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Adultery मजबूर (Completed)
#3
रुखसाना जैसे ही रूम मैं पहुँची तो फ़ारूक उसे देख कर बोला, "ये सुनील है... हमारे स्टेशन पर नये क्लर्क हैं... इनको ऊपर वाला कमरा दिखाने लाया था... अगर इनको रूम पसंद आया तो कल से ये ऊपर वाले रूम में रहेंगे... जा कुछ चाय नाश्ते का इंतज़ाम कर!"

सुनील: "अरे नहीं फ़ारूक भाई... इसकी कोई जरूरत नहीं है!"

फ़ारूक: "चलो यार चाय ना सही... एक-एक पेग हो जाये!"

सुनील: "नहीं फ़ारूक भाई... मैं पीता नहीं... मुझे बस रूम दिखा दो!" सुनील ने फ़ारूक से झूठ बोला था कि वो ड्रिंक नहीं करता पर असल में वो भी कभी-कभी ड्रिंक कर लिया करता था।

रुखसाना ने बड़ी खुशमिजाज़ी से सुनील को सलाम कहा तो उसने एक बार रुखसाना की तरफ़ देखा। वो सर झुकाये हुए उनकी बातें सुन रही थी। रुखसाना ने कढ़ाई वाला गहरे नीले रंग का सलवार- कमीज़ पहना हुआ था और बड़ी शालीनता से दुपट्टा अपने सीने पे लिया हुआ था। खुले लहराते लंबे बाल और चेहरे पे सौम्य मेक-अप था और पैरों में ऊँची हील की चप्पल पहनी हुई थी। रुखसाना की आकर्षक शख्सियत से सुनील काफ़ी इंप्रेस हुआ। रुखसाना को भी सुनील शरीफ़ और माकूल लड़का लगा। सुनील भी अच्छी पर्सनैलिटी वाला लड़का था। हट्टा-कट्टा कसरती जिस्म था और उसके चिकने चेहरे पे कम्सिनी और मासूमियत की झलक थी। दिखने में वो बारहवीं क्लास या कॉलेज के स्टूडेंट जैसा लगता था।

फ़ारूक बोले, "चलो तुम्हें रूम दिखा देता हूँ!" फिर सुनील फ़ारूक के साथ छत पर चला गया। सुनील को घर और ऊपर वाला रूम बेहद पसंद आया। अंदर बेड, दो कुर्सियाँ और स्टडी टेबल मौजूद थी। बाथरूम और टॉयलेट छत के दूसरी तरफ़ थे लेकिन वो भी साफ़-सुथरे थे। रूम देखने के बाद सुनील ने फ़ारूक से पूछा, "बताइये फ़ारूक भाई... कितना किराया लेंगे आप...?" फ़ारूक ने सुनील की तरफ़ देखते हुए कहा, "अरे यार जो भी तुम्हारा बजट हो दे देना!"

रूम का और खाने-पीने का मिला कर साढ़े तीन हज़ार महीने का किराया तय करने के बाद फिर सुनील ने फ़ारूक से रुखसाना और उसके रिश्ते के बारे में पूछा तो फ़ारूक ने बताया कि रुखसाना उसकी बीवी है। सुनील को लगा था कि रुखसाना फ़ारूक की बड़ी बेटी है शायद।

फ़ारूक: "वो दर असल सुनील बात ये है कि, रुखसाना मेरे दूसरी बीवी है। जब मैं चौबीस साल का था तब मेरी पहली शादी हुई थी और पहली बीवी से सानिया हुई थी... शादी के तेरह साल बाद मेरी पहली बीवी की मौत हो गयी... फिर मैंने अपनी बीवी की मौत के बाद अढ़तीस साल की उम्र में रुखसाना से शादी की। रुखसाना की भी पहले शादी हुई थी... लेकिन उसके शौहर की भी मौत हो गयी और बाद में जब रुखसाना तेईस साल की थी तब मेरी और रुखसाना की शादी हुई!"

अब सारा मसला सुनील के सामने था। थोड़ी देर बाद सुनील वापस चला गया। अगले दिन शाम को सुनील फ़ारूक के साथ ऑटो से अपना सामान ले कर आ गया और फिर अपना सामन ऊपर वाले रूम में सेट करने लगा।

फ़ारूक: "अच्छा सुनील... गरमी बहुत है... तुम नहा धो लो... फिर रात के खाने पर मिलते हैं!" उसके बाद नीचे आने के बाद फ़ारूक ने रुखसाना से बोला, "जल्दी से रात का खाना तैयार कर दो... मैं थोड़ी देर बाहर टहल कर आता हूँ!" ये कह कर फ़ारूक बाहर चला गया। रुखसाना जानती थी कि फ़ारूक अब कहीं जाकर दारू पीने बैठ जायेगा और पता नहीं कब नशे में धुत्त वापस आयेगा। इसलिये उसने खाना तैयार करना शुरू कर दिया। आधे घंटे में रुखसाना और सानिया ने मिल कर खाना तैयार कर लिया। अभी वो खाना डॉयनिंग टेबल पे लगा ही रही थी कि लाइट चली गयी। ऊपर से इतनी गरमी थी कि नीचे तो साँस लेना भी मुश्किल हो रहा था।

रुखसाना ने सोचा कि क्यों ना सुनील को ऊपर ही खाना दे आये। इसलिये उसने खाना थाली में डाला और ऊपर ले गयी। जैसे ही वो ऊपर पहुँची तो लाइट भी आ गयी। सुनील के रूम की तरफ़ बढ़ते हुए उसके ज़हन में अजीब सा डर उमड़ रहा था। रूम का दरवाजा खुला हुआ था। रुखसाना सिर को झुकाये हुए रूम में दाखिल हुई तो उसके सैंडलों की आहट सुन कर सुनील ने पीछे पलट कर उसकी तरफ़ देखा।

"हाय तौबा..." रुखसाना ने मन में ही आह भरी क्योंकि सुनील सिर्फ़ ट्रैक सूट का लोअर पहने खड़ा था उसने ऊपर बनियान वगैरह कुछ नहीं पहना हुआ था। रुखसाना की नज़रें उसकी चौड़ी छाती पर ही जम गयीं... एक दम चौड़ा सीना माँसल बाहें... एक दम कसरती जिस्म! रुखसाना ने अपनी नज़रों को बहुत हटाने की कोशिश की... पर पता नहीं क्यों बार-बार उसकी नज़रें सुनील की चौड़ी छाती पर जाकर टिक जाती।

रुखसाना: "जी वो मैं आपके लिये खाना लायी थी!"

अभी सुनील कुछ बोलने ही वाला था कि एक बार फिर से लाइट चली गयी और रूम में एक दम से घुप्प अंधेरा छा गया। एक जवान लड़के के साथ अपने आप को अंधेरे रूम में पा कर रुखसाना एक दम से घबरा गयी। उसने हड़बड़ाते हुए कहा, "मैं नीचे से एमर्जेंसी लाइट ला देती हूँ!" पर सुनील ने उसे रोक दिया, "अरे नहीं आप वहीं खड़ी रहिये... आप मुझे बता दो एमर्जेंसी लाइट कहाँ रखी है... मैं ले कर आता हूँ!" रुखसाना ने उसे बता दिया कि एमर्जेंसी लाइट नीचे डॉयनिंग टेबल पे ही रखी है तो सुनील अंधेरे में नीचे चला गया और फिर थोड़ी देर बाद सुनील एमर्जेंसी लाइट ले कर आ गया और उसे टेबल पर रख दिया।

जैसे ही एमर्जेंसी लाइट की रोशनी रूम में फैली तो रुखसाना की नज़र एक बार फिर उसके गठीले जिस्म पर जा ठहरी। पसीने से भीगा हुआ उसका कसरती जिस्म एमर्जेंसी लाइट की रोशनी में ऐसे चमक रहा था मानो जैसे सोना हो। रुखसाना को सबसे अच्छी बात ये लगी कि सुनील के सीने या पेट पर एक भी बाल नहीं था। बिल्कुल चीकना सीना था उसका। रुखसाना को खुद आपने जिस्म पे भी बाल पसंद नहीं थे और वो बाकायदा वेक्सिंग करती थी। यहाँ तक कि अपनी चूत भी एक दम साफ़ रखती थी जबकि उसे चोदने वाला या उसकी चूत की कद्र करने वाला कोई नहीं था। तभी सुनील उसकी तरफ़ बढ़ा और रुखसाना की आँखों में झाँकते हुए उसके हाथ से खाने की थाली पकड़ ली। रुखसाना ने शरमा कर नज़रें झुका ली और हड़बड़ाते हुए बोली, "मैं बाहर चारपाई बिछा देती हूँ... आप बाहर बैठ कर आराम से खाना खा लीजिये...!"

रूखसाना बाहर आयी और बाहर चारपाई बिछा दी। सुनील भी खाने की थाली लेकर चारपाई पर बैठ गया।

"फ़ारूक भाई कहाँ हैं...?" सुनील ने खाने की थाली अपने सामने रखते हुए पूछा पर रुखसाना ने सुनील की आवाज़ नही सुनी... वो तो अभी भी उसके बाइसेप्स देख रही थी। जब रुखसाना ने उसकी बात का जवाब नहीं दिया तो वो उसकी और देखते हुए दोबारा फ़ारूक के बारे में पूछने लगा। सुनील की आवाज़ सुन कर रुखसाना होश में आयी और एक दम से झेंप गयी और सिर झुका कर बोली "पता नहीं कहीं पी रहे होंगे... रात को देर से ही घर आते हैं!"

सुनील: "अच्छा कोई बात नहीं... उफ़्फ़ ये गरमी... इतनी गरमी में खाना खाना भी मुश्किल हो जाता है!"

रुखसाना सुनील की बात सुन कर रूम में चली गयी और हाथ से हिलाने वाला पंखा लेकर बाहर आ गयी और सुनील के पास जाकर बोली, "आप खाना खा लीजिये... मैं हवा कर देती हूँ...!"

सुनील: "अरे नहीं-नहीं... मैं खा लुँगा आप क्यों तकलीफ़ कर रही हैं!"

रुखसाना: "इसमें तकलीफ़ की क्या बात है... आप खाना खा लीजिये!"

सुनील चारपाई पर बैठ कर खाना खाने लगा और रुखसाना सुनील के करीब चारपाई के बगल में दीवार के सहारे खड़ी होकर खुद को और सुनील को पंखे से हवा करने लगी। "अरे आप खड़ी क्यों हैं... बैठिये ना!" सुनील ने उसे यूँ खड़ा हुआ देख कर कहा।

"नहीं कोई बात नहीं... मैं ठीक हूँ...!" रुखसाना ने अपने सर को झुकाये हुए कहा।

सुनील: "नहीं रुखसाना जी! ऐसे अच्छा नहीं लगता मुझे कि मैं आराम से खाना खाऊँ और आप खड़ी होकर मुझे पंखे से हवा दें... मुझे अच्छा नहीं लगता... आप बैठिये ना!" अंजाने में ही उसने रुखसाना का नाम बोल दिया था पर उसे जल्दी ही एहसास हो गया। "सॉरी मैंने आप का नाम लेकर बुलाया... वो जल्दबाजी में बोल गया!"

रुखसाना: "कोई बात नहीं...!"

सुनील: "अच्छा ठीक है... अगर आपको ऐतराज़ ना हो तो आज से मैं आपको भाभी कहुँगा क्योंकि मैं फ़ारूक साहब को भाई बुलाता हूँ... अगर आपको बुरा ना लगे।"

रुखसाना: "जी मुझे क्यों बुरा लगेगा!"

सुनील: "अच्छा भाभी जी... अब ज़रा आप बैठने की तकलीफ़ करेंगी!"

सुनील की बात सुन कर रुखसाना को हंसी आ गयी और फिर सामने चारपाई पे पैर नीचे लटका कर बैठ गयी और पंखा हिलाने लगी। सुनील फिर बोला, "भाभी जी एक और गुज़ारिश है आपसे... प्लीज़ आप भी मुझे 'आप-आप' कह कर ना बुलायें... उम्र में मैं बहुत छोटा हूँ आपसे... मुझे नाम से बुलायें प्लीज़!"

"ठीक है सुनील अब चुपचाप खाना खाओ तुम!" रुखसाना हंसते हुए बोली। उसे सुनील का हंसमुख मिजाज़ बहोत अच्छा लगा।

सुनील खाना खाते हुए बार-बार रुखसाना को चोर नज़रों से देख रहा था। एमर्जेंसी लाइट की रोशनी में रुखसाना का हुस्न भी दमक रहा था। बड़ी- बड़ी भूरे रंग की आँखें... तीखे नयन नक्श... गुलाब जैसे रसीले होंठ... लंबे खुले हुए बाल... सुराही दार गर्दन... रुखसाना का हुस्न किसी हूर से कम नहीं था।

रुखसाना ने गौर किया कि सुनील की नज़र बार-बार या तो ऊँची हील वाली चप्पल में उसके गोरे-गोरे पैरों पर या फिर उसकी चूचियों पर रुक जाती। गहरे नीले रंग की कमीज़ में रुखसाना की गोरे रंग की चूचियाँ गजब ढा रही थी... बड़ी-बड़ी और गोल-गोल गुदाज चूचियाँ। इसका एहसास रुखसाना को तब हुआ जब उसने सुनील की पतली ट्रैक पैंट में तने हुए लंड की हल चल को देखा। खैर सुनील ने जैसे तैसे खाना खाया और हाथ धोने के लिये बाथरूम में चला गया। इतने में लाइट भी आ गयी थी। जब वो बाथरूम में गया तो रुखसाना ने बर्तन उठाये और नीचे आ गयी। नीचे आकर उसने बर्तन किचन में रखे और अपने बेड पर आकर लेट गयी, "ओहहहह आज ना जाने मुझे क्या हो रहा है....?" अजीब सी बेचैनी महसूस हो रही थी उसे। बेड पर लेटे हुए उसने जैसे ही अपनी आँखें बंद की तो सुनील का चिकना चेहरा और उसकी चौड़ी छाती और मजबूत बाइसेप्स उसकी आँखों के सामने आ गये। पेट के निचले हिस्से में कुछ अजीब सा महसूस होने लगा था... रह-रह कर इक्कीस साल के नौजवान सुनील की तस्वीर आँखों के सामने से घूम जाती।

रुखसाना पेट के बल लेटी हुई अपनी टाँगों के बीच में अपना हाथ चूत पर दबा कर अपने से पंद्रह साल छोटे लड़के का तसव्वुर कर कर रही थी... किस तरह सुनील उसकी चूचियों को निहार रहा था... कैसे उसकी ऊँची हील की चप्पल में उसके गोरे-गोरे पैरों को देखते हुए सुनील का लंड ट्रैक पैंट में उछल रहा था। रुखसाना का हाथ अब उसकी सलवार में दाखिल हुआ ही था कि तभी वो ख्वाबों की दुनिया से बाहर आयी जब सानिया रूम में अंदर दाखिल होते हुए बोली... "अम्मी क्या हुआ खाना नहीं खाना क्या?"

रुखसाना एक दम से बेड पर उठ कर बैठ गयी और अपनी साँसें संभालते हुए अपने बिखरे हुए बालों को ठीक करने लगी। सानिया उसके पास आकर बेड पर बैठ गयी और उसके माथे पर हाथ लगा कर देखते हुए बोली, "अम्मी आप ठीक तो हो ना?"

रुखसाना: "हाँ... हाँ ठीक हूँ... मुझे क्या हुआ है?"

सानिया: "आपका जिस्म बहोत गरम है... और ऊपर से आपका चेहरा भी एक दम लाल है!"

रुखसाना: "नहीं कुछ नहीं हुआ... वो शायद गरमी के वजह से है... तू चल मैं खाना लगाती हूँ!"

फिर रुखसाना और सानिया ने मिल कर खाना खाया और किचन संभालने लगी। तभी फ़ारूक भी आ गया। जब रुखसाना ने उससे खाने का पूछा तो उसने कहा कि वो बाहर से ही खाना खा कर आया है। फ़ारूक शराब के नशे में एक दम धुत्त बेड पर जाकर लेट गया और बेड पर लेटते ही सो गया। रुखसाना ने भी अपना काम खतम किया और वो लेट गयी। करवटें बदलते हुए कब उसे नींद आयी उसे पता ही नहीं चला। सुबह- सुबह फ़ारूक ने ऊपर जाकर सुनील के रूम का दरवाजा खटकटाया। सुनील ने दरवाजा खोला तो फ़ारूक सुनील को देखते हुए बोला "अरे यार सुनील... मुझे माफ़ कर दो... कल तुम्हारा यहाँ पहला दिन था... और मेरी वजह से..."

सुनील: "अरे फ़ारूक भाई कोई बात नहीं... अब जबकि मैं आपके घर में रह रहा हूँ तो मुझे बेगाना ना समझें..!"

फ़ारूक: "अच्छा तुम तैयार होकर आ जाओ... आज नाश्ता नीचे मेरे साथ करना!"

सुनील: "अच्छा ठीक है मैं तैयार होकर आता हूँ!"

फ़ारूक नीचे आ गया और रुखसाना को जल्दी नाश्ता तैयार करने को कहा। थोड़ी देर बाद सुनील तैयार होकर नीचे आ गया। रुखसाना ने नाश्ता टेबल पर रखते हुए सुनील के जानिब देखा तो उसने रुखसाना को सलाम कहा। रुखसाना ने भी मुस्कुरा कर उसे जवाब दिया और नाश्ता रख कर फिर से किचन में आ गयी। नाश्ते के बाद सुनील और फ़ारूक स्टेशन पर चले गये।
 
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मजबूर (Completed) - by fasterboy - 08-04-2020, 05:50 PM
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RE: मजबूर (Completed) - by fasterboy - 08-04-2020, 06:47 PM
RE: मजबूर (Completed) - by fasterboy - 08-04-2020, 06:50 PM
RE: मजबूर (Completed) - by fasterboy - 08-04-2020, 06:52 PM
RE: मजबूर (Completed) - by fasterboy - 08-04-2020, 07:01 PM
RE: मजबूर (Completed) - by kamdev99008 - 12-04-2020, 02:48 AM
RE: मजबूर (Completed) - by fasterboy - 12-04-2020, 06:54 PM
RE: मजबूर (Completed) - by Thor - 12-04-2020, 07:04 PM



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