09-04-2020, 01:55 PM
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पापा के यूँ जानवरों की तरह पेश आने से रंजना की दर्द से जान तो निकलने को हो ही रही थी मगर एक लाभ उसे जरूर दिखायी दिया, यानि लंड अंदर तक उसकी चूत में घुस गया था। वो तो चुदवाने से पहले यही चाहती थी कि कब लंड पूरा घुसे और वो मम्मी की तरह मज़ा लूटे। मगर मज़ा अभी उसे नाम मात्र भी महसूस नहीं हो रहा था।
सहसा ही सुदर्शन कुछ देर के लिये शांत हो कर धक्के मारना रोक उसके उपर लेट गया और उसे जोरों से अपनी बाँहों में भींच कर और तड़ातड़ उसके मुँह पर चुम्मी काट काट कर मुँह से भाप सी छोड़ता हुआ बोला, “आह मज़ा आ गया आज, एक दम कुँवारी चूत है तुम्हारी। अपने पापा को तुमने इतना अच्छा तोहफ़ा दिया है। रंजना मैं आज से तुम्हारा हो गया।” तने हुए मम्मों को भी बड़े प्यार से वो सहलाता जा रहा था। वैसे अभी भी रंजना को चूत में बहुत दर्द होता हुआ जान पड़ रहा था मगर पापा के यूँ हल्के पड़ने से दर्द की मात्रा में कुछ मामूली सा फ़र्क तो पड़ ही रहा था और जैसे ही पापा की चुम्मी काटने, चूचियाँ मसलने और उन्हे सहलाने की क्रिया तेज़ होती गयी वैसे ही रंजना आनंद के सागर में उतरती हुई महसूस करने लगी। अब आहिस्ता आहिस्ता वो दर्द को भूल कर चुम्मी और चूची मसलायी की क्रियाओं में जबर्दस्त आनंद लूटना प्रारम्भ कर चुकी थी। सारा दर्द उसे उड़न छू होता हुआ लगने लगा था। सुदर्शन ने जब उसके चेहरे पर मस्ती के चिन्ह देखे तो वो फिर धीरे-धीरे चूत में लंड घुसेड़ता हुआ हल्के-हल्के घस्से मारने पर उतर आया। अब वो रंजना के दर्द पर ध्यान रखते हुए बड़े ही आराम से उसे चोदने में लग गया। उसके कुँवारे मम्मो के तो जैसे वो पीछे ही पड़ गया था। बड़ी बेदर्दी से उन्हे चाट-चाट कर कभी वो उन पर चुम्मी काटता तो कभी चूची का अंगूर जैसा निपल वो होंठों में ले कर चूसने लगता। चूची चूसते-चूसते जब वो हाँफ़ने लगता तो उन्हे दोनों हाथों में भर कर बड़ी बेदर्दी से मसलने लगता था। निश्चय ही चूचियों के चूसने मसलने की हरकतों से रंजना को ज्यादा ही आनंद प्राप्त हो रहा था। उस बेचारी ने तो कभी सोचा भी न था कि इन दो मम्मों में आनंद का इतना बड़ा सागर छिपा होगा। इस प्रथम चुदाई में जबकि उसे ज्यादा ही कष्ट हो रहा था और वो बड़ी मुश्किल से अपने दर्द को झेल रही थी मगर फिर भी इस कष्ट के बावजूद एक ऐसा आनंद और मस्ती उसके अंदर फ़ूट रही थी कि वो अपने प्यारे पापा को पूरा का पूरा अपने अंदर समेट लेने की कोशिश करने लगी।
क्योंकि पहली चुदाई में कष्ट होता ही है इसलिये इतनी मस्त हो कर भी रंजना अपनी गाँड़ और कमर को तो चलाने में अस्मर्थ थी मगर फिर भी इस चुदाई को ज्यादा से ज्यादा सुखदायक और आनन्ददायक बनाने के लिये अपनी ओर से वो पूरी तरह प्रयत्नशील थी। रंजना ने पापा की कमर को ठीक इस तरह कस कर पकड़ा हुआ था जैसे उस दिन ज्वाला देवी ने चुदते समय बिरजु की कमर को पकड़ रखा था। अपनी तरफ़ से चूत पर कड़े धक्के मरवाने में भी वो पापा को पूरी सहायता किये जा रही थी। इसी कारण पल प्रतिपल धक्के और ज्यादा शक्तिशाली हो उठे थे और सुदर्शन जोर जोर से हाँफ़ते हुए पतली कमर को पकड़ कर जानलेवा धक्के मारता हुआ चूत की दुर्गति करने पर तुल उठा था।
उसके हर धक्के पर रंजना कराह कर ज़ोर से सिसक पड़ती थी और दर्द से बचने के लिये वो अपनी गाँड़ को कुछ उपर खिसकाये जा रही थी। यहाँ तक कि उसका सिर पलंग के सिरहाने से टकराने लगा, मगर इस पर भी वो दर्द से अपना बचाव न कर सकी और अपनी चूत में धक्कों का धमाका गूँजता हुआ महसूस करती रही। हर धक्के के साथ एक नयी मस्ती में रंजना बेहाल हो जाती थी। कुछ समय बाद ही उसकी हालत ऐसी हो गयी कि अपने दर्द को भुला डाला और प्रत्येक दमदार धक्के के साथ ही उसके मुँह से बड़ी अजीब से दबी हुई अस्पष्ट किलकारियाँ खुद-ब-खुद निकलने लगीं।
“ओह पापा अब मजा आ रहा है। मैने आपको कुँवारी चूत का तोहफ़ा दिया तो आप भी तो मुझे ऐसा मजा देकर तोहफ़ा दे रहे हैं। अब देखना मम्मी से इसमें भी कैसा कॉंपीटिशन करती हूँ। ओह पापा बताइये मम्मी की लेने में ज्यादा मजा है या मेरी लेने में?” सुदर्शन रंजना की मस्ती को और ज्यादा बढ़ाने की कोशिश में लग गया। वैसे इस समय की स्तिथी से वो काफ़ी परिचित होता जा रहा था। रंजना की मस्ती की ओट लेने के इरादे से वो चोदते चोदते उससे पूछने लगा, “कहो मेरी जान.. अब क्या हाल है? कैसे लग रहे हैं धक्के.. पहली बार तो दर्द होता ही है। पर मैं तुम्हारे दर्द से पिघल कर तुम्हें इस मजे से वँचित तो नहीं रख सकता था न मेरी जान, मेरी रानी, मेरी प्यारी।” उसके होंठ और गालों को बुरी तरह चूसते हुए, उसे जोरों से भींच कर उपर लेटे लेटे ज़ोरदार धक्के मारता हुआ वो बोल रहा था, बेचारी रंजना भी उसे मस्ती में भींच कर बोझिल स्वर में बोली, “बड़ा मज़ा आ रहा है मेरे प्यारे सा.... पापा, मगर दर्द भी बहुत ज्यादा हो रहा है..” फ़ौरन ही सुदर्शन ने लंड रोक कर कहा, “तो फिर धक्के धीरे धीरे लगाऊँ। तुम्हे तकलीफ़ में मैं नहीं देख सकता। तुम तो बोलते-बोलते रुक जाती हो पर देखो मैं बोलता हूँ मेरी सजनी, मेरी लुगाई।” ये बात वैसे सुदर्शन ने ऊपरी मन से ही कही थी। रंजना भी जानती थी कि वो मज़ाक के मूड में है और तेज़ धक्के मारने से बाज़ नहीं आयेगा, परन्तु फिर भी कहीं वो चूत से लंड न निकाल ले इस डर से वो चीख पड़ी, “नहीं.. नहीं।! ऐसा मत करना ! चाहे मेरी जान ही क्यों न चली जाये, मगर आप धक्कों की रफ़्तार कम नहीं होने देना.. इतना दर्द सह कर तो इसे अपने भीतर लिया है। आहह मारो धक्का आप मेरे दर्द की परवाह मत करो। आप तो अपने मन की करते जाओ। जितनी ज़ोर से भी धक्का लगाना चाहो लगा लो अब तो जब अपनी लुगाई बना ही लिया है तो मत रुको मेरे प्यारे सैंया.. मैं.. इस समय सब कुछ बर्दाश्त कर लूँगी.. अहह आई रिइइ.. पहले तो मेरा इम्तिहान था और अब आपका इम्तिहान है। यह नई लुगाई पुरानी लुगाई को भुला देगी।”
मज़बूरन अपनी गाँड़ को रंजना उछालने पर उतर आयी थी। कुछ तो धक्के पहले से ही जबर्दस्त व ताकतवर उसकी चूत पर पड़ रहे थे और उसके यूँ मस्ती में बड़बड़ाने, गाँड़ उछालने को देख कर तो सुदर्शन ने और भी ज्यादा जोरों के साथ चूत पर हमला बोल दिया। हर धक्का चूत की धज्जियाँ उड़ाये जा रहा था। रंजना धीरे-धीरे कराहती हुई दर्द को झेलते हुए चुदाई के इस महान सुख के लिये सब कुछ सहन कर रही थी। और मस्ती में हल्की आवाज़ में चिल्ला भी रही थी, “आहह मैं मरीइई। पापा कहीं आपने मेरी फाड़ के तो नहीं रख दी न? ज़रा धीरे.. हाय! वाहह! अब ज़रा जोर से.. लगा लो । और लो.. वाहह प्यारे सच बड़ा मज़ा आ रहा है.. आह जोर से मारे जाओ, कर दो कबाड़ा मेरी चूत का।” इस तरह के शब्द और आवाज़ें न चाहते हुए भी रंजना के मुँह से निकल रहीं थीं। वो पागल जैसी हो गयी थी इस समय। वो दोनों ही एक दूसरे को बुरी तरह नोचने खासोटने लगे थे। सारे दर्द को भूल कर अत्यन्त घमासान धक्के चूत पर लगवाने के लिये हर तरह से रंजना कोशिश में लगी हुई थी। दोनों झड़ने के करीब पहुँच कर बड़बड़ाने लगे।
“आह मैं उड़ीई जा रही हूँ राज्जा ये मुझे क्या हो रहा है... मेरी रानी ले और ले फ़ाड़ दूँगा हाय क्या चूत है तेरी आहह ओह” और इस प्रकार द्रुतगति से होती हुई ये चुदाई दोनों के झड़ने पर जा कर समाप्त हुई। चुदाई का पूर्ण मज़ा लूटने के पश्चात दोनों बिस्तर पर पड़ कर हाँफ़ने लगे। थोड़ी देर सुस्ताने के बाद रंजना ने बलिहारी नज़रो से अपने पापा को देखा और तुनतुनाते हुए बोली, “आपने तो तो मेरी जान ही निकाल दी थी, जानते हो कितना दर्द हो रहा था, मगर पापा आपने तो जैसे मुझे मार डालने की कसम ही खा रखी थी।” इतना कह कर जैसे ही रंजना ने अपनी चूत की तरफ़ देखा तो उसकी गाँड़ फ़ट गयी, खून ही खून पूरी चूत के चारों तरफ़ फ़ैला हुआ था, खून देख कर वो रूँवासी हो गयी। चूत फ़ूल कर कुप्पा हो गयी थी। रुँवासे स्वर में बोली, “पापा आपसे कट्टी। अब कभी आपके पास नहीं आऊँगी।” जैसे ही रंजना जाने लगी सुदर्शन ने उसका हाथ पकड़ के अपने पास बिस्तर पर बिठा लिया और समझाया कि उसके पापा ने उसकी सील तोड़ी है इसलिये खून आया है। फिर सुदर्शन ने बड़े प्यार से नीट विलायती शराब से अपनी बेटी की चूत साफ़ की। इसके बाद शराबी अय्याश पापा ने बेटी की चूत की प्याली में कुछ पेग बनाये और शराब और शबाब दोनों का लुफ़्त लिया। अब रंजना पापा से पूरी खुल चुकी थी। उसे अपने पापा को बेटी-चोद गान्डु जैसे नामों से सम्बोधन करने में भी कोई हिचक नहीं होती थी।
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अब आगे की कहानी आप रंजना की जुबान में सुनें।
पापा के यूँ जानवरों की तरह पेश आने से रंजना की दर्द से जान तो निकलने को हो ही रही थी मगर एक लाभ उसे जरूर दिखायी दिया, यानि लंड अंदर तक उसकी चूत में घुस गया था। वो तो चुदवाने से पहले यही चाहती थी कि कब लंड पूरा घुसे और वो मम्मी की तरह मज़ा लूटे। मगर मज़ा अभी उसे नाम मात्र भी महसूस नहीं हो रहा था।
सहसा ही सुदर्शन कुछ देर के लिये शांत हो कर धक्के मारना रोक उसके उपर लेट गया और उसे जोरों से अपनी बाँहों में भींच कर और तड़ातड़ उसके मुँह पर चुम्मी काट काट कर मुँह से भाप सी छोड़ता हुआ बोला, “आह मज़ा आ गया आज, एक दम कुँवारी चूत है तुम्हारी। अपने पापा को तुमने इतना अच्छा तोहफ़ा दिया है। रंजना मैं आज से तुम्हारा हो गया।” तने हुए मम्मों को भी बड़े प्यार से वो सहलाता जा रहा था। वैसे अभी भी रंजना को चूत में बहुत दर्द होता हुआ जान पड़ रहा था मगर पापा के यूँ हल्के पड़ने से दर्द की मात्रा में कुछ मामूली सा फ़र्क तो पड़ ही रहा था और जैसे ही पापा की चुम्मी काटने, चूचियाँ मसलने और उन्हे सहलाने की क्रिया तेज़ होती गयी वैसे ही रंजना आनंद के सागर में उतरती हुई महसूस करने लगी। अब आहिस्ता आहिस्ता वो दर्द को भूल कर चुम्मी और चूची मसलायी की क्रियाओं में जबर्दस्त आनंद लूटना प्रारम्भ कर चुकी थी। सारा दर्द उसे उड़न छू होता हुआ लगने लगा था। सुदर्शन ने जब उसके चेहरे पर मस्ती के चिन्ह देखे तो वो फिर धीरे-धीरे चूत में लंड घुसेड़ता हुआ हल्के-हल्के घस्से मारने पर उतर आया। अब वो रंजना के दर्द पर ध्यान रखते हुए बड़े ही आराम से उसे चोदने में लग गया। उसके कुँवारे मम्मो के तो जैसे वो पीछे ही पड़ गया था। बड़ी बेदर्दी से उन्हे चाट-चाट कर कभी वो उन पर चुम्मी काटता तो कभी चूची का अंगूर जैसा निपल वो होंठों में ले कर चूसने लगता। चूची चूसते-चूसते जब वो हाँफ़ने लगता तो उन्हे दोनों हाथों में भर कर बड़ी बेदर्दी से मसलने लगता था। निश्चय ही चूचियों के चूसने मसलने की हरकतों से रंजना को ज्यादा ही आनंद प्राप्त हो रहा था। उस बेचारी ने तो कभी सोचा भी न था कि इन दो मम्मों में आनंद का इतना बड़ा सागर छिपा होगा। इस प्रथम चुदाई में जबकि उसे ज्यादा ही कष्ट हो रहा था और वो बड़ी मुश्किल से अपने दर्द को झेल रही थी मगर फिर भी इस कष्ट के बावजूद एक ऐसा आनंद और मस्ती उसके अंदर फ़ूट रही थी कि वो अपने प्यारे पापा को पूरा का पूरा अपने अंदर समेट लेने की कोशिश करने लगी।
क्योंकि पहली चुदाई में कष्ट होता ही है इसलिये इतनी मस्त हो कर भी रंजना अपनी गाँड़ और कमर को तो चलाने में अस्मर्थ थी मगर फिर भी इस चुदाई को ज्यादा से ज्यादा सुखदायक और आनन्ददायक बनाने के लिये अपनी ओर से वो पूरी तरह प्रयत्नशील थी। रंजना ने पापा की कमर को ठीक इस तरह कस कर पकड़ा हुआ था जैसे उस दिन ज्वाला देवी ने चुदते समय बिरजु की कमर को पकड़ रखा था। अपनी तरफ़ से चूत पर कड़े धक्के मरवाने में भी वो पापा को पूरी सहायता किये जा रही थी। इसी कारण पल प्रतिपल धक्के और ज्यादा शक्तिशाली हो उठे थे और सुदर्शन जोर जोर से हाँफ़ते हुए पतली कमर को पकड़ कर जानलेवा धक्के मारता हुआ चूत की दुर्गति करने पर तुल उठा था।
उसके हर धक्के पर रंजना कराह कर ज़ोर से सिसक पड़ती थी और दर्द से बचने के लिये वो अपनी गाँड़ को कुछ उपर खिसकाये जा रही थी। यहाँ तक कि उसका सिर पलंग के सिरहाने से टकराने लगा, मगर इस पर भी वो दर्द से अपना बचाव न कर सकी और अपनी चूत में धक्कों का धमाका गूँजता हुआ महसूस करती रही। हर धक्के के साथ एक नयी मस्ती में रंजना बेहाल हो जाती थी। कुछ समय बाद ही उसकी हालत ऐसी हो गयी कि अपने दर्द को भुला डाला और प्रत्येक दमदार धक्के के साथ ही उसके मुँह से बड़ी अजीब से दबी हुई अस्पष्ट किलकारियाँ खुद-ब-खुद निकलने लगीं।
“ओह पापा अब मजा आ रहा है। मैने आपको कुँवारी चूत का तोहफ़ा दिया तो आप भी तो मुझे ऐसा मजा देकर तोहफ़ा दे रहे हैं। अब देखना मम्मी से इसमें भी कैसा कॉंपीटिशन करती हूँ। ओह पापा बताइये मम्मी की लेने में ज्यादा मजा है या मेरी लेने में?” सुदर्शन रंजना की मस्ती को और ज्यादा बढ़ाने की कोशिश में लग गया। वैसे इस समय की स्तिथी से वो काफ़ी परिचित होता जा रहा था। रंजना की मस्ती की ओट लेने के इरादे से वो चोदते चोदते उससे पूछने लगा, “कहो मेरी जान.. अब क्या हाल है? कैसे लग रहे हैं धक्के.. पहली बार तो दर्द होता ही है। पर मैं तुम्हारे दर्द से पिघल कर तुम्हें इस मजे से वँचित तो नहीं रख सकता था न मेरी जान, मेरी रानी, मेरी प्यारी।” उसके होंठ और गालों को बुरी तरह चूसते हुए, उसे जोरों से भींच कर उपर लेटे लेटे ज़ोरदार धक्के मारता हुआ वो बोल रहा था, बेचारी रंजना भी उसे मस्ती में भींच कर बोझिल स्वर में बोली, “बड़ा मज़ा आ रहा है मेरे प्यारे सा.... पापा, मगर दर्द भी बहुत ज्यादा हो रहा है..” फ़ौरन ही सुदर्शन ने लंड रोक कर कहा, “तो फिर धक्के धीरे धीरे लगाऊँ। तुम्हे तकलीफ़ में मैं नहीं देख सकता। तुम तो बोलते-बोलते रुक जाती हो पर देखो मैं बोलता हूँ मेरी सजनी, मेरी लुगाई।” ये बात वैसे सुदर्शन ने ऊपरी मन से ही कही थी। रंजना भी जानती थी कि वो मज़ाक के मूड में है और तेज़ धक्के मारने से बाज़ नहीं आयेगा, परन्तु फिर भी कहीं वो चूत से लंड न निकाल ले इस डर से वो चीख पड़ी, “नहीं.. नहीं।! ऐसा मत करना ! चाहे मेरी जान ही क्यों न चली जाये, मगर आप धक्कों की रफ़्तार कम नहीं होने देना.. इतना दर्द सह कर तो इसे अपने भीतर लिया है। आहह मारो धक्का आप मेरे दर्द की परवाह मत करो। आप तो अपने मन की करते जाओ। जितनी ज़ोर से भी धक्का लगाना चाहो लगा लो अब तो जब अपनी लुगाई बना ही लिया है तो मत रुको मेरे प्यारे सैंया.. मैं.. इस समय सब कुछ बर्दाश्त कर लूँगी.. अहह आई रिइइ.. पहले तो मेरा इम्तिहान था और अब आपका इम्तिहान है। यह नई लुगाई पुरानी लुगाई को भुला देगी।”
मज़बूरन अपनी गाँड़ को रंजना उछालने पर उतर आयी थी। कुछ तो धक्के पहले से ही जबर्दस्त व ताकतवर उसकी चूत पर पड़ रहे थे और उसके यूँ मस्ती में बड़बड़ाने, गाँड़ उछालने को देख कर तो सुदर्शन ने और भी ज्यादा जोरों के साथ चूत पर हमला बोल दिया। हर धक्का चूत की धज्जियाँ उड़ाये जा रहा था। रंजना धीरे-धीरे कराहती हुई दर्द को झेलते हुए चुदाई के इस महान सुख के लिये सब कुछ सहन कर रही थी। और मस्ती में हल्की आवाज़ में चिल्ला भी रही थी, “आहह मैं मरीइई। पापा कहीं आपने मेरी फाड़ के तो नहीं रख दी न? ज़रा धीरे.. हाय! वाहह! अब ज़रा जोर से.. लगा लो । और लो.. वाहह प्यारे सच बड़ा मज़ा आ रहा है.. आह जोर से मारे जाओ, कर दो कबाड़ा मेरी चूत का।” इस तरह के शब्द और आवाज़ें न चाहते हुए भी रंजना के मुँह से निकल रहीं थीं। वो पागल जैसी हो गयी थी इस समय। वो दोनों ही एक दूसरे को बुरी तरह नोचने खासोटने लगे थे। सारे दर्द को भूल कर अत्यन्त घमासान धक्के चूत पर लगवाने के लिये हर तरह से रंजना कोशिश में लगी हुई थी। दोनों झड़ने के करीब पहुँच कर बड़बड़ाने लगे।
“आह मैं उड़ीई जा रही हूँ राज्जा ये मुझे क्या हो रहा है... मेरी रानी ले और ले फ़ाड़ दूँगा हाय क्या चूत है तेरी आहह ओह” और इस प्रकार द्रुतगति से होती हुई ये चुदाई दोनों के झड़ने पर जा कर समाप्त हुई। चुदाई का पूर्ण मज़ा लूटने के पश्चात दोनों बिस्तर पर पड़ कर हाँफ़ने लगे। थोड़ी देर सुस्ताने के बाद रंजना ने बलिहारी नज़रो से अपने पापा को देखा और तुनतुनाते हुए बोली, “आपने तो तो मेरी जान ही निकाल दी थी, जानते हो कितना दर्द हो रहा था, मगर पापा आपने तो जैसे मुझे मार डालने की कसम ही खा रखी थी।” इतना कह कर जैसे ही रंजना ने अपनी चूत की तरफ़ देखा तो उसकी गाँड़ फ़ट गयी, खून ही खून पूरी चूत के चारों तरफ़ फ़ैला हुआ था, खून देख कर वो रूँवासी हो गयी। चूत फ़ूल कर कुप्पा हो गयी थी। रुँवासे स्वर में बोली, “पापा आपसे कट्टी। अब कभी आपके पास नहीं आऊँगी।” जैसे ही रंजना जाने लगी सुदर्शन ने उसका हाथ पकड़ के अपने पास बिस्तर पर बिठा लिया और समझाया कि उसके पापा ने उसकी सील तोड़ी है इसलिये खून आया है। फिर सुदर्शन ने बड़े प्यार से नीट विलायती शराब से अपनी बेटी की चूत साफ़ की। इसके बाद शराबी अय्याश पापा ने बेटी की चूत की प्याली में कुछ पेग बनाये और शराब और शबाब दोनों का लुफ़्त लिया। अब रंजना पापा से पूरी खुल चुकी थी। उसे अपने पापा को बेटी-चोद गान्डु जैसे नामों से सम्बोधन करने में भी कोई हिचक नहीं होती थी।
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अब आगे की कहानी आप रंजना की जुबान में सुनें।