11-04-2020, 01:45 PM
(This post was last modified: 11-04-2020, 01:47 PM by Niharikasaree. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
(11-04-2020, 11:41 AM)@Kusum_Soni Wrote: yr): क्या बात है बिल्कुल एक सीरियल की तरह सब बचपन की बातें आप के साथ साथ फिर से जीवंत होती जा रही है
माँ की वो हिदायतें ऊफ़्फ़ आज कौन हमारा इतना ख्याल करता है
वो बचपन बहुत मीठा मीठा था,पर बहुत छोटा था,बहुत ज्यादा छोटा खास कर हम लड़कियों का तो
जब ठीक से समझ आनी शुरू तक नहीं हुई थी और हज़ारों वर्जनाएं, बंदिशें सर उठाएं खड़ी हो गयी थी
सिर्फ घर परिवार और जिम्मेदारियों का बोझ बड़ा है वो सब सामाजिक वर्जनाएं बंदिशें ज्यों की त्यों है
माँ, ने बालो मैं शैम्पू लगाया, फिर एक चपत भी, निहारिका तू तेल नहीं लगाती ,बालो मैं बराबर। देख कितने ख़राब हो रहे हैं. रात को सोने से पहले लगा कर , मेरे पास से ले लेना तीन - चार तेल का मिश्रण है उसमें बालो के लिए अच्छा रहता हैं.
अब ये तेल कहाँ कहाँ तक लगना शुरू हो गया है
सत्यानाश कर दिया है शादी ने तो हमारा
पर ये ही लिखा होता है हम औरतों के जीवन में
खेर,जीवन मे जहां है उस पल को खूब जियो
बस यही हकीकत है
आप की अदभुत लेखन कला को 100 बार नमन है
बस लिखती रहें,बहुत सुभकामनाएँ
आप की कुसुम सोनी![]()
कुसुम जी,
मेरा प्यार भरा नमस्कार,
"सब बचपन की बातें आप के साथ साथ फिर से जीवंत होती जा रही है"
एक कोशिश, आज के व्यस्त जीवन मैं वो पुरानी यादें , वो बचपन की मीठी - खट्टी बाते फिर से याद करके खुश हो लिया जाए।
"वो बचपन बहुत मीठा मीठा था,पर बहुत छोटा था,बहुत ज्यादा छोटा खास कर हम लड़कियों का तो
जब ठीक से समझ आनी शुरू तक नहीं हुई थी और हज़ारों वर्जनाएं, बंदिशें सर उठाएं खड़ी हो गयी थी"
सही कहा,एकदम आपने, हमारा बचपन कब ख़तम हो गया पता न चला , और बंदिशे , हिदायते , इस घर [माईके] से उस घर [ससुराल] तक जैसे ट्रांसफर हो गई हो, साथ ही जिम्मेदारियां और बढ़ गई हैं.
"अब ये तेल कहाँ कहाँ तक लगना शुरू हो गया है
सत्यानाश कर दिया है शादी ने तो हमारा"
बात रही तेल की, शादी ने तो सारा तेल ही निकल दिया है, हम औरतो का , शुरू मैं तेल भी लगता था, अब। ..... जो मिल जाये, नहीं तो सूखा ही पेल दिया , बचपन व् अदकचरी जवानी तक इतना नहीं सोचा था, यह सब भी होता है, औरत के साथ, कोई खुल के आप बीती नहीं बताती , खुद ही "करवा" के सीखो।
बस यही हकीकत है
आप की अदभुत लेखन कला को 100 बार नमन है
बस लिखती रहें,बहुत सुभकामनाएँ
कुसुम जी, लेखन कला तो, कोमल जी की है, हम तो बस अपनी भावनाओ से जो बन पड़ता है लिख देते हैं, आपके प्यार व् साथ की चाहत है बस , जब भी समय मिले , आती रहा करे , कुछ अपनी बात कहने का मानसिक बल मिलता रहता है इस व्यस्त और जिम्मेदारी जिंदगी मैं, आप लोगो से दो बात करके "जी" कुछ हल्का हो जाता है ।
इंतज़ार मैं। ........
आपकी निहारिका
सहेलिओं , पाठिकाओं, पनिहारिनों, आओ कुछ अपनी दिल की बातें करें -
लेडीज - गर्ल्स टॉक - निहारिका



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