवी...
'अंकल टीवी का केबल कनेक्सन?'
'हां ये लगा हुआ है.. टाटा स्काइ सारे डीटेल्स मैने लिख के इस कागज मे रख दिया है..' - कहते हुए उन्होने टीवी के पीछे से एक कागज का टुकड़ा निकाला.. तुम बस महीने का रीचार्ज करते रहना . और एलेक्ट्रिसिटी बिल का कन्ज़्यूमर नंबर भी लिख दिया है मैने.. ऑनलाइन पे कर देना.'
'ओ.के. अंकल'
'और कुछ..'
रिचा - 'एम्म.. नही अंकल हो गया'.
सूर्यकांत - 'तो कैसा लगा घर.. भूतबंगले से बेटर है?'
रिचा - 'हा हा हा हा! हाँ अंकल बहुत बढ़िया है'.
सूर्यकांत - 'ठीक है चलो फिर आराम कर.. सब सेट कर लो मैं अब चलता हूँ.. वैसे मैं महीने महीने आ जाया करूँगा रेंट लेने के लिए. पर फिर भी कुछ ज़रूरत हो तो बेझिझक बताना'. - कहते हुए निकलने लगा.
'रुकिये अंकल हम आते है'.
'अरे नही नही मैं कौन सा नया हूँ यहा .. तुम दोनो आराम करो मैं चलता हूँ'.
'ठीक है अंकल'.
'अरे अरे एक बात मैं भूल गया.. उस कागज मे एक नंबर लिखा है राजू का.. यहा का पानी सही नही है.. उसे कॉल करना वो पानी के ड्रिंकिंग वॉटर कंटेनर देता है यहा से बस 100म्ट्स पर उसका दुकान है सो देख लेना'.
'ओके अंकल'.
'ठीक है चलो बाए बच्चो'.
'बाइ अंकल'.
नेहा - 'उफ़ यार सही है! तेरी तो निकल पड़ी!'
रिचा - 'ह्म्म ! क्या निकल पड़ी? क्या मतलब!'
नेहा - 'चल बन मत.. सेक्यूरिटी नही.. लोग भी नज़र नही आते घुसते निकलते.. और उपर से इतना मस्त सा फ्लॅट... जानती हूँ बड़ा रूम तू ही ले लेगी'
रिचा - 'ःम्म अपनी तो ऐश है! तुझे जब मान करे आ जइयो! साथ मे ऐश करेंगे'
नेहा ने कागज दिखाते हुए शरारत भरे अंदाज मे पूछा- 'अच्छा!!! अंकल ने ड्रिंकिंग वॉटर कंटेनर वाले का नंबर तो दिया है.. लेकिन ड्रिंक कंटेनर वाले का नही दिया है!'
'हा हा हा चुप कर हरामी!' कहते हुए दोनो हँसने लगी.
'चल अब फटाफट सेट करते हैं .. फिर आराम से बैठ के बाते करेंगे'
दोनो ने अपना अपना बॅग उठाया और अपने अपने कमरे ठीक करने चल पड़ी.
रिचा के पापा मिस्टर जगमोहन चावला और नेहा के पापा मिस्टर विक्रम वर्मा बिज़्नेस पार्ट्नर थे. दोनो ने मिलकर बिसनेस शुरू किया और आज उनका कारोबार इतना बढ़ गया हैं कि कई राज्य के बड़े शख़्शियतो मे वो गिने जाते हैं. कभी बिज़्नेस तो कभी दोस्ती के सिलसिले मे दोनो की फॅमिली अक्सर साथ समय बिताती. और इसलिए नेहा और रिचा बचपन से काफ़ी अच्छी दोस्त बन गयी.
नेहा की माँ बचपन मे ही गुजर गयी थी, और विक्रम भी अक्सर बिज़्नेस मे बिज़ी हुआ करते थे इसलिए वो थोड़ी सी नकचड़ी और मुहफट सी हो गयी थी. पर फिर भी रिचा और उसकी दोस्ती मे कभी ज़रा सी भी दरार नही आई.
रिचा की मम्मी श्रिलता भी बिज़्नेस मे उनके पापा की हेल्प करती और उनके बिज़्नेस की मीडीया रेप्रेज़ेंटेटिव थी. जहाँ कहीं भी उनकी बिज़्नेस इन्वेस्टर्स की मीटिंग होती वो ही उनकी कंपनी को रेप्रेज़ेंट करती. उन्ही की एक फ्रेंड थी शहर मे चरुलाता सेन. उनके हज़्बेंड मिस्टर सूर्यकांत सेन शहर के एक जाने माने बिल्डर थे. इसलिए बिज़्नेस से रिलेटेड कॉंट्रॅक्ट्स की वजह से जगमोहन जी की भी उनसे अच्छी ख़ासी पटती थी. साथ ही इनके बिज़्नेस मे उन्होने भी इनवेस्ट कर रखा था. वैसे तो उनका अपना आलीशान घर था फिर भी शहर के बड़े बिल्डर होने के नाते उन्होने 2 3 फ्लॅट और खड़े कर लिए थे.
इसलिए रिचा और नेहा को ज़्यादा तकलीफ़ नही हुई और उन्हे एक बड़ा सा फुल्ली फर्निश्ड 2 BHK फ्लॅट मिल गया. ये सूर्यकांत ने अपने बेटे के लिए बनवाया था पर वो यहा रहता नही था.
दोनो सहेलियाँ जानती थी उनके पेरेंट्स बिज़ी होंगे और दोनो थोड़ी अब खुद से इनडिपेंडेंट सी भी हो गयी थी. तो दोनो ने खुद ही सारा इन्तेzआम किया और चली आई थी. दोनो अपने पेरेंट्स को जाड़ा परेशान नही करना चाहती थी.
एरपोर्ट से सूर्यकांत जी ने उन्हे पिक आप कर लिया और फिर अपने घर ले गये. वाहा से खाना वग़ैरा करके फिर उन दोनो को लेकर अपने फ्लॅट के लिए चल पड़े.
दोनो नये शहर मे आकर काफ़ी खुश थी.. एक नया सफ़र.. एक नयी शुरुआत. उनका फ्लॅट कंपनी के कॅंपस से ज़्यादा दूर नही था. पर मेन रोड से थोड़ा अंदर जाना होता था. कुछ ज़्यादा भीड़ भाड़ नही थी उस एरिया मे पर सड़के काफ़ी अच्छी थी. स्ट्रीट लाइट्स वग़ैरा भी थी. तो दोनो को सही लगा.
इनका फ्लॅट जिस बिल्डिंग मे था वो एक 4 मंज़िला बिल्डिंग थी. बिल्डिंग के आस पास कोई चहल पहल नही थी और बिल्डिंग की खिड़किया भी सारी बंद थी. ये देख नेहा ने रिचा से धीमे से मुस्कुराते हुए पूछा - अंकल ने पूरी बिल्डिंग तो हमे नही दे दी है.. लग नही रहा कोई और भी यहा रहता है. रिचा ने भी हामी भारी - हाँ ऐसा ही लग रहा. पर लगता नही इतने मेहरबान होंगे!
गेट से अंदर जाते ही उन्होने देखा दो हॅचबॅक पार्क्ड हैं.
'अंकल यहा और भी फॅमिलीस रहती है' - रिचा ने पूछा.
सूर्यकांत ने कहा - और क्या.. तुमलोग क्या भूत बांग्ला चाहती हो अपने लिए! - कह कर हंसने लगे.
'यहा पर 3 और फॅमिली हैं.. एक तीसरे माले पे और दो 4थे माले पे. 2न्ड फ्लोर मे तुम्हारा है. 1स्ट फ्लोर हमने अभी ऐसे ही खाली रखा हुआ है'. - कहते हुए उन्होने लिफ्ट का बटन दबाया.
'अच्छा'
'यहा सेक्यूरिटी नही है'
'ज़रूरत ही नही पड़ती. इस एरिया मे बगल मे ही पोलीस स्टेशन है. और कंपनी कॅंपस की वजह से रात भर उनकी गश्ती होती रहती है' - कहते हुए उन्होने लिफ्ट का दरवाजा खोला.
लिफ्ट से निकल कर दाहिने मे ही एक दरवाजा था जो उनका था. और बाएँ थोड़ा आगे करीब 14 15 फीट के बाद दूसरा दरवाजा था जिसपर ताला लगा था.
बिल्डिंग काफ़ी साफ़ सुथरी थी. ये देख नेहा ने पूछा - 'अंकल साफ़ सफाई करने वाले आते हैं'.
'हां, हमने एक बाई रखी हुई है. सुबह मे एक बार आती है और शाम मे एक बार. और हमने तुम्हारे लिए भी कह दिया है अंदर भी साफ़ करके जाएगी जब भी आए. तो तुम समय बता देना सुबह करना चाहती हो या शाम मे या दोनों टाइम'.
'ठीक है अंकल'.
'तो आज से ये है तुम्हारा घर. ये हॉल है, ये किचन... ये कामन बात रूम, ये एक बेडरूम है .. इससे सटा बाल्कनी का दरवाजा. ये एक बेडरूम है इसमे अटॅच्ड बातरूम. अभी पंखे फिट हैं इन सभी रूम मे. एसी चाहो तो लगवा दूँगा. पानी की कोई दिक्कत हो तो लिफ्ट के लेफ्ट साइड मे स्विच है ओं कर देना. और कुछ ज़रूरत हो तो बताओ..'
दोनो ने देखा.. बिल्कुल नया था और काफ़ी बड़ा था 2 BHK के हिसाब से.. बेडरूम बड़े बड़े.. किचन भी बड़ा और बाथ रूम भी बड़े. अटॅच बाथरूम मे टब भी लगा था. सोफा फ्रिड्ज वॉशिंग मशीन, टीवी...
'अंकल टीवी का केबल कनेक्सन?'
'हां ये लगा हुआ है.. टाटा स्काइ सारे डीटेल्स मैने लिख के इस कागज मे रख दिया है..' - कहते हुए उन्होने टीवी के पीछे से एक कागज का टुकड़ा निकाला.. तुम बस महीने का रीचार्ज करते रहना . और एलेक्ट्रिसिटी बिल का कन्ज़्यूमर नंबर भी लिख दिया है मैने.. ऑनलाइन पे कर देना.'
'ओ.के. अंकल'
'और कुछ..'
रिचा - 'एम्म.. नही अंकल हो गया'.
सूर्यकांत - 'तो कैसा लगा घर.. भूतबंगले से बेटर है?'
रिचा - 'हा हा हा हा! हाँ अंकल बहुत बढ़िया है'.
सूर्यकांत - 'ठीक है चलो फिर आराम कर.. सब सेट कर लो मैं अब चलता हूँ.. वैसे मैं महीने महीने आ जाया करूँगा रेंट लेने के लिए. पर फिर भी कुछ ज़रूरत हो तो बेझिझक बताना'. - कहते हुए निकलने लगा.
'रुकिये अंकल हम आते है'.
'अरे नही नही मैं कौन सा नया हूँ यहा .. तुम दोनो आराम करो मैं चलता हूँ'.
'ठीक है अंकल'.
'अरे अरे एक बात मैं भूल गया.. उस कागज मे एक नंबर लिखा है राजू का.. यहा का पानी सही नही है.. उसे कॉल करना वो पानी के ड्रिंकिंग वॉटर कंटेनर देता है यहा से बस 100म्ट्स पर उसका दुकान है सो देख लेना'.
'ओके अंकल'.
'ठीक है चलो बाए बच्चो'.
'बाइ अंकल'.
नेहा - 'उफ़ यार सही है! तेरी तो निकल पड़ी!'
रिचा - 'ह्म्म ! क्या निकल पड़ी? क्या मतलब!'
नेहा - 'चल बन मत.. सेक्यूरिटी नही.. लोग भी नज़र नही आते घुसते निकलते.. और उपर से इतना मस्त सा फ्लॅट... जानती हूँ बड़ा रूम तू ही ले लेगी'
रिचा - 'ःम्म अपनी तो ऐश है! तुझे जब मान करे आ जइयो! साथ मे ऐश करेंगे'
नेहा ने कागज दिखाते हुए शरारत भरे अंदाज मे पूछा- 'अच्छा!!! अंकल ने ड्रिंकिंग वॉटर कंटेनर वाले का नंबर तो दिया है.. लेकिन ड्रिंक कंटेनर वाले का नही दिया है!'
'हा हा हा चुप कर हरामी!' कहते हुए दोनो हँसने लगी.
'चल अब फटाफट सेट करते हैं .. फिर आराम से बैठ के बाते करेंगे'
दोनो ने अपना अपना बॅग उठाया और अपने अपने कमरे ठीक करने चल पड़ी.