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Inspector Ajanta sequel 2 - reposted
#16
स्वामी का आश्रम
बहता हुआ पानी पहाड़ों के बीच से बह रहा था. पानी का रंग तो मानो दूध की तरह सफ़ेद था और जिस और से पानी बह रहा था. ऐसा लग रहा था की कई अप्सराएं एक के बाद एक अपनी कमर को लचकाते हुए उन छोटे छोटे पहाड़ों के बीच से नाचती हुई गुज़र रही हैं. और यह दख कर अजंता को को अपना बचपन याद आ गया की कैसे गांव के पास बने इन झरनो की बीच वह नहाया करती थी. अजंता ने एक सफ़ेद शिफॉन की साड़ी पहनी हुई थी जिसमे
उसका रूप निखार आया था और गोरा गुलाबी बदन और भी अधिक सुन्दर लग रहा था. उसके चाँद से चेहरे पर मुस्कराहट खिल उठी. तभी उसके मन में विचार आया. उस वीरान जगह पर वह अकेली थी. फिर भी उसने इधर उधर देखा और एक छोटे से कोने में ओट ली जो की झरने के किनारे के पास था. उसकी नज़रें नीचे को झुकी और वह अपनी साड़ी उतारने लग गयी. साड़ी उतार कर उसने एक कोने में रख दी
और उसके बाद उसकी उँगलियाँ अपने ब्लाउज के मध्य में गयी. अजंता ने अपने ब्लाउज के हुक खोलकर उसे भी उतार दिया और साड़ी के ऊपर ही रख दिया. अब उसके उरोज जो की ब्रा के बाहर आने को मचल रहे थे, की मध्य रेखा काफी हद तक उजागर थी बल्कि उरोजों का काफी हिस्सा नंगा होकर ब्रेज़री से बाहर आने को बेताब था.
उसके हाथ पीठ की ओर गए और उसने अपनी ब्रेसियर का हुक खोल दिया और कंधो से स्ट्रेप हटाकर उसे भी उतार दिया. उफ़ _ बड़े बड़े दो कलात्मक अजंता कीमूरत से उसके दोनों स्तन अब नंगे थे. अजंता ने दोनों हाथों से अपने उरोज हलके से दबाये और एक अंगराई ली - ओह माई पिल्लू .वह बोल उठी.

उसके बाद उसने पेटीकोट का नाडा खोल दिया और उसे पकड़ा कर अपनी बड़ी बड़ी छातियों को धक् लिया और ऊपर ही नाडा बाँध लिया. वह उस झरने में कूद पड़ी और बहते हुए ठन्डे पानी का आनंद उठाने लगी. अपने हाथों से वह पानी की लहरों से खेल रही थी. नहाते हुए अजंता को गुनगुनाना बहुत पसंद था वह हलके से गाने लगी और साथ साथ नहा रही थी. तभी अचानक उसके पैरों को कोई नीचे से खींचने लगा. वह एक दम घबरा गयी और उसने ऊपर आने को कोशिश की. पर खींचने वाले की पकड़ा काफी मज़बूत थी. वह जितना ऊपर आने की कोशिश करती उतना ही खींचने वाला उसे नीचे की ओर खींच रहा था. तभी दो बड़े बड़े मज़बूत बाज़ू पानी के ऊपर उठे और अजंता के इर्द गिर्द घूम गए. अजंता जो की अभी अपने वक्षस्थल तक पानी में थी तड़पने लगी. अचानकुण्डों हाथों ने अजंता के पेटीकोट का नाडा खोल दिया. और अजंता का पेटीकोट उसके शरीर से फिसल कर झरने के ऊपर तैरने लगा. अजंता ासाहस्य अपने पेटीकोट को देख रही थी पर मज़बूत बाज़ुओं में जकड़े होने के कारण वह कुछ न कर पायी. उसका श्री अब बिलकुल नंगा था. और उन हाथों की पकड़ और भी अधिक मज़बूत होती जा रही थी.अजंता ज़ोर से चिल्लाने लगी.
थर्र्र थरर्र्र टर्रर्र - तभी अजंता के फ़ोन की घंटी बजी और वह घबराकर उठ बैठी. उसने पाया की वह सपना देख रही है. उसका पूरा बदन पसीने से पानी पानी हो रहा था
थैंक गॉड यह सपना था - वह स्वयं से कह उठी.
तभी अजंता ने झट से फ़ोन उठाया -यस सर
कमिश्नर - अजंता सॉरी -लगता है तुम गहरी नींद में हो
अजंता - इट्स ओके सर. में आपके ऑफिस आती हूँ फिर बाकी बात करते हैं.
कमिश्नर - ठीक है
अजंता पुलिस की यूनिफार्म में माथे पर बिंदी और सिर पर पुलिस की कैप बेहद आत्मविश्वास के साथ चलती हुई कमिश्नर साहिब के ऑफिस में पहुंची
अजंता - जय हिन्द सर
कमिश्नर - जय हिन्द . बैठो. अजंता में तुम्हे यह बताना चाहता हूँ की शैतान सिंह से हमने और पूछ ताछ की. हमे शैतान सिंह से किसी अन्य जानकारी का पता नहीं लगा. हाँ एक बात उसने कही की वह एक दो बार स्वामी के आदमियों के संपर्क में आया तो उसने चीते के पांव जैसे शब्द कई बार सुने.
अजंता ने दोहराया - चीते के पांव - कहीं इसका सम्बन्ध उस दुर्गम मार्ग से तो नहीं.
कमिश्नर - कुछ कहा नहीं जा सकता. अजंता जंगल तो तुम्हे जाना ही होगा और वह भी अन्य वेश में. तुम्हारे साथ २ से जयादा आदमी भी नहीं होंगे. हाँ वहां का फारेस्ट डिपार्टमेंट है जो तुम्हारे साथ जो भी चाहे सहयोग हो देगा.
अजंता - ठीक है सर. मेरा एक प्लान है
और वह अत्यंत धीमे स्वर में कमिश्नर साहेब से कुछ कहने लगी.
अगले दिन अजंता ने जंगल जाने की तैयारी कर ली. उसने एक काले रंग की जारजट की पारदर्शक साड़ी पहनी जिसमे उसका रूप खूब खिल रहा था. और साथ ही में सफ़ेद स्लीवलेस ब्लाउज.


उसके साथ दो कॉन्स्टेबल्स भी थे जो की सादी वर्दी में थे. काली साड़ी में अजंता का स्पॉट पेट और गोल नाभि उभर कर दिख रहे थे और वह बहुत सुन्दर लग रही थी.


वह लोग जंगल में एक रिसर्च स्कॉलर की भाँती जा रहे थे जो की फूल पत्तियों पर शोध कार्य करते हैं उनके पास ऐसी कोई वस्तु न थी जो की उनके पुलिस डिपार्टमेंट से होने से तलूक रखती हों. हाँ अजंता ने अपना आइडेंटिटी कार्ड ऐसे छुपा के रखा था की कोई तलाशी भी ले तो न जान सके. उनके पास एक साधारण गाडी थी जिसमे कैंप करने का सामन और एक ड्राइवर था जिसे की सफर की एक सीमा तक ही उनके साथ रहना था.
उसके साथ दो कॉन्स्टेबल्स थे राम सिंह और श्याम जो की कमिश्नर साहिब के ऑफिस से थे और जिन्हे खास तौर पर इस मिशन के लिए यह कह कर भेजा गया था की उन्हें बोलना काम और काम पूरा करना है जैसा की अजंता कहे और गोपनीयता बना कर रखनी है.
अजंता ने जंगल तक का सफर तय किया और वह वहां के फारेस्ट विभाग में पहुंची.फारेस्ट अफसर अजंता की ही वेट कर रहा था.अजंता जैसे ही उसके केबिन में अंदर गयी वह खड़ा हो गया- गुड मॉर्निंग इंस्पेक्टर अजंता
अजंता ने हाथ मिलते हुए - ओफ्फिसर इंस्पेक्टर अजंता नहीं रिसर्च स्कॉलर अजंता -मेरा मतलब दीवIरों के भी कान होते हैं.
अफसर मुस्कुराया - जी मैडम. अच्छा मैंने आपके और आपके आदमियों के लिए कुछ चाय और नाश्ते के इंतज़ाम किया है. फिर हम काम पर लाग जायेंगे.
अजंता मुस्कुरायी - बिलकुल सर - हमे भूख भी लगी है.
नाश्ते के समय फारेस्ट अफसर ने अजंतासे कहा - मैडम आपके साथ हमारे विभाग के दो लोग रहेंगे जब तक आप अपनी फाइनल लोकेशन को लोकेट नहीं कर लेतीं और हमरे पास सूटेबल इक्विपमेंट और यन्त्र भी हैं जिससे आप जो ढूँढ़ने आयी हैं वह सहयक रहेगा. बट मैडम वोई नीड तो बे लकी फॉर देट.
अजंता - क्या मतलब
अफसर - मैडम हम आपको इसकी शुरुआत तो खुद ही दे देंगे. पर उसके बाद का ट्रैक मिलना. मेरा मितलाब यह एक हिट एंड ट्रायल जैसा काम है.
अजंता - अफसर जब इरादे पक्के हों और पूरी डेटर्मिनेशन तो में समझती हूँ कोशिशों को कामयाब होने में देर नहीं लगती. आयी ऍम शोअर की आपने जो म्हणत अभी तक की है हमे शुरुआत से ही कामयाबी मिलेगी.
फारेस्ट अफसर - जी मैडम में भी कुछ वक़्त आपके साथ ही होऊंगा.
नास्ते के बाद अजंता के गाडी और फारेस्ट विभाग के तीन लोग (जिसमे अफसर भी शामिल था) जंगल की और निकल पड़े.
कुछ दूर जाने के बाद एक जगह उस अफसर ने गाडी रोक दी. और अजंता को एक कोने में ले गया. मैडम - यह देखिये हमने कल यहाँ एक निशान लोकेट किया है जो की चीते के पांव जैसा है. में समझता हूँ की हमे यही से शुरुआत करनी चाहिए.
अजंता ने एक कोने में देखा उसने उस निशान की एक फोटो ली और विभाग के एक आदमी को एक यन्त्र निकलने को कहा -उसने मोबाइल जिससे फोटो ली ठगी उसी यन्त्र में फिट कर दिया. कुछ आगे चलने पर उसे कुछ सिग्नल दिखे.
अजंता ने नीचे झुककर देखा तो वहां पास ही एक छोटी सी नदी थी और आस पास किनारे पर रेत. तभी उसने नीचे झुककर रेत एक एक हिस्सा उठाया.और जो उसने देखा उसके चेहरे पर मुस्कान आ गयी. उसने अपने साथ आये सब लोगों को वहां एकत्रित किया और कहा - यह देखिये.
जब प्रश्नसूचक दृष्टि से उसकी और देखने लगे.
अजंता - अफसर मैंने आपसे कहा था की आपकी की गयी मेहनत कामयाब होगी. तो यह देखिये.
राम सिंह - मैडम हम कुछ समझे नहीं.

अजंता - रेत पर चीते के पांव के यह पक्के निशान. और इसे हाथ लगाकर देखें.
सबने देखा की वहां रेत के नीचे ज़मीन बहुत पक्की थी.
अजंता - रेत के नीचे इतनी सख्त और पक्की ज़मीन ? यह कुदरती नहीं बल्कि बनाया गया है. आप आगे इस रास्ते पर चलें. सब चलते गए और देखा की उस यन्त्र की सहयता से कई जगह पर उन्हें चीते के निशान मिल गए.
अफसर - इसका मतलब मैडम हम उस होपफ़ुल्ली उस पहाड़ी को लोकेट करने जा रहे हैं जहाँ तक यह निशान हैं. क्योंकि यह एक बहुत ही सुनिश्चित और कहें तो एक रेगुलर रास्ता बनाया गया है. लेकिन यह बात नहीं समझ आ रही की इस रास्ते को खास तौर पर बनाने के पीछे क्या मक़सद हो सकता है.
अजंता - यह तो सचमुच सोचने की बात है. और वह सोच में डूब गयी.
आगे चलते चलते उन्हें वह पहाड़ी नज़र आ गयी जिसको पार करके एक गाओं था और बगल में ही स्वामी ने अपनी चौकी बनवायी थी. उन्होंने वह सब लोकेट कर लिया और अपना आगे का प्लान तय कर लिया. लेकिन तब तक शाम हो चली थी. अजंता और उसके दो साथियों तथा फारेस्ट विभाग के दोनों लोगों ने कैंप लगा लिया. अजंता के लिए एक अलग से कैंप था जिसमे वह खुद ही थी. सब लोग थक चुके थे. वहां दोनों कॉन्स्टेबल्स ने लकड़ी जलाई कर रौशनी की, फिर उन्हें भोजन किया और साथ साथ ही चाय पी.
फारेस्ट विभाग के लोगों ने कहा - मैडम हम सुबह पहाड़ी पार कर के आपके साथ उस गांव की सीमा तक जायेंगे. उसके बाद का सफर आपको तय करना है.
अजंता - ठीक है.
चाय और भोजन के बाद वह अपने कैंप में आ गए. उन लोगों ने जहाँ कैंप किया था वहां पर एक छोटी सी नहर भी थी.
अजंता भी थक गयी थी. उसने अपनी साड़ी उतर कर टांग दी और उसके बाद अपने ब्लाउज और पेटीकोट भी उतार दिया. उसके बाद उसने अपने भीतरी वस्त्र भी उतार दिए और पूरी तरह से नंगी हो गयी. वह घर की भाँती पूरी तरह से सोने का सामन तो नहीं परन्तु एक हाफ क्रीम कलर की नाइटी और काले रंग की एक छोटी सी ब्रा और पेंटी लेकर आयी थी हालांकि वह सफ़ेद के अलावा कोई अन्य रंग के अंदरूनी वस्त्र नहीं पहनती थी या बहुत कम पहनती थी.
यह सब वस्त्र उसकी नग्नता को छू[आने के लिए पर्याप्त नहीं थे. परन्तु अजंता को बस एक रात वहभी अकेले इस कैंप में गुज़ारनी थी. इस वेष्भुशा में उसका रूप निखार रहा था. उसकी ब्रा जो की एक मिनी ब्रा ही थी में से उसके बड़े बड़े पिल्लू बाहर आने को तैयार थे और आधे से अधिक नंगे थे. और उसकी लम्बी चिकनी और गोरी मुलायम टाँगे तो पूरी ही नंगी थी.
उसने अपनी नाइटी की डोर बाँधी और लेट गयी. पर तभी उसे कुछ ध्यान आया और वह उठ गयी. उसने इधर उधर देखा तो पाया की उसके सब साथी सो गए थे. उसने अपना मोबाइल उठाया और नंबर लगाया - गुड इवनिंग सर .
उधर से कमिश्नर की आवाज़ आयी - गुड इवनिंग अजंता - व्हाट इस उप.

अजंता - सर हमने वह गांव लोकेट कर लिया है और अब एक चैलेंज एहि होगा की उस चौकी को पार करके स्वामी के आश्रम में घुसना. आयी होप मेरी दी हुई डिरेक्शंस से आप मुझे लोकेट कर रहे हैं.
कमिश्नर - हाँ अजंता. और एक खबर यह है की स्वामी अभी दो दिन बाद ही हिंदुस्तान आ रहा है.
अजंता - ठीक है सर शायद यह हमारे फेवर में ही हो. क्योंकि मुझे आश्रम में घुसकर जल्दी से पुलिस को यहाँ अटैक करने का रास्ता बताना है. अच्छा एक गौर तलब बात है.
कमिश्नर - क्या ?
अजंता - सर वह चीतः के पांव के निशान ही हमे हमारी मंज़िल तक लाये हैं.
कमिश्नर - गुड . इसका मतलब हमारा अंदाज़ा काफी हद तक सही था.
अजंता - सर सोचने लायक बात यह है की वह निशान कुदरती नहीं हैं और ख़ास तौर पर बनाये गए हैं. और दूसरी बात यह है की इस जंगल में चीता तो क्या कोई अन्य जंगली जानवर भी नहीं हैं.यह जंगल कहलाया ही इसलिए जा रहा है क्योंकि यह एक आइसोलेटेड जगह है. फिर यह निशान एक ऐसे बने हुए हैं जिनसे किसी का कोई भी मक़सद साबित नहीं होता.
कमिश्नर - अजंता तुम कहना क्या चाहती हो.
अजंता -सर अगर आप सच पूछें तो में अभी किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुँच सकती. पर में फिर कहूँगी की इस रास्ते कोई अन्य मक़सद नज़र नहीं आ रहा.अच्छा एक बात बताईये - जब आप शैतान सिंह से इसके बारे में पूछ रहे थे तो उसके क्या हाव भाव थे
कमिश्नर - अजंता उसने सिवाए इसके की यह शब्द उसने स्वामी के आदमियों से सुने और कुछ नहीं बता पाया. और न ही उसके बात करने के तरीके में हमे कोई इस दौआर्ण कोई फर्क नज़र आया. अजंता - ठीक है सर. आप हमे ट्रैक करते रहिये. बाकि आपको में कल बताती हूँ.
कमिश्नर - ओके अजंता - बेस्ट ऑफ़ लक.
अजंता - थैंक यू सर
और अजंता गहरी नींद में सो गयी. जब अजंता की नींद खुली तो तक़रीबन सुबह के पांच बज रहे थे और अभी कुछ अँधेरा था. बाकि सब लोग अभी सो रहे थे. अजंता ने उनके जागने से पहले नहर में नहा कर तैयार होने का फैसला कर लिया.

वह एक टोलिया रख कर नहर के किनारे पहुंची और उसने सुबह की ठंडी हवा में अंगराई ली. वातावरण काफ़ी मोहक था और आस पास का दृश्य मनोरम.
अजंता ने नाइटगाउन की डोर खोल कर उसे उतर दिया. उसके बदन पर एक छोटी सी काली ब्रा और कच्ची मात्र रह गए. जिसमे उसका गुलाबी गोरा बदन उघड़ कर बाहर आ रहा था. उसने अपनी ब्रा और कच्छी भी उतार दी और पूरी तरह से अपने नंगे शरीर को नहर के हवेली कर दिया. नहर के ठन्डे पानी में नहाना उसे अच्छा लग रह था और यदि उसे जल्दी न होती तो वह और देर तक नहाती. वह अपने विभिन्न अंगों को हाथों से मलने लगी.
उसके उरोज पानी में कर भी ज्यादा चमकने लगे. वह मुस्कुराती हुई नहा रही थी और इस बात से बिलकुल अनभिज्ञ थी की उसे दो आँखें दूर से देख रही हैं. न केवल देख रही हैं बल्कि उसकी तस्वीरें भी ले रही है.
उसे निहारने वाली दो आँखों का स्वामी एक बहुत ही विचित्र सा दिखने वाला था - वह क्या बड़े बड़े पिल्लू हैं. मज़ा आएगा. और वह अपनी धोती उतार कर अपना अंग जो की अजंता को देख कर उफान मार रहा था और एक दम तन कर खड़ा हो चूका था उसे रगड़ने लगा.और वह तब तक रगड़ता रहा जब तक उसकी बर्फ पिघल नहीं गयी.
इस बात से बेखबर अजंता नहर से बाहर आयी और अपने नंगे शरीर को तोलिये से पौंछ कर फिर से अपने वह कपडे पहन लिए.
तब तक उसके साथी भी उठ चुके थे.
कुछ ही देर में सबने देखा की अजंता ने भगवा साड़ी पहन कर एक साध्वी के वेश अपना लिया था. पर इस साड़ी और वैसे ही ब्लाउज में वह काफी हसीं लग रही थी. जल्दी ही उसके कॉन्स्टेबल्स ने भी साधुओं के चेलों के भांति भगवा कपडे पहन लिए और कुछ वेश भी बदल लिया. अपने हाथों में उन्होंने कुछ वैसी सामग्री ली जिससे की वह कोई साधुओं की टोली नज़र आएं. कुछ दूर चलने के बाद उन्हें पहाड़ी नज़र आ गयी जिसको की नीचे से होकर गुज़ारना था. वहां पर एक छोटी सी गुफा थी जो की लगभग एक किलोमीटर पर थी. वहां रौशनी बहुत कम थी. और सब एक दम सावधानी से चलने लगे. एक ने टोर्च निकल ली. अजंता इधर उधर देखती हुई चल रही थी. तभी वहां उसे कुछ कागज़ के टुकड़े नज़र आये जिनमे किसी आदमी की आम लिखावट जो की बहुत अच्छी नहीं लेकिन बहुत ख़राब भी न थी. अजंता ने वह टुकड़े उठाये और पास ही एक छोटे से चबूतरे के पास खड़ी होकर उन्हें जोड़ने का यत्न करने लगी. सब लोग प्रश्नसूचक दृष्टि से उसके आस पास खड़े हो गए.
अजंता ने उन कागज़ों को जोड़ा तो उसको कुछ ऐसा लिखा मिला जो की आधा अधूरा था - निशानों की डिटेल्स - वह एक नक्शा भी बना था जिसमे कुछ एक जैसी मार्किंग थी - नीचे लिखा था चीते के पाँव. और वाले हिस्से पर किसी लीजेंड की तरह पांच अलग अलग रंगों के पत्ते बने हुए थे और सब पर १ से ५ तक गिनती लिखी थी. पास ही वैसे ही रंगों के कुछ पत्ते ज़मीन पर गिरे हुए थे. अजंता ने पिछले वाले हिस्से को और गौर से देखा तो उसमे दो लकीरें खींचकर एक सड़क की तरह दिखाया था और लिखा था गोपालपुर रोड. फिर उन्ही के मध्य से दो लकीरें विपरीत दिशा में खींच कर एक मार्ग बनाया था जिसमे वह पत्ते अलग अलग रंगों में अंकित होकर उससे एक निशान से जोड़ रहे थे. और उस निशान पर लिखा था - ASHRAM
अजंता तुरंत हरकत में आयी और सबको बुला लिया - और वह सब दिखाया जो उसने देखा. वन विभाग के अफसर ने तुरंत कहा - अरे मैडम गोपाल पुर रोड तो मेघालय और बांग्लादेश को _ _ _ उसने एक यन्त्र निकाला और उसे ऑपरेट करना शुरू कर दिया. जहाँ वह लोग खड़े थे उसके दाहिनी और एक बहुत बेदी लाल रंग की रौशनी उस यन्त्र से इशारा करने लगी. सबकी आँखों में चमक आ गयी. उन्होंने तुरंत पहाड़ी से निकल कर थोड़ा ऊपर चढ़ना शुरू किया तो उन्हें वह सब नज़र आ गया जो वह देखना चाहते थे. दूर एक बहुत भव्य आशाराम नज़र आ रहा था. दाहिनी ओर वहां एक गांव था ओर वहां से उन्हें सवारी मिलनी थी उस आश्रम की ओर जाने की. और गोपाल पुर रोड उस आश्रम के पिछले हिस्से में था.
अधिकारी - कॉन्ग्रैचुलेशन्स मैडम - मुझे लग रह है आपका आधा काम हो गया.
अजंता - शायद. लेकिन अभी खुश होने का समय नहीं. आप यह काग़ज़ा संभल लें और इन्हे चिपका लें .और आपको अब क्या करना है मुझे बताने की ज़रुरत नहीं.
अधिकारी - हाँ मैडम (इधर उधर देखते हुए) - में कल ही कमिश्नर साहिब से मिलूंगा - भेष बदल कर.
अब अजंता के सामने एक और भी समस्या थी - चौकी को लांघने की. उसने वन विभाग के अधिकारीयों को धन्यवाद् करके विदा ली और तीनो गांव की ओर चल पड़े.
गांव की सीमा पर ही चौकी थी. वहां उन्हें दो तीन गुंडे नज़र आने वाले लोग मिले. अजंता ने अपने मुँह घूँघट करके ढका हुआ था.
उनमे से एक बोला - आए कौन हो तुम लोग.
साधु के वेश में राम सिंह - अरे देखते नहीं हम देवीजी के साथ हैं - हमे स्वामीजी के आश्रम जाना है
दूसरा बोला - यहाँ पर ऐसे ही किसी को नहीं जाने दिया जाता - कर देना पड़ता है और _ _ _ _वह अजंता की ओर मुँह करके बोला - इनका चेहरा दिखाओ.
राम सिंह - क्या बात करते हो यह हमारी देवीजी हैं - साध्वी हैं.- तुम इन्हे _ _
अजंता ने उसे रोका ओर उस आदमी की ओर देख कर बोली - ठीक है भैयाजी - हम घूँघट हटा देते हैं - पर स्वामीजी के आश्रम पहुंचना बहुत ज़रूरी है.
ओर उसने अपने घूँघट हटा दिया - अजंता का बेहद सुन्दर चाँद सा चेहरा उन लोगों के सामने था.
दोनों एक पल के लिए चकित हुए ओर फिर एक दुसरे की ओर देखा - उनके चेहरों पर एक वेह्शी मुस्कान आ गयी - ओर आँखों में एक अजीब सी चमक - ठीक है तुम लोग सामने से बैल गाडी लो ओर जाओ. वह तुम्हे आश्रम से १.५ किलोमीटर दूर उतारेगी . वहां से पैदल चल कर जाना होगा.
अजंता - ठीक है भैया - आपका धन्यवाद
कहते ही तीनो चल पड़े ओर बैल गाडी में सवार हो गए. पर अजंता अब और चकित हो गयी. उसे बिलकुल भी उम्मीद नहीं थी की वह इतनी जल्दी और इतनी आसानी से इस चौकी से पार हो पायेगी वह भी तब जब यहाँ स्वामी के गुंडे बैठे हुए हैं. - कुछ बात है ज़रूर. पहले वह चीते के नक़ली पांव और अब.

वह तो यह सोच रही थी की हमेशा के तरह गुंडे उस पर हमला करेंगे और उसे अपनी वासना का शिकार भी बनाना चाहेंगे. - पर यहाँ तो उन्होंने पूछ ताछ भी नहीं की और उनकी कोई तलाशी भी नहीं ली गयी.
राम सिंह - चलिए मैडम यह तो बहुत आराम से हो गया
अजंता - नहीं राम सिंह - कुछ गड़बड़ है. हमे बहुत सतर्क रहना होगा.
जब वह बैल गाडी से उतरे तो अजंता ने उन दोनों से यही कहा - वक़्त कम है. हमे उन पत्तों के रहस्य को पूरी तरह से कन्फर्मेशन करना है. और कोई भी नक़्शा मिले तो एक दुसरे को दिखाना है.हम ज्यादा से ज्यादा साथ रहेंगे और कोड वर्ड में बात करेंगे - बात भी बहुत कम से कम
दोनों ने कहा - जी मैडम
अजंता जैसे ही आश्रम में पहुंची वहां के मैं गेट में फिर पूछ ताछ की गयी परन्तु उन्हें अंदर आने में कोई ख़ास देर नहीं हुई.
अजंता जैसे ही अंदर पहुंची आशा के अनुसार उसे काफी भव्य नज़ारा दिखाई दिया. बस उनसे एक गेहुआ वस्त्र धारण किये आदमी और स्त्री ने कुछ फॉर्म्स भरवाए आश्रम की एक से एक वस्तु बेशकीमती थी और अंदर का हॉल उसके अंदाज़े से भी काफी बड़ा था.
आस पास कई सेवक और उनमे भी अधिकतर सेविकाएं घूम रही थीं जीके हाथों मैन सर्व करने के लिए ट्रे और जग इत्यादि थे जिसमे वह लोगों को खाने और पीने की वस्तुएं सजा कर दे रही थीं.सेविकाओं ने साड़ी कुछ ऐसे बनधी थी की उनकी टाँगे काफी हद तक नग्न थीं. और वक्षों को एक गेहुआ रंग की छोटी सी चोली से ही ढका गया था.
तभी अजंता की नज़र हॉल के मध्य मैन गयी. वहां एक अधेड़ उम्र की स्त्री बैठी थी जो शायद ध्यान लगा रही थीं.
एक भक्त ने कहा - यह श्रद्धा देवी हैं. यहाँ आश्रम मैन स्वामीजी की अनुपस्थिति मैन यही सब देख रेख करती हैं. और उस सेवक ने श्रद्धा देवी की ओर देख कर कहा - स्वामिनीजी यह ___
श्रद्धा देवी बीच मैन ही बोल पढ़ी - देवीजी हैं जो आश्रम मैन स्वामीजी से मिलने ओर उनकी सहरन लें आयी हैं. यह ओर इनके दोनों चेले साधु हैं जो ईश्वर की तलाश मैन भटक रहे हैं.
अजंता ने चकित होने का अभिनय किया ओर दोनों हाथ जोड़कर उन्हें प्रणाम किया - श्रद्धा देवी आप तो तो अंतर्यामी है.
श्रद्धा देवी - बेटी तुम ओर तुम्हरे साथियों का आश्रम मैन स्वागत है. परन्तु स्वामीजी तो कल सुबह आएंगे. शायद कल शाम को ही तुमसे भेंट हो सके.हमने तुम्हIरे रहने का प्रबंध कर दिया है.
अजंता - आपका बहुत बहुत धन्यवाद. बस एक निवेदन है की मेरे दोनों साथियों को बीच बीच मैन मुझसे मिलने दिया जाये क्योंकि यह मेरी सेवा करते हैं ओर इनके बिना _ _ _
श्रद्धा देवी - ठीक है
अजंता को एक कमरा देइया गया ओर बगल मैन ही राम सिंह ओर श्याम भी एक कमरे में एडजस्ट हो गए. थोड़ी ही देर में अजंता ने एक आस पास घूमते सेवक को बुलाया ओर उन दोनों को भी अपने कमरे में बुला लिया. - वह पूछने लगी - भैया हम स्वामीजी से मिलकर मोक्ष प्राप्त करना चाहते हैं. सेवक ने कहा - इस आश्रम मैन उन्हें वह सब मिलेगा जो वह चाहते हैं.
अजंता - हम यहाँ कितने दिन रह सकते हैं भैया
सेवक - यह तो स्वामीजी ही बताएँगे
अजंता - तुम्हारा यह आश्रम तो बहुत भव्य है. क्या हमे थोड़ा दिखा सकते हो.
सेवक (सोच मैन पड़ गया) - जी वह _ _वह _ _
अजंता - क्या हुआ भैया ?
सेवक - जी एक हिस्से तक तो घुमा सकते हैं पर बगल वाला हिस्सा - वह मुहे मालूम नहीं.
अजंता - कोई बात नहीं - जितने देखा दो वही सही. अभी आश्रम मैन उनकी एंट्री हो रही थी की जो आदमी गेट पर था उसे फ़ोन आया - उसने उत्तर मैन अभिवादन किया ओर कहने लगा - क्या स्वामीजी कल आ रहे हैं.- तो उनके हेलीकाप्टर _ _ _क्या अच्छा अपनी गाडी से हाईवे से आएंगे. ठीक है मैन पांच पत्ते पर दो ओर गाडी भिजवा दूंगा. तभी अजंता को देख कर वह तुरंत बोलै - अरे आप लोग यहाँ क्या कर रहे हैं - अंदर जाईये न. अजंता ने कहा - हाँ भैया हमारा फॉर्म तो साइन करो - ओर वह तुरंत समझ गयी की नक़्शे के अनुसार ओर इसकी बातचीत से साफ़ ज़ाहिर है. के पत्तों से बनाया वह रास्ता गोपाल पुर से कनेक्टेड है.
अजंता ओर उसके दोनों साथी आश्रम में घूमने लगे.तभी एक खिड़की के बाहर दाहिनी ओर अजंता ने इशारा किया - भैया आश्रम के उस हिस्से में क्या है - वह भी काफी बड़ा है - क्या वहां पर भी भक्त ठहरते हैं?
सेवक (कुछ उखड़े स्वर में ) - वह मुझे नहीं मालूम - देवीजी आप ज्यादा सवाल न पूछें
अजंता ने मुस्कुराते हुए कहा - ठीक है. लेकिन उस सेवक को यह नहीं मालूम था की अजंता ने दो हथियार बंद आदमी वहां घुसते देख लिए थे.वह समझ गयी की वहां कुछ अन्य गैर कानूनी काम होते हैं.
तब अजंता को दूर एक ऐसा पेड़ नज़र आया जिसका रंग उसने नक़्शे में देखा था - वह पेड़ कितने अनोखे हैं. उनके पत्तों के रंग कितने अलग है. क्या वहां भ्रमण कर सकते हैं .
सेवक - नहीं वहां सिर्फ बाहर से आने वाले या उनकी गाड़ियां _ _ _ वह मतलब - कुछ नहीं मालूम नहीं मुझे _ _ आप स्वामीजी से कल पोछ लीजिये. - ओर अजंता ने देखा के सेवक के चेहरे का रंग उड़ गया
अजंता ने प्रत्यक्ष रूप में तो यह कहा की - ठीक है है भैया पर उसे अपने सवाल का जवाब मिल गया था. तीनो ने आँखों ही आँखों में एक दूसरे को हल्का इशारा किया. बाद में तीनो ने भोजन किया ओर एक बार अपने इन दोनों 'भक्तों' को अपने कमरे में आने की अनुमति मांग ली.
वह दोनों आकर अजंता के पैर दबाने लगे (दरअसल अजंता को शके हो गया था की उनकी हर गतिविधि पर नज़र राखी जा रही थी ) इस लिए उन तीनो ने ऐसे ही बर्ताव किया मनो जैसे वह बन कर आये थे.
दोनों (यानि राम सिंह ओर श्याम - देवीजी के पैर दबाने लगे.)
अजंता - तुम लोग अब विश्राम करना. कोई अच्छी बात नज़र आये आश्रम की तो हम देखना चाहेंगे.
राम सिंह - देवीजी हमे शहर में अपने मठ को बताना होगा की हम कितने दिन में लौटेंगे.
अजंता - हाँ में अनंदा स्वामीजी से बात कर लूंगी - चलो तुम लोग जाओ में अब ध्यान लगा कर विश्राम करुँगी.
दोनों अपने कमरे में लौट गए. अजंता ने कमरे के हर तरफ नज़र दौड़ाई.
अजंता ने कमिश्नर साहिब से संपर्क करना था ओर पूरी पुष्टि करनी थी की जो इनफार्मेशन मिली या नहीं ओर आगे की कार्यवाही - वह यही सोच रही थी कमरे में कोई कैमरा हुआ तो वह मोबाइल पर बात करते हुए पकड़ी जा सकती है. वह साथ ही जुड़े टॉयलेट में गयी.पर उसे शके था की ज़रूर वहां भी कैमरा जाई कोई चीज़ हो सकती है.
लेकिन टॉयलेट के किसी कोने में उसे ऐसा कुछ नज़र नहीं आया.वह अपनी साड़ी ऊपर उठाकर पेशाब करने के बहाने क्लोसेट पर बेथ गयी ओर फ़ोन मिलाया
उधर से आवाज़ आयी - अजंता
वह तुरंत बोल पढ़ी - पुजारीजी देवी बोल रही हूँ. यहाँ पर स्वामीजी कल पधारेंगे ओर में श्याम को उनसे मिल पाऊँगी. और हाँ वह भक्तजन सुबह आपसे मिले या नहीं.
उधर से आवाज़ आयी - हाँ मिल गए हैं. पर अभी और कितने भक्त आएंगे मंदिर में बताओ
अजंता - ठीक है आपको मैसेज भेजती हूँ.
और उसने मैसेज भेजा - पत्तों वाला रास्ता - गोपालपुर से जुड़ा - कल का ऑपरेशन.
उधर से मैसेज आया – फाइन.
अजंता अब कमरे में आकर सो गयी. शाम को वह तीनो पूजा में समिल्लित हुए और वहां के कार्य कलाप देखते रहे.
लेकिन अजंता को उस रात भी जागना था - इसी लिए वह शाम तक अच्छी तरह सोई. वह देखना चाहती थी की और कोई अतिरिक्त ऐसी बात पता चल जाये जो की उनके काम की बात हो.
उसने किसी तरीके श्रद्धा देवी के कमरे का पता कर लिया. उसने फैसला किया की जैसे भी हो वह इस पर रात को नज़र रखेगी. रात को भोजन के बाद वह छुपती छुपाती आश्रम के पिछले हिस्से से किसी तरीके श्रद्धा देवी के कमरे तक पहुंची और आस पास देखते हुए अंदर की ओर झाँका - वह चकित रह गयी.
अंदर श्रद्धा देवी अर्धनग्न अवस्था में एक अपने से कई साल छोटे युवक से लिपटी हुई थी और उस कमरे ज़ोर शोर से रास लीला चल रही थी .
उसी विशाल कमरे में एक दो और जोड़े भी काम क्रियाओं में व्यस्त थे.
अजंता ने कुछ देर यह नज़ारा देखा और एक दो और कमरों में भी झाँकने में सफल हो गयी. वहां भी यही सब चल रह था.उसके बाद उसने वहीं दाहिनी तरफ देखा तो पाया की जहाँ उसने सुबह कुछ हथियार बन लोग देखे थे वहां पर से कुछ ट्रक और गाड़ियों में बड़े बड़े बक्से लोड होकर कहीं ले जाये जा रहे हैं .ट्रक चलते समय उसी दिशा में जा रहे थे जहाँ पर से विभिन्न रंगों के पेड़ों का रास्ता शुरू होता था. इतना तो वह अब समझ चुकी थी की वही रास्ता है जहाँ से सब आना जाना होता है इन आश्रम वालों का. और यह रास्ता किसी और की नज़र में नहीं आया था. सहसा लोड होते ट्रक में से एक बक्सा नीचे गिर कर खुल गया तो अजंता ने देखा की उसमे ग्रेनेड्स और बंदूकें थीं. - तो हथियारों की स्मगलिंग चल रही है.
अजंता अब सावधानी पूर्वक वापस आ गयी और अपने कमरे में सो गयी.
अगले दिन स्वामी का आगमन हुआ. काफी ज़ोर शोर से स्वामी अघोर बाबा का स्वागत किया गया . स्वामी अघोर बाबा कोई लगभग ५० साल का लम्बे चौड़े शरीर और रॉब दार व्यक्तित्व का स्वामी था. उसकी आँखों में एक ऐसी चमक थी जिसे की कोई भी आकर्षित हो सकता था और चेहरे पैर तैरती मुस्कराहट.उसके आते ही भक्तों ने उसे जाकर प्रणाम करना शुरू कर दिया. श्रद्धा देवी स्वामी के बिलकुल ही बगल में बैठी थीं. उन्होंने अजंता को इशारे से बुलाया. अजंता और उसके दोनों साथी हाथ जोड़जर प्रणाम करते हुए स्वामी के पास आ गए.
श्रद्धा देवी - स्वामीजी यह देवीजी हैं जो की कल ही यहाँ पधारी हैं.कुछ दिन यहाँ रहकर शिक्षा ग्रहण करेंगी
स्वामीजी ने सर से पैर तक अजंता को निहारा jo की सफ़ेद साड़ी में थी और किसी अप्सरा से कम नहीं lag रही थी.
- देवीजी आज शाम को चार बजे हम आपसे स्वयं आपके कक्ष में मिलेंगे
अजंता ने सर झुका कर अभिवादन किया- में उस पल की प्रतीक्षा करुँगी स्वामीजी.
उसने देखा दोनों एक दुसरे की ओर देख कर मुस्कुरा रहे थे. शाम के चार बज गए थे. अजंता को मनो इसी पल का इंतज़ार था. (वैसे भी उसके ऑपरेशन के शुरू होने का समय ५ बजे था). उसे यही चिंता थी की अब पुलिस फाॅर्स यहाँ समय पर पहुँच कर अपनी कार्यवाही शुरू कर दे. शाम को चार बजे अजंता को स्वामी के कक्ष में भेज दिया गया. अजंता चकित थी की पहले तो वह स्वयं आने की बात कर रहा था. खैर वह जब स्वामी के उस कक्ष में पहुंची तो स्वामी ध्यान में डूबा था - नौटंकी बाज कहीं का. अजंता ने सोचा.
फिर लगभग १० मिनट के इंतज़ार के बाद स्वामी ने ध्यान तोडा. वह अजंता की ओर देख कर मुस्कुराया. - आईये देवीजी
अजंता - कहिये स्वामीजी .
स्वामी- में आपको ख़ास तौर पर इसी लिए यहाँ बुलाया है की मैं आपको कुछ दिखा सकूँ.पर उससे पहले आपसे यह कहना है की दो दिन बाद जब मैं फिर से विदेश जाऊंगा. तो आप मेरे साथ जाएँगी और मेरे हर काम मैं मेरा साथ देंगी.
अजंता - क्या मतलब?. मेरा तो ऐसा कोई प्रयोजन नहीं था.
स्वामी - यहाँ पर जो भी व्यक्ति हमारे पास आता है उसके हर प्रयोजन या कार्यकर्ता हम ही डीसाइड करते हैं देवीजी यानि की इंस्पेक्टर अजंता.
अजंता ने छौंकर उसकी ओर देखा . तभी स्वामी ने एक स्क्रीन लगाया ओर अजंता ने देखा की उसके दोनों साथी उसकी गिरफ्त मैं थे.
अजंता ने स्वामी की ओर देखा - अपने आप को बहुत चालक समझती हो अजंता - पर तुम्हे पता नहीं की हम यहाँ ऐसे ही इतने देशों मैं अपना कारोबार नहीं फैला कर बैठे हैं. अजंता - स्वामी तुम ?
स्वामी अघोर बाबा ज़ोर से हंसा - तुम खुद सोचो अजंता - चीते के वह नक़ली पैरों का रास्ता और फिर उसके बाद तुम्हारा इतनी आसानी से हमारे आदमियों बल्कि गुंडों की चौकी से निकल कर हामरे आश्रम मैं प्रवेश हो जाना. - तुमने अपनी बहादुरी बहुत दिखा थी अजंता - लेकिन अब तुम पूरी तरह हमारे चंगुल मैं हो. और हाँ एक बात - हम चाहते तो तुम्हे कभी भी अपनी गोलियों का शिकार बना सकते थे. पर क्या करें जब तुम्हारी तस्वीर हमे टाइगर ने दिखाई तो बस हम तुम्हे पाने के लिए तड़प उठे. तुम्हारी खूबसूरती ने हमे तुम्हारा दीवाना बना दिया.
अब तुम्हे अपना यह सहरीर तो हमे सौंपना ही होगा. जान बचने का एक मात्र तरीका यही है की की तुम हमारे साथ रहो और जहाँ हम कहें और जो काम हम दें _ _
अजंता - स्वामी मेरे आदमियॉं को अभी छोड़ दो मैं वह सब करने को तैयार हूँ.
स्वामी - ठीक है हम तुम्हारे आदमियों को छुड़वा देते हैं. और उसने फ़ोन के द्वारा अपने आदमियों को यही निर्देश दिया. स्वामी अब अजंता की ओर देखें लगा - क्या तुम्हारा यह सुन्दर ओर गुलाबी बदन कपड़ों मैं ही कैद रहेगा?
अजंता ने उसका अर्थ समझ लिया ओर उसके हाथ उसके बायें कंधे पर गए. उसने अपना पल्लू गिरा दिया ओर साड़ी उतारने लगी.
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RE: Inspector Ajanta sequel 2 - reposted - by sujitha1976 - 11-04-2020, 02:43 PM



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