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लेडीज - गर्ल्स टॉक [ गर्ल्स व् लेडीज की आपसी बातचीत , किसी भी विषय पर जैसे ड्रेसिंग,
#66
(11-04-2020, 11:07 PM)Niharikasaree Wrote:
चित्रहार आ रहा था , एक - दो गाने के बाद विज्ञापन आया, केयर फ्र्री , सटे फ्री  याद नहीं अब तो , मैं भी ऐसा ही यूज़ कर रही हु  यही सोच कर ध्यान से देख रही थी , लेकिन कुछ जायदा सोच पाती की विज्ञापन ख़तम   हो गया और फिर गाने गए.


तभी माँ की आवाज़ आयी। ...... निहारिका  औ निहारिका। .............
...........

प्रिय सहेलिओं ,

निहारिका का प्यार भरा नमस्कार ,

अब आगे ,

सखिओ , हम सब इसी दौर से गुज़र चुके हैं , वो पहेली बार [पैड्स] लगाना अकेले बाथरूम मैं जाकर देखना, खून का फ्लो, कभी फ्लो जयादा , कभी कम , दर्द से झूझना जब न कबीले बर्दास्त हो जाये तब माँ को बताना , माँ दर्द हो रहा है, पर इतना नहीं, यह झूठ भी माँ समझ जाती , फिर गर्म पानी का सेंक , अजवाइन नहीं तो आखिर पैन किलर।  धीरे -धीरे आदत हुई की पांच दिन महीने के यु ही निकलने हैं, सह लो, "सच्ची" बड़ा बुरा लगता था, वो पांच दिन, जब दूसरी लड़कियों खासकर "लड़को" को खेलते हुए देख कर [मन मैं गली देते हुए] इन्हे कुछ नहीं होता , इनको कुछ नहीं, कोई दर्द नहीं, मस्त एकदम।

लड़कियों को एक तो पता नहीं होता, की आगे "इस - योनि" का क्या "इस्तेमाल" होगा, पर उस समय सबसे बेकार चीज यह ही होती थी, कम - से - कम मेरे लिए , यह क्यों दी उपरवाले ने हमे, उस पर यह तकलीफ। उम्र बढ़ती गई,पीरियड्स का रूटीन चलता रहा, "उन दिनों" मैं खासकर मेरे मूड को न जाने क्या हो जाता था , अकेले बैठ जाना, किसी से बात न करने की इच्छा, कुछ खाने की इच्छा, अगले पल नहीं खाना, गार्डन मैं खेलने जाना पर कुछ न खेलना , दूसरी लड़कियों से बात करने मैं हिचक, न जाने क्या सोचेगी। पड़ोस वाली भाभी से बात करने की इच्छा भी हुई, हिचक कभी बात ही नहीं हुई उनसे इस बारे मैं, बस कॉलेज, कैसे चल रही है पढाई, सब ठीक, माँ क्या कर रही है. बात ख़तम.

एक दिन, शाम को, पार्क की बेंच पर बैठी थी, अँधेरा होने को था, बस माँ की आवाज का इन्त्रार की कब माँ बुला ले, और घर जाने का बहाना मिल जाये, "दूसरा" दिन था मेरा। फ्लो भी जयादा था, उम्र के साथ होता होगा, तभी माँ की आवाज आयी, निहारिका , आजा अँधेरा होने को है.

मैं, अनमने मन से उठी, और चल दी घर की और, माँ के पास एक झूठी स्माइल से साथ बोली हाँ माँ, क्या हुआ.

माँ - अरी, सुन. [धीरे से बोली] पैड्स हैं या ख़तम हो गए, तेरे पास ? लगता है आज रात या कल सुभे मुझे चाहिए होंगे। मेरे तो ख़तम हो गए, और लाना भी भूल गयी. 

मैं - चुप थी, क्या बोलती, है, अब यह एक नार्मल रूटीन था, माँ बाज़ार जाती, तो ले आती थी, मुझे कभी टेंशन नहीं हुई की है या नहीं। मैंने बोलै, माँ ,देख कर आती हूँ,

टेंशन, दर्द को भुला देता है, तेज़ चल कर गई , अलमारी मैं देखा , पैकेट मैं सिर्फ दो बचे थे , अब , अब क्या।  माँ को दू, या , मेरे भी तो चल रहे हैं, आज दूसरा दिन ही तो है. एक - एक काम आ जायेगा , पर लेने  तो पड़ेंगे ही.

आयी माँ के पास, बोली , माँ - दो ही बचे हैं.

माँ - अब - बोल नहीं सकती थी की दो ही बचे हैं, बता देती तो कल ले आती , गई तो थी न बाज़ार। और मैं भी भूल गई , पागल, कब समझ आएगी तुझे। एक काम कर , अभी तो मैं नहीं जा सकती, पूजा का समय है, खाना भी बनाना है, कल तो तेरे पिताजी को ही शाम का दिया - बाती  करनी है, तू ले आ , गली के बाहर मेडिकल पे मिल जायेगा। ले पैसे, सुन दो पैकेट ले आना. "व्हिस्पर"  के बोलना "अल्ट्रा थींन" ,

मैं - चुप, बस सुने जा रहि थी, माँ, समझ गई , बड़ा , ग्रीन वाला , देख कर लाना। अब जा। 

उफ़, काटो तोह खून नहीं, जैसी मेरी हालत , माँ से पैसे लेकर, चप्पल पहनी , दुपट्टा लिया , जोबन ढके ,निकलने वाली थी की, अचानक याद आया, बाल तो बनाये ही नहीं। 

गई, कांच के सामने, कंघा लिया , बालो से रब्बर बेंड हटाया, बेखबर , बाल मैं कंघी करे जा रही थी, तभी माँ की आवाज आई,  निहारिका , उफ़ अब तक गई नहीं, जा अँधेरा भी हो रहा है, आ कर , टिंडे काट देना, प्याज भी. जब तक मैं मंदिर देख लेती हूँ.

मैं - झटके से होन्श आया , जल्दी से बाल समेटे , रब्बर बेंड लगाया , बोली है , माँ बस निकल गयी।  और घर से बाहर। 

मेडिकल शॉप, जयादा दूर नहीं थी, बही तो माँ अकेले नहीं भेजती। मैं, कई बार स्कूल / कॉलेज और बाजार के लिए उस दुकान के सामने से गई हूँ, पर आज न जाने क्यों वो दुकान बड़ी दूर लग रही थी, मैं चल रही हूँ और रास्ता ख़तम ही न हो रहा था। 

फिर , कदम तेज़ किये, करीब दस कदम दूर, दुकान दिख गई , कुछ लोग थे दवा खरीद कर रहे  थे, हल्का अँधेरा हो चला था, सोचा जल्दी ले लू, फिर घर जाकर, टिंडे  और प्याज़ भी काटने हैं, माँ मंदिर से फ्री हो गई होने  तो नाहक ही डांट  सुनने को मिलेगी।
मैं, मेडिकल शॉप से तीन कदम दूर कड़ी थी, अब तक दो -तीन ही लोग बचे थे , खांसी की दवाई , कोई बुखार की दवाई मांग रहा था, दुकानवाला भी जल्दी निबटने के प्रयास मैं था  उन सबको।।।।।।।

मैं, चुप खड़ी, देख रही थी, मुँह से आवाज निकलने की कोशिश करि तो, निकले न , होंठ एकदम सुख गए थे। मन ही मन सोच जा रही थी, क्या बोलूँगी , कैसे बोलूंगी। .

तभी, काउंटर खली हो गया था दुकान का , दुकानवाला जोर से बोला, हाँ जी मैडम क्या चाहिए आपको। ..........

.......................

बहुत सुंदर , जिन परिस्थितयों से एक किशोरी गुजरती है , ..आज तक इस फोरम क्या , इस तरह के किसी फोरम पर , इस हालत का इस स्थिति का चित्र किसी ने नहीं खींचा होगा ,


तन का दर्द , मन का दर्द , झिझक , शर्माहट ,..एकदम परसनल बात किसी दूसरे से कहने की बात ,... 


clps clps clps clps clps clps   yourock Heart Heart



आप आप ही हो 
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RE: लेडीज - गर्ल्स टॉक [ गर्ल्स व् लेडीज की आपसी बातचीत , किसी भी विषय पर जैसे ड्रेसिंग, - by komaalrani - 12-04-2020, 09:21 AM



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