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Misc. Erotica रद्दी वाला
#1
रद्दी वाला
रचयिता: काजल गुप्ता
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यह कहानी है सक्सेना परिवार की। इस परिवार के मुखिया, सुदर्शन सक्सेना, ४५ वर्ष के आकर्षक व्यक्तित्व के मालिक हैं। आज से २० साल पहले उनका विवाह ज्वाला से हुआ था। ज्वाला जैसा नाम वैसी ही थी। वह काम (सैक्स) की साक्षात दहकती ज्वाला थी। विवाह के समय ज्वाला २० वर्ष की थी। विवाह के १ साल बाद उसने एक लड़की को जन्म दिया। आज वह लड़की, रंजना १९ साल की है और अपनी मां की तरह ही आग का एक शोला बन चुकी है। ज्वाला देवी नहा रही हैं और रंजना सोफ़े पर बैठी पढ़ रही है और सुदर्शन जी अपने ऑफिस जा चुके हैं। तभी वातावरण की शांति भंग हुई। “कॉपी, किताब, अखबार वाली रद्दी..!!!!!!” ये आवाज़ जैसे ही ज्वाला देवी के कानों में पड़ी तो उसने बाथरूम से ही चिल्ला कर अपनी १९ वर्षीय जवान लड़की, रंजना से कहा, “बेटी रंजना! ज़रा रद्दी वाले को रोक, मैं नहा कर आती हूँ।”

“अच्छा मम्मी!” रंजना जवाब दे कर भागती हुई बाहर के दरवाजे पर आ कर चिल्लाई।

“अरे भाई रद्दी वाले! अखबार की रद्दी क्या भाव लोगे?”

“जी बीबी जी! ढाई रुपये किलो।” कबाड़ी लड़के बिरजु ने अपनी साईकल कोठी के कम्पाउन्ड मे ला कर खड़ी कर दी।

“ढाई तो कम हैं, सही लगाओ।” रंजना उससे भाव करते हुए बोली।

“आप जो कहेंगी, लगा दूँगा।” बिरजु होठों पर जीभ फ़िरा कर और मुसकुरा कर बोला।

इस दो-अर्थी डायलॉग को सुन कर तथा बिरजु के बात करने के लहजे को देख कर रंजना शरम से पानी पानी हो उठी, और नज़रें झुका कर बोली, “तुम ज़रा रुको, मम्मी आती है अभी।” बिरजु को बाहर ही खड़ा कर रंजना अंदर आ गयी और अपने कमरे में जा कर ज़ोर से बोली, “मम्मी मुझे कॉलेज के लिये देर हो रही है, मैं तैयार होती हूँ, रद्दी वाला बाहर खड़ा है।”

“बेटा! अभी ठहर तू, मैं नहा कर आती ही हूँ।” ज्वाला देवी ने फिर चिल्ला कर कहा। अपने कमरे में बैठी रंजना सोच रही थी की कितना बदमाश है ये रद्दी वाला, “लगाने” की बात कितनी बेशर्मी से कर रहा था पाजी! वैसे “लगाने” का अर्थ रंजना अच्छी तरह जानती थी, क्योंकि एक दिन उसने अपने डैड्डी को मम्मी से बेडरूम में ये कहते सुना था, “ज्वाला टाँग उठाओ, मैं अब लगाऊँगा।” और रंजना ने यह अजीब डायलॉग सुन कर उत्सुकता से मम्मी के बेडरूम में झांक कर जो कुछ उस दिन अंदर देखा था, उसी दिन से “लगाने” का अर्थ बहुत ही अच्छी तरह उसकी समझ में आ गया था। कई बार उसके मन में भी “लगवाने” की इच्छा पैदा हुई थी मगर बेचारी मुकद्दर की मारी खूबसुरत चूत की मालकिन रंजना को “लगाने वाला” अभी तक कोई नहीं मिल पाया था।

जल्दी से नहा धो कर ज्वाला देवी सिर्फ़ गाउन और ऊँची ऐड़ी की चप्पल पहन कर बाहर आयी, उसके बाल इस समय खुले हुए थे, नहाने के कारण गोरा रंग और भी ज्यादा दमक उठा था। यूँ लग रहा था मानो काली घटाओं में से चांद निकल आया है। एक ही बच्चा पैदा करने की वजह से ४० वर्ष की उम्र में भी ज्वाला देवी २५ साल की जवान लौन्डिया को भी मात कर सकती थी। बाहर आते ही वो बिरजु से बोली, “हाँ भाई! ठीक-ठीक बता, क्या भाव लेगा?”

“मेम साहब! ३ रुपये लगा दूँगा, इससे ऊपर मैं तो क्या कोई भी नहीं लेगा।” बिरजु गम्भीरता से बोला।

“अच्छा ! तू बरामदे में बैठ मैं लाती हूँ” ज्वाला देवी अंदर आ गयी, और रंजना से बोली, “रंजना बेटा! ज़रा थोड़े थोड़े अखबार ला कर बरमदे में रख।”

“अच्छा मम्मी लाती हूँ” रंजना ने कहा। रंजना ने अखबार ला कर बरामदे में रखने शुरु कर दिये थे, और ज्वाला देवी बाहर बिरजु के सामने ऊँची ऐड़ी की चप्पलों पे उकड़ू बैठ कर बोली, “चल भाई तौल” बिरजु ने अपना तराज़ु निकाल और एक एक किलो के बट्टे से उसने रद्दी तौलनी शुरु कर दी। एकाएक तौलते तौलते उसकी निगाह उकड़ु बैठी ज्वाला देवी की धुली धुलाई चूत पर पड़ी तो उसके हाथ कांप उठे। ज्वाला देवी के यूँ उकड़ु बैठने से टांगे तो सारी ढकी रहीं मगर अपने खुले फ़ाटक से वो बिल्कुल ही अनभिज्ञ थीं। उसे क्या पता था कि उसकी शानदार चूत के दर्शन ये रद्दी वाला तबियत से कर रहा था। उसका दिमाग तो बस तराज़ु की डन्डी व पलड़ों पर ही लगा हुआ था। अचानक वो बोली, “भाई सही तौल”

“लो मेम साहब” बिरजु हड़बड़ा कर बोला। और अब आलम ये था की एक-एक किलो में तीन तीन पाव तौल रहा था बिरजु। उसके चेहरे पर पसीना छलक आया था, हाथ और भी ज्यादा कंपकंपाते जा रहे थे, तथा आंखें फ़ैलती जा रही थीं उसकी। उसकी १८ वर्षीय जवानी चूत देख कर धधक उठी थी। मगर ज्वाला देवी अभी तक नहीं समझ पा रही थी कि बिरजु रद्दी कम और चूत ज्यादा तौल रहा है। और जैसे ही बिरजु के बराबर रंजना आ कर खड़ी हुई और उसे यूँ कांपते तराज़ु पर कम और सामने ज्यादा नज़रें गड़ाये हुए देखा तो उसकी नज़रें भी अपनी मम्मी की खुली चूत पर जा ठहरीं। ये दृष्य देख कर रंजना का बुरा हाल हो गया, वो खांसते हुए बोली, “मम्मी.. आप उठिये, मैं तुलवाती हूँ।”

“तू चुप कर! मैं ठीक तुलवा रही हूँ।”

“मम्मी! समझो न, ओफ़्फ़! आप उठिये तो सही।” और इस बार रंजना ने ज़िद्द करके ज्वाला देवी के कंधे पर चिकोटी काट कर कहा तो वो कुछ-कुछ चौंकी। रंजना की इस हरकत पर ज्वाला देवी ने सरसरी नज़र से बिरजु को देखा और फिर झुक कर जो उसने अपने नीचे को देखा तो वो हड़बड़ा कर रह गयी। फ़ौरन खड़ी हो कर गुस्से और शरम मे हकलाते हुए वो बोली, “देखो भाई! ज़रा जल्दी तौलो।” इस समय ज्वाला देवी की हालत देखने लायक थी, उसके होंठ थरथरा रहे थे, कनपट्टियां गुलाबी हो उठी थीं तथा टांगों में एक कंपकपी सी उठती उसे लग रही थी। बिरजु से नज़र मिलाना उसे अब दुभर जान पड़ रहा था। शरम से पानी-पानी हो गयी थी वो।

बेचारे बिरजु की हालत भी खराब हुई जा रही थी। उसका लंड हाफ़ पैंट में खड़ा हो कर उछालें मार रहा था, जिसे कनखियों से बार-बार ज्वाला देवी देखे जा रही थी। सारी रद्दी फ़टाफ़ट तुलवा कर वो रंजना की तरफ़ देख कर बोली, “तू अंदर जा, यहाँ खड़ी खड़ी क्या कर रही है?” मुँह में अंगुली दबा कर रंजना तो अंदर चली गयी और बिरजु हिसाब लगा कर ज्वाला देवी को पैसे देने लगा। हिसाब में १० रुपये फ़ालतू वह घबड़ाहट में दे गया था। और जैसे ही वो लंड जाँघों से दबाता हुआ रद्दी की पोटली बांधने लगा कि ज्वाला देवी उससे बोली, “क्यों भाई कुछ खाली बोतलें पड़ी हैं, ले लोगे क्या?”

“अभी तो मेरी साईकल पर जगह नहीं है मेम साहब, कल ले जाऊँगा।” बिरजु हकलाता हुआ बोला।

“तो सुन, कल ११ बजे के बाद ही आना।”

“जी आ जाऊँगा।” वो मुसकुरा कर बोला था इस बार। रद्दी की पोटली को साईकल के कैरीयर पर रख कर बिरजु वहां से चलता बना मगर उसकी आंखों के सामने अभी तक ज्वाला देवी का खुला फ़ाटक यानि की शानदार चूत घूम रही थी। बिरजु के जाते ही ज्वाला देवी रुपये ले कर अंदर आ गयी। ज्वाला देवी जैसे ही रंजना के कमरे में पहुंची तो बेटी की बात सुन कर वो और ज्यादा झेंप उठी थी। रंजना ने आंखे फ़ाड़ कर उससे कहा, “मम्मी! आपकी वो वाली जगह वो रद्दी वाला बड़ी बेशर्मी से देखे जा रहा था।”

“चल छोड़! हमारा क्या ले गया वो, तू अपना काम कर, गन्दी गन्दी बातें नहीं सोचा करते, जा कॉलेज जा तू।”

थोड़ी देर बाद रंजना कॉलेज चली गयी और ज्वाला देवी अपनी चूची को मसलती हुई फ़ोन की तरफ़ बढ़ी। अपने पति सुदर्शन सक्सेना का नम्बर डायल कर वो दूसरी तरफ़ से आने वाली आवाज़ का इंतज़ार करने लगी। अगले पल फ़ोन पर एक आवाज़ उभरी

“येस सुदर्शन हेयर”

“देखिये ! आप फ़ौरन चले आइये, बहुत जरूरी काम है मुझे”

“अरे ज्वाला ! तुम्हे ये अचानक मुझसे क्या काम आन पड़ा... अभी तो आ कर बैठा हूँ, ऑफिस में बहुत काम पड़े हैं, आखिर माजरा क्या है?”

“जी। बस आपसे बातें करने को बहुत मन कर आया है, रहा नहीं जा रहा, प्लीज़ आ जाओ ना।”

“सॉरी ज्वाला ! मैं शाम को ही आ पाऊँगा, जितनी बातें करनी हो शाम को कर लेना, ओके।”

अपने पति के व्यवहार से वो तिलमिला कर रह गयी। एक कमसिन नौजवान लौंडे के सामने अनभिज्ञता में ही सही; अपनी चूत प्रदर्शन से वो बेहद कामातूर हो उठी थी। चूत की ज्वाला में वो झुलसी जा रही थी इस समय। वो रसोई घर में जा कर एक बड़ा सा बैंगन उठा कर उसे निहारने लगी। उसके बाद सीधे बेडरूम में आ कर वो बिस्तर पर लेट गयी, गाउन ऊपर उठा कर उसने टांगों को चौड़ाया और चूत के मुँह पर बैंगन रख कर ज़ोर से उसे दबाया।

“हाइ.. उफ़्फ़.. मर गयी... अहह.. आह। ऊहह...” आधा बैंगन वो चूत में घुसा चुकी थी। मस्ती में अपने निचले होंठ को चबाते हुए उसने ज़ोर ज़ोर से बैंगन द्वारा अपनी चूत चोदनी शुरु कर ही डाली। ५ मिनट तक लगातार तेज़ी से वो उसे अपनी चूत में पेलती रही, झड़ते वक्त वो अनाप शनाप बकने लगी थी। “आहह। मज़ा। आ.. गया..हाय। रद्दी वाले.. तू ही चोद .. जाता .. तो .. तेरा .. क्या .. बिगड़ .. जाता .. उफ़। आह..ले.. आह.. क्या लंड था तेरा ... तुझे कल दूँगी .. अहह.. साले पति देव ... मत चोद मुझे ... आह.. मैं .. खुद काम चला लूँगी .. अहह!”

ज्वाला देवी इस समय चूत से पानी छोड़ती जा रही थी, अच्छी तरह झड़ कर उसने बैंगन फेंक दिया और चूत पोंछ कर गाउन नीचे कर लिया। मन ही मन वो बुदबुदा उठी थी, “साले पतिदेव, गैरों को चोदने का वक्त है तेरे पास, मगर मेरे को चोदने के लिये तेरे पास वक्त नहीं है, शादी के बाद एक लड़की पैदा करने के अलावा तूने किया ही क्या है, तेरी जगह अगर कोई और होता तो अब तक मुझे ६ बच्चों की मां बना चुका होता, मगर तू तो हफ़्ते में दो बार मुझे मुश्किल से चोदता है, खैर कोई बात नहीं, अब अपनी चूत की खुराक का इन्तज़ाम मुझे ही करना पड़ेगा।”
 
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रद्दी वाला - by fasterboy - 09-04-2020, 01:45 PM
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