12-04-2020, 02:55 AM
अध्याय 24
ऋतु की बात सुनते ही सब एक दूसरे की ओर देखने लगे....फिर रागिनी उठी और कहा की अब काफी समय हो गया है तो खाना बना लिया जाए... क्योंकि फिर खाना खाने के लिए ज्यादा देर हो जाएगी.... इस पर शांति भी उसके साथ रसोईघर की ओर चल दी।
तभी दरवाजे पर घंटी बजी तो प्रबल निकलकर बाहर मेन गेट पर पहुंचा.... वहाँ एक 25-26 साल का लड़का खड़ा हुआ था... प्रबल ने दरवाजा खोला और उसकी ओर प्रश्नवाचक दृष्टि से देखा....
“यहाँ एडवोकेट ऋतु सिंह रहती हैं” उसने प्रबल से पूंछा
“जी हाँ! आप?” प्रबल ने अंदर आने का रास्ता देते हुये कहा
“जी में उनके ऑफिस से एडवोकेट पवन कुमार सिंह” उस लड़के यानि पवन ने अंदर आते हुये कहा
“आप यहाँ बैठिए, में उन्हें बुलाता हूँ” कहते हुये प्रबल ने पवन को सोफ़े पर बैठने का इशारा किया और अंदर जाकर रागिनी के कमरे में बैठी ऋतु से पवन के आने के बारे में बताया
“ओह! में तो भूल ही गयी थी कि पवन को भी बुलाया था मेंने... रात के खाने पर” कहते हुये ऋतु उठ खड़ी हुई तो साथ ही अनुराधा और अनुभूति भी उसके पीछे पीछे चल दीं
“नमस्ते मैडम!” ऋतु को हॉल में आते देखकर पवन सोफ़े से खड़ा होता हुआ बोला
“अरे बैठो-बैठो। और मैडम में ऑफिस में हूँ यहाँ तुम मेरा नाम ले सकते हो” कहते हुये ऋतु दूसरे सोफ़े पर बैठ गयी
“जी मैडम.... ओह... मतलब ऋतु जी” पवन ने शर्माते हुये सा कहा
“ऋतु जी............ यार ऋतु ही बोल लिया करो..... अब गाँव से दिल्ली आ गए हो...अब तो शर्माना छोड़ दो........और जी तो दिल्ली कि जुबान में ही नहीं लगता” ऋतु ने उसके शर्माने पर हँसते हुये कहा
“नहीं... अब इतना भी नहीं........आप मुझसे सीनियर हैं में आपको ऋतु जी ही कहूँगा। अब बताइये क्या आदेश है मेरे लिए? क्योंकि मुझे ऐसा लगा कि आपने मुझे सिर्फ खाने के लिए तो नहीं बुलाया। जरूर कोई और बात भी है” प्रबल ने थोड़े संजीदा होते हुये कहा
“हाँ! बात ये हैं कि ये घर मेरी बड़ी बहन रागिनी सिंह का है... और अब में उनही के साथ रहूँगी... यहाँ मेरे परिवार के काफी सदस्य बल्कि लगभग सभी सदस्य रहते हैं..... ये मेरे बड़े भाई विक्रमादित्य सिंह का बेटा प्रबल प्रताप सिंह है...यानि मेरा भतीजा” ऋतु ने भी गंभीरता से कहा, फिर प्रबल से बोली “प्रबल! बेटा रागिनी दीदी को यहाँ बुला लो और शांति माँ को भी.... अनुराधा और अनुभूति को बोल दो वो रसोईघर में खाने कि व्यवस्था देख लेंगी”
“जी बुआ जी” कहते हुये प्रबल अंदर चला गया
“ऋतु जी! ये विक्रमादित्य सिंह तो वही थे न जिनकी मृत्यु श्रीगंगानगर में हुई थी...और उनकी वसीयत हमारे ही ऑफिस में है... अभय सर के मित्र” प्रबल के जाने के बाद पवन ने ऋतु से पूंछा
“हाँ! वो असल में अभय सर के दोस्त नहीं सीनियर थे कॉलेज में... मेरे ताऊजी के बेटे हैं... रागिनी दीदी उनकी बहन हैं... और शांति माँ उनकी माँ हैं...” ऋतु ने बताया और आगे बोली “अब मेंने तुम्हें इसलिए बुलाया है कि ये सब यहाँ अभी आए हैं...राजस्थान से...... तो अभी हमारा कोई भी काम-धंधा नहीं है यहाँ... अब हम चाहते हैं कि हम यहाँ कुछ ऐसा शुरू करें जिसे हम सब मिलकर सम्हाल सकें...और हमारे पैसे भी फँसने का खतरा न हो”
तभी रसोई से चाय और नाश्ता लेकर अनुराधा और अनुभूति आयीं और उनके पीछे-पीछे रागिनी और शांति भी आ गईं। पवन ने उन्हें देखकर उठ खड़े होकर नमस्ते किया तो उन्होने ने भी जवाब में नमस्ते करके उसे बैठने को कहा और ऋतु के बराबर में ही सोफ़े पर बैठ गईं
“पवन ये मेरी दीदी रागिनी सिंह हैं और ये मेरी ताईजी शांति माँ हैं” ऋतु ने पवन से परिचय कराया तो पवन उलझ सा गया
“पवन जी! ये मेरे पिताजी कि दूसरी पत्नी हैं... उम्र में बेशक मुझसे छोटी हैं लेकिन हैं तो माँ ही” पवन कि उलझन को देखते हुये रागिनी ने मुस्कुराकर कहा
“ऐसी कोई बात नहीं दीदी... अब ये बताइये कि इस काम को कौन-कौन चलाएगा...और उनको कितनी जानकारी व अनुभव है.... किस काम का...” पवन ने कहा
“देखो पवन तुम्हें स्पष्ट बता दूँ .... यहाँ किसी भी काम कि जानकारी होने से ज्यादा अनुभव जरूरी है... अनुभव स्वयं में ज्ञान है.... ऋतु को तो जानते ही हो... वो कानूनी मामलों कि जानकार है... लेकिन उसके अलावा उसे कोई विशेष अनुभव नहीं.... और हम में से भी किसी ने भी कभी कोई कम नहीं किया... तो अनुभव भी नहीं.... हम सभी स्त्रियाँ हैं.... अकेला प्रबल ही हमारे परिवार का पुरुष सदस्य है, लेकिन वो भी साथ में अपनी पढ़ाई करेगा.... तो अब बताओ कि तुम्हारी समझ से क्या किया जा सकता है”
“देखिये छोटा व्यवसाय तो आपको इतनी आमदनी नहीं देगा जो आप सभी के खर्चे निकाल सके.... इससे आप धीरे-धीरे करके अपनी जमा पूंजी खर्च कर लेंगे... और बड़े व्यवसाय में अनुभव मुख्य है, बिना अनुभव के आपके प्रतिद्वंदी आपको नुकसान पहुंचा सकते हैं....... तो आपको किसी भी व्यवसाय में मौजूद बड़ी कंपनी के स्थानीय प्रतिनिधि के रूप में काम करना चाहिए जिससे... आपको धीरे-धीरे अनुभव भी होता जाएगा और संकट कि स्थिति में वो कंपनी आपको सहयोग ही नहीं आपका पूर्ण संरक्षण भी करेगी” पवन ने कहा
“हाँ! ये तो तुम सही कह रहे हो........ क्योंकि अगर हमारे ऊपर संकट आयेगा तो उसका असर कंपनी के स्थानीय व्यवसाय पर भी पड़ेगा...... और वो कंपनी हमारे बारे में ना सही अपने व्यवसाय के बारे में तो सोचकर कुछ ना कुछ करेगी ही... हमें उस संकट से निकालने के लिए” रागिनी ने कहा
“जी हाँ! आप सही समझीं” पवन ने आगे कहा “ अब आते हैं कि व्यवसाय किस चीज का हो... यहाँ दिल्ली एनसीआर में सबसे बड़ा व्यवसाय भू-संपत्ति का है... मकान खरीदना बेचना.... लेकिन उसमें निवेश भी ज्यादा होगा और धैर्य के साथ प्रतीक्षा भी करनी होगी.... अपना निवेश और लाभ वापस पाने के लिए”
“मेरा विचार है कि हमें खाने-पहनने के व्यवसाय पर गौर करना चाहिए ..... क्योंकि इनकी बिक्री प्रतिदिन होती है और हर व्यक्ति को इनकी आवश्यकता हमेशा रहती है... तो वो बार-बार खरीदता भी है” रागिनी ने सुझाव दिया
“मानना पड़ेगा... आपने पूरी तैयारी की हुई है.... आप सही कह रही हैं.... में इसी क्षेत्र में काम कर रही कम्पनियों से संपर्क करके आपको बताता हूँ?” पवन ने उत्तर दिया
“सिर्फ बताना ही नहीं .......आपको भी हमारे साथ जुड़ना होगा, साझेदार के रूप मेँ” रागिनी ने कहा
“मेँ अभी पूरी तरह से नहीं जुड़ सकता क्योंकि बार काउंसिल मेँ पंजीकरण के लिए मुझे अभी लगभग 8-9 महीने अभय सर के साथ ही काम करना होगा... दूसरे मेँ पूंजी भी नहीं लगा सकता.... हालांकि अपने गाँव मेँ हमारी बहुत जमीन है... लेकिन वो मेरे दादाजी के नाम हैं.... और दादाजी उस जमीन को ना तो बेचेंगे और ना ही कोई ऋण लेंगे...उस जमीन के आधार पर” पवन ने अपनी समस्या बताई
“तुम्हें कोई पैसा लगाने कि जरूरत नहीं है....... वैसे मेंने तुम्हारे बारे मेँ तो पूंछा ही नहीं.... कहाँ के रहनेवाले हो और कौन कौन है तुम्हारे घर मेँ, शादी हो गयी या नहीं” रागिनी ने मुसकुराते हुये ऋतु की ओर देखा तो उसने नज़रें दूसरी और घूमा लीं
“दीदी मेरा गाँव उत्तर प्रदेश मेँ कासगंज के पास है... मेरे घर मेँ दादाजी-दादीजी, माँ-पिताजी और 2 बहनें व 1 छोटा भाई है.... बड़ी बहन कि शादी हो चुकी है....छोटे भाई बहन पढ़ रहे हैं.... रही बात मेरी शादी की ... तो अभी पहले कुछ कमाने तो लगूँ.... बेरोजगार से कौन अपनी लड़की की शादी करेगा” पवन ने साधारण भाव से मुसकुराते हुये रागिनी को बताया
“कोई बात नहीं... कमाने तो लगोगे ही... तो घर वाले सभी गाँव मेँ ही रहते हैं?” रागिनी ने पुनः पूंछा
“हाँ अब तो गाँव मेँ ही रहते हैं.... पहले यहीं रहा करते थे दिल्ली मेँ.... फिर कुछ दिन नोएडा भी रहे... वहीं मेरी मुलाक़ात एक व्यक्ति से हुई.... उन्होने मेरी और मेरे पिताजी कि सोच को बिलकुल बदल दिया....इसी वजह से आज मेँ कोई छोटी मोती नौकरी करने कि बजाय वकील बनने जा रहा हूँ और मेरे पिताजी भी नौकरी करने कि बजाय अपने गाँव मेँ एक सम्पन्न और सम्मानित तरीके से परिवार चला रहे हैं.......... मेँ उन भैया का हमेशा अहसानमंद रहूँगा” पवन ने कृतज्ञता का भाव लाते हुये कहा
“ज़िंदगी मेँ हर किसी को कोई न कोई ऐसा जरूर मिलता है... जो उसकी ज़िंदगी कि दशा और दिशा दोनों बादल देता है” रागिनी ने कहा
तब तक अनुराधा ने आकार सबको खाना खाने को कहा तो सभी डाइनिंग टेबल पर पहुँचकर खाना खाने लगे। खाना खाकर पवन अपने घर को चला गया और शांति व अनुभूति भी ऊपरी मंजिल पर अपने घर चली गईं। हालांकि रागिनी ने उनसे आज अपने साथ ही सोने को कहा लेकिन शांति देवी ने कहा की ऊपर भी इसी घर में हैं इसलिए परेशानी उठाने की जरूरत ही नहीं है.... ऊपर खाली रहेगा और यहाँ कम जगह में व्यवस्था बनानी पड़ेगी... उल्टे उन्होने उन लोगो को भी ऊपर चलने को कहा .... क्योंकि ऊपर दूसरी मंजिल पर एक कमरा और तीसरी मंजिल पर 2 कमरे खाली पड़े हुये थे.... लेकिन रागिनी ने कहा की नीचे फिर बच्चे अकेले रह जाएंगे इसलिए वो नीचे ही सोएगी... तब अनुभूति ने अनुराधा से कहा की वो ऊपर उसके पास सोये। अनुराधा जाने को तयार नहीं थी लेकिन शांति देवी ने बहुत कहा तो रागिनी ने भी कह दिया की वो आज ऊपर ही सो जाए। और कल से अपना समान लेकर चाहे तो ऊपर शिफ्ट कर सकती है....क्योंकि ये पूरा मकान भी अपना ही है और अब तो सभी रहने वाले भी अपने ही हैं तो ...सब अपने-अपने अलग कमरे में रह सकते हैं.... अनुराधा ने अनुभूति को थोड़ी देर में आने को कहकर प्रबल के कमरे में चली गयी। इधर ऋतु ने भी कहा की में भी सोचती हु की सबसे ऊपर की मंजिल पर जो 2 कमरे हैं उनमें से 1 कमरा वो ले लेगी.... इससे सभी को सुविधाजनक भी रहेगा।
अनुराधा प्रबल के कमरे में पहुंची तो प्रबल बेड पर लेता हुआ था, दरवाजे पर अनुराधा को देखते ही वो उठकर सिरहाने से पीठ टिकाकार बैठ गया। अनुराधा ने कमरे में आकर दरवाजा अंदर से बंद किया और प्रबल के पास ही बेड के सिरहाने से पीठ टिकाकर बैठ गयी और प्रबल का हाथ अपने हाथ में लेते हुये उसकी ओर प्रश्नवाचक दृष्टि से देखने लगी।
“आज से में ऊपर वाले कमरे में रहूँगी... अनुभूति के पास...मुझे मालूम है तुझे अच्छा नहीं लग रहा.... लेकिन बुरा भी नहीं लगना चाहिए, याद है हवेली में जब विक्रम भैया ने हमें अलग-अलग कमरे में रहने के लिए बोला था... तब कितना रोया था तू...और मुझे भी बुरा लगा था। लेकिन आज इस उम्र में आकर मुझे समझ में आया की उन्होने सही फैसला लिया था... हम नासमझ थे और माँ अपनी याददास्त जाने के बाद कभी परिवार के बीच रही नहीं... तो उन्होने भी इस बात पर ध्यान नहीं दिया... लेकिन बहुत बार मेंने इस बात पर गौर किया की एक उम्र के बाद हमें एक दूसरे से ही नहीं माँ से भी अलग कुछ निजी ज़िंदगी जीनी होती है, कुछ निजी काम करने होते हैं.... तो ये फैसला विक्रम भैया का बिलकुल सही था... बल्कि उनका हर फैसला सही था.... में ही नासमझ थी जो उन्हें अपना दुश्मन समझने लगी...उनसे नफरत करने लगी”
“हम्म! आप मुझसे ज्यादा जानती हैं... आपको जो सही लगे... मेरे लिए हमेशा सही ही होता है” प्रबल ने उदास सी मुस्कुराहट के साथ कहा
“पागल! अब तू छोटा बच्चा नहीं रह गया... अब बड़ा हो गया है...... आज मेरी बात मानता है... कल को जब बीवी आएगी तो वो मुझसे जलने लगेगी की मेंने अपने भाई को दबा के रखा हुआ है.... या फिर वो भी तुझे दबाने लगेगी..... आदमी बन अब... तू इस घर का मुखिया है... हम सब को बता की क्या सही है क्या गलत... अब कब तक माँ या मेरे पीछे दुबका रहेगा” अनुराधा ने कहा तो प्रबल को अनुपमा की बातें याद करके हंसी आ गयी। उसे मुसकुराते देखकर अनुराधा ने कहा
“क्या हुआ ऐसे हंस क्यों रहा है.... में कोई मज़ाक थोड़े ही कर रही हूँ... सच्चाई बता रही हूँ”
“अरे आपकी बात नहीं दीदी... वो अनुपमा की बात याद करके हंस रहा था ... वो भी आज ऐसे ही कह रही थी” प्रबल ने शर्माते हुये कहा
“अनुपमा! वाओ... एक घंटे में ही बदल दिया उसने.... दीदी से अनुपमा बन गयी... क्या क्या सीखा दिया मेरे भाई को उस कमीनी ने” अनुराधा ने प्रबल को छेडते हुये कहा
“अरे नहीं दीदी... अब जब में उनको दीदी बोलता हूँ तो वो नाराज हो जाती हैं, गुस्सा करने लगती हैं तो अब में उन्हें नाम से ही बुलाऊंगा... और क्या-क्या सिखाया मुझे पूंछों ही मत.... और उनकी सहेलियों का गैंग.... वो तो जल्दी घर आना था इसलिए सिर्फ जान पहचान ही कराई है अभी” प्रबल छोटे बच्चे की तरह खुश होते हुये अनुराधा को बताने लगा
“चल ठीक है... अब बड़ा हो रहा है तू... वो अच्छी लड़की है और सबसे बड़ी बात, घर की सदस्य की तरह है... घर की ही मान लो.... उसके साथ रहकर घर से बाहर निकालना और इस दुनिया को समझना सीख जाएगा.... लेकिन थोड़ा सम्हालकर...और अपनी मर्यादा का ध्यान रखना...” अनुराधा ने कहा और उठकर खड़ी हो गयी
“ठीक है दीदी...आप निश्चिंत रहें” प्रबल ने जवाब दिया
अब प्रबल भी अपने बिस्तर पर लेट कर आज दिन में अनुपमा के साथ हुयी बातों को याद करने लगा
........................
रास्ते भर अनुपमा प्रबल को अपनी बातों से पकाती रही... फिर गुप्ता मार्केट पहुँचकर जब वो रिक्शे से उतरे तो वहाँ पहले से ही खड़ी 3 लड़कियों ने रिक्शे वाले को 10 रुपए दिये और अनुपमा को हाथ पकड़कर खींच लिया ...अनुपमा को उतरते देख प्रबल भी रिक्शे से उतरा और उसके साथ खड़ा हो गया
“अरे कमीनीयों इसे 10 रुपये और दे दो.... तुम्हारे लिए बकरा लाई हूँ...उसका किराया कौन देगा... तेरी मम्मी से दिलवा दूँ...उन्हें बकरा भी पसंद आ जाएगा” अनुपमा ने उन लड़कियों से कहा
“वो तो बुड्ढी हो गईं.... इसे हम में से जो पसंद हो बता दे वही किराया दे देगी इसका...” जिस लड़की ने अनुपमा का हाथ पकड़ा हुआ था वो बोली
“अरे मेडम मुझे तो पैसे दे दो...” रिक्शे वाले ने कहा तो अनुपमा ने अपनी जेब से निकालकर उसे 10 रुपये दे दिये
“ओहो... तो अनु मेडम को पसंद कर लिया……. वैसे ये गूंगा है क्या.... तो किसी को बता भी नहीं पाएगा की इसके साथ क्या हुआ और किसने किया” उस लड़की ने दाँत फाड़ते हुये कहा
“चल पहले मुलाक़ात करा दूँ... ये हैं प्रबल, मेरी बचपन की सहेली अनुराधा के छोटे भाई.... और ये हैं निशा, रिचा और स्वाति मेरी सबसे खास दोस्त... और हमारे ही कॉलेज में पढ़ती हैं... तुम्हारी सीनियर हैं...”
“जी में प्रबल प्रताप सिंह...आप सभी से मिलकर बड़ी खुशी हुई” प्रबल ने प्रभावशाली तरीके से कहा तो वो सभी लड़कियां हंसने लगीं
“सच यार... ये तो बकरा ही है.... कल इसकी रैगिंग लेती हूँ... ‘जी में प्रबल प्रताप सिंह’ हा हा हा .... जैसे किसी बिजनेस मीटिंग में आया हो......” स्वाति ने हँसते हुये प्रबल की नकल उतारते हुये कहा “और ये तुम्हारा मुंह सूजा-सूजा क्यों है... कड़ी हंस भी लिया करो”
“चल यार अब तो रोज ही कॉलेज में मिलना होता रहेगा... अभी तो चलकर वो कम कर लें जिसके लिए आए हैं” अनुपमा ने स्वाति से कहा
“हाँ दी... चलो किताबें ले लेते हैं...फिर माँ भी आने वाली हैं तो जल्दी वापस लौटना है” प्रबल ने अनुपमा को दीदी कहते कहते उसकी आँखों में गुस्सा देखा तो जल्दी से बोला
“स्वाति, रिचा तुम दोनों ने सुना? ये तो अनु को दी कह रहा है...और इसको माँ की भी याद आ रही है.... बकरा नहीं ये तो मेमना लग रहा है... बच्चे को जल्दी किताबें दिलाकर घर लेकर जा... नहीं तो रोने लगेगा” निशा ने कहा
“ओए ज्यादा नहीं... वो दी नहीं जल्दी कह रहा था... और वो अपनी माँ से डरता नहीं है...असल में बुआ ने मुझे आज अपने साथ खाने की डावात दी है... तो हमें जल्दी से घर जाना है...वो ही याद दिला रहा था” अनुपमा ने जल्दी से कहा “अब चलो जल्दी”
“कोई बात नहीं अभी तू जितनी मर्जी सफाई दे ले...कल कॉलेज में देखती हूँ इसे कौन बचाएगा.... और पता है ना... जब कोई भी बकरा हमारे साथ मार्केट में होता है तो उसे वो सबकुछ खाना पड़ता है जो हम खाते हैं... अब ये मत कहने लगना की ये कुछ नहीं खाता” रिचा ने कहा
“देख अभी तो हम दोनों घर जाकर बुआ के साथ खाना खाएँगे.......... तो...कुछ नहीं... चल दुकान आ गयी किताबें ले ले” अनुपमा ने कहा
चारों लड़कियों ने अपनी किताबें लीन और प्रबल की भी …. अपने और प्रबल के पैसे अनुपमा ने दिये तो उन तीनों ने अनुपमा की ओर घूरकर देखा
“अरे यार पहले में अकेली आ रही थी... इसलिए बुआ ने मुझे पैसे दे दिये थे... फिर मेंने सोचा इसे भी साथ ले आऊँ तुमसे मिलवा दूँ... वरना कल कहीं तुम इसकी रैगिंग लेने लग जातीं... अच्छा ओके बाइ” अनुपमा ने कहा
“पहले खाते हैं गोलगप्पे... देखते हैं इसके सूजे-सूजे गाल गोलगप्पा खाकर कैसे लगेंगे” स्वाति ने कहा और वो सब वहीं दुकान के सामने ठेले पर गोलगप्पे खाने पहुँच गए, प्रबल ने एक बार तो माना करने का सोचा लेकिन फिर चुप हो गया और उनके साथ गोलगप्पे खाने लगा...
वहाँ से चलते समय स्वाति ने अनुपमा को एक ओर पकड़कर अलग खीचा और बोली
“देख .... मेरा कोई चक्कर चलवा दे इससे... और ये मत कहियो की तेरा चक्कर चल रहा है... मुझे अच्छी तरह पता है... तुझसे दीदी कह रहा था”
स्वाति की बात सुनकर अनुपमा ने कुछ नहीं कहा लेकिन प्रबल को गुस्से से घूर के देखा....और वहाँ से रास्ते भर मुंह फुलाए रही... प्रबल ने एक बार पूंछा भी की क्या बात है...क्यों गुस्सा है लेकिन वो कुछ नहीं बोली घर तक
................................
प्रबल यही सोचते सोचते सो गया कि ऐसी क्या बात कह दी स्वाति ने जो अनुपमा इतनी नाराज हो गयी.... वो स्वाति के चुचे घूर रहा था चोरी छुपे... वो तो नहीं देख लिया स्वाति ने और अनुपमा को बता दिया हो..........
“हुंह... अब इस उम्र में इतने बड़े-बड़े होंगे तो नजर वहीं रुकेगी ना” सोचते हुये प्रबल नींद में डूबता चला गया
............................................................
ऋतु की बात सुनते ही सब एक दूसरे की ओर देखने लगे....फिर रागिनी उठी और कहा की अब काफी समय हो गया है तो खाना बना लिया जाए... क्योंकि फिर खाना खाने के लिए ज्यादा देर हो जाएगी.... इस पर शांति भी उसके साथ रसोईघर की ओर चल दी।
तभी दरवाजे पर घंटी बजी तो प्रबल निकलकर बाहर मेन गेट पर पहुंचा.... वहाँ एक 25-26 साल का लड़का खड़ा हुआ था... प्रबल ने दरवाजा खोला और उसकी ओर प्रश्नवाचक दृष्टि से देखा....
“यहाँ एडवोकेट ऋतु सिंह रहती हैं” उसने प्रबल से पूंछा
“जी हाँ! आप?” प्रबल ने अंदर आने का रास्ता देते हुये कहा
“जी में उनके ऑफिस से एडवोकेट पवन कुमार सिंह” उस लड़के यानि पवन ने अंदर आते हुये कहा
“आप यहाँ बैठिए, में उन्हें बुलाता हूँ” कहते हुये प्रबल ने पवन को सोफ़े पर बैठने का इशारा किया और अंदर जाकर रागिनी के कमरे में बैठी ऋतु से पवन के आने के बारे में बताया
“ओह! में तो भूल ही गयी थी कि पवन को भी बुलाया था मेंने... रात के खाने पर” कहते हुये ऋतु उठ खड़ी हुई तो साथ ही अनुराधा और अनुभूति भी उसके पीछे पीछे चल दीं
“नमस्ते मैडम!” ऋतु को हॉल में आते देखकर पवन सोफ़े से खड़ा होता हुआ बोला
“अरे बैठो-बैठो। और मैडम में ऑफिस में हूँ यहाँ तुम मेरा नाम ले सकते हो” कहते हुये ऋतु दूसरे सोफ़े पर बैठ गयी
“जी मैडम.... ओह... मतलब ऋतु जी” पवन ने शर्माते हुये सा कहा
“ऋतु जी............ यार ऋतु ही बोल लिया करो..... अब गाँव से दिल्ली आ गए हो...अब तो शर्माना छोड़ दो........और जी तो दिल्ली कि जुबान में ही नहीं लगता” ऋतु ने उसके शर्माने पर हँसते हुये कहा
“नहीं... अब इतना भी नहीं........आप मुझसे सीनियर हैं में आपको ऋतु जी ही कहूँगा। अब बताइये क्या आदेश है मेरे लिए? क्योंकि मुझे ऐसा लगा कि आपने मुझे सिर्फ खाने के लिए तो नहीं बुलाया। जरूर कोई और बात भी है” प्रबल ने थोड़े संजीदा होते हुये कहा
“हाँ! बात ये हैं कि ये घर मेरी बड़ी बहन रागिनी सिंह का है... और अब में उनही के साथ रहूँगी... यहाँ मेरे परिवार के काफी सदस्य बल्कि लगभग सभी सदस्य रहते हैं..... ये मेरे बड़े भाई विक्रमादित्य सिंह का बेटा प्रबल प्रताप सिंह है...यानि मेरा भतीजा” ऋतु ने भी गंभीरता से कहा, फिर प्रबल से बोली “प्रबल! बेटा रागिनी दीदी को यहाँ बुला लो और शांति माँ को भी.... अनुराधा और अनुभूति को बोल दो वो रसोईघर में खाने कि व्यवस्था देख लेंगी”
“जी बुआ जी” कहते हुये प्रबल अंदर चला गया
“ऋतु जी! ये विक्रमादित्य सिंह तो वही थे न जिनकी मृत्यु श्रीगंगानगर में हुई थी...और उनकी वसीयत हमारे ही ऑफिस में है... अभय सर के मित्र” प्रबल के जाने के बाद पवन ने ऋतु से पूंछा
“हाँ! वो असल में अभय सर के दोस्त नहीं सीनियर थे कॉलेज में... मेरे ताऊजी के बेटे हैं... रागिनी दीदी उनकी बहन हैं... और शांति माँ उनकी माँ हैं...” ऋतु ने बताया और आगे बोली “अब मेंने तुम्हें इसलिए बुलाया है कि ये सब यहाँ अभी आए हैं...राजस्थान से...... तो अभी हमारा कोई भी काम-धंधा नहीं है यहाँ... अब हम चाहते हैं कि हम यहाँ कुछ ऐसा शुरू करें जिसे हम सब मिलकर सम्हाल सकें...और हमारे पैसे भी फँसने का खतरा न हो”
तभी रसोई से चाय और नाश्ता लेकर अनुराधा और अनुभूति आयीं और उनके पीछे-पीछे रागिनी और शांति भी आ गईं। पवन ने उन्हें देखकर उठ खड़े होकर नमस्ते किया तो उन्होने ने भी जवाब में नमस्ते करके उसे बैठने को कहा और ऋतु के बराबर में ही सोफ़े पर बैठ गईं
“पवन ये मेरी दीदी रागिनी सिंह हैं और ये मेरी ताईजी शांति माँ हैं” ऋतु ने पवन से परिचय कराया तो पवन उलझ सा गया
“पवन जी! ये मेरे पिताजी कि दूसरी पत्नी हैं... उम्र में बेशक मुझसे छोटी हैं लेकिन हैं तो माँ ही” पवन कि उलझन को देखते हुये रागिनी ने मुस्कुराकर कहा
“ऐसी कोई बात नहीं दीदी... अब ये बताइये कि इस काम को कौन-कौन चलाएगा...और उनको कितनी जानकारी व अनुभव है.... किस काम का...” पवन ने कहा
“देखो पवन तुम्हें स्पष्ट बता दूँ .... यहाँ किसी भी काम कि जानकारी होने से ज्यादा अनुभव जरूरी है... अनुभव स्वयं में ज्ञान है.... ऋतु को तो जानते ही हो... वो कानूनी मामलों कि जानकार है... लेकिन उसके अलावा उसे कोई विशेष अनुभव नहीं.... और हम में से भी किसी ने भी कभी कोई कम नहीं किया... तो अनुभव भी नहीं.... हम सभी स्त्रियाँ हैं.... अकेला प्रबल ही हमारे परिवार का पुरुष सदस्य है, लेकिन वो भी साथ में अपनी पढ़ाई करेगा.... तो अब बताओ कि तुम्हारी समझ से क्या किया जा सकता है”
“देखिये छोटा व्यवसाय तो आपको इतनी आमदनी नहीं देगा जो आप सभी के खर्चे निकाल सके.... इससे आप धीरे-धीरे करके अपनी जमा पूंजी खर्च कर लेंगे... और बड़े व्यवसाय में अनुभव मुख्य है, बिना अनुभव के आपके प्रतिद्वंदी आपको नुकसान पहुंचा सकते हैं....... तो आपको किसी भी व्यवसाय में मौजूद बड़ी कंपनी के स्थानीय प्रतिनिधि के रूप में काम करना चाहिए जिससे... आपको धीरे-धीरे अनुभव भी होता जाएगा और संकट कि स्थिति में वो कंपनी आपको सहयोग ही नहीं आपका पूर्ण संरक्षण भी करेगी” पवन ने कहा
“हाँ! ये तो तुम सही कह रहे हो........ क्योंकि अगर हमारे ऊपर संकट आयेगा तो उसका असर कंपनी के स्थानीय व्यवसाय पर भी पड़ेगा...... और वो कंपनी हमारे बारे में ना सही अपने व्यवसाय के बारे में तो सोचकर कुछ ना कुछ करेगी ही... हमें उस संकट से निकालने के लिए” रागिनी ने कहा
“जी हाँ! आप सही समझीं” पवन ने आगे कहा “ अब आते हैं कि व्यवसाय किस चीज का हो... यहाँ दिल्ली एनसीआर में सबसे बड़ा व्यवसाय भू-संपत्ति का है... मकान खरीदना बेचना.... लेकिन उसमें निवेश भी ज्यादा होगा और धैर्य के साथ प्रतीक्षा भी करनी होगी.... अपना निवेश और लाभ वापस पाने के लिए”
“मेरा विचार है कि हमें खाने-पहनने के व्यवसाय पर गौर करना चाहिए ..... क्योंकि इनकी बिक्री प्रतिदिन होती है और हर व्यक्ति को इनकी आवश्यकता हमेशा रहती है... तो वो बार-बार खरीदता भी है” रागिनी ने सुझाव दिया
“मानना पड़ेगा... आपने पूरी तैयारी की हुई है.... आप सही कह रही हैं.... में इसी क्षेत्र में काम कर रही कम्पनियों से संपर्क करके आपको बताता हूँ?” पवन ने उत्तर दिया
“सिर्फ बताना ही नहीं .......आपको भी हमारे साथ जुड़ना होगा, साझेदार के रूप मेँ” रागिनी ने कहा
“मेँ अभी पूरी तरह से नहीं जुड़ सकता क्योंकि बार काउंसिल मेँ पंजीकरण के लिए मुझे अभी लगभग 8-9 महीने अभय सर के साथ ही काम करना होगा... दूसरे मेँ पूंजी भी नहीं लगा सकता.... हालांकि अपने गाँव मेँ हमारी बहुत जमीन है... लेकिन वो मेरे दादाजी के नाम हैं.... और दादाजी उस जमीन को ना तो बेचेंगे और ना ही कोई ऋण लेंगे...उस जमीन के आधार पर” पवन ने अपनी समस्या बताई
“तुम्हें कोई पैसा लगाने कि जरूरत नहीं है....... वैसे मेंने तुम्हारे बारे मेँ तो पूंछा ही नहीं.... कहाँ के रहनेवाले हो और कौन कौन है तुम्हारे घर मेँ, शादी हो गयी या नहीं” रागिनी ने मुसकुराते हुये ऋतु की ओर देखा तो उसने नज़रें दूसरी और घूमा लीं
“दीदी मेरा गाँव उत्तर प्रदेश मेँ कासगंज के पास है... मेरे घर मेँ दादाजी-दादीजी, माँ-पिताजी और 2 बहनें व 1 छोटा भाई है.... बड़ी बहन कि शादी हो चुकी है....छोटे भाई बहन पढ़ रहे हैं.... रही बात मेरी शादी की ... तो अभी पहले कुछ कमाने तो लगूँ.... बेरोजगार से कौन अपनी लड़की की शादी करेगा” पवन ने साधारण भाव से मुसकुराते हुये रागिनी को बताया
“कोई बात नहीं... कमाने तो लगोगे ही... तो घर वाले सभी गाँव मेँ ही रहते हैं?” रागिनी ने पुनः पूंछा
“हाँ अब तो गाँव मेँ ही रहते हैं.... पहले यहीं रहा करते थे दिल्ली मेँ.... फिर कुछ दिन नोएडा भी रहे... वहीं मेरी मुलाक़ात एक व्यक्ति से हुई.... उन्होने मेरी और मेरे पिताजी कि सोच को बिलकुल बदल दिया....इसी वजह से आज मेँ कोई छोटी मोती नौकरी करने कि बजाय वकील बनने जा रहा हूँ और मेरे पिताजी भी नौकरी करने कि बजाय अपने गाँव मेँ एक सम्पन्न और सम्मानित तरीके से परिवार चला रहे हैं.......... मेँ उन भैया का हमेशा अहसानमंद रहूँगा” पवन ने कृतज्ञता का भाव लाते हुये कहा
“ज़िंदगी मेँ हर किसी को कोई न कोई ऐसा जरूर मिलता है... जो उसकी ज़िंदगी कि दशा और दिशा दोनों बादल देता है” रागिनी ने कहा
तब तक अनुराधा ने आकार सबको खाना खाने को कहा तो सभी डाइनिंग टेबल पर पहुँचकर खाना खाने लगे। खाना खाकर पवन अपने घर को चला गया और शांति व अनुभूति भी ऊपरी मंजिल पर अपने घर चली गईं। हालांकि रागिनी ने उनसे आज अपने साथ ही सोने को कहा लेकिन शांति देवी ने कहा की ऊपर भी इसी घर में हैं इसलिए परेशानी उठाने की जरूरत ही नहीं है.... ऊपर खाली रहेगा और यहाँ कम जगह में व्यवस्था बनानी पड़ेगी... उल्टे उन्होने उन लोगो को भी ऊपर चलने को कहा .... क्योंकि ऊपर दूसरी मंजिल पर एक कमरा और तीसरी मंजिल पर 2 कमरे खाली पड़े हुये थे.... लेकिन रागिनी ने कहा की नीचे फिर बच्चे अकेले रह जाएंगे इसलिए वो नीचे ही सोएगी... तब अनुभूति ने अनुराधा से कहा की वो ऊपर उसके पास सोये। अनुराधा जाने को तयार नहीं थी लेकिन शांति देवी ने बहुत कहा तो रागिनी ने भी कह दिया की वो आज ऊपर ही सो जाए। और कल से अपना समान लेकर चाहे तो ऊपर शिफ्ट कर सकती है....क्योंकि ये पूरा मकान भी अपना ही है और अब तो सभी रहने वाले भी अपने ही हैं तो ...सब अपने-अपने अलग कमरे में रह सकते हैं.... अनुराधा ने अनुभूति को थोड़ी देर में आने को कहकर प्रबल के कमरे में चली गयी। इधर ऋतु ने भी कहा की में भी सोचती हु की सबसे ऊपर की मंजिल पर जो 2 कमरे हैं उनमें से 1 कमरा वो ले लेगी.... इससे सभी को सुविधाजनक भी रहेगा।
अनुराधा प्रबल के कमरे में पहुंची तो प्रबल बेड पर लेता हुआ था, दरवाजे पर अनुराधा को देखते ही वो उठकर सिरहाने से पीठ टिकाकार बैठ गया। अनुराधा ने कमरे में आकर दरवाजा अंदर से बंद किया और प्रबल के पास ही बेड के सिरहाने से पीठ टिकाकर बैठ गयी और प्रबल का हाथ अपने हाथ में लेते हुये उसकी ओर प्रश्नवाचक दृष्टि से देखने लगी।
“आज से में ऊपर वाले कमरे में रहूँगी... अनुभूति के पास...मुझे मालूम है तुझे अच्छा नहीं लग रहा.... लेकिन बुरा भी नहीं लगना चाहिए, याद है हवेली में जब विक्रम भैया ने हमें अलग-अलग कमरे में रहने के लिए बोला था... तब कितना रोया था तू...और मुझे भी बुरा लगा था। लेकिन आज इस उम्र में आकर मुझे समझ में आया की उन्होने सही फैसला लिया था... हम नासमझ थे और माँ अपनी याददास्त जाने के बाद कभी परिवार के बीच रही नहीं... तो उन्होने भी इस बात पर ध्यान नहीं दिया... लेकिन बहुत बार मेंने इस बात पर गौर किया की एक उम्र के बाद हमें एक दूसरे से ही नहीं माँ से भी अलग कुछ निजी ज़िंदगी जीनी होती है, कुछ निजी काम करने होते हैं.... तो ये फैसला विक्रम भैया का बिलकुल सही था... बल्कि उनका हर फैसला सही था.... में ही नासमझ थी जो उन्हें अपना दुश्मन समझने लगी...उनसे नफरत करने लगी”
“हम्म! आप मुझसे ज्यादा जानती हैं... आपको जो सही लगे... मेरे लिए हमेशा सही ही होता है” प्रबल ने उदास सी मुस्कुराहट के साथ कहा
“पागल! अब तू छोटा बच्चा नहीं रह गया... अब बड़ा हो गया है...... आज मेरी बात मानता है... कल को जब बीवी आएगी तो वो मुझसे जलने लगेगी की मेंने अपने भाई को दबा के रखा हुआ है.... या फिर वो भी तुझे दबाने लगेगी..... आदमी बन अब... तू इस घर का मुखिया है... हम सब को बता की क्या सही है क्या गलत... अब कब तक माँ या मेरे पीछे दुबका रहेगा” अनुराधा ने कहा तो प्रबल को अनुपमा की बातें याद करके हंसी आ गयी। उसे मुसकुराते देखकर अनुराधा ने कहा
“क्या हुआ ऐसे हंस क्यों रहा है.... में कोई मज़ाक थोड़े ही कर रही हूँ... सच्चाई बता रही हूँ”
“अरे आपकी बात नहीं दीदी... वो अनुपमा की बात याद करके हंस रहा था ... वो भी आज ऐसे ही कह रही थी” प्रबल ने शर्माते हुये कहा
“अनुपमा! वाओ... एक घंटे में ही बदल दिया उसने.... दीदी से अनुपमा बन गयी... क्या क्या सीखा दिया मेरे भाई को उस कमीनी ने” अनुराधा ने प्रबल को छेडते हुये कहा
“अरे नहीं दीदी... अब जब में उनको दीदी बोलता हूँ तो वो नाराज हो जाती हैं, गुस्सा करने लगती हैं तो अब में उन्हें नाम से ही बुलाऊंगा... और क्या-क्या सिखाया मुझे पूंछों ही मत.... और उनकी सहेलियों का गैंग.... वो तो जल्दी घर आना था इसलिए सिर्फ जान पहचान ही कराई है अभी” प्रबल छोटे बच्चे की तरह खुश होते हुये अनुराधा को बताने लगा
“चल ठीक है... अब बड़ा हो रहा है तू... वो अच्छी लड़की है और सबसे बड़ी बात, घर की सदस्य की तरह है... घर की ही मान लो.... उसके साथ रहकर घर से बाहर निकालना और इस दुनिया को समझना सीख जाएगा.... लेकिन थोड़ा सम्हालकर...और अपनी मर्यादा का ध्यान रखना...” अनुराधा ने कहा और उठकर खड़ी हो गयी
“ठीक है दीदी...आप निश्चिंत रहें” प्रबल ने जवाब दिया
अब प्रबल भी अपने बिस्तर पर लेट कर आज दिन में अनुपमा के साथ हुयी बातों को याद करने लगा
........................
रास्ते भर अनुपमा प्रबल को अपनी बातों से पकाती रही... फिर गुप्ता मार्केट पहुँचकर जब वो रिक्शे से उतरे तो वहाँ पहले से ही खड़ी 3 लड़कियों ने रिक्शे वाले को 10 रुपए दिये और अनुपमा को हाथ पकड़कर खींच लिया ...अनुपमा को उतरते देख प्रबल भी रिक्शे से उतरा और उसके साथ खड़ा हो गया
“अरे कमीनीयों इसे 10 रुपये और दे दो.... तुम्हारे लिए बकरा लाई हूँ...उसका किराया कौन देगा... तेरी मम्मी से दिलवा दूँ...उन्हें बकरा भी पसंद आ जाएगा” अनुपमा ने उन लड़कियों से कहा
“वो तो बुड्ढी हो गईं.... इसे हम में से जो पसंद हो बता दे वही किराया दे देगी इसका...” जिस लड़की ने अनुपमा का हाथ पकड़ा हुआ था वो बोली
“अरे मेडम मुझे तो पैसे दे दो...” रिक्शे वाले ने कहा तो अनुपमा ने अपनी जेब से निकालकर उसे 10 रुपये दे दिये
“ओहो... तो अनु मेडम को पसंद कर लिया……. वैसे ये गूंगा है क्या.... तो किसी को बता भी नहीं पाएगा की इसके साथ क्या हुआ और किसने किया” उस लड़की ने दाँत फाड़ते हुये कहा
“चल पहले मुलाक़ात करा दूँ... ये हैं प्रबल, मेरी बचपन की सहेली अनुराधा के छोटे भाई.... और ये हैं निशा, रिचा और स्वाति मेरी सबसे खास दोस्त... और हमारे ही कॉलेज में पढ़ती हैं... तुम्हारी सीनियर हैं...”
“जी में प्रबल प्रताप सिंह...आप सभी से मिलकर बड़ी खुशी हुई” प्रबल ने प्रभावशाली तरीके से कहा तो वो सभी लड़कियां हंसने लगीं
“सच यार... ये तो बकरा ही है.... कल इसकी रैगिंग लेती हूँ... ‘जी में प्रबल प्रताप सिंह’ हा हा हा .... जैसे किसी बिजनेस मीटिंग में आया हो......” स्वाति ने हँसते हुये प्रबल की नकल उतारते हुये कहा “और ये तुम्हारा मुंह सूजा-सूजा क्यों है... कड़ी हंस भी लिया करो”
“चल यार अब तो रोज ही कॉलेज में मिलना होता रहेगा... अभी तो चलकर वो कम कर लें जिसके लिए आए हैं” अनुपमा ने स्वाति से कहा
“हाँ दी... चलो किताबें ले लेते हैं...फिर माँ भी आने वाली हैं तो जल्दी वापस लौटना है” प्रबल ने अनुपमा को दीदी कहते कहते उसकी आँखों में गुस्सा देखा तो जल्दी से बोला
“स्वाति, रिचा तुम दोनों ने सुना? ये तो अनु को दी कह रहा है...और इसको माँ की भी याद आ रही है.... बकरा नहीं ये तो मेमना लग रहा है... बच्चे को जल्दी किताबें दिलाकर घर लेकर जा... नहीं तो रोने लगेगा” निशा ने कहा
“ओए ज्यादा नहीं... वो दी नहीं जल्दी कह रहा था... और वो अपनी माँ से डरता नहीं है...असल में बुआ ने मुझे आज अपने साथ खाने की डावात दी है... तो हमें जल्दी से घर जाना है...वो ही याद दिला रहा था” अनुपमा ने जल्दी से कहा “अब चलो जल्दी”
“कोई बात नहीं अभी तू जितनी मर्जी सफाई दे ले...कल कॉलेज में देखती हूँ इसे कौन बचाएगा.... और पता है ना... जब कोई भी बकरा हमारे साथ मार्केट में होता है तो उसे वो सबकुछ खाना पड़ता है जो हम खाते हैं... अब ये मत कहने लगना की ये कुछ नहीं खाता” रिचा ने कहा
“देख अभी तो हम दोनों घर जाकर बुआ के साथ खाना खाएँगे.......... तो...कुछ नहीं... चल दुकान आ गयी किताबें ले ले” अनुपमा ने कहा
चारों लड़कियों ने अपनी किताबें लीन और प्रबल की भी …. अपने और प्रबल के पैसे अनुपमा ने दिये तो उन तीनों ने अनुपमा की ओर घूरकर देखा
“अरे यार पहले में अकेली आ रही थी... इसलिए बुआ ने मुझे पैसे दे दिये थे... फिर मेंने सोचा इसे भी साथ ले आऊँ तुमसे मिलवा दूँ... वरना कल कहीं तुम इसकी रैगिंग लेने लग जातीं... अच्छा ओके बाइ” अनुपमा ने कहा
“पहले खाते हैं गोलगप्पे... देखते हैं इसके सूजे-सूजे गाल गोलगप्पा खाकर कैसे लगेंगे” स्वाति ने कहा और वो सब वहीं दुकान के सामने ठेले पर गोलगप्पे खाने पहुँच गए, प्रबल ने एक बार तो माना करने का सोचा लेकिन फिर चुप हो गया और उनके साथ गोलगप्पे खाने लगा...
वहाँ से चलते समय स्वाति ने अनुपमा को एक ओर पकड़कर अलग खीचा और बोली
“देख .... मेरा कोई चक्कर चलवा दे इससे... और ये मत कहियो की तेरा चक्कर चल रहा है... मुझे अच्छी तरह पता है... तुझसे दीदी कह रहा था”
स्वाति की बात सुनकर अनुपमा ने कुछ नहीं कहा लेकिन प्रबल को गुस्से से घूर के देखा....और वहाँ से रास्ते भर मुंह फुलाए रही... प्रबल ने एक बार पूंछा भी की क्या बात है...क्यों गुस्सा है लेकिन वो कुछ नहीं बोली घर तक
................................
प्रबल यही सोचते सोचते सो गया कि ऐसी क्या बात कह दी स्वाति ने जो अनुपमा इतनी नाराज हो गयी.... वो स्वाति के चुचे घूर रहा था चोरी छुपे... वो तो नहीं देख लिया स्वाति ने और अनुपमा को बता दिया हो..........
“हुंह... अब इस उम्र में इतने बड़े-बड़े होंगे तो नजर वहीं रुकेगी ना” सोचते हुये प्रबल नींद में डूबता चला गया
............................................................