08-04-2020, 05:55 PM
रुखसाना ने गौर किया कि सानिया ने मरून रंग का सलवार कमीज़ पहना हुआ था। उसका गोरा रंग उस मरून जोड़े में और खिल रहा था और पैरों में सफ़ेद सैंडल बेहद सूट कर रहे थे। रुखसाना ने सोचा कि आज तो जरूर सुनील सानिया की खूबसूरती को देख कर घायल हो गया होगा। सानिया नाश्ता देकर वापस आयी तो उसके चेहरे पर बहुत ही प्यारी सी मुस्कान थी। फिर थोड़ी देर बाद सुनील भी नीचे आ गया। रुखसाना किचन में ही काम कर रही थी कि फ़ारूक किचन मैं आकर बोला, "रुखसाना! मैं शाम तक वापस आ जाऊँगा... और हाँ आज अज़रा भाभीजान आने वाली हैं... उनकी अच्छे से मेहमान नवाज़ी करना!"
ये कह कर सानिया और फ़ारूक चले गये। रूखसाना ने मन ही मन में सोचा कि "अच्छा तो इसलिये फ़ारूक सानिया को उसकी मामी के घर छोड़ने जा रहा था ताकि वो अपनी भाभी अज़रा के साथ खुल कर रंगरलियाँ मना सके।" सानिया समझदार हो चुकी थी और घर में उसकी मौजूदगी की वजह से फ़ारूक और अज़रा को एहतियात बरतनी पड़ती थी। रुखसाना की तो उन्हें कोई परवाह थी नहीं।
फ़ारूक के बड़े भाई उन लोगों के मुकाबले ज्यादा पैसे वाले थे। वो एक प्राइवेट कंपनी में ऊँचे ओहदे पर थे। उनका बड़ा लड़का इंजिनियरिंग कर रहा था और दो बच्चे बोर्डिंग कॉलेज में थे। उन्हें भी अक्सर दूसरे शहरों में दौरों पे जाना पड़ता था इसलिये अज़रा भाभी हर महीने दो-चार दिन के लिये फ़ारूक के साथ ऐयाशी करने आ ही जाती थी। कभी-कभार फ़ारूक को भी अपने पास बुला लेती थी। अज़रा वैसे तो फ़ारूक के बड़े भाई की बीवी थी पर उम्र में फ़ारूक से छोटी थी। अज़रा की उम्र करीब बयालीस साल थी लेकिन पैंतीस-छत्तीस से ज्यादा की नहीं लगती थी। रुखसाना की तरह खुदा ने उसे भी बेपनाह हुस्न से नवाज़ा था और अज़रा को तो रुपये-पैसों की भी कमी नहीं थी। फ़रूक को तो उसने अपने हुस्न का गुलाम बना रखा था जबकि रुखसाना हुस्न और खूबसूरती में अज़रा से बढ़कर ही थी।
अभी कुछ ही वक़्त गुजरा था कि डोर-बेल बजी। जब रुखसाना ने दरवाजा खोला तो बाहर उसकी सौतन अज़रा खड़ी थी। रुखसाना को देख कर उसने एक कमीनी मुस्कान के साथ सलाम कहा और अंदर चली आयी। रुखसाना ने दरवाजा बंद किया और ड्राइंग रूम में आकर अज़रा को सोफ़े पर बिठाया। "और सुनाइये अज़रा भाभी-जान कैसी है आप!" रुखसाना किचन से पानी लाकर अज़रा को देते हुए तकल्लुफ़ निभाते हुए पूछा।
अज़रा: "मैं ठीक हूँ... तू सुना तू कैसी है?"
रुखसाना: "मैं भी ठीक हूँ भाभी जान... कट रही है... अच्छा क्या लेंगी आप चाय या शर्बत?"
अज़रा: "तौबा रुखसाना! इतनी गरमी में चाय! तू एक काम कर शर्बत ही बना ले!"
रुखसाना किचन में गयी और शर्बत बना कर ले आयी और शर्बत अज़रा को देकर बोली, "भाभी आप बैठिये, मैं ऊपर से कपड़े उतार लाती हूँ...!" रुखसाना ऊपर छत पर गयी और कपड़े ले कर जब नीचे आ रही थी तो कुछ ही सीढ़ियाँ बची थी कि अचानक से उसका बैलेंस बिगड़ गया और वो सीढ़ियों से नीचे गिर गयी। गिरने की आवाज़ सुनते ही अज़रा दौड़ कर आयी और रुखसाना को यूँ नीचे गिरी देख कर उसने रुखसाना को जल्दी से सहारा देकर उठाया और रूम में ले जाकर बेड पर लिटा दिया। "हाय अल्लाह! ज्यादा चोट तो नहीं लगी रुखसाना! अगर सलाहियत नहीं है तो क्यों पहनती हो ऊँची हील वाली चप्पलें... मेरी नकल करना जरूरी है क्या!"
अज़रा का ताना सुनकर रुखसाना को गुस्सा तो बहोत आया लेकिन दर्द से कराहते हुए वो बोली, "आहहह हाय बहोत दर्द हो रहा है भाभी जान! आप जल्दी से डॉक्टर बुला लाइये!" ये बात सही थी कि रुखसाना की तरह अज़रा को भी आम तौर पे ज्यादातर ऊँची ऐड़ी वाले सैंडल पहनने का शौक लेकिन रुखसाना उसकी नकल या उससे कोई मुकाबला नहीं करती थी।
अज़रा फ़ौरन बाहर चली गयी! और गली के नुक्कड़ पर डॉक्टर के क्लीनिक था... वहाँ से डॉक्टर को बुला लायी। डॉक्टर ने चेक अप किया और कहा, "घबराने की बात नहीं है... कमर के नीचे हल्की सी मोच है... आप ये दर्द की दवाई लो और ये बाम दिन में तीन-चार दफ़ा लगा कर मालिश करो... आपकी चोट जल्दी ही ठीक हो जायेगी!"
डॉक्टर के जाने के बाद अज़रा ने रुखसाना को दवाई दी और बाम से मालिश भी की। शाम को फ़ारूक और सुनील घर वापस आये तो अज़रा ने डोर खोला। फ़ारूक बाहर से ही भड़क उठा। रुखसाना को बेडरूम में उसकी आवाज़ सुनायी दे रही थी, "भाभी जान! आपने क्यों तकलीफ़ की... वो रुखसाना कहाँ मर गयी... वो दरवाजा नहीं खोल सकती थी क्या?"
अज़रा: "अरे फ़ारूक मियाँ! इतना क्यों भड़क रहे हो... वो बेचारी तो सीढ़ियों से गिर गयी थी... चोट आयी है... उसे डॉक्टर ने आराम करने को कहा है!"
सुनील ऊपर जाने से पहले रुखसाना के कमरे में हालचाल पूछ कर गया। सुनील का अपने लिये इस तरह फ़िक्र ज़ाहिर करना रुखसाना को बहोत अच्छा लगा। रुखसाना ने सोचा कि एक उसका शौहर था जिसने कि उसका हालचाल भी पूछना जरूरी नहीं समझा। रात का खाना अज़रा ने तैयार किया और फ़ारूक सुनील को ऊपर खाना दे आया। फ़ारूक आज मटन लाया था जिसे अज़रा ने बनाया था।
उसके बाद फ़ारूक और अज़रा दोनों शराब पीने बैठ गये और अपनी रंगरलियों में मशगूल हो गये। थोड़ी देर बाद दोनों नशे की हालत में बेडरूम में आये जहाँ रुखसाना आँखें बंद किये लेटी थी और चूमाचाटी शुरू कर दी। रुखसाना बेड पर लेटी उनकी ये सब हर्कतें देख कर खून के आँसू पी रही थी। उन दोनों को लगा कि रुखसाना सो चुकी है जबकि असल में वो जाग रही थी। वैसे उन दोनों पे रुखसाना के जागने या ना जागने से कोई फर्क़ नहीं पड़ता था।
"फ़ारूक मियाँ! अब आप में वो बात नहीं रही!" अज़रा ने फ़ारूक का लंड को चूसते हुए शरारत भरे लहज़े में कहा।
फ़ारूक: "क्या हुआ जानेमन... किस बात की कमी है?"
अज़रा: "हम्म देखो ना... पहले तो ये मेरी फुद्दी देखते ही खड़ा हो जाता था और अब देखो दस मिनट हो गये इसके चुप्पे लगाते हुए... अभी तक सही से खड़ा नहीं हुआ है!"
फ़ारूक: "आहह तो जल्दी किसे है मेरी जान! थोड़ी देर और चूस ले फिर मैं तेरी चूत और गाँड दोनों का कीमा बनाता हूँ!"
"अरे फ़ारूक़ मियाँ अब रहने भी दो... खुदा के वास्ते चूत या गाँड मे से किसी एक को ही ठीक से चोद लो तो गनिमत है...!" अज़रा ने तंज़ किया और फिर उसका लंड चूसने लगी।
थोड़ी देर बाद अज़रा फ़ारूक के लंड पर सवार हो गयी और ऊपर नीचे होने लगी। उसकी मस्ती भरी कराहें कमरे में गुँज रही थी। रुखसाना के लिये ये कोई नयी बात नहीं थी लेकिन हर बार जब भी वो अज़रा को फ़ारूक़ के साथ इस तरह चुदाई के मज़े लेते देखती थी तो उसके सीने पे जैसे कट्टारें चल जाती थी। थोड़ी देर बाद उन दोनों के मुतमाइन होने के बाद रुखसना को अज़रा के बोलने की आवाज़ आयी, "फ़ारूक मैं कल घर वापस जा रही हूँ!"
फ़ारूक: "क्यों अब क्या हो गया..?"
अज़रा: "मैं यहाँ तुम्हारे घर का काम करने नहीं आयी... ये तुम्हारी बीवी जो अपनी कमर तुड़वा कर बेड पर पसर गयी है... मुझे इसकी चाकरी नहीं करनी... मैं घर जा रही हूँ कल!"
रुखसाना को बेहद खुशी महसूस हुई कि चलो सीढ़ियों से गिरने का कुछ तो फ़ायदा हुआ। वैसे भी उसे इतना दर्द नहीं हुआ था जितना की वो ज़ाहिर कर रही थी। उसे गिरने से कमर में चोट जरूर लगी थी लेकिन शाम तक दवाई और बाम से मालिश करने कि वजह से उसका दर्द बिल्कुल दूर हो चुका था लेकिन वो अज़रा को परेशान करने के लिये दर्द होने का नाटक ज़ारी रखे हुए थी।
फ़ारूक: "अज़रा मेरे जान... कल मत जाना...!"
अज़रा: "क्यों... मैंने कहा नहीं था तुम्हें कि तुम मेरे घर आ जाओ... तुम्हें तो पता है तुम्हारे भाई जान दिल्ली गये हैं... दस दिनों के लिये घर पर कोई नहीं है!"
फ़ारूक: "तो ठीक है ना कल तक रुक जओ... मैं कल स्टेशान पे बात करके छुट्टी ले लेता हूँ... फिर परसों साथ में चलेंगे!"
उसके बाद दोनों सो गये। रुखसाना भी करवटें बदलते-बदलते सो गयी। अगली सुबह जब उठी तो देखा अज़रा ने नाश्ता तैयार किया हुआ था और फ़ारूक डॉयनिंग टेबल पर बैठा नाश्ता कर रहा था। फ़ारूक ने अज़रा से कहा कि ऊपर सुनील को थोड़ी देर बाद नाश्ता दे आये। दर असल उस दिन सुनील ने छुट्टी ले रखी थी क्योंकि सुनील को कुछ जरूरी सामान खरीदना था। फ़ारूक के जाने के बाद अज़रा ने नाश्ता ट्रे में रखा और ऊपर चली गयी। थोड़ी देर बाद जब अज़रा नीचे आयी तो रुखसाना ने नोटिस किया कि उसके होंठों पर कमीनी मुस्कान थी। पता नहीं क्यों पर रुखसाना को अज़रा के नियत ठीक नहीं लग रही थी।
ये कह कर सानिया और फ़ारूक चले गये। रूखसाना ने मन ही मन में सोचा कि "अच्छा तो इसलिये फ़ारूक सानिया को उसकी मामी के घर छोड़ने जा रहा था ताकि वो अपनी भाभी अज़रा के साथ खुल कर रंगरलियाँ मना सके।" सानिया समझदार हो चुकी थी और घर में उसकी मौजूदगी की वजह से फ़ारूक और अज़रा को एहतियात बरतनी पड़ती थी। रुखसाना की तो उन्हें कोई परवाह थी नहीं।
फ़ारूक के बड़े भाई उन लोगों के मुकाबले ज्यादा पैसे वाले थे। वो एक प्राइवेट कंपनी में ऊँचे ओहदे पर थे। उनका बड़ा लड़का इंजिनियरिंग कर रहा था और दो बच्चे बोर्डिंग कॉलेज में थे। उन्हें भी अक्सर दूसरे शहरों में दौरों पे जाना पड़ता था इसलिये अज़रा भाभी हर महीने दो-चार दिन के लिये फ़ारूक के साथ ऐयाशी करने आ ही जाती थी। कभी-कभार फ़ारूक को भी अपने पास बुला लेती थी। अज़रा वैसे तो फ़ारूक के बड़े भाई की बीवी थी पर उम्र में फ़ारूक से छोटी थी। अज़रा की उम्र करीब बयालीस साल थी लेकिन पैंतीस-छत्तीस से ज्यादा की नहीं लगती थी। रुखसाना की तरह खुदा ने उसे भी बेपनाह हुस्न से नवाज़ा था और अज़रा को तो रुपये-पैसों की भी कमी नहीं थी। फ़रूक को तो उसने अपने हुस्न का गुलाम बना रखा था जबकि रुखसाना हुस्न और खूबसूरती में अज़रा से बढ़कर ही थी।
अभी कुछ ही वक़्त गुजरा था कि डोर-बेल बजी। जब रुखसाना ने दरवाजा खोला तो बाहर उसकी सौतन अज़रा खड़ी थी। रुखसाना को देख कर उसने एक कमीनी मुस्कान के साथ सलाम कहा और अंदर चली आयी। रुखसाना ने दरवाजा बंद किया और ड्राइंग रूम में आकर अज़रा को सोफ़े पर बिठाया। "और सुनाइये अज़रा भाभी-जान कैसी है आप!" रुखसाना किचन से पानी लाकर अज़रा को देते हुए तकल्लुफ़ निभाते हुए पूछा।
अज़रा: "मैं ठीक हूँ... तू सुना तू कैसी है?"
रुखसाना: "मैं भी ठीक हूँ भाभी जान... कट रही है... अच्छा क्या लेंगी आप चाय या शर्बत?"
अज़रा: "तौबा रुखसाना! इतनी गरमी में चाय! तू एक काम कर शर्बत ही बना ले!"
रुखसाना किचन में गयी और शर्बत बना कर ले आयी और शर्बत अज़रा को देकर बोली, "भाभी आप बैठिये, मैं ऊपर से कपड़े उतार लाती हूँ...!" रुखसाना ऊपर छत पर गयी और कपड़े ले कर जब नीचे आ रही थी तो कुछ ही सीढ़ियाँ बची थी कि अचानक से उसका बैलेंस बिगड़ गया और वो सीढ़ियों से नीचे गिर गयी। गिरने की आवाज़ सुनते ही अज़रा दौड़ कर आयी और रुखसाना को यूँ नीचे गिरी देख कर उसने रुखसाना को जल्दी से सहारा देकर उठाया और रूम में ले जाकर बेड पर लिटा दिया। "हाय अल्लाह! ज्यादा चोट तो नहीं लगी रुखसाना! अगर सलाहियत नहीं है तो क्यों पहनती हो ऊँची हील वाली चप्पलें... मेरी नकल करना जरूरी है क्या!"
अज़रा का ताना सुनकर रुखसाना को गुस्सा तो बहोत आया लेकिन दर्द से कराहते हुए वो बोली, "आहहह हाय बहोत दर्द हो रहा है भाभी जान! आप जल्दी से डॉक्टर बुला लाइये!" ये बात सही थी कि रुखसाना की तरह अज़रा को भी आम तौर पे ज्यादातर ऊँची ऐड़ी वाले सैंडल पहनने का शौक लेकिन रुखसाना उसकी नकल या उससे कोई मुकाबला नहीं करती थी।
अज़रा फ़ौरन बाहर चली गयी! और गली के नुक्कड़ पर डॉक्टर के क्लीनिक था... वहाँ से डॉक्टर को बुला लायी। डॉक्टर ने चेक अप किया और कहा, "घबराने की बात नहीं है... कमर के नीचे हल्की सी मोच है... आप ये दर्द की दवाई लो और ये बाम दिन में तीन-चार दफ़ा लगा कर मालिश करो... आपकी चोट जल्दी ही ठीक हो जायेगी!"
डॉक्टर के जाने के बाद अज़रा ने रुखसाना को दवाई दी और बाम से मालिश भी की। शाम को फ़ारूक और सुनील घर वापस आये तो अज़रा ने डोर खोला। फ़ारूक बाहर से ही भड़क उठा। रुखसाना को बेडरूम में उसकी आवाज़ सुनायी दे रही थी, "भाभी जान! आपने क्यों तकलीफ़ की... वो रुखसाना कहाँ मर गयी... वो दरवाजा नहीं खोल सकती थी क्या?"
अज़रा: "अरे फ़ारूक मियाँ! इतना क्यों भड़क रहे हो... वो बेचारी तो सीढ़ियों से गिर गयी थी... चोट आयी है... उसे डॉक्टर ने आराम करने को कहा है!"
सुनील ऊपर जाने से पहले रुखसाना के कमरे में हालचाल पूछ कर गया। सुनील का अपने लिये इस तरह फ़िक्र ज़ाहिर करना रुखसाना को बहोत अच्छा लगा। रुखसाना ने सोचा कि एक उसका शौहर था जिसने कि उसका हालचाल भी पूछना जरूरी नहीं समझा। रात का खाना अज़रा ने तैयार किया और फ़ारूक सुनील को ऊपर खाना दे आया। फ़ारूक आज मटन लाया था जिसे अज़रा ने बनाया था।
उसके बाद फ़ारूक और अज़रा दोनों शराब पीने बैठ गये और अपनी रंगरलियों में मशगूल हो गये। थोड़ी देर बाद दोनों नशे की हालत में बेडरूम में आये जहाँ रुखसाना आँखें बंद किये लेटी थी और चूमाचाटी शुरू कर दी। रुखसाना बेड पर लेटी उनकी ये सब हर्कतें देख कर खून के आँसू पी रही थी। उन दोनों को लगा कि रुखसाना सो चुकी है जबकि असल में वो जाग रही थी। वैसे उन दोनों पे रुखसाना के जागने या ना जागने से कोई फर्क़ नहीं पड़ता था।
"फ़ारूक मियाँ! अब आप में वो बात नहीं रही!" अज़रा ने फ़ारूक का लंड को चूसते हुए शरारत भरे लहज़े में कहा।
फ़ारूक: "क्या हुआ जानेमन... किस बात की कमी है?"
अज़रा: "हम्म देखो ना... पहले तो ये मेरी फुद्दी देखते ही खड़ा हो जाता था और अब देखो दस मिनट हो गये इसके चुप्पे लगाते हुए... अभी तक सही से खड़ा नहीं हुआ है!"
फ़ारूक: "आहह तो जल्दी किसे है मेरी जान! थोड़ी देर और चूस ले फिर मैं तेरी चूत और गाँड दोनों का कीमा बनाता हूँ!"
"अरे फ़ारूक़ मियाँ अब रहने भी दो... खुदा के वास्ते चूत या गाँड मे से किसी एक को ही ठीक से चोद लो तो गनिमत है...!" अज़रा ने तंज़ किया और फिर उसका लंड चूसने लगी।
थोड़ी देर बाद अज़रा फ़ारूक के लंड पर सवार हो गयी और ऊपर नीचे होने लगी। उसकी मस्ती भरी कराहें कमरे में गुँज रही थी। रुखसाना के लिये ये कोई नयी बात नहीं थी लेकिन हर बार जब भी वो अज़रा को फ़ारूक़ के साथ इस तरह चुदाई के मज़े लेते देखती थी तो उसके सीने पे जैसे कट्टारें चल जाती थी। थोड़ी देर बाद उन दोनों के मुतमाइन होने के बाद रुखसना को अज़रा के बोलने की आवाज़ आयी, "फ़ारूक मैं कल घर वापस जा रही हूँ!"
फ़ारूक: "क्यों अब क्या हो गया..?"
अज़रा: "मैं यहाँ तुम्हारे घर का काम करने नहीं आयी... ये तुम्हारी बीवी जो अपनी कमर तुड़वा कर बेड पर पसर गयी है... मुझे इसकी चाकरी नहीं करनी... मैं घर जा रही हूँ कल!"
रुखसाना को बेहद खुशी महसूस हुई कि चलो सीढ़ियों से गिरने का कुछ तो फ़ायदा हुआ। वैसे भी उसे इतना दर्द नहीं हुआ था जितना की वो ज़ाहिर कर रही थी। उसे गिरने से कमर में चोट जरूर लगी थी लेकिन शाम तक दवाई और बाम से मालिश करने कि वजह से उसका दर्द बिल्कुल दूर हो चुका था लेकिन वो अज़रा को परेशान करने के लिये दर्द होने का नाटक ज़ारी रखे हुए थी।
फ़ारूक: "अज़रा मेरे जान... कल मत जाना...!"
अज़रा: "क्यों... मैंने कहा नहीं था तुम्हें कि तुम मेरे घर आ जाओ... तुम्हें तो पता है तुम्हारे भाई जान दिल्ली गये हैं... दस दिनों के लिये घर पर कोई नहीं है!"
फ़ारूक: "तो ठीक है ना कल तक रुक जओ... मैं कल स्टेशान पे बात करके छुट्टी ले लेता हूँ... फिर परसों साथ में चलेंगे!"
उसके बाद दोनों सो गये। रुखसाना भी करवटें बदलते-बदलते सो गयी। अगली सुबह जब उठी तो देखा अज़रा ने नाश्ता तैयार किया हुआ था और फ़ारूक डॉयनिंग टेबल पर बैठा नाश्ता कर रहा था। फ़ारूक ने अज़रा से कहा कि ऊपर सुनील को थोड़ी देर बाद नाश्ता दे आये। दर असल उस दिन सुनील ने छुट्टी ले रखी थी क्योंकि सुनील को कुछ जरूरी सामान खरीदना था। फ़ारूक के जाने के बाद अज़रा ने नाश्ता ट्रे में रखा और ऊपर चली गयी। थोड़ी देर बाद जब अज़रा नीचे आयी तो रुखसाना ने नोटिस किया कि उसके होंठों पर कमीनी मुस्कान थी। पता नहीं क्यों पर रुखसाना को अज़रा के नियत ठीक नहीं लग रही थी।