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Misc. Erotica रद्दी वाला
#11
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अब मुझ से ओर बर्दाश्त नहीं हुआ ओर मैंने भी उसकी देखा देखी, मृदुल के सारे कपड़े उतार दिये और उसके लंड को मुँह में ले लिया और उसके सुपाड़े को चूसने लगी। मुझे जितना मज़ा आ रहा था उससे कहीं ज्यादा मज़ा शाज़िया को पापा का लंड चूसने में आ रहा था, यह मैंने उसके चेहरे को देखकर अंदाज़ लगाया था। वो काफ़ी खुश लग रही थी। बड़े मज़े से लंड के ऊपर मुँह को आगे पीछे करते हुए वो चूस रही थी। थोड़ी देर बाद उसने लंड को मुँह से निकाला और जल्दी-जल्दी अपने निचले कपड़े उतारने लगी। मुझसे नज़र टकराते ही मुसकरा दी। मैं भी मुसकराई और मस्ती से मृदुल के लंड को चूसने में लग गयी। कुछ देर बाद ही मैं भी शाज़िया की तरह मृदुल के बदन से अलग हो गयी और अपने कपड़े उतारने लगी। कुछ देर बाद हम चारों के बदन पर कोई कपड़ा नहीं था।

पापा शाज़िया की चूत को चूसने लगे तो मेरे मन में भी आया कि मृदुल भी मेरी चूत को उसी तरह चूसे। क्योंकि शाज़िया बहुत मस्ती में लग रही थी। ऐसा लग रहा था जैसे वो बिना लंड घुसवाये ही चुदाई का मज़ा ले रही है। उसके मुँह से बहुत ही कामुक सिसकारियाँ निकल रही थीं। मृदुल भी मेरी टांगों के बीच में झुक कर मेरी चूत को चाटने चूसने लगा तो मेरे मुँह से भी कामुक सिसकारियाँ निकलने लगी। कुछ देर तक चूसने के बाद ही मेरी चूत बुरी तरह गरम हो गयी। मेरी चूत में जैसे हज़ारों कीड़े रेंगने लगे। मैंने जब शाज़िया की ओर देखा तो पाया उसका भी ऐसा ही हाल था। मेरे कहने पर मृदुल ने मेरी चूत चाटना बंद कर दिया। एकाएक मेरी निगाह पापा के लंड की ओर गयी, जिसे थोड़ी देर पहले शाज़िया चूस रही थी। लंड उसके मुँह के अंदर था इसलिये मैं उसे ठीक से देख नहीं पायी थी। अब जब मैंने अच्छी तरह देखा तो मुझे पापा का लंड बहुत पसन्द आया। और क्यों न पसन्द आता। यही तो वह था जिसने मुझे ज़िन्दगी में पहली बात इस अनोखे मजे से अवगत कराया था। बस मेरा मन कर रहा था कि एक बार मैं पापा का लंड मुँह में लेकर चूसूँ। यह सोच कर मैंने कहा, “यार ! क्यों न हम चारों एक साथ मज़ा लें। जैसे ब्लू फिल्म में दिखाया जाता है।”

अब पापा और शाज़िया भी मेरी ओर देखने लगे। शाज़िया बोली, “हम चारों दोस्त हैं। इसलिये आज अगर कोई भी किसी के साथ जैसे मन चाहे वैसे मजा ले सकता है। क्यों मृदुल, मैं गलत कह रही हूँ?”

“नहीं, यह तो और अच्छा है। तब तो हमें भी पापा की अमानत पर हाथ साफ करने का मौका मिलेगा।” मृदुल ने अपने मन की बात कह दी।

मैंने कहा, “मान लो मृदुल अगर तेरी चूत चाटे तो मुझे कोई फ़र्क नहीं पड़ना चाहिये। उसी प्रकार अगर मैं पापा का लंड मुँह में ले लूँ तो बाकी तुम तीनों को फ़र्क नहीं पड़ेगा। मैं ठीक कह रही हूँ न?” मेरी बात का तीनों ने समर्थन किया। मैं जानती थी कि किसी को मेरी बात का कोई ऐतराज़ नहीं होगा। क्योंकि एक प्रकार से मैंने सबके मन की इच्छा पूरी करने की बात कही थी। सब राजी हो गये तो मैंने आइडिया दिया कि बिल्कुल ब्लू फ़िल्म की तरह से जब मर्ज़ी होगी तब लड़का या लड़की बदल लेंगे। मेरी यह बात भी सबको पसन्द आ गयी। उसी समय मृदुल ने शाज़िया को खींचकर अपने सीने से लगा लिया और उसके सीने पर कशमीरी सेब की तरह उभरे हुए मम्मों को चूसने लगा। और मैं सीधे पापा के लंड को चूसने में लग गयी। उनके मोटे लंड का साइज़ था तो मृदुल जैसा ही मगर मुझे पापा के लंड को चूसने में कुछ ज्यादा ही आनंद आ रहा था। मैं मज़े से लंड को मुँह में काफ़ी अंदर डाल कर अंदर-बाहर करने लगी। उधर शाज़िया भी मृदुल के लंड को चूसने में लग गयी थी। तभी पापा ने मेरे कान में कहा, “तुम्हारी चूत मुझे अपनी ओर खींच रही है। कहो तो मैं तुम्हारी चूत अपने होंठों में दबाकर चूस लूँ?” यह उन्होंने इतने धीमे स्वर में कहा था कि मेरे अलावा कोई और सुन ही नहीं सकता था। मैंने मुसकरा कर हाँ में सिर हिला दिया। वो मेरी जाँघों पर झुके तो मैंने अपनी टांगों को थोड़ा सा फ़ैला कर अपनी चूत को खोल दिया। वो पहले तो मेरी चूत के छेद को जीभ से सहलाने लगे। मुझे बहुत मज़ा आने लगा था। मैं उन्हें काट-काट कर चूसने के लिये कहने वाली थी, तभी उन्होंने ज़ोर से चूत को होंठों के बीच दबा लिया और खुद ही काट काट कर चूसने लगे। मेरे मुँह से कामुक सिसकारियां निकलने लगीं। “आह ऊफ़्फ़्फ़ पापा धीरे काटो। आहह हाय..मम्मम्म बहुत मज़ा आ रहा है।” अब तो मैं और भी मस्त होने लगी और मेरी चूत रस से गीली होने लगी। वो फाँकों को मुँह में लेकर जीभ रगड़ रहे थे। मैंने मृदुल की ओर देखा तो पाया कि वो भी शाज़िया की चूत को चूसने में लगा हुआ था। शाज़िया के मुँह से इतनी ज़ोर से सिसकारियाँ निकल रही थीं कि अगर बिलकुल सटा हुआ कोई घर होता तो उस तक आवाज़ पहुँच जाती और वो जान जाते कि यहाँ क्या हो रहा है। “खा जाओ चूसो और ज़ोर से। साले काट ले मेरी चूत। हाय माज़ा आ रहा है... उफ़्फ़ ऊह। हाय मृदुल चूसो मेरी चूत। मैं भी देखूँ तुम मेरे सर की बेटी को खुश रखोगे या नहीं।”

खैर मेरी चूत को चूसते हुए जब पापा ने चूत को बहुत गरम कर दिया तो मैं जल्दी से उनके कान में बोली, “अब और मत चूसो। मैं पहले ही बहुत गरम हो चुकी हूँ। आप जल्दी से अपना लंड मेरी चूत में डाल दो वरना मृदुल का दिल आ जाएगा। जल्दी से एक ही झटके में घुसा दो।” वो भी मेरी चूत में अपना लंड डालने को उतावले हो रहे थे। मैंने पापा के साथ चुदवाने का इसलिये मन बन लिया था ताकि मुझे एक नये तरीके का मज़ा मिल सके। पापा ने लंड को चूत के छेद पर रख कर अंदर की ओर ढकेलना शुरु किया तो मैं इस डर में थी कि कहीं मृदुल मेरे पास आकर यह न कह दे कि वो मुझे पहले चोदना चाहता है। मैंने जब उसकी ओर देखा तो वो अब तक शाज़िया की चूत को ही चूस रहा था। उसका ध्यान पूरी तरह चूत चूसने की ओर ही था। मैंने इस मौके का लाभ उठाने का मन बनाया और चूत की फाँकों को दोनों हाथों से पकड़ कर फ़ैला दिया ताकि पापा का लंड अंदर जाने में किसी प्रकार की परेशानी न हो। और जब उन्होंनें मेरी चूत में लंड का सुपाड़ा डाल कर ज़ोर का धक्का मारा तो मैं सिसकिया उठी। उनका लंड चूत के अंदर लेने के लिये एकाएक मन कुछ ज्यादा ही बेताब हो गया। मैंने जल्दी से उनका लंड एक हाथ से पकड़ कर अपनी चूत में डालने की कोशिश करनी शुरु कर दी। एक तरफ़ मेरी मेहनत और दूसरी तरफ़ उनके धक्के, उन्होंनें एकदम से तेज़ धक्का मार कर लंड चूत के अंदर आधा पहुँचा दिया। ज्यादा मोटा न होने के बावजूद भी मुझे उनके लंड का झटका बहुत आनंद दे गया और मैं कमर उछाल-उछाल कर उनका लंड चूत की गहराई में उतरवाने के लिये उतावली हो गयी।

तभी मैंने मृदुल की ओर देखा। वो भी शाज़िया को चोदने की तैयारी कर रहा था। उसने थूक लगा कर शाज़िया की चूत में लंड घुसाया तो शाज़िया सिसकारी लेकर बोली, “हाय अल्लाह! कितना मोटा है। हाय रंजना तू तो निहाल हो गई। देख रही है तेरे लवर का लंड क्या मुस्टन्डा है। ये तो मेरी नाज़ुक चूत को फ़ाड़ ही देगा। ओहहह हाय अल्लाह… इसे धीरे धीरे घुसाओ। मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रहा है।” वो मेरी ओर देख कर कह रही थी। उसकी हालत देखकर मुझे हँसी आ रही थी। क्योंकि मुझे मालूम था कि वो जरूर एक्टिंग कर रही होगी। क्योंकि वो पक्की खेली खाई राँड थी। इसका सबूत ज़रा ही देर में मिल गया, जब वो सिसकारी लेते हुए मृदुल के लंड को जड़ तक पहुंचाने के लिये कहने लगी। मृदुल ने ज़ारेदार धक्का मार कर अपना लंड उसकी चूत की जड़ तक पहुँचा दिया था। इधर मेरी चूत में भी पापा के लंड के ज़ोर्दार धक्के लग रहे थे।

कुछ देर बार मृदुल ने कहा, “अब हम लोग पार्टनर बदल लें तो कैसा रहेगा?” वैसे तो मुझे मज़ा आ रहा था मगर फिर भी तैयार हो गयी। पापा ने मेरी चूत से लंड निकाल लिया। मैं मृदुल के पास चली गयी। उसने शाज़िया की चूत से लंड निकाल कर मुझे घोड़ी बनाकर मेरे पीछे से चूत में लंड पेल दिया। एक झटके में आधा लंड मेरी चूत में समा गया। इस आसन में लंड चूत में जाने से मुझे थोड़ी परेशानी हुई मगर मैं झेल गयी। उधर मैंने देखा कि पापा ने शाज़िया की चूत में लंड घुसाया और फिर तेज़ी से धक्के मारने लगे। साथ ही उसकी चूचियों को भी मसलने लगे। कुछ ही देर बाद हमने फिर पार्टनर बदल लिये। अब मेरी चूत में फिर से पापा का लंड था। उधर मैंने देखा कि शाज़िया अब मृदुल की गोद में बैठ कर उछल रही थी, और नीचे से मृदुल का मोटा लंड उसकी चूत के अंदर बाहर हो रहा था। वो सिसकारी लेकर उसकी गोद में एक प्रकार से झूला झूल रही थी। मैंने पापा की ओर इशारा किया तो उन्होंनें भी हामी भर दी। मैं उनकी कमर से लिपट गयी। दोनों टाँगें मैंने उनकी कमर से लपेट दी थीं और उनके गले में बाँहें डाले मैं झूला झूलते हुए चुदवा रही थी। बहुत मस्ती भरी चुदाई थी। कुछ देर बाद लंड के धक्के खाते खाते मैं झड़ने लगी। मेरी चूत में सँकुचन होने लगा जिससे पापा भी झड़ने लगे। उनका वीर्य रस मेरी चूत के कोने कोने में ठंडक दे रहा था, बहुत आनंद आ रहा था। उसके बाद उन्होंनें मेरी चूत से लंड बाहर निकाल लिया।

उधर वो दोनों भी झड़-झड़ा कर अलग हो चुके थे। मस्ती करते-करते ही मैंने फ़ैसला कर लिया था कि इस बार गाँड में लंड डालवायेंगे। जब मैंने पापा और मृदुल को अपनी मंशा के बारे में बताया तो वो दोनों राज़ी हो गये। शाज़िया तो पहले से ही राज़ी थी शायाद। हम सबने तेल का इन्तज़ाम किया। तेल लगा कर गाँड मरवाने का यह आइडिया शाज़िया का था। शायाद वो पहले भी इस तरीके से गाँड मरवा चुकी थी। तेल आ जाने के बाद मैंने मृदुल के लंड को पहले मुँह में लेकर चूस कर खड़ा किया और उसके बाद उसके खड़े लंड पर तेल चुपड़ दिया और मालिश करने लगी। उसके लंड की मालिश करके मैंने उसके लंड को एकदम चिकना बना दिया था। उधर शाज़िया पापा के लंड को तेल से तर करने में लगी हुई थी। मृदुल के लंड को पकड़ कर मैंने कहा, “इस बार तेल लगा हुआ है, पूरा मज़ा देना मुझे।”

“फ़िक्र मत करो मेरी रंजना जान।” वो मुसकरा कर बोला और वह मेरी गाँड के सुराख पर लंड रगड़ता रहा। उसके बाद एक ही धक्के में अपना आधा लंड मेरी गाँड में डाल दिया। मेरे मुँह से न चाहते हुए भी सिसकारी निकलने लगी। जितनी आसानी से उसका लंड अपनी चूत में मैं डलवा लेती थी, उतनी आसानी से गाँड में नहीं। खैर जैसे ही उसने दूसरा धक्का मार कर लंड को और अंदर करना चाहा, मैं अपने पर काबू नहीं रख पायी और आगे की ओर गिरी ओर वो भी मेरे साथ मेरे बदन से लिपटा मेरे ऊपर गिर पड़ा। एकाएक वो नीचे की ओर हो गया और मैं उसके ऊपर, दबाव से उसका सारा लंड मेरी गाँड में समा गया। मैं मारे दर्द के चीखने लगी। “हाय फ़ाड़ दी मेरी। आह गाँड। कोईई बचा लो म...मुझे उफ़्फ़ ऊह। पापा देखो न तुम्हारा दामाद तेरी बेटी की गाँड फाड़ रहा है। हाय बचाओओ...” मैं उससे छूटने के लिये हाथ पैर माराने लगी तो उसने मुझे खींच कर अपने से लिपटा लिया और तेज़ी से उछल-उछल कर गाँड में घुसे पड़े लंड को हरकत देन शुरु कर दिया। मेरी तो जान जा रही थी। ऐसा लग रहा था कि आज मेरी गाँड जरूर फ़ट जायेगी। मैं बहुत मिन्नत करने लगी तो उसने मुझे बराबर लिटा दिया और तेज़ी से मेरी गाँड मारने लगा। बगल में होने से वैसे तो मुझे उतना दर्द नहीं हो रहा था मगर उसका मोटा लंड तेज़ी से गाँड के अंदर बाहर होने में मुझे परेशानी होने लगी।

मैं शाज़िया की ओर नहीं देख पायी कि वो कैसे गाँड मराई का मज़ा ले रही है, क्योंकि मुझे खुद के दर्द से फ़ुरसत नहीं थी। मृदुल काफ़ी देर से धक्के मार रहा था मगर वो झड़ने का नाम ही नहीं ले रहा था। तभी मैंने पाया कि शाज़िया ज़ोर ज़ोर से उछल रही थी और पापा को बार बार मुक्त करने की लिये कह रही थी। इस तरह सुबह तक हमने कुल मिलाकर चार बार चुदाई का आनंद लिया।

॥॥।समाप्त॥॥


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रद्दी वाला - by fasterboy - 09-04-2020, 01:45 PM
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