11-04-2020, 11:41 AM
(This post was last modified: 11-04-2020, 11:46 AM by @Kusum_Soni. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
(11-04-2020, 05:23 AM)Niharikasaree Wrote:तभी
माँ बोली- चल हाथ - मुँह धो ले, मैं जा रही थी, की माँ ने रोका , तुझे लगी है क्या , खेलते हुए,
मैं - नहीं माँ, , फिर यह खून के दाग......
वो माँ का चेहरा आज भी याद है , शंका, चिंता , डर, अंदेशा। ..........
वो भी मेरे बाथरूम मैं आयी, दिखा तो जरा................................
प्रिय सहेलिओं ,
निहारिका का प्यार भरा नमस्कार ,
अब आगे ,
वो माँ का चेहरा आज भी याद है , शंका, चिंता , डर, अंदेशा। ........
और , कुछ हलकी ख़ुशी , इतने सारे भाव माँ, के चेहरे पर आ जा रहे थे, मैं, तो कुछ भी समझने के काबिल ही नहीं थी , आखिर पूछ ही लिया क्या हुआ, माँ.
माँ- मेरे पास आयी, बाथरूम का दरवाजा बंद किया , रोशनदान को देखा, सब ठीक था,
फिर, माँ ने मुझे कपडे उतारने को कहा, बोलै चल नहला आज।
उफ़,यह सोच कर आज भी मुझे हंसी आ जाती है, हलकी सी, की, एक माँ को कितने बहाने को साथ कुछ समझाना पड़ता है, कितनी दूरी होती है, - माँ बेटी के बीच , फिर शादी और बच्चे के बाद सब नार्मल। मेरी बेटी, को सब मालूम हो गया होगा अब तक, अब तो बच्चो की माँ भी हो गयी है, पर एक बेटी को अपनी माँ की हमेश ज़रुरत होती है,
यहाँ, मुझे कुछ माँ [ जो अभी कुछ महीने ,या साल भर हुआ होगा माँ बने ] पूरी तरह सहमत होगी की, बच्चो को कैसे सम्हालना है और उनके पेट दर्द , हलकी सर्दी - खांसी के लिए क्या दवा दू, हमेशा माँ की याद आती है, मुझे तो बहुत आयी थी, कुछ समय तक, हां अभी भी आती है , पर ज़िंदगी सब सीखा देती है.
हम्म, अब मैं, बाथरूम मैं, टी शर्ट उतरे, एक समीज़ मैं , और स्कर्ट मैं खड़ी थी, सोच रही थी, नाहा मैं खुद लुंगी, और यह दाग कहाँ से आया. तभी।
माँ -मुझे और भी काम हैं, निहारिका जल्दी कर. उतार दे सब।
मैं - है , माँ उतारती हूँ.
फिर मैंने , सरे कपडे उतर दिए, सिर्फ पैंटी को छोड़ कर.माँ - उफ़, हे भगवन, पागल लड़की यह भी उतार,
माँ, का पारा अब चढ़ने लगा था , मुझे डर लगता था, माँ के चांटे से , फिर क्या था उतर गई पैंटी भी, मुँह शर्म से लाल, आँख निचे और बिलकुल चुप.
माँ - ने पैंटी देखि, हम्म, दो धब्बे थे खून के, एक बड़ा, एक कुछ फैला हुआ सा था,
- मैं - माँ, क्या हुआ, कुछ बोलो न, अभी कुछ देर से दर्द भी हुआ था , क्या हुआ मुझे, स्टापू खेलने से हुआ क्या।
माँ - पागल, लड़की स्टापू से नहीं, यह तोह सबके साथ होता है, जब हम लड़किया बड़ी होने लगती हैं तब, अब ध्यान से सुन, यह हर महीने होगा , कुछ दर्द भी होगा तुझे , निचे पेट के। और, यह ले [ पैड्स देते हुए] इसमें से एक लगा लेना पैंटी मैं, ऐसे लगते हैं, तीन - चार दिन तक, बीच मैं बदल भी लेना।अच्छा , अब तू नाहा ले, मैं जाती हु।
मैं - पर माँ , आपने कहा था , नेहला दो गे , काफी दिनों के बाद आज माँ के हाथो से नहाने का मौका मिला था ,
-माँ - अच्छा , अब , जल्दी कर, सारा काम पड़ा है, मैं, बैठ गई निचे।
मैं , कुछ और भी पूछना चाहाती थी, पर चुप रह गई , शर्म , झिझक , लड़कियों के गहने।
माँ, ने बालो मैं शैम्पू लगाया, फिर एक चपत भी, निहारिका तू तेल नहीं लगाती ,बालो मैं बराबर। देख कितने ख़राब हो रहे हैं. रात को सोने से पहले लगा कर , मेरे पास से ले लेना तीन - चार तेल का मिश्रण है उसमें बालो के लिए अच्छा रहता हैं.
लड़किओं के सुंदरता बालो से निखरती हैं, ध्यान रखा कर , एक चपत और, नाख़ून को देख कर, कितने गंदे हो रहे हैं, काट लेना , नहीं तो साफ़ रखा कर अगर लम्बे करने हैं तो.
अब खेल - कूद मैं नाख़ून का धायन कौन देता है.
मैं - हा , माँ काट लुंगी।
नेहला कर, पीठ रगड़ कर , शैम्पू बालो मैं से छुड़ा कर, हाथ धोती हुई बोली , निहारिका अब मैं जा रही हूँ। जल्दी आना बहार और वो लगा लेना।
- मैं - माँ , ठीक है, आप जाओ.
यही सोच रही थी, कैसे लगाउंगी , माँ ने बता तो दिया है, नाहा धो कर अपन रूम मैं आ गई , पैंटी मैं लगा कर पहना तो एक अजीब सा अहसास हुआ, कुछ मोटा सा कपडा जैसा कुछ, जो बिलकुल भी सहज नहीं था, शुरू मैं, कुछ देर मैं बेड पर बैठी रही , पैड कुछ एडजस्ट हुआ , पर चलते हुए लग रहा था, और अचनाक दिमाग मैं आया, किसी को पता चल गया तो, मैंने कुछ लगा रखा है,किसी को दिख गया तो.
मैं - सीधा माँ के पास, माँ - फ्रिज मैं से आलू - प्याज निकल रही थी.
माँ - आ गई, निहारिका , सब ठीक, लगा लिया तूने
मैं - हा , माँ ठीक तो है , पर किसी को दिख गया तो, चलने मैं कुछ अजीब सा लग रहा था
माँ - हँसते हुए , पागल लड़की, किसी को कुछ नहीं पता चलता , अब आराम कर. उछाल - कूद बंद , किचन - पूजा रूम मैं नहीं जाना , जब तक साफ़ न हो.
मैं - हम्म, ठीक है माँ.
मैं फिर अपने रूम मैं गई, बैठ गई। होम वर्क था करने को, निकल ली किताब कॉपी , पर जी, न लगा कुछ भी करने को. कभी कुछ खाने की इच्छा हुई , दो - मिनिट मैं नहीं, यह नहीं कुछ खट्टा , इमिली , आचार, केरी का मुँह मैं पानी आय और चॉकलेट की याद आयी.
फिरज मैं देखि थी चॉकलेट, भाग कर गई, उठा ली,और खाने लगी. इस बार चलते का स्वाद ही अलग लग रहा थाफिर टी. वि। चला लिया , चित्रहार आ रहा था , एक - दो गाने के बाद विज्ञापन आया, केयर फ्र्री , सटे फ्री याद नहीं अब तो , मैं भी ऐसा ही यूज़ कर रही हु यही सोच कर ध्यान से देख रही थी , लेकिन कुछ जायदा सोच पाती की विज्ञापन ख़तम हो गया और फिर गाने गए.
तभी माँ की आवाज़ आयी। ...... निहारिका औ निहारिका। .............
सभी महिलाओं से विनती है की, अपने विचार शेयर ज़रूर करे , प्लीज हम सब इसी दौर से गुज़रे है,,,,,,,,,,,,,,,
आपके। .........
क्या बात है बिल्कुल एक सीरियल की तरह सब बचपन की बातें आप के साथ साथ फिर से जीवंत होती जा रही है
माँ की वो हिदायतें ऊफ़्फ़ आज कौन हमारा इतना ख्याल करता है
वो बचपन बहुत मीठा मीठा था,पर बहुत छोटा था,बहुत ज्यादा छोटा खास कर हम लड़कियों का तो
जब ठीक से समझ आनी शुरू तक नहीं हुई थी और हज़ारों वर्जनाएं, बंदिशें सर उठाएं खड़ी हो गयी थी
सिर्फ घर परिवार और जिम्मेदारियों का बोझ बड़ा है वो सब सामाजिक वर्जनाएं बंदिशें ज्यों की त्यों है
माँ, ने बालो मैं शैम्पू लगाया, फिर एक चपत भी, निहारिका तू तेल नहीं लगाती ,बालो मैं बराबर। देख कितने ख़राब हो रहे हैं. रात को सोने से पहले लगा कर , मेरे पास से ले लेना तीन - चार तेल का मिश्रण है उसमें बालो के लिए अच्छा रहता हैं.
अब ये तेल कहाँ कहाँ तक लगना शुरू हो गया है
सत्यानाश कर दिया है शादी ने तो हमारा
पर ये ही लिखा होता है हम औरतों के जीवन में
खेर,जीवन मे जहां है उस पल को खूब जियो
बस यही हकीकत है
आप की अदभुत लेखन कला को 100 बार नमन है
बस लिखती रहें,बहुत सुभकामनाएँ
आप की कुसुम सोनी