09-04-2020, 11:28 AM
फिर माँ , रूम से बहार चली जाती है , मैं सोचती हु की, कितनी सारी बाते जो हम नहीं पूछ पाते, और माँ बाता नहीं पाती, कुछ देर से , कुछ परेशानी झेल कर कुछ ज़िंदगी सीखा देती है। ....
तभी , माँ की आवाज। ...... निहारिका ,औ निहारिका
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प्रिय सहेलिओं ,
निहारिका का प्यार भरा नमस्कार ,
अब आगे ,
फिर , मैं माँ के पास किचन मैं जाती हूँ. किचन मैं माँ, खाने की तैयारी कर रही थी, मेरे आते ही वो बोली, आ गई निहारिका , आजा. बता आज क्या बनाना है खाने मैं. मैं बोली कुछ भी जो पिताजी को पसंद हो वो बना लो
माँ- उनके पसंद का रोज़ ही बनता है, आज तू बता क्या खाना है.
मैं - माँ, क्या बोलू, आप जो चाहो बना लो.
एक सीधा सा सवाल, क्या खाना है, जिसका जवाब आज तक नहीं मिला , हँ लड़कियों से कभी पूछा ही नहीं जाता , बस जो भाई, या पिताजी को पसंद हो वो है , शादी के बाद पति की पसंद , या सास का हुकुम, फिर बच्चो की ज़िद , एक लड़की, लड़की से औरत और औरत से माँ व् बीबी बन जाती है पर उसे उसकी पसंद उसे कभी मालूम नहीं होती पर पुरे घर की पसंद और नापसंद का ध्यान रहता है वो भी जिंदगी भर.
मैं - सोचा की आज मौका मिला है , माँ भी पूछ रही है, कुछ तो बोलना है, या चुप रहु , पनीर है क्या , बस इतना ही बोल पायी उस दिन
माँ - नहीं है , पर बन जायेगा , तू रुक, हम्म, एक काम कर , तू बर्तन कर ले, इतने मैं कुछ करती हूँ.
मैं - अच्छा माँ, ठीक है.
बर्तन थे सिंक मैं , मैंने नल खोला और काम शुरू किया, साथ ही साथ सोचे जा रही थी, आज पनीर बनेगा, पर कैसे, पनीर तो है ही नहीं घर मैं, शायद माँ, पिताजी को बोल कर मंगवा लेंगी। इसी उधेड़बुन मैं, बर्तन साफ़ कर रही थी.
अचानक माँ बात याद आ गयी, उफ़ माँ ने कितनी आसानी से पीरियड्स और पैड्स के बारे मैं पूछ लिया और समझाया भी, कितनी बावली हूँ मैं भी, सही कहा माँ ने , एक तो हमेशा साथ होना ही चाहिए मुज़े जरुरत पड़े या किसी और को.
फिर , जैसे मैं बीते दिनों मैं जा पहुंची , जब पहेली बार दर्द हुआ था, पर खेलना - कूदना जरूरी था , मुझे याद है मैं पार्क मैं खेल रही थी, घर के सामने ही था, हंम उम्र के लड़कियों के साथ स्टापू खेल रही थी, पुराने खेल ये ही थे स्टापू, संतोलिया , छुपन - छुपाई , उस ज़माने मैं।
हम्म, मैं अपनी बारी का इंतज़ार कर रही थी, हल्का अँधेरा था, और माँ की आवाज़ का इंतज़ार, कि अभी घर बुला लेगी , पर अपनी चांस कौन छोड़े , सवाल ही नहीं, पर जिसका डर हुआ, आ गई माँ की आवाज़ , निहारिका , ओ निहारिका , आजा.
बस,मन मार के , घर आ गई,
तभी
माँ बोली- चल हाथ - मुँह धो ले, मैं जा रही थी, की माँ ने रोका , तुझे लगी है क्या , खेलते हुए,
मैं - नहीं माँ, , फिर यह खून के दाग......
वो माँ का चेहरा आज भी याद है , शंका, चिंता , डर, अंदेशा। ..........
वो भी मेरे बाथरूम मैं आयी, दिखा तो जरा.
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इंतज़ार मैं। ........
आपकी निहारिका
सहेलिओं , पाठिकाओं, पनिहारिनों, आओ कुछ अपनी दिल की बातें करें -
लेडीज - गर्ल्स टॉक - निहारिका