08-04-2020, 06:00 PM
अज़रा की गाँड का छेद रुखसाना की आँखों के सामने नुमाया हो गया जो अज़रा की चूत से निकले पानी से एक दम गीला हुआ था। सुनील ने रुखसाना की तरफ़ देखते हुए अपनी कमर को ऊपर की तरफ़ उछालना शुरू कर दिया। सुनील का आठ इंच का लंड अज़रा की गीली चूत के अंदर बाहर होना शुरू हो गया। सुनील बार-बार अज़रा की गाँड के छेद को फैला कर रुखसाना को दिखा रहा था। रुखसाना के पैर तो जैसे वहीं जम गये थे। वो कभी अज़रा की चूत में सुनील के लंड को अंदर-बाहर होता देखती तो कभी सुनील की आँखों में!
सुनील: "बोल साली... मज़ा आ रहा है ना?"
अज़रा: "हाँ सुनील मेरी जान! बहोत मज़ा आ रहा है.... आहहह दिल कर रहा है कि मैं सारा दिन तुझसे अपनी चूत ऐसे ही पिलवाती रहूँ... आहहहह सच में बहोत मज़ा आ रहा है...!"
सुनील अभी भी रुखसाना की आँखों में देख रहा था। फिर रुखसाना को अचानक से एहसास हुआ कि ये वो क्या कर रही है और वहाँ से हट कर नीचे आ गयी। उसकी सलवार में उसकी पैंटी अंदर से एक दम गीली हो चुकी थी। उसे ऐसा लग रहा था कि जिस्म का सारा खून और गरमी चूत की तरफ़ सिमटते जा रहे हों! वो बेड पर निढाल सी होकर गिर पड़ी और अपनी टाँगों के बीच तकिया दबा लिया और अपनी चूत को तकिये पर रगड़ने लगी पर चूत में सरसराहट और बढ़ती जा रहा थी। रुखसाना की खुली हुई आँखों के सामने अज़रा की चूत में अंदर-बाहर होता सुनील का आठ इंच लंबा और बेहद मोटा लंड अभी भी था। अपनी सलवार का नाड़ा ढीला करके उसका हाथ अंदर पैंटी में घुस गया। वो तब तक अपनी चूत को उंगलियों से चोदती रही जब तक कि उसकी चूत के अंदर से लावा नहीं उगल पढ़ा। रुखसाना का पूरा जिस्म थरथरा गया और उसकी कमर झटके खाने लगी। झड़ने के बाद रुखसाना एक दम निढाल सी हो गयी और करीब पंद्रह मिनट तक बेसुध लेटी रही। फिर वो उठ कर बाथरूम में गयी और अपने कपड़े उतारने शुरू किये। उसने अपनी सलवार कमीज़ उतार कर टाँग दी और फिर ब्रा भी उतार कर कपड़े धोने की बाल्टी में डाल दी और फिर जैसे ही उसने अपनी पैंटी को नीचे सरकाने की कोशिश की पर उसकी पैंटी नीचे से बेहद गीली थी और गीलेपन के वजह से वो चूत की फ़ाँकों पर चिपक सी गयी थी। रुखसाना ने फिर से अपनी पैंटी को नीचे सरकाया और फिर किसी तरह उसे उतार कर देखा। उसकी पैंटी उसकी चूत के लेसदार पानी से एक दम सनी हुई थी। उसने पैंटी को भी बाल्टी में डाल दिया और फिर नहाने लगी। नहाने से उसे बहुत सुकून मिला। नहाने के बाद उसने दूसरे कपड़े पहने और बाथरूम का दरवाज़ा खोला तो उसने देखा कि अज़रा बेड पर लेटी हुई थी और धीरे-धीरे अपनी चूत को सहला रही थी।
रुखसाना को बाथरूम से निकलते देख कर अज़रा ने अपनी चूत से हाथ हटा लिया। रुखसाना आइने के सामने अपने बाल संवारने लगी तो अज़रा ने उससे कहा, "रुखसाना मैं कल घर वापस जाने की सोच रही थी लेकिन अब सोच रही हूँ कि तुम्हारी कमर का दर्द ठीक होने तक कुछ दिन और रुक जाऊँ!" रुखसाना के दिल में तो आया कि अज़रा का मुँह नोच डाले। बदकार कुत्तिया साली पहले तो उसके शौहर को अपने बस में करके उसकी शादीशुदा ज़िंदगी नरक बना दी और ज़िंदगी में अब जो उसे थोड़ी सी इज़्ज़त और खुशी उसे सुनील से मिल रही थी तो अज़ारा सुनील को भी अपने चंगुल में फंसा रही थी। रुखसाना ने कुछ नहीं कहा। कमर में दर्द का नाटक जो उसने अज़रा को जल्दी वापस भेजने के लिये किया था अब अज़रा उसे ही यहाँ रुकने का सबब बना रही थी। अब उसे यहाँ पर तगड़ा जवान लंड जो मिल रहा था।
रात को फ़ारूक घर वापस आया तो वो बहुत खुश लग रहा था... शायद उसे छुट्टी मिल गयी थी। रात को फ़ारूक ही सुनील का खाना उसे ऊपर दे आया। जब फ़ारूक ने अज़रा को बताया कि उसे एक हफ़्ते की छुट्टी मिल गयी है तो अज़रा ने उसे यह कहकर अगले दिन जाने से मना कर दिया कि रुखसाना की तबियत अभी ठीक नहीं है। लेकिन शायद किस्मत अज़रा के साथ नहीं थी। दिल्ली से उसके शौहर का फ़ोन आ गया कि उनके बेटे की बोर्डिंग कॉलेज में तबियत खराब हो गयी है और वो जल्दी से जल्दी घर पहुँचे। अज़रा को बेदिल से अगले दिन फ़ारूक के साथ अपने घर जाना ही पड़ा लेकिन उस रात फिर अज़रा और फ़ारूक ने शराब के नशे में चूर होकर खूब चुदाई की। हसद की आग में जलती हुई रुखसाना कुछ देर तक चोर नज़रों से उनकी ऐयाशी देखते-देखते ही सो गयी।
अगली सुबह सुनील भी फ़ारूक और अज़रा के साथ ही स्टेशन पर चला गया था। रुखसाना को सुनील पे भी गुस्सा आ रहा था। उसने कभी सोचा नहीं था कि वो मासूम सा दिखाने वाला सुनील इस हद तक गिर सकता है कि अपने से दुगुनी उम्र से भी ज्यादा उम्र की औरत के साथ ऐसी गिरी हुई हर्कत कर सकता है। उसका सुनील से कोई ज़ाती या जिस्मानी रिश्ता भी नहीं था लेकिन रुखसाना को ऐसा महसूस हो रहा था जैसे कि अज़रा और सुनील ने मिल कर उसके साथ धोखा किया है। हालांकि सुनील से कोई जिस्मानी रिश्ता कायम करने का रुखासाना का कोई इरादा बिल्कुल था भी नहीं लेकिन उसे ऐसा क्यों लग रहा था जैसे अज़रा ने सुनील को उससे छीन लिया था। अज़रा तो थी ही बदकार-बेहया औरत लेकिन सुनील ने उसके साथ धोखा क्यों किया। रुखसाना को बिल्कुल वैसा महसूस हो रहा था जैसा पहली दफ़ा अपने शौहर फ़ारूक के अज़रा के साथ जिस्मानी रिश्तों के मालूम होने के वक़्त हुआ था बल्कि उससे भी ज्यादा बदहाली महसूस हो रही थी उसे।
शाम को जब सुनील के आने का वक़्त हुआ तो रुखसाना ने पहले से ही मेन-डोर को खुला छोड़ दिया था ताकि उसे सुनील की शक़्ल ना देखनी पड़े। वो अपने कमरे में आकर लेट गयी। थोड़ी देर बाद उसे बाहर के गेट के खुलने की आवाज़ आयी और फिर अंदर मेन-डोर बंद होने की। रुखसाना को अपने कमरे में लेटे हुए अंदाज़ा हो गया कि सुनील घर पर आ चुका है और थोड़ी देर बाद सुनील ने उसके कमरे के खुले दरवाजे पे दस्तक दी। जैसे ही दरवाजे पे दस्तक हुई तो रुखसाना उठ कर बैठ गयी और उसे अंदर आने को कहा। सुनील पास आकर कुर्सी पर बैठ गया और बोला, "आपका दर्द अब कैसा है..?"
रुखसाना ने थोड़ा रूखेपन से जवाब दिया, "अब पहले से बेहतर है!"
सुनील: "आप दवाई तो समय से ले रही हैं ना?"
रुखसाना: "हाँ ले रही हूँ!"
सुनील: "अच्छा मैं अभी फ्रेश होकर बाहर से खाना ले आता हूँ... आप प्लीज़ खाना बनाने का तकल्लुफ़ मत कीजियेगा... क्या खायेंगी आप...?"
सुनील के दिल में अपने लिये परवाह और फ़िक्र देख कर रुखसाना का गुस्सा कम हो गया और उसने थोड़ा नरमी से जवाब दिया, "कुछ भी ले आ सुनील!"
सुनील उठ कर बाहर जाने लगा तो न जाने रुखसाना के दिमाग में क्या आया और वो सुनील से पूछ बैठी, "तूने ऐसी हर्कत क्यों की सुनील?"
उसकी बात सुन कर सुनील फिर से कुर्सी पर बैठ गया और सिर को झुकाते हुए शर्मसार लहज़े में बोला, "मुझे माफ़ कर दीजिये भाभी... मुझसे बहुत बड़ी गल्ती हो गयी... ये सब अंजाने में हो गया!" उसने एक बार रुखसाना की आँखों में देखा और फिर से नज़रें झुका ली।
"अंजाने में गल्ती हो गयी...? तू तो पढ़ा लिखा है... समझदार है अच्छे घराने से है... तू उस बेहया-बदज़ात अज़रा की बातों में कैसे आ गया...?" सुनील ने एक बार फिर से रुखसाना की आँखों में देखा। इस दफ़ा रुखसाना की आँखों में शिकायत नहीं बल्कि सुनील के लिये फ़िक्रमंदी थी।
सुनील: "बोल साली... मज़ा आ रहा है ना?"
अज़रा: "हाँ सुनील मेरी जान! बहोत मज़ा आ रहा है.... आहहह दिल कर रहा है कि मैं सारा दिन तुझसे अपनी चूत ऐसे ही पिलवाती रहूँ... आहहहह सच में बहोत मज़ा आ रहा है...!"
सुनील अभी भी रुखसाना की आँखों में देख रहा था। फिर रुखसाना को अचानक से एहसास हुआ कि ये वो क्या कर रही है और वहाँ से हट कर नीचे आ गयी। उसकी सलवार में उसकी पैंटी अंदर से एक दम गीली हो चुकी थी। उसे ऐसा लग रहा था कि जिस्म का सारा खून और गरमी चूत की तरफ़ सिमटते जा रहे हों! वो बेड पर निढाल सी होकर गिर पड़ी और अपनी टाँगों के बीच तकिया दबा लिया और अपनी चूत को तकिये पर रगड़ने लगी पर चूत में सरसराहट और बढ़ती जा रहा थी। रुखसाना की खुली हुई आँखों के सामने अज़रा की चूत में अंदर-बाहर होता सुनील का आठ इंच लंबा और बेहद मोटा लंड अभी भी था। अपनी सलवार का नाड़ा ढीला करके उसका हाथ अंदर पैंटी में घुस गया। वो तब तक अपनी चूत को उंगलियों से चोदती रही जब तक कि उसकी चूत के अंदर से लावा नहीं उगल पढ़ा। रुखसाना का पूरा जिस्म थरथरा गया और उसकी कमर झटके खाने लगी। झड़ने के बाद रुखसाना एक दम निढाल सी हो गयी और करीब पंद्रह मिनट तक बेसुध लेटी रही। फिर वो उठ कर बाथरूम में गयी और अपने कपड़े उतारने शुरू किये। उसने अपनी सलवार कमीज़ उतार कर टाँग दी और फिर ब्रा भी उतार कर कपड़े धोने की बाल्टी में डाल दी और फिर जैसे ही उसने अपनी पैंटी को नीचे सरकाने की कोशिश की पर उसकी पैंटी नीचे से बेहद गीली थी और गीलेपन के वजह से वो चूत की फ़ाँकों पर चिपक सी गयी थी। रुखसाना ने फिर से अपनी पैंटी को नीचे सरकाया और फिर किसी तरह उसे उतार कर देखा। उसकी पैंटी उसकी चूत के लेसदार पानी से एक दम सनी हुई थी। उसने पैंटी को भी बाल्टी में डाल दिया और फिर नहाने लगी। नहाने से उसे बहुत सुकून मिला। नहाने के बाद उसने दूसरे कपड़े पहने और बाथरूम का दरवाज़ा खोला तो उसने देखा कि अज़रा बेड पर लेटी हुई थी और धीरे-धीरे अपनी चूत को सहला रही थी।
रुखसाना को बाथरूम से निकलते देख कर अज़रा ने अपनी चूत से हाथ हटा लिया। रुखसाना आइने के सामने अपने बाल संवारने लगी तो अज़रा ने उससे कहा, "रुखसाना मैं कल घर वापस जाने की सोच रही थी लेकिन अब सोच रही हूँ कि तुम्हारी कमर का दर्द ठीक होने तक कुछ दिन और रुक जाऊँ!" रुखसाना के दिल में तो आया कि अज़रा का मुँह नोच डाले। बदकार कुत्तिया साली पहले तो उसके शौहर को अपने बस में करके उसकी शादीशुदा ज़िंदगी नरक बना दी और ज़िंदगी में अब जो उसे थोड़ी सी इज़्ज़त और खुशी उसे सुनील से मिल रही थी तो अज़ारा सुनील को भी अपने चंगुल में फंसा रही थी। रुखसाना ने कुछ नहीं कहा। कमर में दर्द का नाटक जो उसने अज़रा को जल्दी वापस भेजने के लिये किया था अब अज़रा उसे ही यहाँ रुकने का सबब बना रही थी। अब उसे यहाँ पर तगड़ा जवान लंड जो मिल रहा था।
रात को फ़ारूक घर वापस आया तो वो बहुत खुश लग रहा था... शायद उसे छुट्टी मिल गयी थी। रात को फ़ारूक ही सुनील का खाना उसे ऊपर दे आया। जब फ़ारूक ने अज़रा को बताया कि उसे एक हफ़्ते की छुट्टी मिल गयी है तो अज़रा ने उसे यह कहकर अगले दिन जाने से मना कर दिया कि रुखसाना की तबियत अभी ठीक नहीं है। लेकिन शायद किस्मत अज़रा के साथ नहीं थी। दिल्ली से उसके शौहर का फ़ोन आ गया कि उनके बेटे की बोर्डिंग कॉलेज में तबियत खराब हो गयी है और वो जल्दी से जल्दी घर पहुँचे। अज़रा को बेदिल से अगले दिन फ़ारूक के साथ अपने घर जाना ही पड़ा लेकिन उस रात फिर अज़रा और फ़ारूक ने शराब के नशे में चूर होकर खूब चुदाई की। हसद की आग में जलती हुई रुखसाना कुछ देर तक चोर नज़रों से उनकी ऐयाशी देखते-देखते ही सो गयी।
अगली सुबह सुनील भी फ़ारूक और अज़रा के साथ ही स्टेशन पर चला गया था। रुखसाना को सुनील पे भी गुस्सा आ रहा था। उसने कभी सोचा नहीं था कि वो मासूम सा दिखाने वाला सुनील इस हद तक गिर सकता है कि अपने से दुगुनी उम्र से भी ज्यादा उम्र की औरत के साथ ऐसी गिरी हुई हर्कत कर सकता है। उसका सुनील से कोई ज़ाती या जिस्मानी रिश्ता भी नहीं था लेकिन रुखसाना को ऐसा महसूस हो रहा था जैसे कि अज़रा और सुनील ने मिल कर उसके साथ धोखा किया है। हालांकि सुनील से कोई जिस्मानी रिश्ता कायम करने का रुखासाना का कोई इरादा बिल्कुल था भी नहीं लेकिन उसे ऐसा क्यों लग रहा था जैसे अज़रा ने सुनील को उससे छीन लिया था। अज़रा तो थी ही बदकार-बेहया औरत लेकिन सुनील ने उसके साथ धोखा क्यों किया। रुखसाना को बिल्कुल वैसा महसूस हो रहा था जैसा पहली दफ़ा अपने शौहर फ़ारूक के अज़रा के साथ जिस्मानी रिश्तों के मालूम होने के वक़्त हुआ था बल्कि उससे भी ज्यादा बदहाली महसूस हो रही थी उसे।
शाम को जब सुनील के आने का वक़्त हुआ तो रुखसाना ने पहले से ही मेन-डोर को खुला छोड़ दिया था ताकि उसे सुनील की शक़्ल ना देखनी पड़े। वो अपने कमरे में आकर लेट गयी। थोड़ी देर बाद उसे बाहर के गेट के खुलने की आवाज़ आयी और फिर अंदर मेन-डोर बंद होने की। रुखसाना को अपने कमरे में लेटे हुए अंदाज़ा हो गया कि सुनील घर पर आ चुका है और थोड़ी देर बाद सुनील ने उसके कमरे के खुले दरवाजे पे दस्तक दी। जैसे ही दरवाजे पे दस्तक हुई तो रुखसाना उठ कर बैठ गयी और उसे अंदर आने को कहा। सुनील पास आकर कुर्सी पर बैठ गया और बोला, "आपका दर्द अब कैसा है..?"
रुखसाना ने थोड़ा रूखेपन से जवाब दिया, "अब पहले से बेहतर है!"
सुनील: "आप दवाई तो समय से ले रही हैं ना?"
रुखसाना: "हाँ ले रही हूँ!"
सुनील: "अच्छा मैं अभी फ्रेश होकर बाहर से खाना ले आता हूँ... आप प्लीज़ खाना बनाने का तकल्लुफ़ मत कीजियेगा... क्या खायेंगी आप...?"
सुनील के दिल में अपने लिये परवाह और फ़िक्र देख कर रुखसाना का गुस्सा कम हो गया और उसने थोड़ा नरमी से जवाब दिया, "कुछ भी ले आ सुनील!"
सुनील उठ कर बाहर जाने लगा तो न जाने रुखसाना के दिमाग में क्या आया और वो सुनील से पूछ बैठी, "तूने ऐसी हर्कत क्यों की सुनील?"
उसकी बात सुन कर सुनील फिर से कुर्सी पर बैठ गया और सिर को झुकाते हुए शर्मसार लहज़े में बोला, "मुझे माफ़ कर दीजिये भाभी... मुझसे बहुत बड़ी गल्ती हो गयी... ये सब अंजाने में हो गया!" उसने एक बार रुखसाना की आँखों में देखा और फिर से नज़रें झुका ली।
"अंजाने में गल्ती हो गयी...? तू तो पढ़ा लिखा है... समझदार है अच्छे घराने से है... तू उस बेहया-बदज़ात अज़रा की बातों में कैसे आ गया...?" सुनील ने एक बार फिर से रुखसाना की आँखों में देखा। इस दफ़ा रुखसाना की आँखों में शिकायत नहीं बल्कि सुनील के लिये फ़िक्रमंदी थी।