09-04-2020, 03:39 PM
(This post was last modified: 25-05-2020, 12:00 AM by komaalrani. Edited 2 times in total. Edited 2 times in total.)
बिदेस
हाँ जब पहली बार जेनेवा से उनका फोन आया तो मैं एकदम उछल पड़ी ,
' बिदेस से बोल रहे हैं ,... "
मैं गाँव की लड़की , मेरे लिए कोई बनारस से लखनऊ चला जाए तो ,..
हम लोग जो ईस्टर्न यूपी वाले बिहार वाले हैं तो बिदेस तो जैसे उनकी किस्मत में , ....
आज से नहीं सैकड़ों साल से , एक दिन मैं मम्मी के साथ बी एच यू में मंन्दिर में , और कुछ वेस्टइंडीज की औरतें , वैसे तो फ्रेंच या पता नहीं क्या बोल रही थी पर गाना गाने लगीं तो एकदम भोजपुरी ,
सच में , फिजी , गुयाना , मारसिश और पता नहीं कितने कितने देस , ईस्ट इण्डिया कम्पनी के सिपाही बनकर चीन , बर्मा , मलाया , ...
मेरी सास बताती थीं , ...
उनकी सास ने बताया था , तब यहाँ बड़ी लाइन नहीं थी , सब लोग गाँव के , शाहगंज जाते थे गाँव से कोई जाता था कलकत्ता , उसे छोड़ने , चटकल की मिल में काम करें ,
इसी इलाके से , भोजपुरी इलाके से ही , भिखारी ठाकुर हो सकते थे , और बिदेसिया भी ,...
मैंने देखा तो नहीं लेकिन अपने गाँव में भी पुरानी औरतों से सुना था , ...
गौना हो के दुल्हिन आती थी , पहली रात को ही सब औरतें सीखा पढ़ा के
अपनी आँखी की पुतरी में बंद कर लेना , पलक अच्छी तरह , ...
आठ दिन , हद से हद दस दिन , फिर वो कमाने ,... और उसके बाद बस कभी चिट्ठी का इन्तजार कभी छुट्टी का ,
और अभी भी , एक दिन मैं लखनऊ गयी थी , स्टेशन पर , कोई ट्रेन थी , हाँ पुष्पक , ठूंस ठूंस कर , जनरल डिब्बे में , ... सब लोग बंम्बई ,
बमबई , सूरत , पंजाब , और कुछ जुगाड़ लग गया , गहना गुरिया गिरवी रख के हाथ पैर जोड़ के कभी दुबई कभी कत्तर , कभी ,...
एक गाना मैं बहुत गाती थी , कॉलेज में किसी कम्पटीशन में ,
रेलिया बैरन पिया को लिए जाए रे,
रेलिया बैरन पिया को लिए जाए रे ।
जौन टिकसवा से बलम मोरे जैहें, रे सजना मोरे जैहें,
पानी बरसे टिकस गल जाए रे, रेलिया बैरन ।।
जौने सहरिया को बलमा मोरे जैहें, रे सजना मोरे जैहें,
आगी लागै सहर जल जाए रे, रेलिया बैरन ।।
जौन सवतिया पे बलमा मोरे रीझे, रे सजना मोरे रीझें,
खाए धतूरा सवत बौराए रे, रेलिया बैरन
लेकिन उसका मतलब अब समझ में आया , गाने का असली मतलब उसकी आखिरी लाइन में
ना रेलिया बैरन , न जहाजिया बैरन , इसे पइसवा बैरन हो ,....
देह की आग , मन की आग बहुत कठिन होती है लेकिन पेट की आग उससे भी ज्यादा , ...
गाँव में सुने एक गाने की लाइन अक्सर कान में गूँजती रहती है ,
भुखिया के मारे बिरहा बिसरिगै , बिसरैगे कजरी कबीर ,
अब देख देख गोरी क जोबना
न उठै करेजवा में पीर ,....
आप भी कहेंगे न कहाँ की बातें लेकर बैठ गयी मैं आज , पर मन में जो उमड़ता घुमड़ता रहता है न कभी वो वो आँख से फिसल पड़ता है तो कभी शब्द बनकर
एम्स्टर्डम में भी बजाय तीन दिन के दस दिन रहना पड़ा उन्हें , ...
मुझे सब से बड़ी चिंता यही लगी रहती थी खाएंगे क्या , वहां दाल चावल मिलेगा की नहीं ,
इनके नखड़े भी तो बहुत नहीं मिलेगा नहीं खाएंगे , कौन समझाये इन्हे
लेकिन एक अच्छी बात थी ,
ज्यादा तो नहीं लेकिन बताया था इन्होने, एक लड़की मिल गयी थी , पंजाब की , काफी दिनों से एम्स्टर्डम में रहती है ,
वो भी इन्ही सबी चीजों में ,...
उसका कुछ बनारस से कभी का ,...
दूबे भाभी को अच्छी तरह जानती है , अरे वही औरंगाबाद वाली ,...
कुछ नाम बताया तो था उन्होंने , अच्छा सा नाम है , इनका ख्याल रखती है , ...
नाम उसका , ... हाँ याद आ गया ,
रीत।
हाँ जब पहली बार जेनेवा से उनका फोन आया तो मैं एकदम उछल पड़ी ,
' बिदेस से बोल रहे हैं ,... "
मैं गाँव की लड़की , मेरे लिए कोई बनारस से लखनऊ चला जाए तो ,..
हम लोग जो ईस्टर्न यूपी वाले बिहार वाले हैं तो बिदेस तो जैसे उनकी किस्मत में , ....
आज से नहीं सैकड़ों साल से , एक दिन मैं मम्मी के साथ बी एच यू में मंन्दिर में , और कुछ वेस्टइंडीज की औरतें , वैसे तो फ्रेंच या पता नहीं क्या बोल रही थी पर गाना गाने लगीं तो एकदम भोजपुरी ,
सच में , फिजी , गुयाना , मारसिश और पता नहीं कितने कितने देस , ईस्ट इण्डिया कम्पनी के सिपाही बनकर चीन , बर्मा , मलाया , ...
मेरी सास बताती थीं , ...
उनकी सास ने बताया था , तब यहाँ बड़ी लाइन नहीं थी , सब लोग गाँव के , शाहगंज जाते थे गाँव से कोई जाता था कलकत्ता , उसे छोड़ने , चटकल की मिल में काम करें ,
इसी इलाके से , भोजपुरी इलाके से ही , भिखारी ठाकुर हो सकते थे , और बिदेसिया भी ,...
मैंने देखा तो नहीं लेकिन अपने गाँव में भी पुरानी औरतों से सुना था , ...
गौना हो के दुल्हिन आती थी , पहली रात को ही सब औरतें सीखा पढ़ा के
अपनी आँखी की पुतरी में बंद कर लेना , पलक अच्छी तरह , ...
आठ दिन , हद से हद दस दिन , फिर वो कमाने ,... और उसके बाद बस कभी चिट्ठी का इन्तजार कभी छुट्टी का ,
और अभी भी , एक दिन मैं लखनऊ गयी थी , स्टेशन पर , कोई ट्रेन थी , हाँ पुष्पक , ठूंस ठूंस कर , जनरल डिब्बे में , ... सब लोग बंम्बई ,
बमबई , सूरत , पंजाब , और कुछ जुगाड़ लग गया , गहना गुरिया गिरवी रख के हाथ पैर जोड़ के कभी दुबई कभी कत्तर , कभी ,...
एक गाना मैं बहुत गाती थी , कॉलेज में किसी कम्पटीशन में ,
रेलिया बैरन पिया को लिए जाए रे,
रेलिया बैरन पिया को लिए जाए रे ।
जौन टिकसवा से बलम मोरे जैहें, रे सजना मोरे जैहें,
पानी बरसे टिकस गल जाए रे, रेलिया बैरन ।।
जौने सहरिया को बलमा मोरे जैहें, रे सजना मोरे जैहें,
आगी लागै सहर जल जाए रे, रेलिया बैरन ।।
जौन सवतिया पे बलमा मोरे रीझे, रे सजना मोरे रीझें,
खाए धतूरा सवत बौराए रे, रेलिया बैरन
लेकिन उसका मतलब अब समझ में आया , गाने का असली मतलब उसकी आखिरी लाइन में
ना रेलिया बैरन , न जहाजिया बैरन , इसे पइसवा बैरन हो ,....
देह की आग , मन की आग बहुत कठिन होती है लेकिन पेट की आग उससे भी ज्यादा , ...
गाँव में सुने एक गाने की लाइन अक्सर कान में गूँजती रहती है ,
भुखिया के मारे बिरहा बिसरिगै , बिसरैगे कजरी कबीर ,
अब देख देख गोरी क जोबना
न उठै करेजवा में पीर ,....
आप भी कहेंगे न कहाँ की बातें लेकर बैठ गयी मैं आज , पर मन में जो उमड़ता घुमड़ता रहता है न कभी वो वो आँख से फिसल पड़ता है तो कभी शब्द बनकर
एम्स्टर्डम में भी बजाय तीन दिन के दस दिन रहना पड़ा उन्हें , ...
मुझे सब से बड़ी चिंता यही लगी रहती थी खाएंगे क्या , वहां दाल चावल मिलेगा की नहीं ,
इनके नखड़े भी तो बहुत नहीं मिलेगा नहीं खाएंगे , कौन समझाये इन्हे
लेकिन एक अच्छी बात थी ,
ज्यादा तो नहीं लेकिन बताया था इन्होने, एक लड़की मिल गयी थी , पंजाब की , काफी दिनों से एम्स्टर्डम में रहती है ,
वो भी इन्ही सबी चीजों में ,...
उसका कुछ बनारस से कभी का ,...
दूबे भाभी को अच्छी तरह जानती है , अरे वही औरंगाबाद वाली ,...
कुछ नाम बताया तो था उन्होंने , अच्छा सा नाम है , इनका ख्याल रखती है , ...
नाम उसका , ... हाँ याद आ गया ,
रीत।