09-04-2020, 03:38 PM
बिदेसिया
बात चीत में मैं और जेठानी उसे चिढ़ाने में लगे रहते थे , बनारस और आजमगढ़ के मुकाबले ,
गुड्डी को हम लोग बोलते , असल में गाँव की ही तरह खाली कहने को शहर है ,
तो उस के पास एक पक्का जवाब था , ...लेकिन आप दोनों लोग आयी तो यही हमारे भैया के पास , अपने माँ बाप का घर छोड़ के ,
ये बात तो उस छोरी की एकदम सही थी , ...
सच्च में यार उस लड़के के लिए तो मैं कहीं चली जाती , ...
माना थोड़ा , थोड़ा नहीं काफी बुद्धू था , ..कुछ ज्यादा ही सीधा , और शर्मिला कितना ,...आजकल तो लड़कियां भी उतनी नहीं शर्माती , और लापरवाह भी एकदम , ...
उसे अपना जरा भी नहीं ख्याल , ...अगर मैं उसे कपडे न निकाल के दूँ न तो बस , ...
दोनों पैरों में अलग रंग के मोज़े पहन के चला जाय , ...
लेकिन वो लड़का बैंगलोर , ...
पांच दिन इत्ती मुश्किल से कटते थे और जब वो आता था , फुर्र से समय उड़ जाता था ,...
मैं जानती थी इस लड़के के साथ यही होना है , एक दिन पूरी जिंदगी इसी तरह , हफ्ते महीनो में बदलेंगे , महीनो सालों में और एक दिन पूरी जिंदगी ,...
लेकिन बस ये सोच के ढांढ़स बंधाती थी , बच्चू बच के कहाँ जायेंगे , ...
पूरे सात जन्म के लिए लिखवा के लायी हूँ उसे ,... अगले जन्म में फिर करुँगी रगड़ाई उसकी , बच के कहाँ जायेगा ,...
मम्मी जब से मेरी शादी तय हुयी , शादी के गाने और उन में से कुछ तो ऐसे मैं मना भी करती , लेकिन ,... एकदम
निमिया के पेड़ जिन कटाया मोरे बाबा , निमिया चिरैया क बसेर र ललनवा।
निमिया के पेड़ जिन कटाया मोरे बाबा , निमिया चिरैया क बसेर र ललनवा।
होतें बिहान चिरैया उड़ जाहिएँ , होय जाहिंएं निमिया अकेल र ललनवा ,
....होतें बिहान बेटी चल जाहिएँ , हो जाहिएँ मम्मी अकेल रे ललनावा
निमिया के पेड़ जिन कटाया मोरे बाबा , निमिया चिरैया क बसेर र ललनवा।
.... बेटी बिदेसिया के साथ रे ललनवा , होते बिहान बेटी चल जाहिए , हो जाहिए मम्मी अकेल रे ललनवा
मम्मी रोटी बनाती जाती थी , आंसू रुकते नहीं थे ,
और कहीं मैं पूछती थी तो बोलती थी नहीं कुछ नहीं , बस जरा धुंवा लग गया था , ...
पर मैं जानती नहीं थी क्या , .... जब तक बुआ भाभियाँ , चाचियां रहतीं , छेड़छाड़ , काम काज की बातें , लेकिन जैसे वो अकेले बैठती ,
बस सूनी आँखों से दरवाजे को निहारती रहतीं , ...
जैसे इसी दरवाजे से कुछ दिन बाद मैं चली जाउंगी , फिर तो कभी काम काज कभी परब त्योहार , ....
सबसे बड़ी तीनो बहनों में मैं थी ,
आज मैं. कल मंझली , फिर छुटकी , ... तीनो चिरैया , बारी बारी से फुर्र ,... और मम्मी दरवाजे के पास बैठी , अकेली
मैं समझती नहीं थी क्या , ... मैं भी आ के , उनके बगल में ,... उनकी गोद में अपना सर रख कर ,
कैसे छोटी बच्ची की तरह , मेरे रिबन बांधती , बाल संवारती , नाक छिदी तो कितना दर्द हुआ था , लेकिन बस मम्मी ने ऐसे ही गोदी में , ...
देर तक बस हम माँ बेटी ऐसे ही बिना बोले , वो बस मेरा बाल सहलाती रहतीं , और जब मैं सर ऊपर कर के देखती तो
उनकी दियली सी आँखों में , ... मुझे देखते ही वो आँख बंद कर लेती , झूठमूठ का आँख रगड़ने लगतीं , बोलती कुछ नहीं कुछ पड़ गया था ,
पर शादी ब्याह का घर , गांव का माहोल ,... कोई न कोई कुछ काम ले के , ... और वो उठ के , ... मुझे अभी भी याद है , उनके आँचल में सारी चाभियाँ बंधी रहती थी , और थोड़ा सा फुटकर पैसा भी , ...
सोच के ,
कन्यादान के समय के गाने , ...
पाँव पूजी चलती रहती थी और आँख में आंसू भी , ...
जब हम जनतीं , धिया कोखिये होइए
प्रभु जी से रहतीं उछास
अरे लागल सेजिया उढ़स देतीं ,
कटती अंगनवा सारी रात ,
धिया के जनमते माहुरवा हम चटावती,
----
...... बेटी होली घर क सिंगार ,
गइया , भैंसिया भले दान करिया पापा , बेटी हो दूर जिन भेजिया बिदेस ,
कटोरवा कटोरवा दुधवा पियालुं और खियवली दूध भात ,
हो धियवा चलली सुन्दर बर के साथ ,...
होत भिनसरवा जाइबों हो पापा बड़ी हो दूर ,
होत भिन्सारवा जाइबो हो चाचा बड़ी हो दूर
.....
जब हम जनती कन्यादान करतीं पापा जी ,
खातीं जहर मर जातीं हो पापा जी
सोने के पिंजड़ा बना देती पापा जी ,
सुन्दर धियवा छुपा देतीं पापा जी
....
काठ के करेजवा पापा करैला बाटा हो हमरो के करैले बाटा हो
......
घूंघट के अंदर मैं बार बार अपनी आँखे बंद कर लेती , जोर जोर से भींच लेती , ...
सहेलियां , भाभियाँ , नाउन , नाउन की बेटी मुझे सुना सुना के इन्हे छेड़ती ,
पर मैं जानती थी ये सब मेरा मन रखने को , ...
आखिर वो सब भी तो उसी रास्ते से गुजर के आयीं है , या जानेवाली हैं सब को उस का दर्द मालूम है , ...
कालेज से आती थी कहीं अपना बस्ता फेंका ,
कभी मंझली से झगड़ा करने बैठ गयी तो कभी मम्मी से दस ओरहन , ...
पर अब जब जाउंगी तो कोई बोलेगा , सामान यहाँ रखवा दो ,
मुझे बार बार उनकी एक ही बात याद आती थी , गुड़िया खेलने वाली , गुड़ियों की शादी रचाने वाली बेटियाँ जब कब खुद डोली पर चढ़ कर चली जाती हैं पता नहीं चलता ,
किसी तरह से झटक के मैंने उन यादों को अलग किया , जैसे पुराने अल्बम कहीं बक्से के कोने में , ... पर , ...
सच में , ... वो तो मेरी सास , इतनी अच्छी इतनी अच्छी , सास कम सहेली ज्यादा , मुझसे ज्यादा मेरा ख्याल रखने वाली
नहीं तो पहले दिन से ही मजाक में सही , सोहर की तैयारी शुरू ,
और अगर साल दो साल हो गए , ... तो फिर झाड़ फूंक , डाकटर बैद सब ,...
मैंने तो इन्ही से बोल दिया था , साफ़ साफ , और सासु से भी , ... पहले पांच साल कुछ नहीं , उसके बाद , ... एकदम ,...
दिन कटते नहीं थे , लेकिन चारा भी क्या था , ... बस वीकेंड के इंतजार में और आखिरी के हफ्ते में तो वो भी
उनको फॉरेन जाना पड़ा , ...
मेरे तो कुछ समझ में नहीं आता था
पता नहीं क्या क्या , ... बिग डाटा , आर्टिफिशयल इंटेलिजंस , डार्क वेब ,...
मुझे सिर्फ गुस्सा लगता था , इस के चक्कर में दस दिन और ,
हाँ जब पहली बार जेनेवा से उनका फोन आया तो मैं एकदम उछल पड़ी ,
' बिदेस से बोल रहे हैं ,... "
मैं गाँव की लड़की , मेरे लिए कोई बनारस से लखनऊ चला जाए तो ,..
बात चीत में मैं और जेठानी उसे चिढ़ाने में लगे रहते थे , बनारस और आजमगढ़ के मुकाबले ,
गुड्डी को हम लोग बोलते , असल में गाँव की ही तरह खाली कहने को शहर है ,
तो उस के पास एक पक्का जवाब था , ...लेकिन आप दोनों लोग आयी तो यही हमारे भैया के पास , अपने माँ बाप का घर छोड़ के ,
ये बात तो उस छोरी की एकदम सही थी , ...
सच्च में यार उस लड़के के लिए तो मैं कहीं चली जाती , ...
माना थोड़ा , थोड़ा नहीं काफी बुद्धू था , ..कुछ ज्यादा ही सीधा , और शर्मिला कितना ,...आजकल तो लड़कियां भी उतनी नहीं शर्माती , और लापरवाह भी एकदम , ...
उसे अपना जरा भी नहीं ख्याल , ...अगर मैं उसे कपडे न निकाल के दूँ न तो बस , ...
दोनों पैरों में अलग रंग के मोज़े पहन के चला जाय , ...
लेकिन वो लड़का बैंगलोर , ...
पांच दिन इत्ती मुश्किल से कटते थे और जब वो आता था , फुर्र से समय उड़ जाता था ,...
मैं जानती थी इस लड़के के साथ यही होना है , एक दिन पूरी जिंदगी इसी तरह , हफ्ते महीनो में बदलेंगे , महीनो सालों में और एक दिन पूरी जिंदगी ,...
लेकिन बस ये सोच के ढांढ़स बंधाती थी , बच्चू बच के कहाँ जायेंगे , ...
पूरे सात जन्म के लिए लिखवा के लायी हूँ उसे ,... अगले जन्म में फिर करुँगी रगड़ाई उसकी , बच के कहाँ जायेगा ,...
मम्मी जब से मेरी शादी तय हुयी , शादी के गाने और उन में से कुछ तो ऐसे मैं मना भी करती , लेकिन ,... एकदम
निमिया के पेड़ जिन कटाया मोरे बाबा , निमिया चिरैया क बसेर र ललनवा।
निमिया के पेड़ जिन कटाया मोरे बाबा , निमिया चिरैया क बसेर र ललनवा।
होतें बिहान चिरैया उड़ जाहिएँ , होय जाहिंएं निमिया अकेल र ललनवा ,
....होतें बिहान बेटी चल जाहिएँ , हो जाहिएँ मम्मी अकेल रे ललनावा
निमिया के पेड़ जिन कटाया मोरे बाबा , निमिया चिरैया क बसेर र ललनवा।
.... बेटी बिदेसिया के साथ रे ललनवा , होते बिहान बेटी चल जाहिए , हो जाहिए मम्मी अकेल रे ललनवा
मम्मी रोटी बनाती जाती थी , आंसू रुकते नहीं थे ,
और कहीं मैं पूछती थी तो बोलती थी नहीं कुछ नहीं , बस जरा धुंवा लग गया था , ...
पर मैं जानती नहीं थी क्या , .... जब तक बुआ भाभियाँ , चाचियां रहतीं , छेड़छाड़ , काम काज की बातें , लेकिन जैसे वो अकेले बैठती ,
बस सूनी आँखों से दरवाजे को निहारती रहतीं , ...
जैसे इसी दरवाजे से कुछ दिन बाद मैं चली जाउंगी , फिर तो कभी काम काज कभी परब त्योहार , ....
सबसे बड़ी तीनो बहनों में मैं थी ,
आज मैं. कल मंझली , फिर छुटकी , ... तीनो चिरैया , बारी बारी से फुर्र ,... और मम्मी दरवाजे के पास बैठी , अकेली
मैं समझती नहीं थी क्या , ... मैं भी आ के , उनके बगल में ,... उनकी गोद में अपना सर रख कर ,
कैसे छोटी बच्ची की तरह , मेरे रिबन बांधती , बाल संवारती , नाक छिदी तो कितना दर्द हुआ था , लेकिन बस मम्मी ने ऐसे ही गोदी में , ...
देर तक बस हम माँ बेटी ऐसे ही बिना बोले , वो बस मेरा बाल सहलाती रहतीं , और जब मैं सर ऊपर कर के देखती तो
उनकी दियली सी आँखों में , ... मुझे देखते ही वो आँख बंद कर लेती , झूठमूठ का आँख रगड़ने लगतीं , बोलती कुछ नहीं कुछ पड़ गया था ,
पर शादी ब्याह का घर , गांव का माहोल ,... कोई न कोई कुछ काम ले के , ... और वो उठ के , ... मुझे अभी भी याद है , उनके आँचल में सारी चाभियाँ बंधी रहती थी , और थोड़ा सा फुटकर पैसा भी , ...
सोच के ,
कन्यादान के समय के गाने , ...
पाँव पूजी चलती रहती थी और आँख में आंसू भी , ...
जब हम जनतीं , धिया कोखिये होइए
प्रभु जी से रहतीं उछास
अरे लागल सेजिया उढ़स देतीं ,
कटती अंगनवा सारी रात ,
धिया के जनमते माहुरवा हम चटावती,
----
...... बेटी होली घर क सिंगार ,
गइया , भैंसिया भले दान करिया पापा , बेटी हो दूर जिन भेजिया बिदेस ,
कटोरवा कटोरवा दुधवा पियालुं और खियवली दूध भात ,
हो धियवा चलली सुन्दर बर के साथ ,...
होत भिनसरवा जाइबों हो पापा बड़ी हो दूर ,
होत भिन्सारवा जाइबो हो चाचा बड़ी हो दूर
.....
जब हम जनती कन्यादान करतीं पापा जी ,
खातीं जहर मर जातीं हो पापा जी
सोने के पिंजड़ा बना देती पापा जी ,
सुन्दर धियवा छुपा देतीं पापा जी
....
काठ के करेजवा पापा करैला बाटा हो हमरो के करैले बाटा हो
......
घूंघट के अंदर मैं बार बार अपनी आँखे बंद कर लेती , जोर जोर से भींच लेती , ...
सहेलियां , भाभियाँ , नाउन , नाउन की बेटी मुझे सुना सुना के इन्हे छेड़ती ,
पर मैं जानती थी ये सब मेरा मन रखने को , ...
आखिर वो सब भी तो उसी रास्ते से गुजर के आयीं है , या जानेवाली हैं सब को उस का दर्द मालूम है , ...
कालेज से आती थी कहीं अपना बस्ता फेंका ,
कभी मंझली से झगड़ा करने बैठ गयी तो कभी मम्मी से दस ओरहन , ...
पर अब जब जाउंगी तो कोई बोलेगा , सामान यहाँ रखवा दो ,
मुझे बार बार उनकी एक ही बात याद आती थी , गुड़िया खेलने वाली , गुड़ियों की शादी रचाने वाली बेटियाँ जब कब खुद डोली पर चढ़ कर चली जाती हैं पता नहीं चलता ,
किसी तरह से झटक के मैंने उन यादों को अलग किया , जैसे पुराने अल्बम कहीं बक्से के कोने में , ... पर , ...
सच में , ... वो तो मेरी सास , इतनी अच्छी इतनी अच्छी , सास कम सहेली ज्यादा , मुझसे ज्यादा मेरा ख्याल रखने वाली
नहीं तो पहले दिन से ही मजाक में सही , सोहर की तैयारी शुरू ,
और अगर साल दो साल हो गए , ... तो फिर झाड़ फूंक , डाकटर बैद सब ,...
मैंने तो इन्ही से बोल दिया था , साफ़ साफ , और सासु से भी , ... पहले पांच साल कुछ नहीं , उसके बाद , ... एकदम ,...
दिन कटते नहीं थे , लेकिन चारा भी क्या था , ... बस वीकेंड के इंतजार में और आखिरी के हफ्ते में तो वो भी
उनको फॉरेन जाना पड़ा , ...
मेरे तो कुछ समझ में नहीं आता था
पता नहीं क्या क्या , ... बिग डाटा , आर्टिफिशयल इंटेलिजंस , डार्क वेब ,...
मुझे सिर्फ गुस्सा लगता था , इस के चक्कर में दस दिन और ,
हाँ जब पहली बार जेनेवा से उनका फोन आया तो मैं एकदम उछल पड़ी ,
' बिदेस से बोल रहे हैं ,... "
मैं गाँव की लड़की , मेरे लिए कोई बनारस से लखनऊ चला जाए तो ,..